RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कुछ ऐसा हुआ कि रातों को दोनों औरतों की आँखों से नींद ही गायब हुई थी और वह दोनों लड़कों का भी वही हाल था, अपने अपने बीवीयों से भी प्रेम करके सुख प्राप्त नहीं हुआ था किसी को भी l कविता को एक अजीब सपना आई थी उस रात, के वोह और अजय हाथ पकड़े यहाँ से वहा सुनि रास्ते पर टहल रहा था और दोनों के दोनों अधनँगान अवस्था में थे l
सपने में दोनों माँ बेटे बस नंगे भवरे सामान घूम रहे थे, बस थोड़ी सी छेडख़ानी, थोड़ी मासूमियत, न कोई आडम्बर, या पाप या दुनिया का कोई डर, यूँ समझिये जैसे दुनियावालो से कोई लेना देना ही न हो l दोनों के दोनों खुश थे, आज़ाद थे और मुक्त थे बंधनो से, बगीचे में टहलते टहलते दोनों एक ऐसे मोड़ पे आजाते हैं जहाँ और भी कुछ अधनँगान कपल्स मौजूद थे, और मज़े की बात यह था के सब के सब माँ बेटो की जोडिया थी l
यह देखके कविता बहुत कामुक हो जाती हैं और उसकी कामुकता की आग में घी डालने का काम कर गयी एक जोड़ी जो उसके और अजय के तरफ बड़ी मादक अंदाज़ से आ रहे थे l
जी हाँ ! वह जोड़ी थी रेखा और राहुल का, वह दोनों भी वैसे ही नग्न अवस्था में थे और राहुल का हाथ अपने माँ की सुदोल गदराये गये पीठ को सहला रहा था, उसे देख अजय भी अपने माँ के पीठ को सहलाने लगा l दोनों औरतें एक दूसरे को देखके बस आहें भर रहे थे, के तभी अजय अपना हाथ झट से अपने माँ के गुदाज गांड को पंजे से मसल लेते हैं, इस हरकत से कविता सिसक उठी और उसे देख राहुल भी वही कर बैठा रेखा के साथ l
राहुल अपने माँ और अजय अपने माँ को फिर कस्स के बाहों में लेलेते हैं और फिर शुरू हो जाता हैं एक अजब प्रेम मिलाप दोनों कपल्स में l चिड़ियों की चेहेकने से सारे के सारे माहौल खिल उठा, चारो और केवल और केवल हरियाली और इन सब के दरमियान थी यह दोनों माँ बेटे की जोड़ी जो मस्तमगन थे अपने में l
दो प्यासे होंठों की जोड़ी आपस में मिलने ही वाले थे के अचानक एक ज़ोरों की बादल की गरगराहट गूंज उठी और कविता अपने नींद में से जाग उठी l आंखें अपने हुलिया देखने में व्यस्त होगयी और उसे एहसास हुई के माथे और जिस्म पे पसीना और नीचे जाँघों से लेके पैरों तक केवल योनि के मीठे रस से भीगी हुए थे l
सपने को याद करती हुई कविता बड़ी ही कामुक ख्यालों से भर उठी और बस होंठों को दाँतों तले दबाये हर एक लम्हे को याद करती रही l नाश्ते के वक़्त सब अलग अलग बैठे रिसोर्ट के डाइनिंग हॉल में और रेखा और कविता हमेशा की तरह एक कोने की टेबल लेलेते हैं ताकि कुछ गुप्त बातें कर सके बिना झिझक के l
कविता इस बात से अंजान थी के वोही सपना रेखा को भी आई थी पिछले रात को l
रेखा : कवी!
कविता : (खोई हुई) हम्म ?
रेखा : दरअसल तुझसे बात करनी थी!
कविता : मुझे भी (उत्सुकः होक)
रेखा : बोलते हुए थोड़ी अजीब लग रही हैं मुझे! पररर
कविता : हाँ रे! ममुझे भी अजीब लग रे रही हैं
रेखा और कविता अचानक एक ही साथ में "दरसल एक सपना..." और दोनों शरमा गए किसी कमसिन कली की तरह, मानो यह दोनों कॉलेज की युवती लड़कियां हैं जो पहला प्रेमी की खत को आपस में बात रही हो, दोनों अभी भी इसी सोच में थे के ऐसी अजीब ओ गरीब सपना एक दूसरे को बताये भी तो कैसे l
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