RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
सात
‘चार वैगन तो लोड हो गए।’
राजन ने सीतलपुर के स्टेशन मास्टर की मेज़ पर लापरवाही से कुछ कागज रखते हुए कहा और पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया। स्टेशन मास्टर ने कोई उत्तर न दिया। वह तार की टिकटिक में संलग्न था। राजन चुपचाप बैठा उसके चेहरे को देखता रहा। थोड़ी देर चुप रहने के बाद स्टेशन मास्टर ने अपना सिर उठाया और अपनी ऐनक कान पर लगाते हुए बोला-
‘जरा तार दे रहा था, अच्छा तो चार ‘लोड हो गए।’
‘जी, परंतु और कितने हैं?’
‘केवल दो-इतनी भी क्या जल्दी। अभी तो दस ही दिन हुए हैं।’
‘तो इतने कम हैं क्या? घर में माँ अकेली है और...’
‘और घरवाली भी।’
‘अभी स्वयं अकेला हूँ।’
‘तो तुम अभी अविवाहित हो? अच्छा किया जो अब तक विवाह नहीं किया, नहीं तो परदेस में इन जाड़ों की रातों में रहना दूभर हो जाता है।’
‘वह तो अब भी हो रहा है। सोचता हूँ, काम अधूरा छोड़ भाग जाऊँ, परंतु नौकरी का विचार आते ही चुप हो जाता हूँ।’
‘हाँ भैया, नौकरी का ध्यान न हो तो हम इस जाड़े में यूँ बैठे रात-दिन क्यों जुटे रहें-देखो, शादी तो तुम्हारे मैनेजर की है और मुसीबत हमारी।’
‘शादी हमारे मैनेजर की! आप क्या कह रहे हैं?’ राजन ने अचम्भे से पूछा-मानो उसके कानों ने कोई अनहोनी बात सुन ली हो।
‘हाँ-हाँ तुम्हारे मैनेजर की।’
‘हरीश की?’
‘हाँ... तो क्या तुम्हें मालूम नहीं, आज प्रातः से बधाई की तारे देते-देते तो कमर दोहरी हो गई है।’
‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। इतना अंधेर...।’
‘यह क्या कह रहे हो राजन। शादी और अंधेर?’
अभी स्टेशन मास्टर के मुँह से यह शब्द निकले ही थे कि फायरमैन कमरे में आया और बोला-‘डॉन मैसेन्जर आ गया।’
स्टेशन मास्टर ने तुरंत ही मेज पर पड़ी झंडियाँ उठाईं और बाहर चला गया। राजन वहीं बुत बना खड़ा रहा। कहीं उसके साथ छल तो नहीं हुआ-यह सोच वह काँप उठा, फिर धीरे-धीरे पग बढ़ाता बाहर ‘प्लेटफार्म’ पर आ गया। चारों ओर धुंध ऊपर उठने लगी। प्लेटफार्म पर खड़ी गाड़ी के डिब्बे साफ दिखाई देने लगे। इंजन की सीटी बजते ही गाड़ी ने प्लेटफार्म छोड़ दिया। ज्यों-ज्यों गाड़ी की रफ्तार बढ़ती गई, राजन के दिल की धड़कन भी तेज होती गई। वह चुपके से स्टेशन मास्टर के पास आ खड़ा हुआ, जो गाड़ी को ‘लाइन क्लीयर’ दे रहा था। जब गाड़ी का अंतिम डिब्बा निकल गया तो राजन बोला-‘बाबूजी, मैं ‘वादी’ जा रहा हूँ।’
‘इस समय? तुम्हारे होश ठिकाने हैं।’
‘मुझे अवश्य जाना है... मैं आपको कैसे समझाएं।’ वह बेचैनी से बोला।
‘सड़क बर्फ से ढकी पड़ी है। रिक्शा जा नहीं सकता और कोई रास्ता नहीं। जाओगे कैसे?’
‘चलकर।’
‘पागल तो नहीं हो गए हो, इस अंधेरी रात में जाओगे? अपनी न सही अपनी बूढ़ी माँ की तो चिंता करो-वह किसके आसरे जिएंगे?’
स्टेशन बाबू की बात सुन उसने नाक सिकोड़ी और चुप हो गया। स्टेशन बाबू उसके पागलपन पर दबी हँसी हँसते-हँसते दफ्तर की ओर बढ़ गया। राजन विवशता के धुएँ में घुटता-सा पटरी पार कर माल डिब्बों के पास जा पहुँचा और थोड़ी दूर चलती आग के पास जाकर ठहरा। फिर चिल्लाया-
‘शम्भू... शम्भू!’
सामने डिब्बे में से एक अधेड़ उम्र का मनुष्य हाथ में हुक्का लिए बाहर निकला और राजन को देखने लगा। राजन के मुख पर जलती आग अपनी लाल-पीली छाया डाल रही थी। उसकी आँखों से मानो शोले निकल रहे थे। राजन को इस प्रकार देख पहले तो वह घबराया परंतु हिम्मत करके पास पहुँचा।
‘शम्भू!’ क्रोध से राजन चिल्लाया।
‘जी’ शम्भू के काँपते हाथों से हुक्का नीचे धरती पर आ गिरा।
‘हरीश की शादी हो रही है।’
‘मैनेजर साहब की-किससे?’
‘मैं क्या जानूँ... मैं भी तो आप ही के साथ आया हूँ।’
‘मुझे अभी वापस लौटना है।’
‘अभी! न रिक्शा, न गाड़ी। इस अंधेरी रात में जाओगे कैसे?’
‘जैसे भी हो मुझे अवश्य जाना है।’
क्रोध के कारण राजन उस जाड़े में पसीने से तर हो रहा था और बेचैनी के कारण अपनी उंगलियों को तोड़-मरोड़ रहा था। पास बहती नदी का शब्द सायंकाल की नीरसता को भंग कर रहा था। उसके कारण उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक वह चिल्लाया-
‘शम्भू सुनते हो नदी का शोर।’
‘हाँ राजन बाबू, नदी में बाढ़ आ रही है।’
‘बाढ़ नहीं पगले, यह तूफान मेरे दिल के उठते तूफान को रोकने आया है।’
‘मैं समझा नहीं, कैसा तूफान?’
‘यह पानी में उठती तेज लहरें मुझे शीघ्र ही ‘सीतलवादी’ तक पहुँचा देंगी।’
‘नदी के रास्ते जाना चाहते हो इस तूफान में? सीतलवादी पहुँचो अथवा न पहुँचो, स्वर्ग अवश्य पहुँच जाओगे।’
‘शम्भू!’ राजन आवेश में चिल्लाया। शम्भू चुप हो गया। राजन फिर बोला, धीरे से-
‘किनारे एक नाव खड़ी है, उसे ले जाऊँगा।’
‘राजन बाबू! मैं तुम्हें कभी नहीं जाने दूँगा।’
‘तुम मुझे रोक सकते हो शम्भू, परंतु मेरे अंदर उठते तूफान को कौन रोकेगा।’ यह कहकर राजन ने गहरी साँस ली और नदी की ओर चल दिया। शम्भू खड़ा देखता रहा। उसने चारों ओर घूमकर देखा-वहाँ कोई न था, जिसे वह मदद के लिए पुकारे, चारों ओर अंधकार छा रहा था। उसकी दृष्टि जब घूमकर राजन का पीछा करने लगी तो वह नजरों से ओझल हो चुका था। शम्भू राजन को पुकारते हुए उसके पीछे दौड़ने लगा।
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