Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"मैं एक साल इन्तजार कर सकता हूं और इस बात की स्कीम भी मेरे दिमाग में है कि उस एक साल के अरसे में मैं कावेरी की जुबान कैसे बन्द रखूंगा ।"
"तुम उसे धमकाओगे ?"
मुकुल चुप रहा ।
"और दूसरा काम क्या था ?" - राम ललवानी ने पूछा ।
मुकुल ने उत्तर न दिया । पिछले कुछ क्षणों में जो आत्मविश्वास उसने स्वयं में पैदा किया था, वह दोबारा हवा में उड़ा जा रहा था । उसके होंठ फिर कांपने लगे ।
"दूसरा क्या काम था ?" - राम ललवानी गर्ज पर बोला - "बकते क्यों नहीं हो ?"
मुकुल नहीं बोला ।
"दूसरा काम यह था कि इसने फ्लोरी की हत्या करनी थी ।" - सुनील बोला ।
"तुमने फ्लोरी की हत्या की ?" - ललवानी ने पूछा ।
मुकुल निगाहें चुराने लगा ।
"फ्लोरी की हत्या से यह कैसे इनकार कर सकता है ?" - सुनील व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - "वहां यह अपना ट्रेड मार्क छोड़कर आया है । फ्लोरी की हजार टुकड़ों में बंटी हुई लाश ही क्या इस बात का सुबूत नहीं कि इसने फ्लोरी की हत्या की है !"
"तुम चुप रहो ।" - राम ललवानी फुंफकार कर बोला । उसने आगे बढकर मुकुल का कालर पकड़ लिया और उसे झिंझोड़ता हुआ बोला - "तुमने उस लड़की की हत्या की है ?"
"राम" - मुकुल कम्पित स्वर में बोला - "राम - उस - लड़की के पास म.. मेरी तस्वीर का नैगेटिव था ।"
राम ललवानी ने उसका कालर छोड़ दिया और उससे अलग हट गया । उसके चेहरे पर क्रोध के स्पष्ट चिन्ह अंकित थे ।
"नैगेटिव की खातिर तुमने उस निर्दोष लड़की को कसाई की तरह काट डाला ।" - सुनील बोला ।
"वह नैगेटिव देती नहीं थी ।" - मुकुल यूं बोला जैसे ख्वाब में बड़बड़ा रहा हो ।
मुकुल ने अपने हाथों में अपना मुंह छुपा लिया और फूट-फूट कर रोने लगा ।
बिन्दु बेखबर रिकार्ड सुन रही थी ।
"मैंने... मैंने" - मुकुल रोता हुआ बोला - "अपने कपड़े उतार दिये और उसके साथ..."
"लेकिन हमेशा की तरह तुमसे कुछ हुआ नहीं ।" - सुनील बोला ।
"मैं पागल हो गया । मैंने चाकू अपने हाथ में ले लिया और उसे उसकी बाईं छाती में घोंप दिया । फिर मैंने उस की जांघ काट डाली । उसकी पिंडलियां उधेड़ डालीं, उसकी छातियों को पहले तरबूजे की तरह काटा और फिर जड़ से काट दिया । और फिर उसके शरीर की ओर देखा । उस समय उस लड़की का शरीर खूबसूरत नहीं लग रहा था इसलिये उत्तेजक भी नहीं था । मैं चुपचाप कमरे से बाहर निकल आया ।"
कई क्षण फिर खामोशी छा गई । रेडियोग्राम से निकलते संगीत के स्वरों के साथ-साथ मुकुल के धीरे-धीरे सुबकने की आवाज कमरे में गूंज रही थी ।
"रोना बन्द करो ।" - राम ललवानी दहाड़कर बोला ।
मुकुल ने सिर उठाकर राम की ओर देखा । वह स्वयं को नियन्त्रित करने का प्रयत्न करने लगा ।
"जिसको अपनी वीरता का कारनामा सुना रहे थे" - राम ललवानी सुनील की तरफ संकेत करता हुआ बोला - "अब इसका क्या करोगे ?"
मुकुल मुंह से कुछ न बोला । उसने अपने आंसू पोंछे और धीरे से अपनी पतलून की जेब में हाथ डाला । जब उसने हाथ बाहर निकाला तो उसके हाथ में चाकू चमक रहा था । उसने चाकू के हत्थे में लगा बटन दबाया । चाकू का लम्बा फल एकदम हवा में लहरा गया । शायद मुकुल के पास हर समस्या का एक ही हल था ।
वह चाकू वाला हाथ अपने सामने किये धीरे-धीरे आगे बढा ।
सुनील सावधान हो गया ।
राम ललवानी ने कुछ कहने के लिये अपना मुंह खोला लेकिन फिर उसने अपना इरादा बदल दिया ।
एकाएक मुकुल ने सुनील पर छलांग लगा दी । सुनील यूं एक ओर कूदा जैसे क्रिकेट का खिलाड़ी कैच लेने के लिये डाई मारता है । उसका शरीर भड़ाक से नंगे फर्श से टकराया । उस के शरीर की चूलें हिल गईं ।
मुकुल फिर उस पर झपटा ।
सुनील ने करवट बदली और अपनी पूर्ण शक्ति से एक कुर्सी को पांव की ठोकर मारी । कुर्सी एकदम उसकी ओर बढते हुए मुकुल के सामने जाकर गिरी । मुकुल कुर्सी की टांगों में उलझा और फिर कुर्सी के साथ उलझा-उलझा ही धड़ाम से फर्श पर आकर गिरा ।
फिर एकाएक वातावरण में एक हृदयविदारक चीख गूंज उठी । चीख की आवाज का प्रभाव बिन्दु पर भी पड़ा । उसने रेडियोग्राम का स्विच बन्द कर दिया और उठकर खड़ी हो गई । वह विस्फारित नेत्रों से कभी फर्श पर गिरे मुकुल को, कभी राम ललवानी को और कभी सुनील को देख रही थी । उसके नेत्रों की पुतलियां फैली हुई थीं और होंठ मजबूती से भींचे हुए थे । वह अपने स्थान से न हिली । ऐसा लग रहा था जैसे मुकुल की चीख का प्रभाव उस पर हुआ हो लेकिन स्थिति को समझ पाने की क्षमता उसमें न हो ।
मुकुल अपने हाथों और घुटनों के सहारे उठने की कोशिश कर रहा था । चाकू कहीं दिखाई नहीं दे रहा था । उसके चेहरे पर तीव्र वेदना के भाव थे । उसकी आंखें मुंदी जा रही थीं । वह छोटे-छोटे उखड़े-उखड़े सांस ले रहा था । फिर एकाएक उसका शरीर उलटा और पीठ के बल फर्श पर आ गिरा ।
|