Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"धन्यवाद ।"
सेठ ने मेज पर पड़ा एक टेलीफोन उठाया । रिसीवर में उसने केवल एक शब्द कहा और फिर रिसीवर रख दिया ।
"मैंने तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुना है" - सेठ दुबारा उस की ओर आकर्षित होता हुआ बोला - "और मैं अनुभव कर रहा हूं कि जो कुछ मैंने सुना है उसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं थी ।"
सुनील ने पूछना चाहा कि सेठ ने उसके बारे में क्या सुना था, क्यों सुना था, किस से सुना था, लेकिन वह चुप रहा ।
"यू आर ए फाइन मैन, मिस्टर सुनील ।"
"इज दैट ए कम्पलीटमैंट ?"
"यस ।"
"थैंक्यू दैन ।"
एक वर्दीधारी वेटर कमरे में आया और सेठ और सुनील को चाय सर्व कर गया ।
"सिगरेट !" - सेठ ने पूछा और सुनील की ओर डिब्बा बढा दिया ।
"धन्यवाद । मेरे पास मेरा अपना ब्रांड है ।"
सुनील ने जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगाया ।
सेठ ने चाय का एक छोटा-सा घूंट पिया और फिर बोला - "मेरी सूचनाओं के अनुसार तुम 'ब्लास्ट' के विशेष प्रतिनिधि हो और लगभग आठ सौ रुपये महीना वेतन पाते हो । अपनी जानकारी के दायरे में तुम एक असाधारण प्रतिभासम्पन्न व्यक्ति के रूप में जाने जाते हो, पुलिस अधिकारियों और अपने शुभचिन्तकों के विचार से तलवार की धार पर चलने जैसी रिस्क भरी और हंगामाखेज जिन्दगी गुजार रहे हो । नगर के कुछ रईस परिवारों से तुम्हारे गहरे सम्बन्ध है लेकिन तुमने आज तक उनकी मित्रता का कोई अनुचित लाभ उठाने का प्रयत्न नहीं किया । आदतन ईमानदार और मेहनतकश हो । स्त्री जाति को तकलीफ में नहीं देख पाते हो इसलिये कई बार बेहद खतरनाक हरकतें कर डालते हो । वगैरह..."
सेठ चुप हो गया और सिगार के कश लगाने लगा ।
सुनील चुप रहा ।
"मिस्टर सुनील आज की दुनिया में आप जैसे इन्सान दुर्लभ होते हैं और दुर्लभ वस्तु में मेरी हमेशा से ही दिलचस्पी रही है ।"
"और आप मेरे में एक दुर्लभ वस्तु के रूप में रुचि ले रहे हैं !"
सेठ तनिक कसमसाया और फिर बोला - "मैं एक विशेष प्रकार के व्यक्तियों को अपनी बिजनेस आर्गेनाइजेशन का अंग देखना पसन्द करता हूं ।"
"और मैं इन विशेष प्रकार के व्यक्तियों में से एक हूं ?"
"हां ।"
"इसलिये आप मुझे अपनी बिजनेस आर्गेनाइजेशन का एक अंग बनाना चाहते हैं ?"
"हां ।"
"मुझे आप कहां फिट करना चाहते हैं ?"
सेठ फिर कसमसाया । ऐसा लगता था जैसे वह सुनील के यूं सवाल करने के ढंग से असुविधा का अनुभव कर रहा था ।
"अहमदाबाद में मेरा एक भारत नाम का दैनिक अखबार निकलता है ।" - कुछ क्षण बाद सेठ बोला - "उस अखबार का प्रकाशन मैं राजनगर से भी करना चाहता हूं । अखबार के राजनगर से निकलने वाले संस्करण का सम्पादक मैं तुम्हें बनाना चाहता हूं ।"
सुनील चुप रहा ।
"तुम्हें पहले तीन महीने अहमदाबाद जाकर रहना होगा और हमारे अहमदाबाद आफिस में काम करके अखबार की पालिसी को पूरी तरह समझना होगा । उसके बाद तुम राजनगर वापिस आ जाओगे और स्वतन्त्र रूप से अखबार निकालने लगोगे ।"
"वैरी गुड ।" - सुनील भावहीन स्वर में बोला ।
"तुम्हें तीन हजार रुपये महीना वेतन मिलेगा, 'ब्लास्ट' की नौकरी छोड़ने की एवज में पच्चीस हजार रुपये फौरन मिलेंगे और इस बात की लिखित गारन्टी दी जायेगी कि दस साल तक तुम्हारी नौकरी पर कोई आंच नहीं आयेगी । कहने का मतलब यह है कि अगर अखबार बन्द भी हो गया तो भी तुम्हें दस साल तक तीन हजार रुपये महीना वेतन मिलता रहेगा ।"
"बहुत तगड़ी आफर दे रहे हैं आप ।"
"तुम्हें मंजूर है ?"
सुनील चुप रहा । सेठ मंगत राम बहुत आबवियस आदमी निकला था । उसका सुनील को यूं आनन-फानन इतनी तगड़ी आफर देना ही उसकी नीयत की चुगली कर रहा था ।
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