RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
इतने में मौसी की भारी-सी आवाज ने कंचन को पुकारा। वह जाने को उठी-पार्वती ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोली-‘हमारी आज्ञा न सुनोगी?’
‘कहो भाभी।’
‘तुम मत जाओ-आज हम दोनों इकट्ठी सोएंगी।’
‘क्यों?’
‘अकेले में भय लगता है।’
‘इस अंधेरी रात से या भइया से।’
फिर वह मुँह में उंगलियाँ दबा के शरारत भरी हँसी हँसने लगी। पार्वती लजा सी गई-मौसी की पुकार फिर सुनाई दी और कंचन भागती नीचे उतर गई।
सीढ़ियों पर किसी के पैरों की आहट हुई-पार्वती ने अपने आपको समेटकर घूँघट से छिपा लिया। हर स्वर पर उसका दिल काँप उठता था। ज्यों-ज्यों पैर की आहट समीप होती गई, वह अपने शरीर को सिकोड़ती गई। अचानक छत की बत्ती बुझ गई, उसके साथ ही कोने की मेज़ पर रखा ‘लैम्प’ प्रकाशित हो गया। पार्वती की जान-में-जान आई और मस्तिष्क पर रुकी पसीने की बूँदें बह पड़ीं।
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