Thriller विक्षिप्त हत्यारा
"फिर तो बड़ा आसान काम है ।" - रमाकांत एकाएक तमक कर बोला - "बस, मैं यह तस्वीर बम्बई भेज देता हूं । बम्बई में तीस चालीस लाख बालिग लोग तो रहते ही होंगे । मेरा आदमी उन तीस-चालीस लाख आदमियों को बारी-बारी यह तस्वीर दिखायेगा । कोई-न-कोई तो उसे पहचान ही लेगा । सन् 1980 की अक्टूबर तक मैं तुम्हें यह बात बताने में सफल हो जाऊंगा कि वास्तव में मुकुल क्या चीज है ! वह अपनी पतलून कौन-से दर्जी से सिलवाता है, कौन-सा टूथपेस्ट इस्तेमाल करता है, कौन-सी..."
"मजाक मत करो, रमाकांत । यह इतना कठिन काम नहीं है जितना तुम इसे सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हो ।"
"मजाक तुम कर रहे हो । यह भुस के ढेर में सूई तलाश करने जैसा काम है ।"
"भुस के ढेर में सूई तलाश करना कोई कठिन काम नहीं होता ।"
"अच्छा !" - रमाकांत के स्वर में व्यंग्य का गहरा पुट था ।
"प्यारेलाल, भुस के ढेर में सूई तलाश करना इसलिये कठिन काम माना जाता है क्योंकि सूई के मुकाबले में भुस का ढेर बड़ा कीमती होता है । लेकिन अगर कोई भुस के ढेर का नुकसान गंवारा कर ले तो सूई तलाश करना बड़ा आसान काम है ।"
"कैसे ?"
"भुस के जिस ढेर में सूई खोई है, उसको आग लगा दो । जब भुस का ढेर राख बन जाये तो राख को छान लो । तो सूई साली कहां जायेगी ? इसलिये रमाकांत साहब, अक्ल से काम लो । जब सूई, का महत्व भुस के ढेर से ज्यादा हो तो सूई ढूंढना बड़ा आसान काम होता है ।"
रमाकांत ने उत्तर न दिया ।
"मुकुल को मैंने गिटार बजाते देखा है । वह वाकई गिटार बजाना जानता है । इतना अच्छा गिटार बजाना चार छः महीने में नहीं आ सकता । गिटार बजाने की वैसी योग्यता वर्षों के निरन्तर अभ्यास के बाद ही पैदा हो सकती है । यही बात उसके गाने के ढंग पर भी लागू होती है । उसका गिटार बजाने और गाने का एक्शन, स्टेज पर आने का ढंग वगैरह भी इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं कि वह लोगों के मनोरंजन के लिये होटलों क्लबों वगैरह में उस प्रकार गाने बजाने का आदी है । तुम्हें सारी बम्बई में उसके बारे में पूछताछ करने को जरूरत नहीं है । वहां के मैड हाउस जैसे रेस्टोरेन्ट और क्लबों में ही पूछताछ करने से काम बन जायेगा और ऐसे ठिकाने बम्बई में कई हजारों की तादाद में नहीं होंगे । पुलिस स्टेशन पर पूछताछ करने पर भी कोई नतीजा हासिल हो सकता है ।"
"अगरचे कि उसकी पहचान के मामले में उसकी दाढी-मूंछ और उसके लम्बे बाल रुकावट न बने ?"
"करैक्ट ।"
"सम्भव है नाम भी मुकुल न हो ?"
"बिल्कुल सम्भव है । इसीलिये तो तुम्हें उसकी तस्वीर भेजी है ।"
"और नगदऊ का क्या इन्तजाम है ?"
"कोई इन्तजाम नहीं है ।"
"फिर काम भी नहीं होगा ।"
"काम होगा, डैडी, और इसलिये होगा क्योंकि इसमें तुम्हारे भूतपूर्व ग्रैंडफादर की टांग फंसी हुई है ।"
"कौन ?" - रमाकांत संशक स्वर में बोला ।
"रायबहादुर भवानी प्रसाद जायसवाल ।"
"ओह ! उनका क्या किस्सा है ?"
