Thriller विक्षिप्त हत्यारा
दूसरी तस्वीर सोहन लाल की थी जो सुनील की रिवाल्वर से कल मारा गया ।
तीसरी तस्वीर मनोहर ललवानी की थी ।
वह एक मासूम से लगने वाले नवयुवक का दाढी-मूंछ रहित चेहरा था ।
उस तस्वीर के साथ एक कागज लगा हुआ था जिस पर जौहरी की हैंड राइटिंग में लिखा था ।
यद्यपि तस्वीर पुरानी है फिर भी सम्भव है कि मुकुल और मनोहर ललवानी एक हो ।
मुकुल ही मनोहर ललवानी था तो बाइस मार्च सन् पैंसठ को बम्बई में बान्दा के पुल पर हुई पुलिस मुठभेड़ में कौन मरा था ?
जौहरी की रिपोर्ट की आखिरी और छोटी-सी कटिंग में लिखा था:
पुलिस हैडक्वार्टर में मौजूद मनोहर ललवानी की फाइल के अनुसार मनोहर ललवानी एक विकृत मस्तिष्क का स्वामी था । वह बुरी तरह से हीन भावनाओं का शिकार था और अपनी इस कमजोरी के विकल्प के रूप में ही अपराधी प्रवृत्तियों का सहारा लेता था । पुलिस के मनोवैज्ञानिक का कथन है कि युवा लड़कियों की इस प्रकार की नृशंस हत्यायें वही आदमी कर सकता था जो एक मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति की तरह किसी युवती के साथ रति-क्रिया में भाग लेने में असमर्थ हो और अपनी असमर्थता प्रकट हो जाने के बाद जिसे युवती की प्रताड़ना सुननी पड़ती हो । ऐसा व्यक्ति खास तौर पर अपने मस्तिष्क पर अपना अधिकार खो बैठता है और अगर वह प्रबल अपराधी प्रवृत्तियों वाला व्यक्ति है तो वह न केवल किसी की हत्या कर देने में एक क्षण के लिये भी नहीं हिचकता । बल्कि अपनी हार का अहसास मिटाने के लिये वह युवती के शरीर की धज्जियां उड़ानी आरम्भ कर देता है ।
रिपोर्ट में अन्त में जौहरी की हैंड राइटिंग में एक छोटा-सा नोट था:
राम ललवानी के बारे में इस रिपोर्ट में इतना कुछ इसलिये लिखा गया है क्योंकि वह मनोहर ललवानी का सगा भाई है और मनोहर ललवानी ही मुकुल मालूम होता है । दूसरी वजह यह है कि राम ललवानी के बारे में जानकारी पुलिस रिकार्ड द्वारा सहज ही हासिल हो गई थी ।
सुनील ने रिपोर्ट को दुबारा लिफाफे में डालकर मेज पर रख दिया । उस ने एक सिगरेट सुलगा लिया और सोचने लगा ।
उसे इस बात में कोई सन्देह नहीं रहा था कि मनोहर ललवानी ही मुकुल था । वह केवल अपनी वास्तविक सूरत छुपाने के लिये ही हिप्पी बना हुआ था । इस विषय में कावेरी का सन्देह एकदम सच निकला था ।
लेकिन अगर मुकुल ही मनोहर ललवानी था तो यह बात भी सच थी कि वह बम्बई में पुलिस मुठभेड़ में मरा नहीं था । राम ललवानी और सोहन लाल ने उसकी वास्तविकता छुपाये रखने के लिये झूठ बोला था । उन्होंने किसी दूसरे आदमी की शिनाख्त मनोहर ललवानी के रूप में की थी ।
उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । पौने दस बजने को थे । उसने सिगरेट को ऐशट्रे में डाल दिया और हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ । ठीक दस बजे उसने प्रभुदयाल के पास पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचना था । उस नाजुक स्थिति में प्रभूदयाल को नाराज करना कोई अक्लमन्दी का काम नहीं था ।
वह तेजी से बैडरूम में प्रविष्ट हो गया ।
उसने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और यूथ क्लब का नम्बर डायल किया ।
रमाकांत से सम्पर्क स्थापित होते ही वह बोला - "रमाकांत, मैं सुनील बोल रहा हूं ।"
"अब क्यों बोल रहे हो ? सब कुछ तो हो गया है ।"
"रिपोर्ट के लिये धन्यवाद । अब दो छोटे-छोटे काम और करवाओ ।"
"प्यारयो, जिस प्रकार मैने जौहरी की रिपोर्ट भेजी है और तुमने धन्यवाद कर दिया है, उसी प्रकार जब मैं जौहरी के खर्चे का बिल तुम्हें भेजूंगा और तुम नगदऊ मेरे हवाले कर दोगे तो मैं शराफत और बड़े ही भाव-भीने स्वर से तुम्हें धन्यवाद कहूंगा ।"
"मैं इस वक्त नगदऊ की नहीं, काम की बात कर रहा हूं ।"
"बको ।"
"जौहरी की रिपोर्ट के अनुसार राम ललवानी ने सन चौंसठ के आरम्भ में बम्बई में सुनीता अग्रवाल नाम की एक लगभग बाइस साल की लड़की से शादी की थी । वह राजनगर के किसी करोड़पति सेठ की इकलौती बेटी है । तुमने यह मालूम करना है कि ऐसी लड़की राजनगर के कौन से सेठ की है या थी । राजनगर में करोड़पति सेठ पांच छः से अधिक नहीं हैं, इसलिये यह की कठिन काम नहीं है । वैसे भी अगर तुम शुरूआत सेठ मंगत राम को चैक करवाने से करोगे तो शायद तुम्हें और किसी को चैक करवाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । सुनीता अग्रवाल के सेठ मंगत राम की लड़की होने की ज्यादा सम्भावनायें दिखाई देती हैं ।"
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