Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"रमाकांत" - वह गम्भीर स्वर में बोला - "मैंने जिस लिफाफे में तुम्हें मुकुल की तस्वीर भेजी थी, वह लिफाफा कहां है ?"
"तुम्हारा मतलब है, वह तस्वीर कहां है ?" - रमाकांत बोला ।
"मेरा मतलब वही है जो मैंने कहा है । मैं लिफाफे के बारे में ही पूछ रहा हूं ।"
"लिफाफे का भी कोई महत्व है ?"
"हां ।"
"क्या ?"
"उस पर उस फोटोग्राफर के घर का पता लिखा हुआ था जिससे 'मैड हाउस' में मैंने मुकुल की तस्वीर खिंचवाई थी ।"
"ओह ! वह लिफाफा तो बम्बई पहुंच गया ।"
"कैसे ?"
"भई, जब मैंने जौहरी को बम्बई भेजा था तो मुकुल की तस्वीर उस लिफाफे सहित ही मैंने उसे सौंप दी थी ।"
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - "तुम्हें मालूम है जौहरी बम्बई में कहां ठहरा हुआ है ?"
"हां ।"
"उसे अर्जेन्ट ट्रंक काल करो ।"
"फोटोग्राफर का पता पूछने के लिये ?"
"हां ।"
"फोटोग्राफर का पता इतना जरूरी क्यों है ?"
"क्योंकि वह फोटोग्राफर की जिन्दगी और मौत का सवाल है ।"
रमाकांत एकदम सीधा होकर बैठ गया ।
"अच्छा ! कैसे ?"
"क्योंकि मुकुल में दिलचस्पी लेना लोगों की तन्दुरुस्ती के लिये अच्छा सिद्ध नहीं हो रहा है । मेरे पास मुकुल की तस्वीर थी इसलिये वह मोटा सोहनलाल अपने बदमाशों सहित मुझ पर चढ दौड़ा और मेरी अच्छी खासी मरम्मत भी कर गया और फिर तस्वीर भी लेकर ही टला । अगर मुकुल नहीं चाहता था कि उसकी तस्वीर किसी के पास हो तो वह यह भी नहीं चाहेगा कि नई तस्वीर हासिल करने का साधन भी किसी के पास रहे । मेरा इशारा मुकुल की तस्वीर के नैगेटिव की ओर है । मुझे भय है कि कहीं उस नैगेटिव को हथियाने की खातिर बदमाश फ्लोरी से भी मारपीट न करें ।"
"फ्लोरी ! फ्लोरी कौन है ?"
सुनील ने होंठ काट लिये । फ्लोरी का नाम अनायास ही उसके मुंह से निकल गया था ।
"फोटोग्राफर ।" - सुनील बोला ।
"वह लड़की है ?"
"हां ।"
"इसीलिये उसकी चिन्ता में मरे जा रहे हो ?"
"मजाक मत करो और थोड़ा एक्शन दिखाओ ।"
"अर्जेन्ट ट्रंक काल के पैसे कौन देगा ?"
"मैं दूंगा, मेरे बाप ।"
"फिर भला मुझे क्या एतराज हो सकता है ! फिर तो तुम चाहे चान्द के लिये अर्जेन्ट ट्रंक काल बुल करा लो ।"
"ओके ।" - सुनील उठता हुआ बोला ।
"जा रहे हो ?"
"हां ।"
"चाय तो पीते जाओ ।"
"अभी तो तुम यह कह रहे थे कि तुम हरगिज चाय नहीं पिलाओगे ।"
"मैं मजाक कर रहा था ।"
"फिर भी चाय पीने का समय नहीं है । मुझे खुद ही फ्लोरी को तलाश करना है ।"
"अच्छी बात है । जा रहे हो तो भगवान से प्रार्थना करते हुए जाओ कि जौहरी ने वह लिफाफा फेंक न दिया हो ।"
सुनील तनिक मुस्कुराया और कमरे से बाहर निकल आया ।
यूथ क्लब की इमारत से बाहर निकल कर उसने अपनी मोटरसाइकल सम्भाली और सीधा मैजेस्टिक सर्कल पहुंचा ।
मोटरसाइकल पार्क कर चुकने के बाद वह मैड हाउस की ओर बढा । उसने अपनी कलाई घड़ी पर दृष्टिपात किया । आठ बजने को थे ।
मैड हाउस के सामने फुटपाथ पर बड़ी चहल-पहल थी । मैड हाउस के दरवाजे पर पहले वाला गेटकीपर खड़ा था ।
सुनील रेलिंग के समीप आ खड़ा हुआ । वह भीतर घुसने की तरकीब सोचने लगा ।
उसने आसपास दृष्टि दौड़ाई । अपने से थोड़ी दूर रेलिंग के सहारे उसे मिनी स्कर्टधारी एक विदेशी युवती खड़ी दिखाई दी ।
सुनील अपने स्थान से हटा और उसके समीप जा खड़ा हुआ । युवती ने एक उड़ती-सी निगाह उसकी ओर डाली और फिर सड़की की ओर देखने लगी ।
"हल्लो !" - सुनील बाला ।
युवती ने उसकी ओर देखा और फिर अंग्रेजी में बोली - "तुमने मुझे बुलाया ?"
"यस ।" - सुनील अपने चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कुराहट लाता हुआ बोला ।
"मैं तुम्हें जानती हूं ।"
"नो ।"
"तो फिर ?"
"मैडम, एक प्रार्थना है ।"
"क्या ?"
"मुझे केवल पांच..."
"सारी ! नो मनी ।"
"आई डिड नाट आस्क फार मनी ।"
"तो फिर ?"
"मैं आपके कीमती समय के केवल पांच मिनट चाहता हूं ।"
"क्यों ?" - युवती उलझनपूर्ण स्वर में बोली । उलझन के साथ-साथ उसके चेहरे पर थोड़ी दिलचस्पी भी झलक रही थी ।
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