Thriller विक्षिप्त हत्यारा
रिसैप्शन डैस्क के समीप वह एक क्षण को ठिठका ।
"मेरा कोई फोन तो नहीं आया था, रेणु ?" - उसने रिसैप्शनिस्ट-कम तो टेलीफोन आपरेटर से पूछा ।
"नहीं ।" - रेणु बोली ।
और फिर इससे पहले कि रेणु अपनी ओर से कोई बात आरम्भ कर पाती सुनील आगे बढ गया । एक ओर रेलिंग लगे लम्बे गलियारे में होता हुआ वह अपने केबिन में पहुंच गया ।
पहले उसने रमाकांत को फोन करने का इरादा किया लेकिन फिर उसने वह इरादा छोड़ दिया ।
वह 'ब्लास्ट' के ईवनिंग एडीशन के लिये सोहन लाल की हत्या की घटना की रिपोर्ट तैयार करने में जुट गया । जिस समय वह भगत सिंह रोड से आया था, उस समय तक किसी भी अन्य समाचार-पत्र का रिपोर्टर घटनास्थल पर नहीं पहुंचा था । इसीलिए इस बात की पूरी सम्भावना थी कि शाम को केवल 'ब्लास्ट' ही ऐसा पेपर होता जिसमें सोहन लाल की हत्या का समाचार होता ।
उसकी कलम तेजी से कागजों पर चलने लगी ।
***
सुनील यूथ क्लब में पहुंचा ।
रमाकांत अपने दफ्तर में मौजूद था । वह अपनी विशाल मेज के पीछे घूमने वाली कुर्सी पर अधलेटा-सा बैठा था । उसने अपने दोनों पांव मेज पर रखे हुए थे और कमरा चारमीनार के कडुवे धुयें से भरा पड़ा था ।
सुनील के कमरे में प्रविष्ट होने की आहट सुनकर उसने नेत्र खोले लेकिन उसके पोज में कोई अन्तर नहीं आया ।
"आओ, प्यारयो ।" - रमाकांत बोला ।
"जब यूं रेल के इन्जन की तरह इस बेहूदा सिगरेट का धुआं उगलना हो तो कम-से-कम खिड़की तो खोल लिया करो ।" - सुनील बोला ।
"मुझे इस धुयें से कोई एतराज नहीं ।" - रमाकांत शांति से बोला ।
"लेकिन आने वाले को तो हो सकता है ।"
"तो आने वाला खिड़की खोल ले ।"
सुनील ने अपने होंठ काटे, कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर इरादा बदल दिया । उसन आगे बढकर खिड़की खोल दी ।
धुआं बाहर निकलने लगा ।
वह वापिस आकर रमाकांत के सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
"आओ जी, जी आया नूं, मोतियावालयो, क्या हाल है ?" - रमाकांत टेप रिकॉर्डर की तरह भावहीन स्वर में बोलने लगा - "मुकुल के बारे में मुम्बई से कोई रिपोर्ट नहीं आई है । यह बात मालूम नहीं हो सकी है कि राम ललवानी और सेठ मंगत रात में कोई रिश्ता है या नहीं । मैं तुम्हें चाय हरगिज नहीं पिलाऊंगा । और सुनाओ, क्या-क्या हाल चाल है ? अच्छा, नमस्ते । जाती बार दरवाजा बन्द करते जाना ।"
"आज बहुत उखड़ रहे हो, प्यारेलाल !" - सुनील बोला - "क्या कल रात रमी में हारे गये रुपयों का गम अभी तक सता रहा है ?"
"वह गम भी अभी पैंडिंग पड़ा है लेकिन ज्यादा गम तो मुझे इस बार सता रहा है कि जो काम मैं तुम्हारे लिये करवा रहा हूं, उसने नगदऊ कतई हासिल नहीं होने वाला है ।"
"शायद हो जाये ।"
रमाकांत के नेत्रों में चमक आ गई । उसने मेज से पांव हटा लिये और सुनील की ओर झुकता हुआ बोला - "सच ?"
सुनील ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
"कोई नई बात हो गई है क्या ?"
"नहीं ।"
"तो फिर नगदऊ कहां से मिलेगा ?"
"मैं कहा था कि 'शायद' नगदऊ मिल जाये ।"
"दुर फिटे मूं ।" - नगदऊ के नाम पर जितनी तेजी से रमाकांत की आंखों में चमक पैदा हुई थी, उतनी ही तेजी से गायब हो गई ।
"आखिर तुम इतने लालची क्यों हो ?"
"आज की दुनिया में जिस आदमी को रुपये का लालच नहीं, वह इन्सान कहलाने का हकदार नहीं ।"
"मुझे रुपये का लालच नहीं ।"
"मैं इन्सानों का जिक्र कर रहा था ।"
"और मैं क्या हूं ?"
"तुम तो गधे हो और वह भी निहायत घटिया किस्म के ।"
सुनील चुप रहा ।
"अब क्या इरादा है ?"
"मेरा असली इरादा तुम्हारी तन्दुरुस्ती के लिये अच्छा साबित नहीं होगा ।"
"धमकी दे रहे हो ?" - रमाकांत आंखें निकालकर बोला ।
"हां ।"
रमाकांत कसमसाया और फिर बोला - "पुराने यार हो इसलिये छोड़ देता हूं वर्ना..."
सुनील ने यह नहीं पूछा कि वर्ना वह क्या करता ।
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