RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
‘पार्वती बिटिया, मन इतना छोटा क्यों कर रही हो?’
‘कुछ समझ में नहीं आता केशव काका! बाबा को क्या हो गया है?’
‘घबराओ नहीं बुढ़ापा है, दो-चार रोज में ठीक हो जाएँगे।’
सुनकर पार्वती फूट-फूटकर रोने लगी। केशव ने धीरज बँधाते हुए कहा-‘हिम्मत न हारो, तुम्हीं तो उनका जीवन हो।’
‘काका! तुम नहीं जानते कि यह सब मेरे ही कारण हुआ है।’
‘मैं सब जानता हूँ-उन्होंने कल रात मुझसे सब कुछ कह दिया।’
‘तो बाबा से जाकर कह दो-तुम्हारी पार्वती को बिना तुम्हारे संसार में कुछ नहीं चाहिए। वह अपने बाबा की प्रसन्नता के लिए संसार के सब सुखों को भी ठुकरा सकती है।’
अभी यह शब्द उसकी जुबान पर ही थे कि माधो शीघ्रता से बाहर निकला। उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। उसे यूँ देख दोनों घबरा गए।
‘क्यों माधो, ठाकुर साहब?’ केशव के हाँफते होठों से निकला।
‘जरा तबियत अधिक खराब है।’
पार्वती शीघ्र ही रसोईघर की ओर भागी और केशव बाबा के कमरे की ओर। बाबा का हाथ हरीश के हाथों में था और वे आँख बंद किए मूर्छित पड़े थे। केशव और हरीश चुपचाप एक-दूसरे को देखने लगे। दोनों के चेहरों पर निराशा झलक रही थी।
थोड़ी ही देर में माधो डॉक्टर को लिए आ पहुँचा। डॉक्टर के ‘इंजेक्शन’ से उन्हें कुछ होश आया। डॉक्टर ने केशव को चाय के लिए संकेत किया। केशव ने दो-चार घूंट चाय उनके मुँह में डाली।
बाबा ने एक नजर सबकी ओर दौड़ाई। सब चुपचाप उनकी ओर देख रहे थे। बाबा ने केशव से धीमे स्वर में पूछा, ‘पार्वती कहाँ है?’
पार्वती दरवाजे की ओट में खड़ी आँसू बहा रही थी। बाबा के मुँह से अपना नाम सुनते ही चौंक उठी। साड़ी के पल्लू से आँसू पोंछ, धीरे-धीरे बाबा की ओर बढ़ी। बाबा पार्वती को देख होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान ले आए, प्यार से अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाया। वह उनके पास जा बैठी और अपने पल्ले से उनके माथे पर आए पसीने को पोंछने लगी। बाबा ने उसका हाथ रोका और प्यार से अपने होंठों पर रख चूम लिया। पार्वती ने बहुत धीरज बाँधा, परंतु वह आँसुओं को न रोक पाई। ‘पगली कहीं की! अभी तो तुम्हारे विदा होने में बहुत दिन हैं। अभी तो बारात आएगी। शहनाइयाँ बजेंगी-तू दुल्हन बनेगी। जब डोली में बैठेगी तो जी भरकर रो लेना।’ बाबा ने रुकते-रुकते कहा।
‘बाबा!’ कहते-कहते पार्वती बाबा की छाती से लिपट गई और बोली-‘बाबा मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे तो मेरा बाबा चाहिए। मैं संसार की सब इच्छाएं अपने बाबा पर न्यौछावर कर सकती हूँ। मुझे गलत मत समझो बाबा। मेरा इस संसार में सिवाय आपके और भगवान के कोई नहीं।’
बाबा ने स्नेह भरा हाथ पार्वती के सिर पर फेरा और सामने खड़े लोगों से बोले-‘तुम सब मेरे मुँह को क्यों देख रहे हो! तुममें से मेरी पार्वती के आँसू पोंछने वाला कोई नहीं? बेचारी रो-रोकर बेहाल हो रही है।’
केशव आगे बढ़ा और पार्वती को वहाँ से उठाकर चुप कराने लगा-फिर धीरे से उसके कानों में बोला-
‘पार्वती, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए-बाबा की तबियत वैसे ही ठीक नहीं।’
पार्वती चुप हो गई, आँसू पोंछ डाले, फिर बाबा की ओर देख मुस्कुराईं। उसे प्रसन्न देख बाबा के होंठों पर मुस्कान की स्पष्ट रेखाएं खिंचकर मिट गईं। पल भर के लिए सब बाबा को देखने लगे। कमरे में नीरवता होने से बाहर की तेज वायु का साँय-साँय शब्द सुनाई दे रहा था। बाबा ने संकेत से हरीश को अपने पास बुलाया। हरीश बाबा के एक ओर बैठ गया।
बाबा बोले-‘आज यह अंधेरा कैसा रामू?’
‘ओह! साँझ हो गई।’ रामू ने उत्तर देते हुए बत्ती का बटन दबाया-कमरे में प्रकाश हो गया।
‘खिड़कियाँ भी बंद कर रखी हैं।’ बाबा बोले।
‘बाहर कुछ आँधी का जोर है और जाड़ा भी अधिक हैं।’
‘खोल दो रामू! कभी-कभी यह आँधी और तूफान भी कितने भले मालूम होते हैं।’
रामू ने डॉक्टर की ओर देखा-डॉक्टर ने खोलने का संकेत किया तो रामू ने तुरंत ही बाहर वाली खिड़की खोल दी। तूफान का जोर बढ़ रहा था। हवा की तेजी के कारण खिड़की के किवाड़ आपस में टकराने लगे। बाबा की दृष्टि उन किवाड़ों पर और फिर सामने खड़े लोगों पर पड़ी। सबने देखा-बाबा के मुख पर एक अजीब-सी स्थिरता-सी छा गई। जिसे देखते ही सबके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। पार्वती धीरे से बाबा के पास बैठ गई-केशव और रामू भी बाबा के समीप हो गए। डॉक्टर जरा हटकर इंजेक्शन की तैयारी करने लगा।
‘पार्वती बेटी, केशव काका जादूगर हैं-देखा, तुझे रोती को झट से चुप करा दिया।’ बाबा के शब्द बहुत धीमे स्वर में निकल रहे थे।
‘हाँ बाबा।’
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