RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कविता : नहीं नहीं रेखा तुझे अपने आप पर काबू करनी ही होगी (एक लम्बी आह भरती हुई) तू माँ हैं राहुल की!
यह बात सुनते ही एक लम्बी सी आह निकल पड़ती हैं रेखा की मूह से, एक अजीब सी आवाज़ जैसे कोई अपने दिल में छिपे कामुकता का बयां कर रही हो l
रेखा की पपीते जैसे स्तन ऊपर नीचे होने लगे और अपनी सेल पर राहुल की एक तस्वीर लेके जी भर के स्क्रीन पर चूमने लगी यह दृश्य देखके कविता भी गरम होने लगी l
रेखा : (चूमती हुई) हाआआ माँ हूँ उसका! (चुम चुम) हां मालूम हीई (चूम चूम) पर अगर मैं (फ़ोन हाथों से पटकती हुई) ममाशूका बनना चहु तो??? उफ्फफ्फ्फ़ कविई कुछ होने लगा मुझे l
कविता जो खुद गरम हो रही थी बिना सोचे अपनी एक तरबूज़ जैसे एक स्तन को हल्का दबोच लेती हैं "ओह्ह्ह मम दरअसल एक कीड़ा काट रही थी" अपनी हाथ को फिर नीचे लाती हैं l
रेखा : कविई तू तो एक थेरेपिस्ट हैं मनुष्य विज्ञानं में कुछ सलाह दे मुझे आगे कैसे बढ़ना चाहिए, अगर राहुल नहीं मिला तो मैं कुछ भी कर जाऊंगी l
कविता : मम मैं क्या कहूँ रेखु! मैं नार्मल परिस्थितियों पे सलाह देती हूँ! एक माँ और एक बेटे में कैसे??? नहीं नहीं l
रेखा : देख मैं माँ बाद में और पहले एक औरत हूँ! भाई साहब से डाइवोर्स के बाद मैं पागल सी होने लगी हूँ! तू तो जानती हैं न आज ५ साल बीत गए मैं कितनी अकेली हूँ!
कविता : लेकिन ज्योति की तो सोच! तू क्या दोनों की रिश्ता तोडना चाहती हैं अपनी हवस के लिए??? क्या तू ऐसा कर पायेगी???
रेखा इस बार बहुत शर्मिंदा हो गयी और नीचे की और देखने लगी, कविता उसकी पीठ पर हाथ मलने लगी l
रेखा : कवी तेरे लिए यह कहना आसान है क्योंकि तेरी इस जिस्म पे अब तक कोई प्यास की चेतावनी नहीं मिली, पर देख तू भी मेरी ही तरह एक औरत हैं! जब तेरी इस मदमस्त जिस्म पर आग फड़केगी एक जवान मर्द के लिए तब तुझे समझ में आएगी l
कविता की साँसें फिर से चढ़ गयी और "मम मैं अब चलती हूँ, बहुत देर हो गयी" तुझसे फ़ोन पर कुछ सलाह दे दूँगी!"
रेखा : फ़ोन पर नहीं!!!! कविई!!! तू मुझे बता मैं आगे कैसे बरु
कविता : (कुछ सोचती हुई) देख! पहले तो तू कोशिश कर राहुल की दिल की बात जान्ने के लिए क्या वोह भी तुझे उफ्फफ्फ्फ़ यह मैं क्या बोले जा रही हूँ!
रेखा : (कामुक आवाज़ में) गीली हो रही है क्या तू???? ममम?
कविता बड़ी शर्मीली सी सूरत लेके अपनी साड़ी से ढके जांगों के बीच देखने लगी और दाँत दबे होंट लिए यहाँ वह देखने लगी, रेखा समझ गयी कि उसकी सहेली उत्तेजित हो रही थी l
रेखा : हम्म्म तो हाँ! तू क्या बोल रही थी मुझे?
कविता : एहि के तू राहुल के मनन को जानने की कोशिश कर पहले और धीरे धीरे करीब जा!
रेखा : मममम और?
कविता : देख तू एक काम कर सबसे पहले तो उसे अपनी अकेलपन का इज़हार कर! उसे समझ ने दे तेरी प्यास क्या हैं, तू किस कदर एक मर्द के साये के लिए तड़प रही हैं l
रेखा बस लंबी लंबी साँसें लेती हुई सुनती गयी l
कविता : और फिर धीरे से उसे अपनी आगोश में करले l(खुद भी जैसे बेचैन हो रही थी)
रेखा और कविता बस एक दूसरे को देखते गए। दोनों महिलाएं लम्बे लम्बे आहें भर रही थी जैसे वक़्त वाही का वही रुक गया हो l
रेखा : वाह कवी! तेरी बातों ने मेरे सोये हुए ार्मन और भरका दिए और तू तो मानो कोई मैट्रीमॉनियल संगस्था से आई हैं, ऐसे मेरा चक्कर चला रही है, सच कवी! तू किसी भी माँ को कामुक बना सकती हैं अपनी इन मीठी बातों से!
कविता फिर से अपनी एक स्तन मसल देती हैं, यूँही अनजाने में l
रेखा समझ गयी उसकी दोस्त गरम होने लगी थी "क्या फिर से कोई कीड़ा काट रही है??"
कविता बस दांतो तले होंट दबा गयी और एक मासूम सी मुस्कान देने लगी l
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