"किस्सा फिर बताऊंगा ।"
"ओके ।"
"ओके । गुड लक ।"
सुनील ने रिसीवर को हुक पर टांग दिया । उसने एक उड़ती दृष्टि दूर बैठे मोटे आदमी की ओर डाली । वह सुनील की ओर ही देख रहा था ।
वह वापिस फ्लोरी की बगल में आ बैठा ।
"क्या किस्सा है ?" - फ्लोरी बोली ।
"कुछ नहीं ।" - सुनील बोला - "यूं ही एक दोस्त को फोन करने गया था ।"
"आधी रात को ?"
"हां ।"
"मुकुल की तस्वीर का क्या करोगे ?"
"बच्चों को डराया करूंगा ।"
"टाल रहे हो ?"
"हां ।" - सुनील बड़ी शराफत से बोला ।
उसी क्षण वेटर खाना ले आया ।
सुनील ने देखा, दूर बैठा मोटा आदमी कॉफी पी रहा था ।
फ्लोरी और सुनील ने खाना शुरू किया ।
दो मिनट बाद सुनील एकाएक धीमे स्वर में बोला - "फ्लोरी !"
फ्लोरी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सुनील की ओर देखा ।
"मेरी एक मदद करोगी ?"
"क्या ?"
"एक बदमाश मेरे पीछे लगा हुआ है ।"
फ्लोरी के मुंह से सिसकारी निकल गई ।
"नहीं, नहीं । इतनी गम्भीर बात नहीं है । लेकिन मेरा उससे पीछा छुड़ाना बहुत जरूरी है ।"
"कहां है वह ?"
"वह यहीं रेस्टोरेन्ट में मौजूद है । मैं उसे बड़ी आसानी से डॉज दे सकता हूं, लेकिन इसके लिये मुझे थोड़ी-सी तुम्हारी सहायता की जरूरत है ।"
"मै क्या कर सकती हूं ।"
"मैं अभी खाना छोड़कर क्लॉक रूम की ओर जा रहा हूं और वापिस नहीं आऊंगा । उधर से भी बाहर जाने का रास्ता है । तुम यहां बैठी बदस्तूर खाना खाती रहना और यही जाहिर करना जैसे मैं अभी लौट कर आ जाऊंगा । मेरे पीछे लगा हुआ बदमाश भी यही समझेगा कि मैं खाना बीच में छोड़कर गया हूं इसलिये लौटकर आऊंगा ।"
"ओके ।"
"थैंक्यू । थैक्यू वैरी मच ।"
"लेकिन आज तुम वाकई बहुत रहस्यपूर्ण हरकतें कर रहे हो, राजा ।"
सुनील ने उत्तर न दिया । उसने अपनी जेब में हाथ डाल कर कुछ नोट निकाले और उन्हें चुपचाप सोफे पर अपने और फ्लोरी के बीच मे रख दिया ।
"यह क्या है ?"
"जब वेटर बिल लेकर आयेगा तब मैं यहां मौजूद नहीं होऊंगा इसलिये..."
"तौहीन कर रहे हो ?"
"फ्लोरी, प्लीज । आखिर तुम्हें मैंने आमंत्रित किया था ।"
"फिर क्या हुआ ?"
"देखो, बहस मत करो । बिल चुकाना मर्द का काम होता है और इसे मर्द को ही करने दो ।"
"मैं तुमसे ज्यादा कमाती हूं ।"
"फ्लोरी ! प्लीज, बहस मत करो ।"
"ओके । ओके ।"
सुनील फिर खाना खाने लगा ।
फिर एकाएक वह अपने स्थान से उठा । वह फ्लोरी की ओर देखकर मुस्कराया और फिर दूर बैठे आदमी की ओर बिना दृष्टिपात किये मेजों के बीच में से गुजरता हुआ उस द्वार की ओर बढा जिस पर हरे रंग के जगमगाते शब्दों में लिखा हुआ था - जेंट्स ।
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