RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
69 भोर का शोर
किसी भी साधारण, गबरू नौजवान लड़के की तरह ही, जय जब अगले दिन सवेरे उठा, तो उसका लिंग आंशिक रूप से कठोर था - साधारण से कुछ अधिक कठोर, जिसका कारण जय ने बीती रात के घटनाक्रम को माना।
अभ्यासवश, उसका हाथ चादर के अंदर घुसकर अपने लम्बाते लिंग पर लिपट गया। पिछली रात की प्रत्येक घटना को उसने अपने मस्तिष्क में पुनरकल्पित किया और अपने ठोस लिंग को दबा-दबा कर मसलता गया, जब तक की वो अपनी पूरी लम्बाई, मोटाई और बुलंडगी की स्थिति में नहीं आ गया। जय लम्बे, लम्बे, निर्धारित स्ट्रोक लगा लगा कर हस्तमैथुन करने लगा, जैसी बालकावस्था से उसकी नियमित आदत बनी हुई थी। | पर तब उसके मस्तिष्क में कौंधा ... अब भला उसे हस्तमैथुन का सहारा क्यों लेना पड़ेगा! देह तृप्ति वास्ते घर की चारदिवारी में ही अब उसे दो कामुक योनि जो उपलब्ध थीं! इस विचार से उसका लिंग उछल पड़ा, और वह शीघ्रता से बिस्तर से निकल खड़ा हुआ।
गलियारे में तेजी से चलता हुआ वो सोनिया के कमरे की ओर चल पड़ा, इस आशा में, कि उसकी कामुक बहन उसकी कामाग्नि शांत करने के लिये तैयार बिस्तर में लेटी होगी। कमरे का दरवाजा तो खुला था, पर सोनिया का बिस्तर तो खाली पड़ा था। ‘केला!', जय ने अफ़सोसपूर्वक सोचा। जय उलटे पैर गलियारे में वापस लौटा और माता-पिता के बेडरूम के दरवाजे के सामने ठिठक कर खड़ा हो गया। | मर्यादावश, उसने दरवाजा खटखटाने को हाथ बढ़ाया, पर तभी उसे अपने परिवार में नवस्थापित यौन स्वतंत्रता का स्मरण हुआ, तो उसने सहजता से दरवाजे को धकेला और चुपचाप भीतर प्रवेश किया। देखा तो अपनी माँ को डबल बेड के बीचों-बीच पसर कर लेटा पाया।
वे गहरी निद्रा में थीं, उनकी छरहरी गौर-वर्ण की स्त्री - देह पर ओढ़ी हुई सफ़ेद चादर से उनकी लुभाती नग्नता का आंशिक ढकाव ही हो रहा था। जय ने दायें और बायें नजरें फेरीं, फिर धीमे से बिस्तर के आगे आ खड़ा हुआ। ‘डैडी जरूर दफ़्तर निकल गये होंगे', मुस्कुरा कर उसने सोचा। उसने फिर एक बार नीचे अपनी सुप्त माँ की नग्नता पर अपनी पाप-भरी निगाहें फेरीं, तो उसका लिंग में फिर सरसराहट हुई। क्या विलक्षण सौन्दर्य था :: कैसी खालिस कामुकता, एक एक अंग तराशा हुआ, स्तनों का क्या आकार, कैसा लोच, अचूक संतुलन। उसपर सज्जित बड़े-बड़े गुलाबी निप्पल जो जय के किशोर मन को ललचा रहे थे। मातृत्व की जीती-जागती देवी थीं वे, जिन्होंने ममता की पराकष्ठा पर खरा उतर कर अपना तन-मन पुत्र को न्यौछावर कर दिया था! मातृ प्रेम को पाने की कामना से उसकी इन्द्रियाँ पुलकित हो रही थीं, माता के प्रति वासना उसे पागल किये दे रही थी! | मुस्कुरा कर जय ने हाथ नीचे किया, और चादर के सिरे को अपनी मुट्ठी में दबोचा। फिर हौले-हौले वो उसे अपनी माँ की चिकनी, मांसल जाँघों पर से अनावृत करने लगा। जय की तो बांछे खिल गयीं जब सहसा टीना जी ने नींद में अंगड़ाई लेकर, अपनी जाँघों को चौड़ा खोला, जिसके फलस्वरूप उनके तन पर ढकी चादर धीरे-धीरे नीचे सरकने लगी।
