Thriller विक्षिप्त हत्यारा
सेठ ने बड़े नर्वस ढंग से सिगार के तीन-चार कश लिये और फिर बोला - "इक्कीस साल की आयु में वह आर्थिक रूप से भी स्वतन्त्र हो गई । उसे किसी भी सूरत में मेरी मोहताज रहने की जरूरत नहीं रही थी । जैसा कि मुझे बाद में मालूम हुआ, तब तक वह हेरोइन और एल.एस.डी. जैसे तीव्र नशा करने वाली चीजों के इन्जेक्शन लेने लगी थी और उनकी खूब आदी हो चुकी थी । जिन विलायती हिप्पियों के साथ वह घूमती-फिरती थी वे ही उसे ऐसी चीजों के सेवन की प्रेरणा देते थे और उन हरकतों को आज की तेज रफ्तार जिन्दगी का एक हिस्सा मान कर वह सब कुछ करती थी । उसके छः महीने बाद वो मुझे छोड़कर चली गई । सीधी जुबान में कह जाये तो घर छोड़ कर भाग गई ।"
"ओह !" - सुनील ने अपनी जुबान से केवल इतना ही निकाला - "कहां ? बम्बई ?"
"हां ।"
"फिर ?"
"बम्बई पहुंचने तक वह हेरोइन और एल.एस.डी. के नशे की इतनी आदी हो चुकी थी कि वह उसके बिना जीवित नहीं रह सकती थी । बेटा, मैंने सुना है कि इन तीव्र नशों का भी भिन्न-भिन्न लोगों पर भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रभाव होता है । कुछ लोग एल. एस. डी. का इन्जेक्शन लेते हैं और फिर दो-दो दिन तक पिनक में पड़े रहते हैं । कुछ लोगों में सैक्स की भावनायें प्रबल हो उठती हैं । कुछ लोग अपने मस्तिष्क पर से अपना अधिकार खो बैठते हैं और उपद्रवी बन जाते हैं । उस स्थिति में वे बड़ी भंयकर हरकतें करते हैं । ऐसी ही स्थिति में एक बार सुनीता ने अपने ब्वायफ्रैंड की खोपड़ी पर कोका कोला की बोतल तोड़ दी थी । सुनीता को एक महीने की जेल की सजा हुई थी । एक अहसान उसने मुझ पर जरूर किया कि बम्बई जाकर उसने किसी पर यह प्रकट करने की कोशिश न की वह मेरी बेटी थी ।"
"फिर ?"
"उसी दौर में सुनीता राम ललवानी के सम्पर्क में आई । राम ललवानी बम्बई में गुलनार नाम का रेस्टोरेन्ट चलाता था लेकिन वास्तव में गुलनार मादक द्रव्यों के व्यापार का अड्डा था । राम ललवानी को किसी प्रकार मालूम हो गया कि सुनीता के पास ढेर सारी दौलत थी । उस दौलत के लालच में उसने किसी प्रकार सुनीता को फांसकर उससे शादी कर ली । शादी के बाद उसे यह भी मालूम हो गया कि उसकी बीवी मेरी लड़की थी ।"
"कैसे ?"
"उसने खुद ही बता दिया होगा । आखिर उसे अपने पति से अपनी वास्तविकता छुपाने की क्या जरूरत थी ?"
सुनील चुप रहा ।
"फिर मार्च सन पैंसठ में वह भंयकर घटना घटी जिसके बाद मुझे इन तमाम बातों की खबर हुई ।"
"कौन-सी घटना ?"
"सुनीता ने एक लड़की का खून कर दिया ।"
"खून !"
"हां, बेटे, लड़की गीगी ओब्रायन नाम की कोई नर्तकी थी जो राम ललवानी के रेस्टोरेन्ट में नृत्य करती थी ।"
"लेकिन उस लड़की का खून तो राम ललवानी के छोटे भाई मनोहर ललवानी ने किया था ?"
"दुनिया यही समझती है लेकिन वास्तव में उस लड़की का खून सुनीता ने किया था ।"
"क्यों ?"
"भगवान जाने क्यों ?"
"फिर ?"
"फिर राम ललवानी ने बम्बई से मुझे ट्रंक कॉल की थी । मैं तत्काल बम्बई पहुंच गया था एयरोड्रोम पर ही मुझे राम ललवानी मिल गया । वह मुझे सीधा सुनीता के पास ले गया । बेटे, सुनीता की हालत देखकर मेरा दिल दहल गया । इतनी उजड़ी हुई औरत मैंने अपनी जिन्दगी में कभी नहीं देखी थी । बम्बई की दो ढाई साल की मादक पदार्थों पर निर्भर जिन्दगी ने उसे तबाह करके रख दिया था । वह उस समय भी नशे में थी और मुझे एक जिन्दा लाश जैसी मालूम हो रही थी । जो कुछ मेरी निगाहें देख रही थी, उस पर मुझे विश्वास नहीं होता था । मुझे विश्वास नहीं होता था कि हेरोइन, एल. एस. डी. और मरिजुआना जैसे तीव्र नशे किसी इन्सान की इस हद तक भी दुर्गति कर सकते थे । सुनीता अपनी स्थिति से बेखबर मेरे सामने बैठी थी और उसकी हालात देखकर मेरा कलेजा फटा जा रहा था । मैंने अपनी बेटी को बुलाया । बड़ी मुश्किल से उसने मुझे पहचाना और फिर उसने मुझे बताया कि उसने एक लड़की की छाती में चाकू घोंप दिया था । उस समय एक कर्त्तव्य-परायण नागरिक की तरह चाहिये तो यह था कि मैं अपनी बेटी को पुलिस हवाले कर देता लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया । मैं अपने दिल के हाथों मजबूर था । मैंने उसे पुलिस के हवाले नहीं किया ।
बेटा, अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते ?"
"मेरी कोई बेटी नहीं ।" - सुनील धीरे से बोला ।
सेठ चुप रहा ।
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