RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
डिब्बे अब पूरी रफ्तार पकड़ चुके थे। कटी हुई पहाड़ियों के बीच वह तेजी से जा रहे थे। थोड़ी-थोड़ी देर के बाद राजन और पार्वती उछलकर एक-दूसरे से टकरा जाते और फिर दृढ़तापूर्वक डिब्बे के किनारों को पकड़ लेते। पार्वती ने थोड़ी दूर पर एक अंधेरी सुरंग को अपनी ओर बढ़ते देखा तो भय के मारे उसका हृदय काँपने लगा। उसने राजन की ओर देखा तो उसके मुख से यह प्रतीत होता था, जैसे आने वाली अंधेरी गुफा की उसे कोई चिंता ही नहीं। ज्यों-ज्यों सुरंग समीप आती गई-पार्वती सरककर राजन के पास हो गई। जब गाड़ी ने सुरंग में प्रवेश किया तो चारों ओर अंधेरा छा गया।
पार्वती चिल्ला उठी और डर के मारे राजन की गर्दन में दोनों बांहें डालकर उससे जोर से लिपट गई।
बंद पहाड़ी में पटरी पर चलते डिब्बों का शोर जोर से गूँज रहा था। राजन ने उसे सीने से लगा लिया, दोनों के श्वास तेजी से चल रहे थे। दोनों चुपचाप थे, परंतु गाड़ी का स्वर दोनों के दिल की धड़कनों से ताल मिला रहा था।
जब डिब्बे सुरंग से बाहर निकले तो दोनों चुपचाप एक-दूसरे से दूर बैठे हुए थे। राजन के होठों पर एक शरारत भरी मुस्कुराहट थी, परंतु पार्वती सिर झुकाए बैठी थी। शायद यही प्रकाश उसे खाए जा रहा था और वह यही चाह रही थी कि अंधेरा फिर उसे अपनी काली चादर में छिपा ले, परंतु एक उजाला था, जो उसकी दृष्टि को ऊपर उठने ही न दे रहा था। पार्वती के चेहरे को हाथों से राजन ने अपनी ओर किया और कहने लगा-‘क्यों चाँद मिला?’
‘मिला तो...!’ पार्वती ने राजन की ओर देखते हुए कहा और उसकी सजल आँखों से आँसू छलक पड़े।
‘कहाँ था?’
‘मेरे पास।’ पार्वती ने स्नेह भरी दृष्टि से राजन को देखा और उसे खींचकर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया, न जाने कितनी देर यौवन फूलों की गोद में सोया रहा। अचानक दोनों चौंक उठे। गाड़ी के डिब्बे रुक गए, यहाँ ही उन डिब्बों की मंजिल का अंत था, परंतु राजन और पार्वती की मंजिल अभी दूर थी।
राजन पार्वती के साथ सामने सीमेंट के बने जंगल तक पहुँचा और वहाँ खड़े मनुष्य को कंपनी का पास दिखाया। पार्वती को देख उसने अधिक पूछताछ करना ठीक न समझा और लिफ्ट में चढ़ने की आज्ञा दे दी। इसी ‘लिफ्ट’ से मनुष्यों को पहाड़ी की चोटियों तक पहुँचाया और लाया जाता था।
बिजली के बटन दबाते ही लिफ्ट गहरी और भयानक घाटियों को पार करने लगी। दोनों सलाखों के कमरे में बंद हवा में उड़ने लगे। थोड़ी देर में इतनी बुलंदी पर पहुँच गए कि सचमुच बादलों के टुकड़ों से खेलने लगे। दोनों ने जीवन में पहली बार अनोखी वस्तु देखी थी, जिसे देख-देखकर दोनों के मन प्रसन्नता से भर उठते थे। बादलों की नमी के कारण दोनों के शरीर ठण्डे हो रहे थे। राजन ने पार्वती को अपने बाहुपाश में लिया। पार्वती ने अपनी बांहों को उसके गले में डालते हुए कहा-
‘आखिर मुझे लिए कहाँ जा रहे हो?’
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