Thriller विक्षिप्त हत्यारा
चाकू उसके पेट में घुस गया था । उसके शरीर से बाहर केवल चाकू का हैंडल दिखाई दे रहा था ।
उसके कांपते हुए हाथ पेट में घुसे चाकू के हैंडल की ओर बढे । दोनों हाथों से उसने मजबूती से हैंडल थाम लिया और उसे बाहर खींचने की कोशिश करने लगा । फिर हैंडल से उसके हाथ अलग हट गये । शायद चाकू बाहर खींच पाने की शक्ति उसमें नहीं रही थी । उसकी आंखों में मौत का साया तैरने लगा था ।
"राम ! राम !" - उखड़ती हुई सांसों के बीच में उस के मुंह से निकला - "राम ! राम... म !"
पता नहीं वह अन्तिम समय में भगवान को याद कर रहा था या अपने भाई को सहायता के लिये पुकार रहा था ।
राम ललवानी तेजी से अपने भाई की ओर लपका ।
उसी क्षण मुकुल के मुंह से खून का फव्वारा सा फूटा, वह आखिरी बार छटपटाया और फिर शान्त हो गया ।
"मनोहर ! मनोहर !" - राम ललवानी उसकी लाश के समीप बैठा धीरे-धीरे पुकार रहा था ।
मुकुल उर्फ मनोहर मर चुका था ।
राम ललवानी उठकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया । वह सुनील की ओर घूमा । उसके हाथ में रिवाल्वर थी । उसकी आंखों से खून बरस रहा था ।
उसने अपना रिवाल्वर वाला हाथ ऊंचा किया ।
सुनील ने अपनी दाईं कलाई सीधी की और स्लीव गन के शिकंजे पर जोर डाला ।
जहर से बुझा छोटा सा तीर तेजी से स्लीव गन में निकला और राम ललवानी की जाकर छाती में घुस गया ।
राम ललवानी की रिवाल्वर से फायर हुआ । गोली छत से जाकर टकराई । तीर की वजह से उसका निशाना चूक गया था । दोबारा गोली चलाने का मौका ललवानी को न मिला, रिवाल्वर उसके हाथ से निकली और भड़ाक की आवाज से फर्श पर आ गिरा । राम ललवानी का चेहरा राख की तरह सफेद हो गया । वह तनिक लड़खड़ाया और फिर धड़ाम से अपने भाई की रक्त में डूबी लाश के ऊपर जा गिरा ।
सुनील रिवाल्वर की ओर झपटा ।
उसी क्षण भड़ाक से कमरे का दरवाजा खुला ।
"खबरदार !" - कोई चिल्लाया ।
सुनील ठिठकर कर खड़ा हो गया । उसने घूमकर देखा । दरवाजे पर हाथ में रिवाल्वर लिये पूरन सिंह खड़ा था ।
"ये कैसे मरे ?" - पूरन सिंह ने पूछा । उसके हाथ में रिवाल्वर थी ।
"मुकुल चाकू लेकर मुझ पर झपटा था लेकिन एक कुर्सी से उलझकर गिर पड़ा था और अपने ही चाकू का शिकार हो गया था । राम ललवानी मुझे शूट करना चाहता था लेकिन मैंने उससे पहले उसे अपने हथियार का निशाना बना लिया ।"
"कैसा हथियार ?"
सुनील ने कोट की बांह ऊंची करके पूरन सिंह को स्लीव गन दिखाई और बोला - "इस बांस की नली में से जहर से बुझा तीर निकलता है ।"
पूरन सिंह के नेत्र फैल गये ।
बिन्दु एक शराबी की तरह सुनील की बांहों में झूल रही थी ।
"यह लड़की कौन है ?" - पूरन सिंह ने पूछा ।
"यह रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की लड़की है । मुकुल इसे भगाकर लाया था । उसने इसे कोई मादक पदार्थ खिला दिया है । इस समय इसे अपनी होश नहीं है । मेरे ख्याल से इसे यह भी नहीं मालूम है कि यह कहां है । इस घर में इस लड़की की मौजूदगी यहां मौजूद हर आदमी के लिये समस्या बन सकती है । पूरन सिंह, मेरी बात मानो । इसकी कोठी पर इसकी मां कावेरी को फोन कर दो कि तुम इसे लेकर आ रहे हो । फोन नम्बर मैं बताये देता हूं । इसे चुपचाप कोठी पर छोड़ आओ और यह बात बिल्कुल भूल जाओ कि तुमने कभी इसकी सूरत भी देखी थी । अगर तुम अपनी जुबान बन्द रखोगे तो किसी को यह मालूम नहीं हो सकेगा कि यह कभी यहां आई थी और जब ललवानी भाई दम तोड़ रहे थे तो यह भी यहां मौजूद थी । तुम्हारी इस सेवा के बदले में मैं तुम्हें नकद दो हजार रुपये दिलवाने का वायदा करता हूं ।"
पूरन सिंह सोचने लगा ।
"यह रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल की लड़की है ?" - थोड़ी देर बाद पूरन बोला ।
"हां ।" - सुनील बोला ।
"फिर पांच ।"
"क्या पांच ?"
"पांच हजार रुपये ।"
"आल राइट ।"
"रुपये कब मिलेंगे ?"
"जब यह सुरक्षित कोठी पर पहुंच जायेगी ।"
"यह पहुंच गई समझो ।"
"तुम्हें रुपये मिल गये समझो । मैं कावेरी को फोन कर दूंगा ।"
पूरन सिंह ने रिवाल्वर जेब में रख ली और बिन्दु की ओर हाथ बढा दिया ।
सुनील ने बिन्दु का हाथ थमा दिया । बिन्दु चुपचाप पूरन सिंह के साथ हो ली ।
उसी कमरे में टेलीफोन रखा था । सुनील ने पहले कावेरी को और फिर पुलिस हैडक्वार्टर को फोन कर दिया । उसने कोट की जेब में से अपने जूते निकाले और उन्हें पैरों में पहन लिया । लाशों की ओर से पीठ फेरकर वह एक कुर्सी पर बैठ गया और पुलिस के आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
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