RE: Raj Sharma Stories जलती चट्टान
दूसरे दिन हरीश जब दफ्तर गया तो न जाने क्यों पार्वती का दिल भय से धड़कने लगा। आज प्रातःकाल से ही उसका दिल बैठा जा रहा था। उसे लगता था जैसे कोई बहुत बड़ी दुर्घटना होने वाली हो। वह माधो से, काका से और सब बस्ती वालों से डरने-सी लगी। आज तो वह राजन से भयभीत हो रही थी।
परंतु राजन इन तूफानों और संदेह भरी दुनिया से दूर मुस्कराता हुआ हरीश के साथ-साथ पहाड़ी पगडंडियों पर जा रहा था। आज दोनों अत्यंत प्रसन्न थे-मानो उन्हें अपनी मंजिल मिल गई हो। वह इसी धुन में मुस्कराते बढ़े जा रहे थे।
जब वह पहाड़ी के दूसरी ओर पहुँचे तो रस्से के पुल के समीप जा रुके। राजन ने दूसरी ओर वाली पहाड़ी की ओर हाथ से संकेत किया, जहाँ वे पत्थर मिले थे।
राजन मुस्कराता हुआ पुल को पार कर दूसरी ओर जा रुका और हरीश को देखने लगा। हरीश रस्से का सहारा लिए धीरे-धीरे पुल से जा रहा था। अचानक हरीश का पाँव फिसला और दूसरे ही क्षण वह नीचे जा गिरा। राजन घबरा गया और किंकर्त्तव्यविमूढ़ खड़ा नीचे देखने लगा।
‘यह क्या?’
अभी तक उसके कानों में हरीश की वह भयानक चीख गूँज रही थी, जो गिरते समय मुँह से निकली थी। वह चिल्लाया और शीघ्रता से नीचे उतर गया। हरीश का सिर फट चुका था। काले पत्थर रक्त से लाल हो रहे थे। शरीर इस बुरी दशा में घायल हो चुका था कि पत्थरों का दिल भी देखकर विवर्ण हो गया।
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राजन एक पुतले की भांति चुपचाप ‘वादी’ की ओर बढ़ा जा रहा था, मानो कोई जीवित लाश जा रही हो। उसके मस्तिष्क में लाखों हथौडे़ एक साथ चोट लगा रहे थे। उसके वस्त्र लहू से लथपथ हो रहे थे। आकाश पर उड़ी चीलें चारों ओर मंडराती-सी दिखाई दे रही थीं।
पार्वती ने जब आकाश पर चीलों के झुण्ड को मंडराते देखा तो भय से काँपने लगी और भागकर जंगले के पास जा खड़ी हुई। सामने चौबेजी के आँगन में माधो उनसे बातें कर रहा था-समीप ही केशव बैठा था। पार्वती को देखते ही बाहर आ गया और नीचे से ही बोला, ‘तुम्हें ही देखने आ रहा था।’
‘अच्छा हुआ तुम आ गए। अकेले में न जाने क्यों आज कुछ भयभीत-सी होने लगी हूँ।’
‘शायद आकाश पर कालिमा छाने से कहीं आँधी का जोर है।’
‘न जाने आज इतनी चीलें आकाश में क्यों मंडरा रही हैं।’
‘कहीं कोई जानवर मर गया होगा...।’ अभी वह कह भी न पाया था कि कंपनी की ओर से शोर-सा सुनाई दिया। चौबे और माधो भी आ गए और सब उस ओर देखने लगे।
शोर बढ़ता जा रहा था।
जत्था समीप आ गया। वह जत्था मजदूरों का था, जो राजन के पीछे-पीछे चला आ रहा था। उनके शोर में एक भयानक तूफान था, जो सारी ‘वादी’ में छा रहा था। सबने राजन को आश्चर्य-भरी दृष्टि से देखा और सब कुछ समझ गए, परंतु यह कोई न पूछ सका कि यह कैसे हुआ! सबने पथराई दृष्टि से उस शव को देखा, जिसे राजन ने मकान से बाहर वाले सीमेंट के चबूतरे पर रख दिया था।
पार्वती का साँस रुकने लगी, शरीर ठंडा हो गया। उसने अपने पति के शव को देखा और चिल्ला उठी। फिर तुरंत ही पति के मृत शरीर से लिपट गई। केशव और चौबेजी अभी तक अचम्भे में पड़े थे, परंतु माधो क्रोध व घृणा-भरी दृष्टि से राजन की ओर बढ़ा।
माधो सामने एक दीवार की ओर आ खड़ा हुआ। राजन ने ज्यों-ही अपना मुख ऊपर किया, माधो ने जोर से एक थप्पड़ उसके मुँह पर दे मारा। अभी वह संभल भी न पाया था कि माधो ने दो-चार थप्पड़ जमा दिए और साथ ही मुक्कों और धक्कों की बौछार आरंभ कर दी। राजन बेबस लड़खड़ाता हुआ धरती पर जा गिरा। जत्थे से किसी की आवाज ने माधो के हाथ रोक दिए। सब लोगों की दृष्टि उसकी ओर गई। यह कुंदन था जो दाँत पीसता हुआ क्रोध में माधो की ओर देख रहा था और कह रहा था।
‘मनुष्यता का दावा करने वालों इस ‘गरीब’ से इतना तो पूछा होता कि यह सब कैसे हुआ? कोयले की खानों में काम करते-करते शायद तुम सब लोगों के दिल भी पत्थर और काले हो गए हैं, जिनमें रक्त के स्थान पर कालिख बसने लगी है।’
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