RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
‘पहाड़ों में? यह शौक कब से हुआ?’
‘पार्वती वास्तव में हम किसी खोज में हैं। इन पहाड़ों में कहीं-न-कहीं तेल है। इसका पता मिल जाए तो मानों जीवन ही सफल हो जाए और सच पूछो तो इसमें अधिक हाथ राजन का है।’
‘वह क्या जाने इन बातों को?’
‘मेरे साथ रहते भी तो उसे आज तीन मास हो गए हैं। पत्थरों की पहचान तो उसे ऐसी हो गई है कि घंटों पहाड़ों में खोज करता रहता है, और हाँ, कल दोपहर वह मुझे ऐसे स्थान पर ले जा रहा है, जहाँ पत्थर शायद हमारा भाग्य खोल दें।’
‘कौन-सा स्थान है वह?’
‘उस स्थान का तो मुझे अभी तक पता नहीं। राजन ने ही देखा है। वही कल मुझे ले जा रहा है।’
‘तो हमारे जाने के पश्चात् यहाँ कोई भूत आते हैं।’
‘हाँ तो’ और पार्वती हरीश के पास सरक गई।
‘तो अब कौन आया था?’
‘माधो काका।’
माधो का नाम सुन हरीश हँस पड़ा और बोला-‘वह भी तो किसी भूत से कम नहीं-क्या कहता था?’
‘आपको पूछ रहा था, शायद कोई काम हो।’
हरीश ने अपना बायाँ हाथ पार्वती की कमर में डाला और दायें हाथ से उसकी ठोड़ी अपनी ओर करते हुए बोला-
‘वह तो होते ही रहते हैं-छोड़ो इन बातों को।’ फिर दोनों बाहर आ जंगले पर खड़े हो गए।
मंदिर में पूजा के घंटे बजने लगे। पार्वती के दिल में भी उथल-पुथल मची हुई थी। जब हरीश की आवाज उसने सुनी तो चौंक उठी।
‘तुम्हें तो बीते दिनों की याद आ रही होगी?’
‘जी’-उसने कुछ मदहोशी में उत्तर दिया।
‘तुम भी तो कभी हर साँझ देवता की पूजा को जाती थी।’
‘वह तो मेरा एक नियम था।’
‘तो उसे तोड़ा क्यों?’
‘आपसे किसने कहा-मैं तो अब भी पूजा करती हूँ।’
‘कब?’
‘हर समय, हर घड़ी-मेरे देवता तो मेरे सामने खड़े हैं।’
‘तो तुम मेरी पूजा करती हो-न फूल, न जोत, न घंटियाँ।’
‘जब दिल किसी की पूजा कर रहा हो तो ये फूल, यह जोत, यह घंटियाँ सब बेकार हैं।’
‘पार्वती आज मैं वापिस आ रहा था तो राजन के हाथ में एक बड़ा सुंदर फूल देखा-तुम्हारे लिए लाने को मन चाहा।’
‘लाल रंग का गुलाब होगा।’
‘तुमने कैसे जाना?’
‘उसे यह फूल बहुत अच्छा लगता है।’
‘परंतु जब मैंने उससे माँगा तो उसने अपने हाथों से मसल डाला।’
‘वह क्यों?’
‘कहने लगा यह फूल सुंदर है-इसमें सुगंध नहीं।’
हरीश ने देखा कि पार्वती सुनते ही उदास-सी हो गई है और किन्हीं गहरे विचारों में डूब गई है। उसने अपनी बांहों का सहारा दिया और बोला-
‘चलो पार्वती, साँझ हो गई, घर में अंधेरा है।’
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