Thriller विक्षिप्त हत्यारा
किसी ने बड़ी बेरहमी से उसके शरीर को उलट दिया । फिर उसे अपनी कमीज अपने शरीर से अगल होती दिखाई दी ।
"चलो ।" - कोई जोर से बोला ।
किसी का भारी पांव सुनील के पेट पर पड़ा । सुनील के मुंह से एक कराह निकल गई । उसे भारी कदमों की धम धम सुनाई दी । फिर कोई दरवाजा भड़ाक की आवाज से बन्द होने का शोर सुनाई दिया ।
सुनील ने अपने दांत भींच लिये और अपनी बची-खुची शक्ति का संचय करने का प्रयत्न करने लगा । उसका कांपता हुआ हाथ सोफे की बांह की ओर बढा । बड़ी मुश्किल से सोफे की बांह उसकी पकड़ में आई । उसने अपने सिर को एक जोर का झटका दिया और फिर वह अपने पैरों पर खड़ा होने का उपक्रम करने लगा । बड़ी कठिनाई से वह सीधा खड़ा होने में सफल हो पाया । वह लड़खड़ाता हुआ खिड़की की ओर बढा, खिड़की के समीप आकर उसने चौखट का सहारा ले लिया और नीचे सड़क पर झांका । उसे कुछ भी स्पष्ट दिखाई न दिया । रह-रहकर उसे अपने नेत्रों के सामने सितारे नाचते दिखाई दे जाते थे । सुनील ने अपने सिर को झटका दिया, तीन-चार बार अपनी आंखें मिचमिचाई और फिर नीचे झांका ।
इमारत के समीप, लैम्प पोस्ट के एकदम नीचे एक काले रंग की एम्बैसेडर खड़ी थी । एम्बैसेडर की बायीं ओर का पिछला दरवाजा कार की बाडी के साथ एक रस्सी से बन्धा हुआ था । दरवाजे का आस-पास का ढेर सारा पैंट भी उखड़ा हुआ था । उसी दरवाजे की एकदम बीच में एक भारी डैंट दिखाई दे रहा था ।
उसी क्षण मोटा और उसके दोनों साथी इमारत से बाहर निकले । जल्दी से वे उस कार में सवार हुए । अगले ही क्षण कार स्टार्ट हुई और बैंक स्ट्रीट में दौड़ती हुई दृष्टि से ओझल हो गई ।
बहुत कोशिश करने के बावजूद सुनील उस कार का नम्बर न देख सका ।
फिर वह वहीं खिड़की के समीप फर्श पर बैठ गया । उसके नेत्र अपने आप मुंद गये ।
लगभग पांच मिनट बाद उसने नेत्र खोले । उसका सारा शरीर बुरी तरह दुख रहा था लेकिन अब उसे अपनी चेतना लुप्त होती महसूस नहीं हो रही थी । उसने कुछ लम्बी-लम्बी सांसें लीं, अपनी आंखों को अपने हाथ के पृष्ठ भाग से रगड़ा और फिर उठकर खड़ा हो गया ।
उसने देखा उसके शरीर पर केवल पतलून और बनियान मौजूद थी । पतलून की जेबें बाहर की ओर उल्टी हुई थीं और कमीज फर्श पर पड़ी थी । उसका कोट एक सोफे की पीठ पर पड़ा था । कोट और पतलून की जेबों का सारा सामान फर्श पर बिखरा पड़ा था । एक-एक करके उसने सारी चीजें समेटनी आरम्भ कर दीं ।
चश्मा ।
फाउन्टेन पैन ।
'ब्लास्ट' का आइडेन्टिटी कार्ड ।
डायरी ।
कुछ जरूरी कागजात ।
रूमाल ।
चाबियां ।
लगभग साढे तीन सौ रुपये के नोट ।
उसकी जेबों में से निकली गई कोई भी चीज चोरी नहीं गई थी । सब कुछ मौजूद था । मोटे के साथियों ने उसकी भरपूर तलाशी ली थी लेकिन वे कुछ भी साथ लेकर नहीं गये थे ।
फिर एकाएक उसे मुकुल की तस्वीर का ख्याल आया और फिर उसकी समझ में आ गया कि मोटे के साथी उसकी जेबों में क्या तलाश कर रहे थे ।
मुकुल की तस्वीर उसकी जेब में से गायब थी ।
वह लड़खड़ाते कदमों से चलता हुआ बैडरूम की ओर बढा ।
