RE: Antarvasna कामूकता की इंतेहा
तो दोस्तो, अब फिर एक बार मेरी ठुकाई की तैयारी पूरी हो चुकी थी, मेरे चोदू यार ने मेरी टाँगें उसने एक बार फिर अपने डौलों पर धर लीं और मेरी तह लगा दी मगर उसने खुद लौड़ा अंदर नहीं डाला और मुझसे बोला- डाल जट्टीये अपने आप अंदर!मुझे यह बात बहुत पसंद है कि लौड़ा पकड़ कर मैं खुद अंदर डालूँ … पर ढिल्लों को यह बात पता नहीं कैसे पता थी।
खैर मेरे मन की यह छोटी सी मुराद पूरी हुई। मैंने हाथ नीचे ले जा कर उसके वज़नदार लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लिया और दो तीन बार ऊपर नीचे किया। ये मैंने इसलिए किया क्योंकि उस बड़े और मोटे गर्म लौड़े को अपने छोटे से हाथ में लेकर एक न बयान की जा सकने वाली तसल्ली मिलती थी।
इसके बाद मैंने उसे पकड़ कर अपनी फुद्दी पर ऊपर से नीचे तक 8-10 बार रगड़ा और फिर मुहाने पर रख कर नीचे से धक्का मारने की कोशिश की।मगर मैं असफल रही।ढिल्लों हंस पड़ा और फिर अचानक उसने अपनी कमर ऊपर उठाई और अपना खूँटा मेरी फुद्दी में जड़ तक पेल दिया। अंडे की चिकनाहट की वजह से मुझे बिल्कुल दर्द न हुआ और मेरे मुंह से अपने आप उसके कान में निकला- हाय ओऐ जट्टा, धुन्नी तक ला दित्ता। (हाय रे जाट … नाभि तक पहुंचा दिया.)जब बिना किसी दर्द के ढिल्लों का पूरा लौड़ा अंदर चला गया तो मुझे ऐसी तसल्ली हुई जो बयान के बाहर है। तभी उसने फिर कमर ऊपर उठाई और पूरा लंड निकाल के फिर जड़ तक पेला और ऐसा 8-10 बार किया।ये गद्दे बहुत नर्म थे और जब ऊपर से धक्का मारता तो मैं नीचे उनमें समा जाती और जब वो अपनी कमर ऊपर उठाता तो मेरी कमर भी उसके साथ ही लगभग एक-सवा फुट ऊपर चली जाती और जब वो पूरी तरह ऊपर उठती तो ढिल्लों ऊपर से एक और बड़ा झटका मार देता और जब इस तरह होता तो फुद्दी लौड़े की तरफ जाकर इस झटके को और तीखा बना देती थी।
अब वो लंबे लंबे झटके मार रहा था मगर हर झटके के बीच में वो लगभग एक सेकंड जितने समय के लिए रुक जाता और जब फुद्दी ऊपर आ रही होती तो पूरा निकाल के फुद्दी में मारता और उसे नीचे धकेल देता।जब वो घस्सा मारता तो हर घस्से में साथ मेरे मुंह से निकलता- हाय, मेरी माँ, हाय मेरी माँ!
अब तक उसने मेरी चुदाई इसी पोज़ में की थी, शायद इसलिए कि इस तरह करने से वो मेरे बिल्कुल ऊपर होता था तो और मुझे हिलने का भी मौका नहीं मिलता था और इस पोज़ में बहुत लंबी चुदाई भी की जा सकती थी।तो दोस्तो, 10-15 मिनट तक वो इसी पोज़ में मुझे उछल उछल कर चोदता रहा और मैं हर घस्से के साथ ‘हाय मेरी माँ …’ मेरे मुंह से निकलता रहा। व्हिस्की के पेग का नशा बहुत ज़्यादा हो गया था और अब कमरा मेरी अधखुली आंखों में घूमने लगे।
तभी उसने अचानक मुझे अपने ऊपर खींच लिया। अब आलम यह था कि हम दोनों ही बैठे हुए थे लेकिन मेरी टाँगें उसकी जांघों के ऊपर थीं और मैं उसके फ़ौलादी लौड़े को अपनी फुद्दी में जड़ तक पेल कर बैठी थी।दारू के नशे की वजह से मुझ में हिलने की भी हिम्मत नहीं थी।
तभी वो बोला- अपने आप मार घस्से जट्टीये, देखता हूं कितना दम है।मुझे यह सुन कर थोड़ा जोश चढ़ गया और मैंने उसे कस कर अपनी बांहों में भर कर अपनी कमर को उठा कर 7-8 बार उसके लौड़े पर जोर से मारा।और लो जी मेरे मुंह से बहुत ऊंची ऊंची ‘हाय मेरी माँ, गई मैं तो …’ निकलते हुए हो गया मेरा काम!
मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था कि मैं इतनी जल्दी क्यों झड़ जाती हूँ, शायद ये उसके लौड़े की चौड़ाई और लंबे के कारण ही था, यह सोच कर मैं उसी तरह उसका लौड़ा जड़ तक फुद्दी के अंदर फंसाये बैठी रही। मुझमें अब इतना दम नहीं था कि खुद चुदाई कर सकूं।
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