Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"मैं मैड हाउस के वेटरों वगैरह से पूछताछ करूंगा । शायद किसी को मालूम हो कि मुकुल कहां रहता है । मुकुल के पिछले जीवन की तफ्तीश करने के लिये यूथ क्लब का एक आदमी बम्बई भी गया हुआ है । किसी भी क्षण उसकी रिपोर्ट आ सकती है शायद उस रिपोर्ट से ही मुकुल को तलाश करने में कोई सहायता मिले । वैसे मिसेज जायसवाल, सम्भावना यह भी है कि बिन्दु के घर ने लौटने में और पिछली रात मुकुल के मैड हाउस में न आने में कोई सम्बन्ध ही न हो ।"
"ऐसा नहीं हो सकता । मेरा मन कहता है कि वह हिप्पी ही बिन्दु को बरगला कर ले गया है ।"
"शायद ऐसा ही हो । बहरहाल आप सुनील सुपरिन्टेन्डेन्ट राम सिंह से फौरन सम्पर्क स्थापित कीजिये । अगर आपका ही सन्देह सच है तो देर करने से गड़बड़ हो जाने की सम्भावना है ।"
"ओके । मैं अभी पुलिस हैडक्वार्टर जाती हूं ।"
दूसरी ओर से सम्बन्धविच्छेद हो गया ।
सुनील ने रिसीवर को क्रेडल पर रख दिया ।
तत्काल टेलीफोन की घन्टी फिर बज उठी ।
सुनील ने दुबारा रिसीवर उठा लिया और बोला - "हल्लो ।"
"सुनील ?" - दूसरी ओर से रमाकांत का स्वर सुनाई दिया ।
"हां ।"
"रमाकांत बोल रहा हूं । जौहरी ने बम्बई से बाई एयर रिपोर्ट भेजी है । मैंने एक आदमी को आई.ए.सी. से कार्गो आफिस में भेजा है । वह वहां से रिपोर्ट लेकर सीधा तुम्हारे प्लैट पर आयेगा । वहीं रहना ।"
"अच्छा । कब तक आयेगा वह ?"
"बस, आता ही होगा ।"
सुनील ने रिसीवर रख दिया ।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग दस मिनट बाद फ्लैट की कालबैल बजी ।
सुनील ने उठकर द्वार खोला ।
द्वार पर यूथ क्लब का एक सुनील का जाना पहचाना वेटर खड़ा था । उसने सुनील को सलाम किया और एक मोटा-सा 4x9 इंच का लिफाफा सुनील की ओर बढा दिया ।
सुनील ने लिफाफा ले लिया ।
वेटर विदा हो गया ।
वापिस फ्लैट में आकर सुनील ने लिफाफा खोला । सुनील ने सारे कागजात बाहर निकाल लिये । रिपोर्ट के पहले पृष्ट पर जौहरी के हैण्डराइटिंग में लिखा था
गोपनीय रिपोर्ट
राम (चन्द्र) ललवानी
जन्म बम्बई । सन् 1929
सोलह मई सन 1941 को चोरी के इलजाम में गिरफ्तार हुआ । एक वर्ष की सजा हुई । बम्बई के रिफार्मेटरी स्कूल में रहा । फिर गिरफ्तार हुआ । कुल तीन साल रिफार्मेटरी स्कूल में रहा ।
दस सितम्बर, 1947 को सशस्त्र डकैती को इलजाम में गिरफ्तार हुआ । पुलिस उसके विरुद्ध पर्याप्त प्रमाण इकट्ठे नहीं कर सकी थी इसलिये केस डिसमिस हो गया ।
आठ जनवरी, 1950 को कत्ल के इलजाम में गिरफ्तरा हुआ । उसके खिलाफ जो चश्मदीद गवाह था, वह बड़े रहस्यपूर्ण ढंग से कहीं गायब हो गया । उसके बिना पुलिस का केस कमजोर पड़ गया । राम ललवानी बरी हो गया ।
पुलिस का विचार है कि राम ललवानी के ही आदमियों द्वारा चश्मदीद गवाह की हत्या कर दी गई थी और फिर लाश गायब कर दी गई थी ।
छः मार्च, 1952 को भिण्डी बाजार के मशहूर दादा गणपति की हत्या के सन्देह में गिरफ्तार किया गया । चार दिन बाद छोड़ा दिया गया । मुकददमा नहीं चल सका ।
सोलह दिसम्बर, 1953 को घड़ियों की स्मगलिंग के इलजाम में गिरफ्तरा हुआ । डेढ साल की कैद बामशक्कत ।
पच्चीस जून, 1956 में फिर पकड़ा गया । दो साल के लिये तड़ीपार का हुक्म ।
|