उसने एक अलमारी खोलकर उसमें से ब्रांडी की बोतल निकाली । उसने एक गिलास को तीन-चौथाई ब्रांडी से भरा और फिर उसमें बिना पानी मिलाये ब्रांडी को हलक में उंढेल लिया । नीट ब्रांडी उसके गले से लेकर पेट तक लकीर-सी खींचती चली गई लेकिन शीघ्र ही उसे स्वयं में शक्ति का संचार होता अनुभव हुआ ।
उसने नये कपड़े निकालकर पहने, सिर पर एक फैल्ट हैट जमाई और फ्लैट से बाहर आ गया । उसने फ्लैट को ताला लगाया और सीढियों से गुजरता हुआ इमारत से बाहर आ गया ।
वह अपनी मोटरसाइकल के समीप पहुंचा । बड़ी कठिनाई से वह मोटरसाइकल स्टार्ट कर पाया । उसके शरीर का एक-एक जोड़ बुरी तरह दुख रहा था ।
वह मोटरसाइकल पर सवार हुआ और दुबारा मैजेस्टिक सर्कल की ओर उड़ चला ।
मैजेस्टिक सर्कल से थोड़ी दूर ही उसने फुटपाथ पर चढाकर अपनी मोटरसाइकल खड़ी कर दी । उसने फैल्ट हैट का अग्र भाग अपने माथे पर और झुका लिया और फिर सर्कल की ओर बढा । उसने घड़ी पर दृष्टिपात किया । एक बजने को था ।
वह सिर झुकाये मैड हाउस के समीप से गुजरा । 'मैड हाउस' अभी बन्द नहीं हुआ था । बेसमेन्ट से विलायती धुनों की आवाजें अभी भी जा रही थीं ।
लिबर्टी सिनेमा के सामने एकाएक वह ठिठक गया । सिनेमा के सामने फुटपाथ के साथ-साथ तीन-चार कारें खड़ी थीं जिनमें से एक वही काले रंग की एम्बैसेडर थी जिस पर उसने मोटे को और उसके दोनों साथियों को सवार होकर बैंक स्ट्रीट से जाते देखा था । कार की बायीं ओर का पिछला दरवाजा कार की बॉडी के साथ एक रस्सी से बांध हुआ था । उसी दरवाजे के आसपास का ढेर सारा पेन्ट भी उखड़ा हुआ था और दरवाजे के एकदम बीच में एक भारी डेंट दिखाई दे रहा था ।
कार का नम्बर था - आर जे एस 2128
नम्बर सुनील के दिमाग में लिख गया ।
उसी क्षण उसकी निगाह 'मैड हाउस' के मुख्य द्वार पड़ी ।
वहां गेटकीपर के समीप वही मोटा आदमी खड़ा था जो सुनील के फ्लैट में उसकी मरम्मत करके भागा था । वह अपने पहले वाले दो साथियों के साथ खड़ा बातें कर रहा था ।
सुनील ने अपनी फैल्ट हैट का सामने का कोना और अपने माथे पर झुका लिया और फिर लिबर्टी सिनेमा की पोर्टिको के एक खम्बे की ओट में हो गया ।
कुछ क्षण बाद मोटे के साथी मोटे से अगल हुए और फिर मोड़ घूमकर दृष्टि से ओझल हो गये ।
मोटा सिनेमा की ओर बढा ।
सुनील खम्बे के पीछे और सिमट गया ।
मोटा चलता हुआ सिनेमा की पोर्टिको में पहुंचा । वह सुनील से केवल तीन फुट दूर से गुजरा । फिर सुनील ने उसे सिनेमा के बगल की कपड़ों की दुकान के पास के दरवाजे के भीतर प्रविष्ट होते देखा ।
सुनील खम्बे के पीछे से निकला और लपक कार आगे बढा ।
मोटा भीतर सीढियों की बगल में बनी लिफ्ट में प्रविष्ट हो रहा था । उसके देखते लिफ्ट का दरवाजा बन्द हुआ और लिफ्ट ऊपर उठने लगी ।
सुनील लिफ्ट के समीप पहुंचा । उसने लिफ्ट के इन्डीकेटर पर अपनी निगाह जमा दी । इन्डीकेटर में इमारत की मंजिलों के नम्बर लगे हुए थे । लिफ्ट जिस मंजिल से गुजरती थी, उस मंजिल के नम्बर की बत्ती जल जाती थी ।
पांचवीं मंजिल की बत्ती जली और फिर जली रह गई ।
लिफ्ट पांचवीं मंजिल पर जाकर रुक गई थी ।
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