RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
पार्वती को इस उत्तर पर बहुत क्रोध आया, बिगड़कर बोली, ‘शायद तुम नहीं जानते हो कि मैं इन्हीं पहाड़ियों की गोद में पली हूँ।’
बाबा दोनों की बातें सुन रहे थे, बोले-‘झगड़ा काहे का राजन ठीक कहता है। तुम्हें साथ लिए वह कहाँ जाएगा?’
‘जाता ही कौन है!’ कहकर पार्वती क्रोधित हो अंदर चली गई।
बाबा ने राजन से पूछा-‘क्या अकेले जा रहे हो?’
‘जी!’
‘तो फिर तुम्हें पार्वती को ले जाने में क्या एतराज है?’
‘एतराज तो कुछ नहीं... यही सोचा कि...।’
‘वह इतनी कोमल नहीं, जितनी तुम समझ बैठे हो। बेटा उसका है भी कौन, जो उसे साथ ले जाए। फिर कोई सखी-सहेली भी नहीं, जिससे दो घड़ी हँस-खेल ले।’
‘जैसी आपकी आज्ञा।’
राजन पार्वती के कमरे में गया। वह क्रोध में तनी बैठी थी। राजन ने उसकी बाँह पकड़ी और कहने लगा-‘चलो न देर हो रही है।’
‘मुझे नहीं जाना।’
‘तुम तो कुछ नहीं समझतीं। यदि बाबा के सामने यूँ न कहता तो जानती हो वे क्या समझते?’
‘अच्छा जी, हो बड़े समझदार! बात बनाना तो कोई तुम से सीखे। अच्छा तो तुम बाबा से बातें करो, मैं कपड़े बदलकर आई।’
थोड़ी ही देर में पार्वती एक सुंदर सी साड़ी पहने आँगन में आ खड़ी हुई। उसे देख दोनों मुस्करा दिए। जब बाबा ने भोजन को कहा तो दोनों ने कह दिया-‘भूख नहीं है।’ बाबा भली-भांति जानते थे कि दोनों को प्रसन्नता के मारे भूख नहीं लग रही। अतः उन्होंने आलू के परांठे जबरदस्ती साथ झोले में डाल दिए, दोनों हँसते-कूदते पहाड़ियों की ओर चल पड़े। रास्ते में राजन ने अपने घर से ‘मिंटो वायलन’ भी साथ ले ली। इस साज को देख पार्वती का मन प्रसन्नता से नाच उठा।
राजन पार्वती को पहले उस स्थान पर ले गया, जहाँ वह काम करता था। मैनेजर व माधो वहाँ खड़े काम करवा रहे थे। आज तार पर नया टब लटक रहा था। कुछ बाहर से आए हुए लोग बिजली की तारे आदि लगा रहे थे। राजन नई मशीन को देख प्रसन्न हुआ और एक ओर खड़ा होकर सब कुछ पार्वती को समझाने लगा। पार्वती सुन तो कुछ न रही थी, केवल टकटकी बाँधे उसके चेहरे की ओर देख रही थी। राजन कुछ रुककर कहने लगा-
‘कुछ समझी भी कि यूँ ही बोले जा रहा हूँ।’
‘हाँ राजन, सब सुन रही हूँ।’
‘बोलो, भला क्या समझी?’
‘क्या... समझी, यही कि तुम अच्छा बोल लेते हो। बोलने लगते हो तो माथे से पसीने की बूँदें गिरने लगती हैं।’ कहते-कहते पार्वती चुप हो गई, परंतु राजन हँस पड़ा, पार्वती ने भी उसका साथ दिया।
अचानक दोनों चुप हो गए। राजन ने देखा, मैनेजर व माधो सामने खड़े हैं और इनकी बिना मतलब की हँसी सुन दोनों असमंजस में हैं। राजन ने दोनों को प्रणाम किया और उसके साथ पार्वती ने भी हाथ जोड़ दिए। मैनेजर पार्वती के समीप होकर नमस्कार का उत्तर देते हुए बोला-‘शायद पूजा के दिन इन्हें देखा है?’
‘जी ठाकुर बाबा के साथ।’
‘ओह अब समझा!’ मैनेजर ने राजन की बात को काटते हुए कहा।
पार्वती मुस्करा दी।
‘शायद आज पहली ही बार इस ओर आई हो?’
‘जी... बाबा से कई बार कहा, परंतु वह टाल देते थे। आज राजन इस ओर आ रहा था, सोचा-मैं यह सब कुछ देखती ही आऊँ।’
‘अवश्य... बाबा ने मुझे ही कहला भेजा होता... खैर मैं तो आज काम में हूँ, कहो तो माधो को साथ भेज दूँ।’
‘आप कष्ट न करें-राजन जो साथ है।’
‘इसमें कष्ट काहे का और फिर राजन भी तो नया है।’
राजन पहले ही जला हुआ था, तुरंत बोल उठा-
‘मैनेजर साहब! जो आनंद खोज में है वह शायद प्राप्ति में नहीं।’ और फिर मैनेजर साहब से आज्ञा ले पार्वती के साथ ऊपर की ओर बढ़ गया।
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