RE: Antarvasna कामूकता की इंतेहा
रात के 12 बज चुके थे, मैं अपने 2 शानदार और जानदार यारों के साथ गाड़ी में नंगी बैठी थी। अब तो मैं 2-2 लौड़ों से चुदने के बेताब हो चुकी थी लेकिन वो दोनों जल्दी नहीं कर रहे थे, पता नहीं क्यों?
क्योंकि रात को काले शीशों में भी बाहर की रोशनी अंदर आ सकती है इसलिए ढिल्लों ने सभी शीशों को ढक दिया था सिवाये ड्राइवर साइड के आधे शीशे को छोड़कर।
मैं गाड़ी की पिछली सीट पर पूरी नंगी बैठी काले का लौड़ा लगातार सहलाती रही लेकिन वो खड़ा ही नहीं हो रहा था। 15-20 मिनट की कोशिश करने के बाद मैं थक हार कर बेशर्मी की सारे हदें पार करती हुई काले के ऊपर चढ़ गई और उसे बेतहाशा चूमने चाटने लगी। काला भी मेरा भरपूर साथ देने लगा और मेरे बड़े और गोरे मम्मों को जितना हो सके, मुंह में भरकर चूसने लगा।
मैं पागल हुई जा रही थी, मुझे लौड़ा लिए हुए अब 2 घण्टे से ऊपर हो चुके थे, हालांकि इस दौरान मैं एक बार काले की उंगलियों के वार से झड़ी थी।
मेरी हरकतें रंग लायीं और काले का खूबसूरत मूसल तन के खड़ा हो गया। अब मैं इस पोजीशन में थी कि उसका लौड़ा आराम से ले सकती थी। तो जनाब … मैंने आव देखा न ताव … लौड़ा पकड़ा, फुद्दी के ऊपर जल्दी से रखा और ‘फच’ से एक तेज़ घस्सा मारा और उसके ऊपर बैठ गयी। लौड़ा जड़ तक फुद्दी के अंदर समा गया। उम्म्ह… अहह… हय… याह… क्योंकि उसका लौड़ा ढिल्लों से भी मोटा था इसीलिए अब मेरी फुद्दी और ज़्यादा खिंच गयी थी और हल्का सा दर्द भी हुआ।
और एक बात … कि मोटाई ज़्यादा होने के कारण मुझे पता था कि मैं उसके तीन या हद चार तेज़ घस्सों के मेहमान हूँ, और मैं झड़ भी जाऊंगी। पिछली बार ढिल्लों से एक घस्सा मारा था कि मेरा काम हो गया था लेकिन मुझे ये पसंद नहीं था क्योंकि कई छोटे लौडों वाले मुझे चोद चुके थे और अपने पति के साथ मैं 8-10 मिनट तो मैदान में रहती थी लेकिन ये लौड़े तो पहला पड़ाव शुरू होने से पहले ही खत्म कर देते थे, अब मेरी पाठिकाओं को पता ही है कि पहली बार का क्या आनन्द होता है।
खैर मैं उसका लौड़े अंदर लिए हुए आधा एक मिनट बैठी रही और मैंने काले से कहा- जानू, मैं खुद करूँगी. ओके?
उसने हां कह दी और वो बेपरवाही से मेरी बड़ी गांड पर हाथ फेर रहा था। अगली बार मैंने फिर पूरा लौड़ा बाहर निकाला और फिर उसके ऊपर जड़ तक बैठ गयी और अपनी फुद्दी को गोल गोल घुमाने लगी। कुछ देर उल्टी सीधी इसी तरह की हरकतें करती रही। मैं आनन्द में गोते खा रही थी।
अब मैं धीरे धीरे अपने चरम पर पहुंचने वाली थी। जब मुझे यह महसूस हुआ तो अचानक से अपनी गांड उठायी, पूरा लौड़ा बाहर निकाला और बेहद तेज़ी से अपनी फुद्दी उसके लण्ड पर दे मारी। तूफानी तेज़ी से मैंने एक बार फिर ऐसा किया। दो बार एक तेज़ ‘फड़ाचचचचच’ और मैं बुरी तरह ‘हम्म हुम्म हूम्म हम्म’ की आवाज़ में हुंकारते हुए झड़ी और काले के गले लग गयी और हांफने लगी।
मैं इतना ज़ोर लगा कर झड़ी थी कि काले से झट से ढिल्लों को कहा- बहनचोद, इसमें तो आग ही बड़ी है यार, सारी जान इकठ्ठी करके झड़ती है साली! मैंने तो ऐसी कामुक औरत आज तक नहीं देखी, बड़ा कीड़ा है इसमें।
कुछ देर काला वैसे ही मेरी फुद्दी में लंड फंसा कर बैठा रहा। जब मेरी सांसें कुछ ठीक हुईं तो उसने पीठ पर अपनी एक बाँह लपेट ली और धीरे धीरे लंबे घस्से मार कर नीचे से चोदने लगा। मैंने भी थोड़ी सी कमर ऊपर उठा ली ताकि उसकी जांघों पर मेरे भारी भरकम पिछवाड़े का भार कम पड़े।
वो लगातार मेरे मुम्मे चूसता रहा और मेरे पिछवाड़े पर हाथ फेरता मुझे आराम से चोदता रहा। नए लौड़े का तो अहसास ही शानदार होता है और फिर यह तो एक जबरदस्त मोटा लौड़ा था। मैं मस्त होकर चुदाई करवाने लगी। मेरी फुद्दी पूरी तरह उसके मूसल पर कसी गयी थी क्योंकि उसका लौड़ा ढिल्लों के लौड़े से भी ज़रा मोटा था।
10-15 मिनट तक हम दोनों एक दूसरे के जिस्मों में लिपटे इसी तरह चलती गाड़ी में यह कामक्रीड़ा करते रहे। हम दोनों की आंखें बंद थीं और हम दोनों चुदाई के पूरे चरम पर थे कि मेरे मुंह से अनायास ही निकला- ज़ोर से काले!
काला जो कि मुझमें पूरी तरह खोया हुआ था, थोड़ा होश में आया और उसने पिछली सीट पर हौले से मेरी पटखनी लगा दी अगले पल ही मेरी टाँगें उसकी पीठ पर लिपटी हुई थी। अब मेरे घुटनों के पिछले हिस्से उसकी बांहों में थे और मेरी गांड गाड़ी की छत की तरफ बेपरवाही से उठ गई थी।
इस पटखनी के दौरान लंड बाहर निकल गया था इसीलिए मेरी छत की तरफ देखती फुद्दी में काले ने अपना लंड घुसाया और एक वहशियाना तेज़ घस्सा मारा, मेरे मुंह से ‘ऊई…’ निकल गया। क्योंकि घस्सा इतना तेज था कि उसने मेरी चूत की दीवारें हिला के रख दी थीं।
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