Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"मेरी गर्लफ्रैंड यहां मौजूद है ।" - सुनील उदास स्वर से बोला - "किसी और लड़के के साथ । उसने मेरे साथ बेवफाई की है । मुझसे बेवफाई बर्दाश्त नहीं होती । उसकी बेवफाई ने मेरे मन को उस के लिये और सारी दुनिया के लिये भारी नफरत से भर दिया है । मेरे लिये अपनी या किसी और की जिन्दगी की कोई कीमत नहीं रही है । मैं सारा खेल ही खत्म कर देने वाला हूं । मैंने यहां पर एक बम लगा दिया है । ठीक पौने ग्यारह बजे वह बम फटेगा और इस स्थान से चीथड़े उड़ जायेंगे, मेरे चीथड़े उड़ जायेंगे, मेरी गर्लफ्रैंड के चीथड़े उड़ जायेंगे और तुम यहां से फौरन नहीं चली गई तो तुम्हारे भी चीथड़े उड़ जायेंगे । तुम ने मेरे साथ अच्छा सलूक किया है इसलिये मैंने तुम्हें यह बात बता दी है वर्ना मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि इस तहखाने में मौजूद आदमियों में से कौन मरता है और कौन जीता है ।"
युवती के नेत्र यूं फैल गये थे जैसे अभी कटोरियों में से बाहर निकल आयेंगे । वह भय और आतंक की प्रतिमूर्ति बनी हुई थी ।
"त-त-तुम पागल हो ।" - वह हकलाती हुई बोली - "म... मैं अभी पु... पुलिस को फ-फोन करती हूं ।"
"कोई फायदा नहीं होगा" - सुनील देवदास की तरह सिर हिलाता हुआ बोला - "समय बहुत कम है । इतने समय में पुलिस यहां नहीं पहुंच सकती और अगर पहुंच भी गई तो वह फौरन बम नहीं तलाश कर पायेगी । मैंने उसे बहुत गुप्त जगह पर छुपाया है ।" - फिर सुनील की निगाह युवती के चेहरे से हट कर शून्य में कहीं टिक गईं और वह मशीन की तरह बोलने लगा - "टिक.. टिक.. टिक.. वक्त आ रहा है.. कयामत आ रही है.. हे भगवान, मैं आ रहा हूं.. अपनी सीता बदनामी को साथ लेकर आ रहा हूं । टिक.. टिक.. टिक..।"
"सीता बदनामी ।"
"मेरी बेवफा गर्ल फ्रैंड का नाम है ।"
एकाएक युवती का मुंह यूं खुला जैसे वह चिल्लाने वाली हो ।
"अगर तुमने चिल्लाकर बम के बारे में किसी को जानकारी देने की कोशिश की तो मैं अभी तुम्हारी गरदन तोड़ दूंगा ।" - सुनील के स्वर में इतनी तीव्र क्रूरता का पुट था कि युवती का मुंह फौरन बन्द हो गया ।
"टिक... टिक... टिक... टिक...।"
युवती ने अपनी कलाई पर बन्धी नन्हीं-सी घड़ी पर दृष्टिपात किया और फिर आतंकित स्वर में फुसफुसाई - "ओह माई गॉड ! ओ माई गुड गॉड ।"
फिर वह तेजी से सीढियों की ओर भागी ।
सुनील के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कराहट आ गई । उसने अपनी घड़ी देखी ।
पौने ग्यारह बजने में एक मिनट बाकी था ।
वह लापरवाही से चलता हुआ सीढियों की ओर बढा ।
वह मैड हाउस से बाहर निकल आया ।
अंग्रेज युवती उसे कहीं दिखाई न दी ।
वह लिबर्टी सिनेमा में घुस गया । सिनेमा के पब्लिक टेलीफोन बूथ में से उसने उस नम्बर पर टेलीफोन किया जो मैड हाउस के वेटर ने उसे लाकर दिया था ।
दूसरी ओर घन्टी बजने का सिग्नल सुनाई देने लगा ।
कितनी ही देर घन्टी बजती रही लेकिन किसी ने टेलीफोन न उठाया ।
सुनील ने टेलीफोन डिस्कनैक्ट करके दुबारा नम्बर मिलाया । दूसरी बार भी घन्टी निरन्तर बजती रही लेकिन किसी ने टेलीफोन न उठाया ।
सुनील ने यूथ क्लब फोन किया ।
दूसरी ओर से रमाकांत की आवाज सुनाई देते ही वह बोला - "रमाकांत, सुनील बोल रहा हूं ।"
"बोलो प्यारयो" - रमाकांत का बोर स्वर सुनाई दिया - "तुम्हें बोलने से कौन रोक सकता है ।"
"तुमने बम्बई ट्रंक कॉल बुक करवा दी ?"
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