Raj Sharma Stories जलती चट्टान
08-13-2020, 12:57 PM,
#15
RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
पार्वती के सिवाय बाबा के इस संसार में कोई न था। पार्वती के पिता इस कंपनी के मैनेजर रह चुके थे। एक दिन खानों की छानबीन करते समय एक चट्टान के फट जाने से उनकी मृत्यु हो गई, तब से वह बाबा के संग अकेली रह रही थी। कंपनी ने इन्हें रहने का स्थान व जीवन-भर की ‘गारंटी’ दे रखी थी। बाबा पार्वती की हर बात मान लेते थे, परंतु वह अपने नियम के बड़े पक्के थे-उन्होंने जमाना देखा था। अतः राजन और पार्वती सदा उन्हीं की हाँ-में-हाँ मिलाते। अधिकतर उनका समय पूजा-पाठ में ही बीतता था। जीवन की यही भेंट वह पार्वती को भी देना चाहते थे। जब तक वह पूजा न करे, बाबा उसे खाने को न देते, परंतु वह यह सब कुछ बड़ी प्रसन्नता से करती थी। इसलिए दोनों के जीवन की घड़ियाँ बड़ी खुशी से बीत रही थीं।

दूसरी ओर राजन के नियम कुछ और ही थे। पूजा-पाठ से तो वह कोसों दूर भागता, परंतु भगवान से विमुख न था। वह भगवान को घूस देने का आदी नहीं था, बल्कि उसके लिए दिए हुए जीवन को काम में लाना चाहता था। उसे विश्वास था कि भगवान ने उसे इस संसार में कोई बड़ा कार्य करने को भेजा है। उसको पूर्ण करना ही उसकी सच्ची पूजा है। उसे मंदिरों में घंटे बजाकर या चढ़ावा चढ़ाकर प्रसन्न नहीं किया जा सकता। कलकत्ता में उसने कई सेवा के कार्य करने का प्रयत्न किया, परंतु दरिद्रता सदा ही उसके बीच बाधा बनकर आ खड़ी हुई।

राजन इन्हीं विचारों में डूबा घर पहुँच गया, परंतु पार्वती वहाँ न थी। राजन ने जाते ही बाबा के पाँव छुए और अपना पहला वेतन उनके चरणों में रख दिया-बाबा ने सवा रुपया भगवान के प्रसाद का रखकर बाकी लौटा दिए तथा आशीर्वाद देते हुए बोले, ‘भगवान की कृपा-दृष्टि सदा तुम्हारे पर बनी रहे बेटा, मैं यही कहता हूँ।’

‘पार्वती कहाँ है बाबा?’

‘मंदिर गई होगी।’

राजन यह सुनते ही ड्यौढ़ी की ओर बढ़ा।

‘क्यों कहाँ चले?’

‘होटल, भोजन के लिए।’

यह कहता हुआ राजन बाहर की ओर हो लिया, परंतु उसे आज भूख कहाँ? वह तो पार्वती से मिलने को बेचैन था। वहाँ से सीधा मंदिर पहुँचा और सीढ़ियों के पीछे खड़ा पार्वती की प्रतीक्षा करने लगा। जब सीढ़ियाँ उतर पार्वती राजन के समीप से गुजरी तो राजन ने उसे पकड़ते हुए अपनी ओर खींचा। पार्वती भय के मारे चीख उठी, परंतु राजन ने शीघ्रता से उसके मुँह के आगे हाथ रख दिया और बोला-‘मैं राजन हूँ।’

‘ओह! मैं तो डर गई थी। अभी चीख सुन दो-चार मनुष्य इकट्ठे हो जाते तो।’

‘तो क्या होता? कह देते कि आपस में खेल रहे थे।’

‘काश! यह सत्य होता।’

‘मैं समझा नहीं।’

‘यही कि आपस में खेल सकते।’

‘तो अब क्या हुआ है?’
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RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान - by desiaks - 08-13-2020, 12:57 PM

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