RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
‘इस संसार से दूर।’
‘क्यों?’
‘ताकि तुम्हारे देवता तुम्हारा पीछा न कर सकें।’
‘वह तो सब स्थानों में पहुँच सकते हैं और इतनी दूर ले जा सकते हैं, जो मनुष्य की शक्ति से बाहर है।’
‘हाँ, मनुष्य उतनी दूर लेकर तो नहीं जा सकता, परंतु एक बार हाथ पकड़कर राह भी नहीं छोड़ता।’
‘क्या मालूम छोड़ ही दे।’
‘तो वह मनुष्य न होकर शैतान होता है।’
राजन ने अपने होंठ उसके गालों पर रख दिए। पार्वती ने हाथ खींच लिया और पलटकर राजन की ओर एकटक देखने लगी, अचानक एक बादल के टुकड़े ने दोनों को घेर लिया। पार्वती अवसर देख शीघ्रता से नीचे बैठ परे हो गई। राजन धुँध में पार्वती को टटोलने लगा। पार्वती लिफ्ट की सलाखों से लगी जोर-जोर से हँस रही थी। जब धुँध ने पार्वती को घेर लिया तो राजन ने शीघ्रता से उसे पकड़ लिया। उसके प्यासे होंठ पार्वती के मुख तक पहुँच ही गए। परंतु पार्वती को यह अच्छा न लगा। बोली-‘राजन, इतना अल्हड़पन अच्छा नहीं।’ और यह कहते हुए जहाँ पार्वती की आँखों में कृत्रिम क्रोध था-वहाँ स्नेह भी। एकबारगी राजन को देखा और आँखें झुका लीं।
‘शायद तुम मुझे डाँटना चाहती हो।’
‘हाँ, परंतु अब विचार बदल दिया है।’
‘वह क्यों?’
‘तरस आ गया।’
‘तरस और मुझ पर।’
‘तुम पर नहीं, तुम्हारे स्नेह पर।’ लजाते हुए पार्वती ने मुँह फेर लिया। राजन पास आकर धीरे से उसके कान तक मुँह ले जाकर बोला-
‘तो मान लूँ कि तुम मुझसे प्रेम करती हो।’
पार्वती नीचे घाटियों की ओर संकेत करते हुए बोली-‘वह गहराइयाँ देख रहे हो?’
‘हाँ।’ ‘यदि तुम जानना चाहते हो कि गहराइयों में क्या-क्या है तो कैसे जानोगे?’
‘नीचे उतर जाऊँगा।’
‘इस प्रकार यदि तुम मेरे दिल की गहराइयों में उतर जाओ तो सब जान जाओगे।’
‘उतर तो जाऊँ, परंतु बाहर से तुमने दिल का द्वार बंद कर लिया तो।’
‘तो क्या हुआ, अंधेरे में पड़े जला करना। शायद तुम्हें ऊपर उठने का मौका मिल सके।’
और एक शरारत भरी मुस्कान पार्वती के होंठों पर खेल गई।
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