Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"...फिर मैंने पुलिस को फोन कर दिया ।" - सुनील बोला ।
वह पुलिस हैडक्वार्टर में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल के कमरे में बैठा था । कमरे में तीन पुलिस अधिकारी और थे और एक स्टेनो था जो सुनील का बयान नोट कर रहा था ।
"बस ?" - प्रभूदयाल ने पूछा ।
"बस ।"
"कहानी शानदार है । फिर से सुनाओ ।"
"अभी कहानी कितनी बार और सुनानी पड़ेगी मुझे ?"
"गिनती मत गिनो ।" - प्रभूदयाल कठोर स्वर से बोला - "सुनाते रहो । तब तक सुनाते रहो न हो जाये कि तुम्हारी कहानी कहानी, नहीं हकीकत है ।"
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर नये सिरे से सारी कहानी सुनानी आरम्भ कर दी । सारी घटना को वह सातवीं बार दोहरा रहा था ।
सुबह के चार बजे प्रभूदयाल ने उसके सामने कुछ टाइप किये कागजात पटके और बोला - "कोई एतराज के काबिल बात न दिखाई दे तो इस पर हस्ताक्षर करो और दफा हो जाओ ।"
सुनील पढने लगा । उसे कहीं एतराज के काबिल बात दिखाई न दी । वह उसका अपना ही बयान था ।
उसने हस्ताक्षर कर दिये ।
"फूटो ।" - प्रभूदयाल कागज सम्भालता हुआ बोला ।
"हैरानी है ।" - सुनील उठता हुआ बोला ।
"किस बात की ?"
"इस बार तुमने मुझे हथकड़ी नहीं पहनाई । मुझे जेल में नहीं डाला । मुझ पर केस नहीं बनाया । बस मेरे बयान पर मुझ से साइन कराए और छोड़ दिया ।"
"बस इसलिये क्योंकि इस बार राजनगर के कई प्रसिद्ध वकील तुम्हारे बचाव के लिये मोर्चा बनाये बाहर खड़े हुए हैं ।" - प्रभूदयाल जलकर बोला - "उन्हें मौका मिलने की देर है और वे मेरी ऐसी-तैसी करके रख देंगे ।"
"तुम किन वकीलों की बात कर रहे हो ?"
"जो तुम्हारा प्रतिनिधित्व करने के लिये बाहर जमघट लगाये खड़े हैं ।"
"यानी कि मैं यहां से पहले भी जा सकता था ?"
"हां ।"
"और तुमने मेरे वकीलों से झूठ बोलकर मुझे यहां फंसाये रखा ?"
"हां ।"
"ऐसी की तैसी तुम्हारी ।"
"गाली दे लो । कोई बात नहीं । लेकिन अगर यह बात तुमने जाकर वकीलों की फौज को बताई या उन्हें मेरे बारे में भड़काया तो बाई गॉड मैं तुम्हारी हड्डी-पसली एक कर दूंगा ।"
"धमकी दे रहे हो ?"
"हां ।"
"बड़े कमीने आदमी हो । अगर मैं मर गया तो ?"
"तो हिन्दुस्तान के पचास करोड़ आदमियों में से एक आदमी कम हो जाएगा ।" - प्रभूदयाल लापरवाही से बोला ।
"लानत है तुम पर ।" - सुनील बोला और भुनभुनाता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
पूरन सिंह ने बिन्दु को सुरक्षित घर पहुंचा दिया था । बिन्दु ने मादक नशों का प्रयोग अभी आरम्भ ही किया था । वह अभी उनके सेवन की आदी नहीं बनी थी । कुछ दिन हस्पताल में रहने के बाद वह ठीक हो गई । उस सारी घटना का बिन्दु के जीवन पर बहुत भारी प्रभाव पड़ा । होश में आने के बाद उसने कावेरी के पांव पकड़ लिये और फूट-फूटकर रोई । मां-बेटी में मिलाप हो गया । हस्पताल में आने के बाद बिन्दु एकदम सम्भल गई । उसने अपने हिप्पियों जैसे सारे परिधान और बाकी चीजें सड़क पर फेंक दी । मैड हाउस जैसी जगह की ओर उसने दुबारा झांक कर भी न देखा ।
कावेरी की निगाहों में सुनील ने उसके परिवार पर वह अहसान किया था जिसका बदला वह जन्म-जन्मान्तर तक नहीं चुका सकती थी । उसने सुनील को कुछ धन देना चाहा जिस पर वह बहुत क्रोधित हुआ । मंगत राम ने सुनील को एक चैक पुरस्कार रूप में भिजवाया जो सुनील ने रमाकांत को दे दिया ।
चैक की रकम एक दर्जन रमाकांतों का नगदऊ का लालच शान्त करने के लिये काफी थी ।
समाप्त
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