RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
‘ऐसी तो कोई बात नहीं माधो, परंतु कभी-कभी सोचता हूँ कि मेरे बाद पार्वती का क्या होगा, उसका सहारा?’
‘पहले तो आपने कभी ऐसी बातें न सोची थीं।’
‘परंतु जीवन का क्या भरोसा, फिर अब वह सयानी भी तो हो गई है।’
‘उसके हाथ पीले कर दीजिए, एक दिन तो उसे परायी होना ही है। यह काम आप अपने ही हाथों...’
‘यही तो मैं सोचता हूँ माधो!’
‘तो शुभ काम में देरी कैसी?’
‘अभी वर की खोज करनी होगी।’
‘यह बात तो है ही-हाँ, आपका हरीश के बारे में क्या विचार है?’
बाबा हरीश का नाम सुनते ही आश्चर्य से माधो की ओर देखने लगे और फिर बोले, ‘हरीश, कैसी बात कर रहे हो माधो?’
‘क्यों? मैंने कोई अपराध किया है क्या?’
‘कहाँ हरीश माधो! कहाँ मेरी पार्वती।’
‘ओह तो क्या आप हरीश को पार्वती के योग्य नहीं समझते।’
‘कौन नहीं चाहता कि उसकी बेटी ऊँचे कुल की बहू बने, फिर पार्वती जैसी बेटी-आज पार्वती का पिता जीवित होता, तो दूर-दूर से लोग न्यौता लेकर आते।’
‘तो अब क्या कमी है-आपका खानदान, शान तथा मान तो वही है।’
सुनकर बाबा की आँखों में एक प्रकार की चमक आई और मिट गई। फिर बोले, ‘परंतु माधो आजकल खानदान तथा मान को कौन देखता है। सबकी निगाह लगी रहती है धन की ओर।’
‘परंतु हरीश बाबू तो ऐसे नहीं हैं।’
‘किसी के हृदय को तुम क्या जानो?’
‘सच ठाकुर साहब-आपकी पार्वती वह बहुमूल्य रत्न है, जिसे संसार-भर के खजाने भी मोल नहीं ले सकते।’
‘तो क्या हरीश मान जाएगा?’
‘यह सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए। पार्वती जैसे बेटी आपकी, वैसी मेरी।’
इतने में कमरे का किवाड़ खुला और पार्वती ने मंदिर के पुजारी के साथ भीतर प्रवेश किया। माधो बाबा से आज्ञा ले सबको नमस्कार कर बाहर चला गया।
माधो सीधा वहाँ से हरीश के घर पहुँचा और सारा समाचार हरीश से कहा। हरीश की प्रसन्नता का ठिकाना न था। रात बहुत बीत चुकी थी, माधो तो सूचना देकर घर चला गया, परंतु हरीश विचारों की दुनिया में खो गया। उसके सामने निरंतर पार्वती की सूरत घूम रही थी। प्रसन्नता से पागल हो रहा था वह।
दूसरी साँझ हरीश जब माधो को साथ ले बाबा के घर पहुँचा, तो यह जान उसे अत्यंत दुःख हुआ कि बाबा की तबियत गिरती जा रही है। पार्वती ने उन्हें बताया कि वह पुजारी से बहुत समय तक बातें करते रहे। बातें करते-करते ही उन्हें दौरा पड़ा और मूर्छित हो गए। दवा देने से तुरंत होश में आ गए। वह और पुजारी सारी रात उनके पास बैठे रहे। पुजारी अब भी उनके पास है।
मैनेजर हरीश व माधो शीघ्रता से बाबा के कमरे में गए और पार्वती बरामदे में खम्भे का सहारा ले बाबा के कमरे की ओर देखने लगी। बाबा की बीमारी का कारण वही है, यह सोचकर उसकी आँखों में आँसू भर-भर आते थे। बाबा को कितना चाहती है, यह उसी का हृदय जानता था, परंतु मुँह से कुछ न कह पाती थी। उसके जी में आता कि बाबा से लिपट जाए और कहे-बाबा मुझे गलत न समझो। आपकी हर बात के लिए प्राण भी दे सकती हूँ, परंतु यह सब कुछ किससे कहे। बाबा के समीप जाते ही घबराती थी। किसी के बाहर से आने की आहट हुई। उसने झट से आँसू पोंछ डाले। सामने खड़ा पुजारी उसे देख रहा था।
|