Thriller विक्षिप्त हत्यारा
उसी क्षण बत्ती हरी हुई ।
सुनील सड़क पार कर गया, लेकिन वह अपनी मोटरसाइकल के लिये पार्किंग की ओर बढने के स्थान पर टैक्सी स्टैण्ड की ओर बढा ।
एक टैक्सी ड्राइवर ने उसे अपनी टैक्सी में बैठने का संकेत किया ।
सुनील टैक्सी में जा बैठा ।
"किधर चलूं, साहब ?" - टैक्सी वाले ने पूछा ।
सुनील ने मैड हाउस की ओर देखा ।
लिबर्टी बिल्डिंग की साइड में से एक काली फियेट निकली । एक क्षण के लिये वह मैड हाउस के सामने रेलिंग के साथ सड़क पर रुकी । सुनील ने मोटे आदमी को जल्दी से फियेट का पिछला दरवाजा खोल कर भीतर बैठते देखा । फिर फियेट फौरन आगे बढी और सुनील की टैक्सी के पीछे लग गई ।
लिबर्टी बिल्डिंग से सौ गज आगे ही एक अन्य चौराहा था, जिस पर ट्रैफिक सिग्नल की लाल बत्ती चमक रही थी ।
सुनील ने मन ही मन कुछ फैसला किया और फिर ड्राइवर से बोला - "सुनो, तुम्हारा नाम क्या है ?"
"गजराज ।" - ड्राइवर बोला ।
"गजराज ।" - सुनील बोला - "यहां से हर्नबी रोड के साढे चार रुपये लगते हैं । तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हें दस रुपये दूंगा ।"
"क्या काम, साहब ?" - ड्राइवर सशंक स्वर से बोला ।
"तुमने हर्नबी रोड पर स्थित यूथ क्लब देखी है ?"
"देखी है, साहब ।"
सुनील ने अपनी जेब से मुकुल की तस्वीरों वाला लिफाफा निकाला । लिफाफे की दो तस्वीरें में से एक उसने लिफाफे में ही रहने दी और दूसरी तस्वीर उसने वापिस अपनी जेब में रख ली, फिर उसने लिफाफा और दस रुपये का एक नोट ड्राइवर की ओर बढा दिया।
"यह लिफाफा यूथ क्ल्ब में रमाकांत नाम के साहब को दे आना ।"
"आप साथ नहीं चल रहे हैं ?"
"नहीं । मैं यहीं उतर रहा हूं ।"
"अगर रमाकांत साहब क्लब में न हुए तो ?"
"तो लिफाफा रिसैप्शन पर छोड़ आना और रिसैप्शनिस्ट को बता देना कि लिफाफा रमाकांत के लिये है ।"
ड्राइवर ने सुनील से लिफाफा और नोट ले लिया और बोला - "अच्छी बात, साहब ।"
उसी क्षण चौराहे की बत्ती लाल हो गई ।
सुनील जल्दी से टैक्सी का दरवाजा खोलकर बाहर निकल आया और फुटपाथ पर आ खड़ा हुआ ।
काली फियेट थोड़ी आगे बढी, फिर रुकी और फिर मोटा आदमी भी उस में से बाहर निकल आया । फियेट आगे बढ गई ।
सुनील को अब इस विषय में कोई सन्देह नहीं था कि मोटा उसके पीछे लगा हुआ था ।
सुनील ने अपनी कलाई घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
सवा ग्यारह बजे थे ।
सुनील दुबारा 'मैड हाउस' में घुस गया ।
इस बार गेटकीपर ने उसे रोकने का उपक्रम नहीं किया । पता नहीं वह नोट की रिश्वत का असर था या गेटकीपर को मालूम था कि सुनील के साथ की लड़की अभी भी भीतर ही थी ।
तहखाने में जाकर वह वापिस उस मेज की ओर बढा जहां वह फ्लोरी को छोड़ कर गया था ।
फ्लोरी अभी भी वहां पर मौजूद थी लेकिन अब उसके सामने सुनील की सीट पर एक दुबला-पतला सा चश्माधारी लड़का बैठा था ।
सुनील पर दृष्टि पड़ते ही फ्लोरी के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गये । फिर वह उस चश्माधारी युवक की ओर घूमी और मीठे स्वर में बोली - "स्क्रैम, बस्टर ।"
युवक ने बड़े आहत भाव से फ्लोरी को देखा, फिर सुनील को देखा, दुबारा फ्लोरी को देखा और फिर अपना कॉफी का मग हाथ में लेकर उठ खड़ा हुआ और तत्काल वहां से हट गया ।
"बैठो ।" - फ्लोरी बोली ।
सुनील बैठ गया ।
"क्या हुआ ? वापिस कैसे आ गये ? तुम्हें तो बहुत जरूरी काम था ।"
"काम हो गया ।" - सुनील बोला ।
"इतनी जल्दी ?"
"हां ।"
"और इसलिये तुम फौरन यहां वापिस आ गये ?"
"हां ।"
"कमाल है !"
"कमाल कुछ नहीं, ब्राइट आइज ।" - सुनील मधुर स्वर में बोला - "दरअसल तुम इतनी मुद्दत के बाद मिली हो कि मैं तुम्हारे संसर्ग में और समय गुजारने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूं ।"
"जबकि अभी दस मिनट पहले तुम्हें यहां एक क्षण भी रुकना गंवारा नहीं था ।"
"तुम मुझे वाकई बहुत जरूरी काम था और फिर मैं फौरन वापिस आने के इरादे से ही गया था ।"
"तुमने ऐसा कहा तो नहीं था ?"
"गलती हो गई ।"
"हैरानी है ।"
सुनील चुप रहा ।
"आज तुम बड़ी रहस्यपूर्ण हरकतें कर रहे हो ।" - वह बोली ।
सुनील मुस्कराया । वह दो-तीन बार गुप्त रूप से सिढियों की ओर दृष्टिपात कर चुका था । मोटा आदमी पीछे भीतर नहीं आया था । उसने आसपास दृष्टि दौड़ाई मुकुल और बिन्दु उसे कहीं दिखाई नहीं दिये ।
"भूख लगी है ।" - एकाएक सुनील बोला ।
"तो फिर खाना खाओ ।" - फ्लोरी बोली ।
"यहां नहीं । कहीं और चलते हैं ।"
"कहां ?"
"कहीं भी । यहां से बाहर निकलो ।"
"ओके ।" - फ्लोरी बोली और उसने अपना कैमरा वगैरह मेज से उठाकर कन्धे पर लाद लिया ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
वे द्वार की ओर बढे ।
"यहां से बाहर निकलने का कोई और रास्ता नहीं है ?" - एकाएक सुनील ने पूछा ।
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