Thriller विक्षिप्त हत्यारा
पांचवीं मंजिल पर केवल फोर स्टार नाइट क्लब थी ।
सुनील सोचने लगा । मोटे जैसे आदमी का फोर स्टार नाइट क्लब से क्या वास्ता हो सकता था ?
उसने एक सिगेरट सुलगाया और सोचने लगा । अगर मोटा और फोर स्टार नाइट क्लब किसी भी रूप से एक-दूसरे से सम्बन्धित थे तो इतनी रात गये नाइट क्लब में जाना खतरनाक सिद्ध हो सकता था ।
उसने मोटे का थोड़ी देर वहीं इन्तजार करने का फैसला किया ।
वह लिफ्ट के पास से हटकर बाहर फुटपाथ पर आ गया ।
लगभग पांच मिनट बाद लिफ्ट के इन्डीकेटर में पांच नम्बर की बत्ती बुझ गई और कुछ क्षण बाद चार नम्बर की बत्ती जल उठी ।
लिफ्ट नीचे आ रही थी ।
सुनील ने सिगरेट का बचा हुआ टुकड़ा फेंका दिया और लपककर सड़क पार कर गया । वह सड़क के पार एक पेड़ की ओट में खड़ा हो गया ।
लिफ्ट नीचे पहुंची, उसका द्वार खुला, मोटा लिफ्ट में से निकला और लम्बे डग भरता हुआ सीधा सिनेमा के सामने फुटपाथ के साथ खड़ी अपने आर जे एस 2128 नम्बर वाली काली एम्बैसेडर की ओर बढा ।
सुनील पेड़ के पीछ से निकलकर तेजी से उस ओर बढा जहां वह अपनी मोटरसाइकल खड़ी करके आया था ।
मोटा कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था ।
सुनील अपनी मोटरसाइकल के पास पहुंचा ।
मोटे ने कार स्टार्ट की, उसे वहीं से ही यू टर्न दिया और चौराहे की तरफ बढा । चौराहे के ट्रैफिक सिग्नल की बत्तियां कब की बुझ चुकी थीं । काली एम्बैसेडर बन्दूक से छूटी गोली की तरह चौराहा पार कर गई ।
सुनील ने तत्काल अपनी मोटरसाइकल मोटे की कार के पीछे लगा दी । वह बड़ी सावधानी से कार का पीछा करने लगा ।
रास्ते में सुनसान पेड़ थे और मोटरसाइकल के साढे सात हॉर्स पावर के शक्तिशाली इंजन की आवाज उस सन्नाटे में काफी ऊंची मालूम पड़ रही थी । किसी भी क्षण मोटे को पता लग सकता था कि एक मोटरसाइकल उसका पीछा कर रही थी ।
सुनील कार और मोटरसाइकल के बीच में अधिक-से-अधिक फासला रखकर मोटरसाइकल चलाता रहा । मोटे के किसी एक्शन में उसे ऐसा आभास नहीं मिल रहा था कि उसे अपना पीछा किये जाने की जानकारी हो चुकी थी ।
मोटे की कार भगत सिंह रोड की ओर मुड़ गई । मोड़ काटते ही कार के रफ्तार कम हो गई ।
सुनील सावधान हो गया । उसने भी मोटरसाइकल की रफ्तार कम कर दी ।
भगत सिंह रोड की एक इमारत के सामने फुटपाथ पर चढाकर मोटे ने कार खड़ी कर दी ।
सुनील ने मोटरसाइकल रोक दी ।
मोटे ने कार को ताला लगाया और इमारत में प्रविष्ट हो गया ।
सुनील मोटरसाइकल से उतरकर उस इमारत की ओर भागा ।
इमारत का मुख्य द्वार खुला था । ड्योढी में से ही ऊपर की ओर सीढियां जा रही थीं । मोटा उस तीनमंजिली विशाल इमारत से कहीं गायब हो चुका था । इमारत की हर मंजिल पर कम से कम चार फ्लैट थे और सुनील के पास यह जानने का कोई साधन न था कि मोटा उन बारह फ्लैटों में से किस में घुस गया था ।
वह बाहर फुटपाथ पर आ गया । उसने इमारत की ऊंचाई की ओर निगाह दौड़ाई । इमारत अन्धकार के गर्त में डूबी हुई थी । वहां कोई बत्ती नहीं जल रही थी ।
उसी क्षण दूसरी मंजिल के दायीं ओर के फ्लैट की खिड़कियों मे प्रकाश दिखाई दिया ।
सुनील तनिक आशान्वित हो उठा । मोटा शायद उसी फ्लैट में गया था ।
वह फुटपाथ पर खड़ा उस प्रकाशित खिड़की की ओर देखता रहा ।
पांच मिनट बाद बत्ती बुझ गई और इमारत फिर पहले जैसी अंधेरी हो गई ।
मोटे के उस फ्लैट में होने की काफी सम्भावना थी । फ्लैट की बत्ती मोटे के इमारत के प्रविष्ट होने के बाद उतनी ही देर जली थी जितनी देर में कोई आदमी कपड़े बदलकर बिस्तर में प्रविष्ट हो सके ।
उसने इमारत का नम्बर देखा । द्वार के पास एक लड़की की तख्ती लगी थी जिस पर लिखा था - शान्ति सदन, साठ - भगत सिंह रोड ।
इसी क्षण इमारत के आगे एक स्कूटर आकर रुका, उसमें से एक युवक बाहर निकला, उसने स्कूटर वाले के पैसे चुकाये और फिर इमारत की ओर बढा ।
सुनील की ओर देखकर वह ठिठका ।
"भाई साहब" - सुनील आगे बढकर बोला - "आपको मालूम है यहां वर्मा जी कौन-से फ्लैट में रहते हैं ?"
"शान्ति सदन में ?" - युवक ने पूछा ।
"जी हां ।"
"वर्मा जी..." - युवक सोचने लगा ।
"ठिगने से कद के हैं । कुछ आकार में जरा डबल ही हैं । सांवले से हैं । चेहरे पर बारीक-सी मूंछे रखते हैं । उम्र लगभग पैंतीस साल है ।"
"आप तो सोहन लाल का हुलिया बयान कर रहे हैं लेकिन मैंने किसी को उसके नाम के साथ कभी वर्मा लगाते तो नहीं सुना । अगर सोहन लाल ही वर्मा है तो वह तो दूसरी मंजिल पर सामने वाले भाग में दायीं ओर के फ्लैट में रहता है ।"
"मैं जिन वर्मा जी के बारे में पूछ रहा हूं, उनका नाम तो राधे मोहन है ।"
"राधे मोहन नाम के कोई साहब इस इमारत में नहीं रहते ।"
"अच्छा ! ओके, थैंक्यू । मुझ ही से कोई गलती हो गई मालूम होती है ।" - सुनील बोला और युवक को वहीं खड़ा छोड़कर आगे बढ गया ।
युवक कुछ क्षण उलझनपूर्ण नेत्रों से उसे जाता देखता रहा और फिर कन्धे उचकाकर सीढियों की ओर बढ गया ।
सोहन लाल ! - सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से गरदन हिलाता सुनील धीरे से बुदबुदाया ।
मोटे का नाम और पता उसे आसानी से मालूम हो गया था ।
उसने मोटरसाइकल सम्भाली और उस का रुख हर्नबी रोड की ओर मोड़ दिया ।
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