RE: Antarvasna कामूकता की इंतेहा
मैंने नीचे पड़ी वही छोटी सी निक्कर उठाई और पहनने लगी लेकिन वो फिर आकर मेरी मोटी जांघों में फंस गई। मैं बहुत गुस्से में थी इसीलिए मैंने अपना पूरा ज़ोर इकठ्ठा किया और जैसे तैसे उसे खींच कर अपनी अपनी कमर तक ले आयी। अब मेरी गांड एक बार फिर उस निक्कर में बुरी तरह फंस गई।
अभी मैं टीशर्ट पहनने ही लगी थी कि ढिल्लों ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा और कहने लगा- मेरी छमकछल्लो, मैं तो मज़ाक कर रहा था, आजा, तू तो बहुत गुस्से हो गई, चल अब प्यार से करूँगा।लेकिन गुस्से में मैंने उसकी बात न सुनी और टीशर्ट पहनने लगी थी.
वो उठा और मुझे उठा कर हल्के से बेड पर पटक दिया और मुझे बुरी तरह चूमने चाटने लगा। मैंने बहुत हाथ पैर मारे लेकिन उसके आगे मेरी एक ना चली। उसने अगले एक मिनट के अंदर ही मेरे पिछवाड़े में फंसी निकर को केले के छिलके के तरह उतार दिया और फुद्दी पर मुट्ठी भर के मुझे किस करने लगा।
एक तो वो इतना तकड़ा मर्द था कि उसका ये वार भी न सहन कर पाई और फिर उसकी बांहों में बर्फ की तरह पिघल गयी; 5-7 मिनट के बाद उसने मुझे फिर घोड़ी बना लिया और अच्छे से मेरी गांड सेट करके लौड़ा धीरे से फुद्दी के अंदर धकेल दिया।जनाब … इस बार उसने दो तीन झटकों से 4-5 इंच लौड़ा अंदर डाला था मगर मुझे इस बार बिल्कुल दर्द न हुआ और उसके तजरबे पर मैं वारे वारे गई। अब वो इसी तरह आधा लौड़ा अंदर डाल कर हल्के हल्के घस्से मारने लगा। फुद्दी फिर पूरे उफान पर आ गयी और मेरे मुंह से फिर ‘हाय मां, हाय मां…’ निकलने लगा।
जब उसने 8-10 मिनट के बाद भी और अंदर नहीं डाला तो मैंने जोश में आकर चादर अपनी मुट्ठी में ज़ोर से भींच कर अचानक ही एक तेज़ घस्सा पीछे को मारा और उसका 10 इंच का काला लौड़ा जड़ तक अंदर चला गया, मुझे थोड़ा दर्द ज़रूर हुआ और इसीलिए मैंने सिसियाते हुए ढिल्लों से कहा- तू रुक जा, मुझे करने दे थोड़ी देर!मेरी इस हरकत से बहुत खुश हुआ और अपनी कमर रोक ली। तभी मैं आगे को हुई औऱ एक बार आगे हो गयी और पूरी अपनी ताकत इकठ्ठी करके फिर पीछे को घस्सा मारा, इस बार दर्द नहीं हुआ और फुद्दी और लौड़े के टकराव से एक ऊंची ‘फड़ाच’ की आवाज़ आयी और मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया- आह, स्वाद आ गया ढिल्लों!
इसके बाद मैं ‘हाय हाय’ करती खुद घस्से मारती रही और मज़े लेते रही लेकिन 10-12 मिनट के बाद मैं फिर झड़ गई। झड़ते ही मेरा मुँह बेड में धंस गया। मैं फिर फ़ौजियों की तरह आगे निकलने वाली थी कि ढिल्लों ने मेरी कमर पकड़ ली और बोला- जाती कहाँ हो, जानेमन, अभी तक मैंने तांगा जोड़ा ही कहाँ है।
उसकी गिरफ्त से छूटना मेरे लिए मुमकिन नहीं था इसीलिए मैं एक बार फिर तृप्त होकर भी मन मसोस कर ढिल्लों से आगे होने वाली ताबड़तोड़ चुदाई के लिए मोर्चे पर डट गयी और आगे बंद करके चादर को मुठियों में भर लिया।मेरे मुंह से कुछ नहीं निकला, न ही मुझमें बोलने की अब हिम्मत थी। अब सारा खेल ढिल्लों के हाथ में था।
मुझे मोर्चे से हटती न देख कर ढिल्लों ने मेरी कमर से अपनी पकड़ ढीली कर दी और 4-5 धीरे मगर लंबे घस्से मारे। मुझे अब बिल्कुल भी मज़ा नहीं आ रहा था, मैं रंडियों की तरह मजबूर थी और इस इस इंतज़ार में थी कि जल्दी उस घोड़े जैसे मर्द का काम हो जाये।
दोस्तो, मैं इससे पहले 13-14 अलग अलग मर्दों से चुद चुकी हूं, और कइयों ने तो गोलियाँ खाकर भी मुझपर अपनी ज़ोर आज़माइश की थी मगर मेरी ऐसी हालत कभी नहीं हुई थी। आपकी जट्टी रूपिंदर कौर की फुद्दी की प्यास एक ही रात में 3-4 बार पूरी तरह बुझायी जा चुकी थी।मैं दिल से यही चाहती हूं कि हर औरत की प्यास इसी तरह बुझे।
तो जनाब, ढिल्लों ने जल्दी नहीं की और 10-15 मिनट मुझे इसी तरह पुचकारते हुए चोदता रहा। शायद उसे भी पता चल चुका था कि मेरी प्यास फिर बुझ चुकी और इसीलिए वो धीरे धीरे घस्से मार रहा था कि कहीं घोड़ी टांग ही न उठा ले।इसी तरह चोदते हुए उसने मुझे हौले से कहा- बता देना जब मूड बन गया तो, तब तक तेरी ऐसे ही मारूँगा।और यह कहकर उसने अपना काम जारी रखा।
यह तो शुक्र है कि झड़ने के कारण मेरी फुद्दी पूरी तरह गीली थी और लौड़ा आराम से अंदर बाहर हो रहा था। कुछ और देर के बाद जट्टी फिर मूड में आ गयी और थोड़ा थोड़ा हिलने लगी। तो जनाब … मेरे इस इशारे को समझ कर ढिल्लों मोर्चे पर पूरी तरह डट गया।
हुआ ये कि उसने अपना एक घुटना सीधा कर लिया और फुद्दी के अंदर लौड़ा फंसाये ही आधा खड़ा हो गया और सही कोण की जांच करने के पूरा लौड़ा बाहर निकाल कर थोड़े ज़ोर से अंदर धकेल दिया।मुझे चीखती न देख अब दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ ली और लगा मेरी पहलवानी चुदाई करने। जनाब उसके घस्से इतने भीषण थे कि मेरा मुँह और आंखें पूरी तरह खुल गई और मुँह में से बुरी तरह लार टपकने लगी।कमरे में ‘फड़ाच फड़ाच फड़ाच…’ की तेज आवाज़ें गूंजने लगी मगर मेरे मुंह से सिर्फ ‘आ… आ …’ निकल रहा था। इस बार ढिल्लों इतना ज़ोरलगा रहा था कि वो हांफ रहा था और हर घस्से के साथ उसके मुंह से ‘हूँ … हूँ … हूँ …’ की आवाज़ निकल रही थी।
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