RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
अब राजन जोरों से हँस रहा था और पार्वती डर के मारे चिल्ला रही थी। जब थोड़ी ही देर में दोनों लुढ़कते हुए बर्फ के ढेर पर गिरे और पार्वती ने देखा तो राजन उस पर झुका मुस्करा रहा था। किसी की आँखों में कोई उलाहना न था। उन आँखों में था स्नेह भरा उल्लास।
राजन बर्फ के ढेर से उठा और पार्वती को भी हाथ पकड़कर उठाया। दोनों उसी ढलान पर फिर से चढ़ने लगे। सूर्य अस्ताचल में जा चुका था, परंतु अभी अंधेरा होने में कुछ देर थी। दोनों बिलकुल चुप थे। बीच-बीच में एक-दूसरे को देख भर लेते थे।
पार्वती ने जब घर के आँगन में पाँव रखा तो बाहर कोई न था। जाड़े के कारण सब किवाड़ बंद थे। पार्वती ने बरामदे में पहुँच कमरे का किवाड़ खोला। बाबा जलती अंगीठी के पास बैठे कोई पुस्तक पढ़ रहे थे। उन्होंने ऐनक नाक से हटाई और बोले-
‘क्यों पार्वती जाड़ा कैसा है?’
‘बहुत है बाबा।’
‘आज तो मंदिर में भीड़ कम होगी।’
‘जी, यह ही कोई दो-चार इने-गिने मनुष्य।’
बाबा कुछ देर में चुप हो गए। पार्वती शाल उतार सामने रखने को बढ़ी और अचानक रुक गई। अंगीठी पर फूल पड़े थे, जो वह पूजा के लिए मंदिर ले गई थी। पार्वती सिर से पाँव तक काँप गई।
‘माधो आया था, शायद उसके हाथ में थे।’ बाबा ने ऐनक डिब्बे में बंद करते हुए कहा और पार्वती को आग के समीप आने का संकेत किया। पार्वती डरते-डरते अंगीठी के करीब आ बैठी और बाबा की ओर आश्चर्यपूर्वक देखने लगी। बाबा फिर कहने लगे-
‘कल मैनेजर हरीश ने बुलाया है।’
‘क्यों?’
‘शाम की चाय पर।’
‘पहले तो कभी।’
‘तुम्हारे पिता के स्थान को संभालने के कारण वह हमारे समीप आने से झिझकता रहा।’
‘क्या कोई खास बात है, तो...।’
‘यूँ ही जरा दो घड़ी मिल बैठने को माधो कहता था और तुम्हें साथ लाने की खास ताकीद की है।’
‘मुझे! न बाबा मेरा वहाँ क्या काम?’
‘काम हो न हो, जाना अवश्य है और फिर आज पहली बार उसने बुलाया है-यदि हम न गए तो वह क्या सोचेंगे।’
‘परंतु साँझ को मंदिर भी तो जाना है।’
‘एक दिन घर के ठाकुरों को ही फूल चढ़ा देना।’
यह कहकर बाबा कुर्सी से उठकर बाहर जाने लगे। पार्वती चुप बैठी जलती आग के शोलों को देख रही थी। आग के अंगारे की तपन से उसका मुख लाल हो रहा था। वह सोच में थी कि बाबा से क्या कहे। उसे कुछ भी तो सूझ नहीं रहा था।
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