Thriller विक्षिप्त हत्यारा
प्रभूदयाल उठ खड़ा हुआ । वह बैडरूम के सीमित क्षेत्रों में चहलकदमी करने लगा । वह बेहद गम्भीर था । वह बेहद चिन्तित था । लगता था जैसे वह जल्दी किसी नतीजे पर पहुंचने के लिये अपने दिमाग पर बहुत जार दे रहा था ।
कुछ क्षण यूं ही चहल-कदमी करते रहने के बाद एकाएक यह रुक गया और सुनील के सामने आ खड़ा हुआ ।
"सुनील" - वह गम्भीर स्वर में बोला - "मैं तुम्हें छोड़ रहा हूं । इसलिये नहीं क्योंकि मुझे तुम्हारी कहानी पर विश्वास आ गया है या मैं तुम्हें बुनियादी तौर पर एक ऐसा आदमी मानता हूं जो हत्या जैसा जघन्य अपराध नहीं कर सकता । मैं तुम्हें इसलिए छोड़ रहा हूं क्योंकि मैं तुम्हें बहुत अरसे से जानता हूं और मुझे इस बात पर विश्वास नहीं होता कि तुम किसी की हत्या कर दो और इतनी आसानी से पुलिस की पकड़ाई में आ जाओ । अगर तुमने हत्या की होती तो पहले तो पुलिस का तुम्हारी ओर ध्यान ही नहीं जाता । अगर ध्यान जाता तो इतनी आसानी से तुम पकड़ाई में नहीं आ जाते । अगर पकड़ाई में आ जाते तो अपनी निर्दोषिता इतनी शानदार कहानी सुनाते कि हमें उस मे एक भी कमजोर धागा दिखाई न देता । तुमने जो कहानी मुझे सुनाई है, वह बहुत कमजोर है, इसलिये वह मुझे सच्ची लग रही है ।"
प्रभूदयाल एक क्षण रुका और फिर बोला - "अगर सोहन लाल की लाश के पास कोई दूसरी रिवाल्वर मिलती, कोई और हथियार मिलता, एक छोटा-सा चाकू तक मिलता तो मैं मान लेता कि शायद तुमने उस पर गोली चलाई हो । मुझे इस बात पर विश्वास नहीं होता कि तुमने यूं दिन दहाड़े केवल उसका कत्ल करने की खातिर ही उसको शूट कर दिया हो और इसीलिये में तुम्हें छोड़ रहा हूं । सुनील, जरा सोचो । एक आदमी की हत्या हो जाती है । अगले ही क्षण एक दूसरा आदमी रिवाल्वर हाथ में लिये घटनास्थल पर मौजूद पाया जाता है । पुलिस इन्स्पेक्टर आता है, और दूसरे आदमी को छोड़ देता है । जब मेरे आला अफसर यह बात सुनेंगे तो वे शायद मुझ पर बुरी तरह बरसेंगे । मेरे मातहत जब यह बात सुनेंगे तो शायद वे मुझे परले सिरे का अहमक करार देंगे । लेकिन... खैर ।"
सुनीज मेज से उतर गया ।
"और अपनी कुशलता का समाचार देते रहना ।" - प्रभूदयाल बोला ।
"मतलब यह कि तुम मुझे चेतावनी दे रहे हो कि मैं फरार न हो जाऊं ?"
"ऐसा ही समझ लो । दरअसल पुलिस के कोड आफ कन्डक्ट में फरार होना जुर्म का इकबाल करना माना जाता है ।"
"मैं ध्यान रखूंगा ।"
"और अगर तुम्हें ऐसा लगे कि कोई महत्वपूर्ण बात तुम पुलिस को बताना भूल गये हो तो तुम्हें मालूम ही है कि मैं कहां मिल सकता हूं ।"
"थैंक्यू ।" - सुनील बोला और द्वार की ओर बढा । द्वार के समीप पहुंचकर वह ठिठका और प्रभूदयाल की ओर घूमकर बोला - "आज जब कि तुम मुझ पर इतने मेहरबान हो तो एक बात और बता दो ।"
"पूछो ।" - प्रभूदयाल बोला ।
"तुम ने राम ललवानी का नाम लिया था !"
"हां ।"
"पुलिस की उसमें क्या दिलचस्पी है ?"
प्रभूदयाल कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - "हमें विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ है कि फोर स्टार नाइट क्लब में एक बहुत ऊंचे दर्जे का गैरकानूनी वेश्यालय चलाया जा रहा है । राम ललवानी का सोहन लाल मार्का लोगों से सम्पर्क यह तो जाहिर करता ही है कि वह कोई भला आदमी नहीं है । ऐसा कोई धन्धा वह करता हो तो इसमें कोई हैरानी की बात तो है नहीं ।"
"पुलिस इस बारे में कुछ करती नहीं ?"
"करना चाहती है लेकिन कर नहीं पाती ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि राम ललवानी को नगर के एक बहुत बड़े व्यक्ति की सरपरस्ती हासिल है ।"
"सेठ मंगत राम की ?"
प्रभूदयाल ने हैरानी से उसकी ओर देखा ।
"मुझे मालूम है कि लिबर्टी बिल्डिंग सेठ मंगत राम की है" - सुनील जल्दी से बोला - "इसी से मैंने अनुमान लगाया था ।"
"हां । सेठ मंगत राम मालूम नहीं क्यों राम ललवानी जैसे घटिया आदमी पर मेहरबान है ? गृहमन्त्री तक सेठ मंगत राम के निजी मित्र हैं । केवल संदेह के आधार पर राम ललवानी पर चढ दौड़ने की हिम्मत तो आई.जी. में भी नहीं है, हम तो किस खेत की मूली हैं ! और अभी तक कोई शत-प्रतिशत ठोस बात मालूम हो नहीं पाई है । इसी सिलसिले में हम सोहन लाल को भी चैक करवा रहे थे ।"
सुनील चुप रहा ।
"ओके ।" - प्रभूदयाल ने कहा ।
सुनील ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया और दरवाजा खोल कर बाहर निकल आया । वह सीधा फ्लैट से बाहर जाने वाले द्वार की ओर बढा ।
सब-इन्स्पेक्टर ने आगे बढकर उसे रोकने का प्रयत्न किया ।
"जाने दो ।" - पीछे से प्रभूदयाल की तीव्र स्वर सुनाई दिया ।
सब-इन्सेक्टर के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरे लेकिन वह तत्काल एक ओर हट गया ।
इमारत से बाहर निकल कर सुनील ने अपनी मोटरसाइकल सम्भाली और सीधा 'ब्लास्ट' के आफिस में पहुंचा ।
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