RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
आज भी वह इस धुन में पार्वती की प्रतीक्षा कर रहा था, पार्वती ने उसे आज नाव की सैर का वचन दिया था। वह प्रतिदिन पूजा के फूलों में एक लाल गुलाब का फूल भी लाती और जब मुस्कराते हुए राजन को भेंट करती तो वह उसे प्रेमपूर्वक उसी के बालों में लगा देता। दोनों फूले न समाते थे।
ज्यों-ज्यों छुट्टी का समय निकट आ रहा था, राजन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इतने में सामने से कुंदन आता दिखाई दिया। राजन काम छोड़ उसकी ओर लपका और बोला-
‘सुनाओ भाई! आज इधर कहाँ?’
‘तुम्हें तो समय ही नहीं-मैंने सोचा... मैं ही मिलता चलूँ।’
‘तुम जानते हो भैया मैं छुट्टी के पश्चात् घूमने चला जाता हूँ। जब लौटता हूँ तो थका-हारा बिस्तर पर पड़ जाता हूँ।’
‘कम से कम अपनी कुशल-क्षेम का समाचार तो देते रहा करो। यदि अकेले न होते तो इसकी आवश्यकता न रहती।’
‘तुम समझते हो मेरा कोई नहीं।’
‘कौन है जो... ओह! ठाकुर बाबा-उन्हें तो मैं भूल ही गया और बातों-बातों में यह भी भूल ही गया कि मैनेजर साहब ने तुम्हें बुलाया है।’
‘मुझे?’
‘हाँ-यही कहने तो आया था।’
‘तो इसलिए हाल पूछा जा रहा था।’
‘राजन हम एक ही समय में दो काम कर लिया करते हैं। तुम्हारी तरह नहीं-काम यहाँ हो रहा है और मन नदी के किनारे-फिर दोनों-के-दोनों अधूरे।’
इस पर दोनों खिलखिलाकर हँसने लगे। कुंदन हाथ मलता ड्यूटी पर चला गया और राजन मैनेजर के कमरे की ओर।
जब वह मैनेजर के कमरे से बाहर निकला तो बहुत प्रसन्न था। उसके हाथ में एक बड़ा-सा पार्सल था, जिसमें उसका प्यार ‘मिंटो वायलन’ था। पहले तो हरीश ने उसे फिजूलखर्ची पर डाँटना चाहा-परंतु यह सोचकर कि शौक का कोई मूल्य नहीं, मौन हो गया। एक युवक शायद दूसरे युवक के दिल को शीघ्र ही पहचान गया था।
छुट्टी होने में शायद अभी एक घंटा बाकी था। कब छुट्टी हो और वह पार्वती के पास पहुँचे। उसे विश्वास था कि वह यह ‘मिंटो वायलन’ देख प्रसन्नता से उछल पड़ेगी और जब वह उसे बजाएगा तो वह उस धुन पर नाच उठेगी।
इन्हीं विचारों में खोया-खोया काम कर रहा था कि मैनेजर व माधो वहाँ आ पहुँचे। राजन ने दोनों को नमस्कार किया। मैनेजर राजन के समीप होकर बोला-
‘राजन आज छुट्टी जरा देर से होगी।’
राजन के सिर पर मानो कोई वज्र गिर पड़ा हो। उसके चेहरे का रंग फीका पड़ गया। फटी दृष्टि से हरीश को देखने लगा। राजन को यों देख दोनों आश्चर्य में पड़ गए। फिर माधो ने पूछा-
‘क्यों राजन! तबियत तो ठीक है?’
‘तबियत...!’ वह संभल कर बोला-‘हाँ...हाँ ठीक है। कुछ और ही सोच रहा था।’
‘तुम तो जानते ही हो कि कल काम बंद रहेगा। तार पर थैलियों के स्थान पर बिजली से चलने वाला एक बड़ा टब लगवाया जाएगा। वह एक ही बार में कोयले की दस थैलियों को नीचे ले जाएगा।’
‘तो फिर!’
‘आज जितना कोयला है, वह सब नीचे पहुँचा दो। प्रातःकाल मालगाड़ी जाती है। यह करीब दो घंटे का काम होगा, इसके बदले कल दिन भर छुट्टी, अब तो प्रसन्न हो न?’
‘जी...!’ राजन ने धीरे से उत्तर दिया, वह वहीं खड़ा रहा। उसे यह भी पता न चला कि दोनों कब चले गए। उसके मन में बार-बार यही विचार उत्पन्न हो रहा था कि पार्वती राह देखेगी। जब वहाँ न पहुँचेगा तो निराश होकर घर लौट जाएगी। उसने घूमकर एक दृष्टि कोयले के ढेर पर डाली। उसके मुँह से यह शब्द निकल पड़े-‘इतना ढेर, दो घंटे का काम-केवल दो घंटे का?’ अचानक उसका चेहरा तमतमा आया और वह मजदूरों की ओर बढ़ा और उन्हें काम के लिए कहा-फिर स्वयं ही बेलचा उठा कोयले को थैलियों में भरने लगा। मजदूरों ने भी मन से उसका साथ दिया। इस प्रकार वह सब मिलकर काम करने लगे। सबके हाथ मशीन की भांति चल रहे थे। सारे दिन की थकावट का उन पर कोई असर न था। आज वह घंटों का काम मिनटों में समाप्त करना चाहते थे।
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