Thriller विक्षिप्त हत्यारा
सब-इन्स्पेक्टर कोई नया भर्ती हुआ युवक था । सुनील के चिल्लाने का उस पर प्रत्याशित प्रभाव पड़ा । उसकी रिवाल्वर अभी भी सुनील की ओर तनी हुई थी ।
"मैं पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट रामसिंह को फोन करना चाहता हूं ।" - सुनील बोला ।
"क्यों ?" - सब-इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
"रामसिंह मेरा मित्र है और मुझे तुम लोगों से ज्यादा जानता है ।"
सब-इन्स्पेक्टर सिपाही और घूमा और बोला - "हैडक्वार्टर फोन करो ।"
"यह आदमी..."
"मैं इसे सम्भाल लूंगा ।"
सिपाही प्लैट से बाहर निकल गया ।
"मैंने पुलिस सुपरिन्डेन्डेन्ट रामसिंह को फोन करने की बात की थी ।" - सुनील बोला ।
"मैंने तुम्हारी बात सुन ली है ।" - सब-इन्स्पेक्टर बोला - "सुपरिन्टेन्डेन्ट तुम्हारे दोस्त हैं, हमारे नहीं । मैं उन्हें खामखाह डिस्टर्ब करने की जिम्मेदारी अपने सिर नहीं लेना चाहता ।"
"लेकिन..."
"तुम जब यहां से छूटो तो उन्हें फोन कर लेना ।"
सुनील चुप हो गया ।
"वहां बैठ जाओ ।" - सब-इन्स्पेक्टर एक ओर पड़ी कुर्सी की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
सुनील उस पर बैठ गया ।
सब-इन्स्पेक्टर उसके सामने एक कुर्सी घसीट कर बैठ गया । सुनील ने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया । उसने सब-इन्स्पेक्टर को सिगरेट आफर करने का उपक्रम नहीं किया । फिर सुनील ने अपनी जेब से 'ब्लास्ट' का आइडेन्टिटी कार्ड निकाला और उसे सब-इन्स्पेक्टर की ओर बढाता हुआ बोला - "यह मेरा आइडेन्टिटी कार्ड है ।"
"अभी इसे अपने पास रखो । और मैं तुम्हें सिगरेट पीने की इजाजत इस उम्मीद पर दे रहा हूं कि तुम सिगरेट की राख या उसका बचा हुआ टुकड़ा फर्श पर नहीं गिराओगे ।"
"नहीं गिराऊंगा । थैंक्यू ।"
सब-इन्स्पेक्टर ने रिवाल्वर अपनी गोद में रख ली थी लेकिन वह सुनील के प्रति पूर्णतया सावधान था ।
"तुम यहां कैसे आ पहुंचे ?" - सुनील ने पूछा ।
"बीट के सिपाही ने गोली चलने की आवाज सुनी थी । उसने पुलिस चौकी फोन कर दिया था । भगत सिंह रोड की चौकी यहां से पास ही है ।"
"ओह !"
"तुमने इस आदमी की हत्या की है ?"
"नहीं ।"
"रिवाल्वर तुम्हारे हाथ में थी ?"
"थी लेकिन मैंने गोली नहीं चलाई थी । रिवाल्वर क्योंकि मेरी थी इसलिये मैंने इसे फर्श पर से उठा लिया था । उस समय मुझे यह मालूम नहीं था कि गोली इसी रिवाल्वर में से चलाई गई थी ।"
"किस्सा क्या है ?"
सुनील ने कम से कम शब्दों में उसे सारी घटना कह सुनाई और सबूत के तौर पर अपनी खोपड़ी के पृष्ठ भाग में निकल आया वह गुमड़ भी दिखा दिया जो तब तक अण्डे से बड़ा हो गया था ।
सब-इन्स्पेक्टर चुप रहा ।
थोड़ी देर बाद पहले वाले सिपाही के साथ तीन और सिपाही फ्लैट में प्रविष्ट हुए । दरवाजा क्षण भर के लिये खुला और सुनील ने देखा बाहर तमाशाइयों की तगड़ी भीड़ जमा हो चुकी थी ।
"इन्स्पेक्टर साहब आ रहे हैं ।" - एक सिपाही बोला ।
सब-इन्स्पेक्टर के संकेत पर दो सिपाही सुनील के सिर पर आ खड़े हुए ।
फिर फ्लैट में कुछ और आदमी प्रविष्ट हुए । उनमें से एक फोटोग्राफर था, एक पुलिस का डाक्टर था और दो फिंगरप्रिन्ट एक्सपर्ट थे ।
डाक्टर ने सोहन लाल का मुआयना किया और लगभग तत्काल ही घोषणा कर दी कि वह मर चुका था । 38 कैलिबर की तीन गोलियों ने उसके सीने को उधेड़ कर रख दिया था । उसके बाद भी उसका जीवित रह पाना एक करिश्मा होता ।
फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट अपना-अपना कार्य करने लगे । रिवाल्वर ट्रीगर के भीतर पेंसिल डाल कर बड़ी सावधानी से फर्श उसे उठा ली गई । फोटोग्राफर के निपटने के बाद चाक से लाश की फर्श पर पोजीशन मार्क कर दी गई ।
फिर अन्त में ड्रामे के सबसे महत्वपूर्ण पात्र की तरह बड़े ही ड्रामेटिक अन्दाज से इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल ने फ्लैट में कदम रखा ।
सब-इन्स्पेक्टर ने उठ कर प्रभूदयाल को सैल्यूट मारा, फिर वह प्रभूदयाल के समीप पहुंचा और धीमे स्वर में बोला - "हथकड़ी डाल दें ?"
प्रभूदयाल चुप रहा । उसने एक उड़ती निगाह सुनील की ओर डाली । उसने सुनील को वहां देखकर कोई हैरानी प्रकट नहीं की । लगता था कि सुनील के बारे में उसे पहले ही खबर की जा चुकी थी, फिर उसने धीरे से नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
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