RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
राग के अलाप के साथ-साथ पार्वती ने नृत्य आरंभ कर दिया। नृत्य के मध्य उसने घूमकर देखा... दर्शकों के सिर देवता के सम्मुख झुके थे, परंतु दूर किवाड़ के साथ खड़े राजन के मुख पर वही मुस्कराहट थी। एक बार फिर दोनों की दृष्टि मिल गई और पार्वती बेचैन हो उठी और उसने आँखें मूँद लीं।
वह ढोलक और अलाप के राग के साथ-साथ नृत्य करती रही। न जाने आज राजन के नेत्रों में ऐसा क्या था कि मंदिर के देवता-गीत का अलाप, ढोलक व घुँघरुओं की रुनझुन कोई भी उसकी आँखों से राजन की सूरत को दूर न कर पाती थी और वह नाचे जा रही थी।
उसके पाँव की गति ढोलक के शब्द और रागों के अलाप के साथ-साथ बढ़ती गई-मंदिर गूँज उठा।
आज से पहले पार्वती ने कभी ऐसा नृत्य नहीं किया था। उसे ऐसा मालूम हो रहा था जैसे वह केवल राजन के लिए ही नृत्य कर रही है।
उसने और भी उत्साह से नाचना आरंभ कर दिया।
वह राजन का ध्यान छोड़ अपने आपको देवता के चरणों में अर्पित करना चाहती थी।
परंतु...।
उसके एक ओर तो राजन खड़ा मुस्करा रहा था और दूसरी ओर देवता क्रोध से पार्वती को देख रहे थे।
शायद आज मनुष्य तथा देवता का संघर्ष हो रहा था।
राजन की मुस्कुराहट बता रही थी कि आज वह अत्यंत प्रसन्न है।
इधर घुँघरुओं की रुनझुन और तीव्र होती गई। सीतलवादी की हवा ने तूफान का रूप ग्रहण कर लिया। वायु की तीव्रता से घंटियाँ अपने आप बजने लगीं। फूलों की कलियाँ देवता के चरणों में से उड़कर किवाड़ की ओर जाने लगीं। कलियों ने उड़कर जब राजन के कदम चूमे तो वह समझा, सफलता मेरे चरण चूम रही है।
पुजारी ने राग का अलाप समाप्त कर दिया, परंतु पार्वती की पायल की झंकार अभी तक उठ रही थी। सब लोग सिर उठा झंकार को सुनने लगे। सबकी दृष्टि पार्वती के कदमों के साथ नाच रही थी।
बाबा और पुजारी असमंजस में पड़े हुए थे कि आज पार्वती को क्या हो गया?
मंदिर की दीवारों पर जलते हुए चिराग रिमझिम कर उठे थे। पायल की बढ़ती हुई झंकार उसके लिए एक तूफान साबित हुई, लोगों के हृदय काँप उठे। वायु ने भी जोर पकड़ा, बाबा अपना स्थान छोड़ पार्वती की ओर बढ़े।
और पार्वती को देखा वह कि नाच-नाचकर चूर हो चुकी थी। शरीर पसीने में तर था-फिर भी वह धुन में नाचे जा रही थी। अपने आप में इतना खो चुकी थी कि बाबा की पुकार भी न सुन पाई।
बाबा ने दो बार करीब से पुकारा। अंत में नाचते-नाचते वह देव मूर्ति के चरणों पर गिर गई।
बाबा पुकार उठे-‘पार्वती!’
और उसके साथ ही पुजारी, बाबा, मैनेजर आदि उसकी ओर बढ़े-परंतु राजन अब भी दूर खड़ा मुस्करा रहा था।
राजन ने एक दृष्टि मंदिर की ऊँची दीवारों पर डाली और मंदिर से बाहर चला गया-बाहर भयानक तूफान था। बादल आकाश में छा गए थे। राजन धीरे-धीरे उस तूफान में मंदिर की सीढ़ियाँ उतर रहा था।
उसे लग रहा था, जैसे उसके अंदर बैठा कोई कह रहा है आज इंसान ने देवता पर विजय पाई है। इंसान हुआ है विजयी और देवता हुआ है पराजित।
तीन
प्रतिदिन की तरह राजन आज भी अपने कार्य में संलग्न था। छुट्टी होने में अभी दो घंटे शेष थे। आज चार रोज से उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। इसका कारण वह मकान था, जो मैनेजर ने राजन को कृपा रूप में दिलाया था और राजन को लाचार हो, पार्वती का साथ छोड़ना पड़ा था।
एक-न-एक दिन तो उसे छोड़ना ही था।
यह सोच-सोचकर वह मन को धीरज देता था और काम में जुट जाता था। उसे हर साँझ को बेचैनी से इंतजार होता, जब वह छुट्टी के बाद मंदिर की सीढ़ियों पर पार्वती से मिलता।
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