Thriller विक्षिप्त हत्यारा
कुछ क्षण बाद वह अपने स्थान से उठा और शीशे की खिड़की के सामने आ खड़ा हुआ ।
बाहर थोड़ी दूर उसे पहियों वाली कुर्सी पर बैठी वही औरत दिखाई दी जिसे वह पहले भी देख चुका था ।
आंखों में उदासी लिये वह अपने सामने फैले समुद्र को दूर तक देख रही थी । उसके चेहरे की खाल लटक गई थी और इतनी सफेद थी जैसे शरीर में से खून की आखिरी बूंद भी निचोड़ ली गई हो । उसके अधपके सूखे बाल हवा में उड़ रहे थे । वह कम-से-कम पैतालीस साल की जिन्दगी से हारी हुई औरत लग रही थी ।
"यह मेरी बेटी सुनीता है ।" - उसे अपने पीछे से सेठ का रुंधा हुआ स्वर सुनाई दिया - "इसकी उम्र सत्ताइस साल है ।"
सुनील ने घूम कर देखा । सेठ मंगत राम पता नहीं कब पीछे आ खड़ा हुआ था । उसकी आंखों में आंसू तैर रहे थे ।
सुनील चुप रहा ।
"सुनीता" - सेठ गहरी सांस लेकर बोला - "अपने पीछे छुट गये उच्छृंखल जीवन का बहुत बड़ा हरजाना चुका रही है और भगवान जाने कब तक चुकाती रहेगी ।"
सुनील चुप रहा ।
"मुकुल" - सेठ एकाएक स्वर बदलकर बोला - "फोर स्टार नाइट क्लब में नहीं है ।"
"आई सी । मैं राम ललवानी की शंकर रोड वाली कोठी पर पता करूंगा ।"
"ठीक है । बेटा, अब मैं तुम्हें रुपये की लालच नहीं दूंगा । रुपये का लालच तुम्हारे पर कोई भारी प्रभाव छोड़ता दिखाई नहीं देता इसलिये मैं इतना ही चाहता हूं कि अगर तुम मुकुल को तलाश कर पाये और तुम्हारी सहायता से मेरी बेटी इस जंजाल से निकल पायी तो मैं सारी जिन्दगी तुम्हारा अहसान नहीं भूलूंगा ।"
सेठ की आंखे फिर डबडबा आई ।
"मैं अपनी ओर से कोई कोशिश नहीं उठा रखूंगा, सेठ जी ।"
सुनील कोठी से बाहर निकला और अपनी मोटरसाइकल पर आ बैठा । मोटरसाइकल उसने राजनगर के भीतर की ओर दौड़ा दी ।
एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से उसने यूथ क्लब फोन किया । दूसरी ओर से रमाकांत की आवाज सुनाई देते ही वह बोला - "रमाकांत, जो काम मैंने तुम्हें बताये थे अब उन्हें करवाने की जरूरत नहीं है ।"
"क्यों ?" - रमाकांत ने पूछा ।
"क्योंकि मुझे पहले ही मालूम हो गया है कि सुनीता सेठ मंगत राम की ही लड़की है और वह अभी जीवित है । सुनीता सेठ मंगत राम के साथ ही रहती है ।"
"तुम्हें कैसे मालूम हो गया है ?"
"मुझे अलादीन का चिराग मिल गया था । चिराग के जिन्न ने मुझे यह बताया था ।"
"अच्छा ! बधाई हो ।" - रमाकांत का व्यग्यपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
"अब एक काम और कर दो तो मैं शुक्रवार तक तुम्हारा अहसान नहीं भूलूंगा ।"
"क्या ?"
"एक रिवाल्वर दिला दो ।"
"पागल हुए हो !" - रमाकांत फट पड़ा - "मैंने क्या रिवाल्वरों की फसल उगाई है कि जब तुम्हें जरूरत पड़े मैं भुट्टे की तरह रिवाल्वर तोड़कर तुम्हारे हाथ में रख दिया करूं ? जो रिवाल्वर मैने तुम्हे कल दी थी, उसी को तुम इतने बखेड़े में फसा आये हो कि मुझे डर लग रहा है कि कहीं मैं भी गेहूं के साथ घुन की तरह न पिस जाऊं । बाई गॉड, तुम्हारे जैसे यार से तो भगवान ही बचाये ।"
"दिला दो न यार ।" - सुनील विनीत स्वर से बोला ।
"एक शर्त पर रिवाल्वर दे सकता हूं ।"
"क्या ?"
"कि तुम मेरी आंखों के सामने उससे आत्महत्या कर लोगे ।"
"लानत है तुम पर ।" - सुनील बोला और उसने रिसीवर हुक पर टांग दिया ।
वह दुबारा मोटरसाइकल पर सवार हुआ और सीधा बैंक स्ट्रीट पहुंच गया ।
वह अपने फ्लैट में घुसा । बैडरूम की एक अलमारी खोल कर उसने उसमें से एक लगभग नौ इन्च लम्बा बांस का खोखला टुकड़ा निकाला । सूरत में निर्दोष सा लगने वाला वह बांस का टुकड़ा एक स्लीव गन (Sleevs Gun) नामक खतरनाक चीनी हथियार था । स्लीव गन के भीतर का छेद लोहे की गर्म सलाखों की सहायता से इतना हमवार बनाया हुआ था कि वह भीतर से शीशे की तरह मुलायम और चमकदार हो जाता था । नली के भीतर एक तगड़ा स्प्रिंग और एक शिकंजा लगा हुआ होता था । शिकंजे में एक छोटा सा जहर से बुझे हुए लोहे की नोक वाला तीर फंसा होता था । शिकंजे पर हल्का सा दबाव पड़ने पर स्प्रिंग खुल जाता था और तीर तेजी से नली में से बाहर निकल जाता था । स्लीव गन चीन के पुराने कबीलों में प्रयुक्त होने वाला बड़ा पुराना हथियार था । नाम स्लीव गन इसलिये पड़ा था क्योंकि पुराने जमाने में चीनी उसे अपनी लम्बी बांहों वाले चोगे की आस्तीन (स्लीव) में छिपा कर रखा करते थे । कोहनी पर किसी प्रकार का हल्का सा दबाव पड़ने की देर होती थी कि शिंकजा हट टेशंन के जोर से नाल के बीच में रखा तीर तेजी से बाहर निकलता था और सामने खड़े आदमी के शरीर में जा घुसता था ।
सुनील ने अपना कोट उतारा और सलीव गन बड़ी मजबूती से अपनी आस्तीन के साथ बांध लिया । उसने कोट वापिस पहन लिया । स्लीव गन कोट के नीचे एकदम छुप गयी । उसने एक-दो बार अपनी बांह को स्लीव गन की पोजीशन को टैस्ट किया और फिर संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाता हुआ फ्लैट से बाहर निकल आया ।
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