RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
पार्वती ने एक दृष्टि उन सफेद चट्टानों पर डाली और राजन ने ‘मिंटो वायलन’ के तार छेड़ दिए। पार्वती नंगे पाँव उन चट्टानों की ओर बढ़ी। उसे ऐसा लगा, जैसे स्वयं देवता बादलों पर आरूढ़ हो उसका नृत्य देखने आ रहे हों। ज्यों ही उसने पथरीली फर्श पर पैर रखा-मानो पाजेब की झंकार गूँज उठी।
वह वायलन की धुन के साथ-साथ नृत्य करने लगी।
आज वह मंदिर के बंद देवताओं को छोड़ प्रकृति की गोद में नाच रही थी। राजन भी मिंटो वायलन बजाता उसके साथ-साथ जाने लगा। अंतिम चट्टान पर वह रुक गई और तेजी से नाचने लगी। राजन की उंगलियाँ भी वायलन के तारों पर तेजी से थिरक रही थीं। दोनों एक-दूसरे की ताल में खो गए।
अचानक वायलन का तार टूट गया। तार के टूटते ही पार्वती का पाँव फिसला और वह नीचे जा गिरी। राजन चिल्लाया-‘पार्वती... पार्वती’, परंतु पार्वती की एक चीख सुनाई दी और सन्नाटा छा गया। राजन तेजी से नीचे पहुँचा, पार्वती पत्थरों पर पड़ी कराह रही थी। सिर से रक्त बह रहा था।
राजन के पाँव तले की धरती निकल गई। वह बहुत घबराया। फिर शीघ्रता से उसे अपनी बांहों में उठा लिया, पार्वती मूर्छित हो गई थी। चारों ओर बादलों की धुंध छा रही थी। राजन पथरीली चट्टानों से पग बढ़ाता आश्रम की ओर चल दिया। ज्यों ही वह आश्रम के करीब पहुँचा, लोगों के गाने का शब्द उसे जोरों से सुनाई पड़ने लगा। जब उसने आश्रम में प्रवेश किया तो महात्मा के चेले भजन गा रहे थे। किसी ने भी उनकी ओर नहीं देखा। मूर्छित पार्वती अब भी उसकी बांहों में थी।
उसने थोड़ी दूर बैठे आदमी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर पुकारा। परंतु उसने भी कोई उत्तर नहीं दिया जैसे उसने देखा ही नहीं और सुनी-अनसुनी कर दी। राजन के क्रोध का पारावार न रहा, वह जोर से चिल्लाया-‘महात्मा जी!’
सब मौन हो गए। चकित हो उसे देखने लगे। राजन यह कहते हुए ‘कहाँ हैं तुम्हारे गुरु? कहाँ हैं तुम्हारे महात्मा?’ अंदर की ओर बढ़ने लगा। एक मनुष्य आगे बढ़कर उसे रोकते हुए बोला-
‘कल प्रातःकाल तक वह किसी से नहीं मिल सकते।’
‘परंतु मुझे अभी मिलना है। मैं एक पल भी प्रतीक्षा नहीं कर सकता। किसी के जीवन का प्रश्न है।’
राजन झट से उसे हटाकर आगे बढ़ गया, सब चिल्लाए-‘ऐसा मत करो।’ परंतु राजन न माना और सामने गुफा की ओर बढ़ता ही गया। गुफा के अंदर से प्रकाश बाहर आ रहा था। राजन ने सीधा अंदर ही प्रवेश किया। सामने एक पत्थर के आसन पर महात्मा आँखें मूँदे बैठे थे। राजन ने धीरे-धीरे तीन-चार बार पुकारा-‘गुरुदेव... गुरुदेव’, परन्तु कोई उत्तर न पाया। वह कुछ और समीप हो गया और जोर से चिल्लाया, ‘महात्माजी...।’
महात्मा ने नेत्र खोले और एक कड़ी दृष्टि से राजन को देखा। फिर दृष्टि पार्वती के चेहरे पर जाकर जम गई। राजन लड़खड़ाते हुए बोला-
‘मजबूरी थी गुरुदेव! आपकी पुजारिन के जीवन का प्रश्न था। आप इसे शीघ्र ही जीवन प्रदान करें। देखिए यह मूर्छित पड़ी है।’
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