Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"मैं मैड हाउस में जाना चाहता हूं । मैनेजमेंट पार्टनर के बिना किसी को भीतर नहीं जाने देता ।"
"तो फिर किसी ऐसे रेस्टोरेन्ट में चले जाओ जहां का मैनेजमेंट ऐसा बन्धन नहीं लगाता ।"
"लेकिन और जगह मुझे मजा नहीं आता। ऐट अदर प्लेसिज आई डू नाट फील माईसैल्फ ए पार्ट आफ असैन्ट्रिक ट्वन्टियथ सैन्चुरी ।"
लड़की मुस्कराई ।
"तो फिर ?" - सुनील ने आग्रहपूर्ण स्वर में पूछा ।
"तुम इतने खूबसूरत आदमी हो । तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड नहीं है ?"
"एक थी" - सुनील उदास स्वर में बोला - "लेकिन वह मुझे धोखा दे गई । मुझे छोड़ गई ।"
"कोई दूसरी तलाश कर दो ।"
"उसमें तो समय लगेगा न !"
"बस वह एक ही गर्लफ्रैंड थी तुम्हारी ।"
"हां । मैं शरीफ आदमी हूं । एक समय में एक से ज्यादा गर्लफ्रैंड कैसे रख सकता हूं ।"
युवती मुस्कराई ।
"सो ?"
"आई एम सारी, मैन ।" - युवती खेदपूर्ण स्वर में बोली - "मेरे पास तुम्हारे लिये पांच मिनट का भी समय नहीं है । मैं यहां किसी का इन्तजार कर रही हूं ।"
"मेरा काम दो मिनट में भी हो सकता है ।" - सुनील बोला - "आप मेरे साथ चलिये । जब हम 'मैड हाउस' में प्रविष्ट हो जायें तो आप उल्टे पांव वापिस आ जाइयेगा ।"
युवती हिचकिचाई, उसने सड़क के दोनों ओर दूर तक दृष्टि दौड़ाई और फिर सुनील से बोली - "चलो ।"
"थैंक्यू वैरी मच, मैडम ।" - सुनील हर्षित स्वर में बोला ।
दोनों मैड हाउस की ओर बढे ।
मैड हाउस के समीप पहुंचकर सुनील ने युवती की कमर में हाथ डाल दिया ।
युवती तनिक कसमसाई लेकिन मुंह से कुछ न बोली ।
गेटकीपर ने लोहे का गेट एक ओर सरका दिया ।
दोनों भीतर प्रविष्ट हो गये।
युवती उसके साथ-साथ सीढियां उतर कर नीचे हॉल में आई ।
"ओके ?" - नीचे पहुंचकर उसने पूछा ।
"ओके । थैंक्यू वैरी मच । आई एम वैरी ग्रेटफुल टू यू ।"
युवती मुस्कराई और उल्टे पांव वापिस लौट गई ।
सुनील ने हाल में चारों ओर दृष्टि दौड़ाई ।
बैंज बज रहा था और डांस फ्लोर पर कुछ जोड़े बैंड में से निकलती हुई धुन पर नाच रहे थे ।
सुनील मेजों में से गुजरता हुआ सारे तहखाने का चक्कर लगा गया ।
फ्लोरी उसे कहीं दिखाई न दी ।
न ही उसे कहीं मुकुल व बिन्दु के दर्शन हुए ।
खाली मेज कहीं भी नहीं थी । एक मेज के इर्द गिर्द चार पीपेनुमा स्टूल पड़े थे । उनमें से एक खाली था तीन पर एक युवक और दो युवतियां बैठी थीं ।
सुनील खाली स्टूल पर बैठ गया ।
उन तीनों ने एक उचटती-सी दृष्टि उस पर डाली और फिर अपनी बातों में मग्न हो गये ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
साढे आठ बज गये ।
फ्लोरी, मुकुल व बिन्दु में से कोई वहां आता दिखाई न दिया ।
उसने अपनी बगल में बैठे युवक को टोका और पूछा - "आज मुकुल नहीं आया ?"
"नहीं ।"
"क्यों ?"
"मालूम नहीं । आम तौर पर तो वह सात बजे से ही यहां पर मौजूद होता है ।"
"और वह फोटोग्राफर भी नहीं दिखाई दे रही ।"
"कौन फोटोग्राफर ?"
"वही ऐंग्लो इन्डियन लड़की फ्लोरी जो यहां तसवीरें खींचा करती है ।"
"मुझे उसके बारे में कुछ नहीं मालूम ।"
उसी क्षण वेटर वहां आया ।
सुनील ने उसे कॉफी और हॉट-डॉग का आर्डर दिया और फिर पूछा - "आज फ्लोरी नहीं आई !"
"फ्लोरी मेमसाहब नौ बजे के आसपास आती हैं ?" - वेटर बोला ।
नौ बजे गये ।
फ्लोरी नहीं आई ।
दस बज गये ।
फ्लोरी नहीं आई ।
साढे दस बजे सुनील ने वेटर को दुबारा बुलाया ।
"क्या फ्लोरी रोज नहीं आती यहां ?"
"बिल्कुल रोज आती हैं, साहब । आज ही पता नहीं क्यों नहीं आई । शायद तबीयत खराब हो गई हो ।"
"हां, शायद । सुनो, तुम्हें फ्लोरी के घर का पता मालूम है ?"
वेटर ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
"देखो । यहां बहुत-से ऐसे लोग होंगे जिनकी फ्लोरी ने तस्वीरें खींची हैं । तस्वीरों वाले लिफाफे पर भी फ्लोरी का पता छपा होता है । किसी न किसी को उसके घर का पता जरूर मालूम होगा ।"
"होगा साहब लेकिन मुझे इतनी फुरसत नहीं कि मैं हर किसी से पूछताछ करता फिरूं ।"
"इसका मतलब यह हुआ कि तुम दस रुपये नहीं कमाना चाहते ।"
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