जब उसकी माता की रोमयुक्त योनि दृष्टिगोचर हुई, तो जय का हृदय धौंकनी सा चल रहा था। योनि की फूली नम कोपलें पटी हुई थीं, और जय को टीना जी की टपकती, रिझाती मांद की साफ़-साफ़ तस्वीर दिखला रही थीं। जाने अनजाने टीना जी जय को मनचाहा दर्शन दिखला रही थीं। अपनी सैक्स कल्पनाओं में जय ने अनेक बार अप्सरओं के दल को अपने समक्ष टीना जी की जैसी ही नग्न सुप्तावस्था में लेटा हुआ कल्पित किया था। इन स्वप्नों में वो अपसराएं उसकी दासी हुआ करती थीं, और वो उनका एकमात्र स्वामी, जिसे उनकी देह के उपभोग का एकछत्र अधिकार था! उनका अस्तित्व का केवल एक ही पर्याय था - उसका लैंगिक आनन्द। अपसराओं के जीवन का लक्षय केवल उसके संग सम्भोग करना, चुम्बन करना, और मौखिक मैथुन करना था, उसके मनवांछित समय पर। बदले में उन अपसराओं को भी आनन्द प्राप्ति होती थी। क्योंकि उसके स्वप्नों में वो उन्हें लैंगिक असीम चरमानण्द देता और प्रत्येक अपसरा उसके बदन के तले, मारे मस्ती के तड़पती और उचकती थी। उसके स्वप्नों में स्वयं की और अपसराओं की यौन क्षुधा कदैव तृप्त नहीं होती थी!
चादर जैसी ही मिसेज शर्मा की जाँघों से सरक कर गिर गयी, जय भूखे गिद्ध की निगाहों से अपनी माँ की प्रदर्शित योनि को घूरने लगा। मुख से टपकती लार पर जय जीभ फेरता हुआ टीना जी की नग्न देह के अलाव से लपकती ज्वाला पर अपने लोभी नेत्रों को सेक कर मन के पापी इरादों को गरम कर रहा था। कुछ पल वो मन्त्रमुग्ध सा धरा पर पाँव जमाये खड़ा रहा, फिर हरकत में आया और उनकी नग्नता पर झुक गया। टीना जी के तन में ऐसा छरहरापन और लोच था जैसा युवा नर्तकियों का होता है। अनेक लोग तो उन्हें सोनिया की बड़ी बहन मान कर धोखा खा जाते थे। सृजनकर्ता ने उनके हर अंग को ऐसा सांचे में ढाला था मानो सम्पूर्ण मानवीयता के सम्मुख देह-सौन्दर्य का आदर्श रखना चाहते हों। हाड़ और माँस का बिलकुल सटीक नपा-तुला अनुपात जो देखने वाले को सहज आकर्षित करता था - एकदम स्वदेशी भारतीय उत्पाद थीं वे। अपने शारीरिक सौन्दर्य के लिये विख्यात पेशेवर सैक्स फ़िल्मों में काम करने वाली विदेशी महिलाओं, जिनके चित्र देख-देख कर जय हस्तमैथुन करता था, को भी मात देती थीं वे। बड़ी सावधानी से, ताकि टीना जी की निद्रा भंग न हो, जय मुंह पर वासना लिप्त मुस्कान लिये, बिस्तर पर चढ़ा और अपनी माँ की बेपरवाही से फैलायी जाँघों के बीच घुटनों के बल बैठ गया।
जैसे जय ने अपना सर उनके खुले पेड़ पर झुकाया, माँ की नम योनि की मादक, सुगंधि उसके नवयुवा नथुनों में समा गयी। किशोर जय ने बड़ी ध्यानपूर्वक उसकी सपाट मक्खनदार जाँघों को और चौड़ा फैलाया और अपने मुख को टीना जी के लम्बे, चमचमाते योनि मार्ग के ठीक ऊपर ले आया। उसकी निद्रामग्न माँ की योनि की कोपलें अश्लील शैली में खुली पड़ी थीं, और अपने भीतर की गुलाबी, लिसलिसी सीलन को प्रकट कर रही थीं। ऐसा उत्कृष्ट दृश्य था, जिसके समक्ष उतावले किशोर ने आत्म नियंत्रण खो ही दिया।
तत्पर हाथों के द्वारा जय अपनी माँ के नग्न पेट और चिकनी जाँघों को सहलाने लगा। साहसवश, वह यदा-कदा अपनी उंगलियों को टीना जी के चुंघराले, नम योनि - रोमों पर भी फेर देता।
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