RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
70 रिश्तों की दास्तान
जय मातृ योनि से प्रज्वलित होते कामताप को अनुभव कर पा रहा था, जो उसके अन्दर हिनहिनाते वासना रूपी अश्व को ऐड़ दे रहा था। किशोर जय कोहनी के बल आगे झुका और उसने टीना जी के गुलाबी योनि मार्ग को ढके कोमल रोमों को अलग कर, हौले से अपनी एक उंगली अन्दर घुसायी। टीना जी दबे स्वर में कराहीं और मूर्छित होने के बावजूद उनके कूल्हे अतिक्रमण करती उंगली के विपरीत उचकने लगे। टीना जी तो गहन निद्रा में थीं परन्तु उनकी योनि की माँसपेशियाँ मचलती हुई जय की उंगली पर कसमसा रही थी। जय ने अपनी दूसरी उंगली को भी अन्दर घुसाया और उनके द्वारा माँ की संकरी, फिसलन भरी सैक्स गुहा में मसलने लगा। नींद से जागृति के किसी पूर्वसंकेत की प्रतीक्षा में जय उनके मुख को लगातार ताकता रहा। टीना जी के योनि द्रव पुत्र की मैथुन करती उंगलियों पर रिसने लगे और उनकी योनि से बाहर निकलकर, उनके नितम्बों के मध्य स्थित दरार पर बहने लगे।
आवेगवश जय आगे झुका और इससे पहले कि ओस जैसे पारदर्शी और मधुर गंध वाले द्रव की बूंदें लिहाफ़ पर टपकतीं, अपनी जीभ से उन्हें चाट लिया। जैसे ही उन्होंने अपनी संवेदनशील त्वचा पर जय की तप्त और नम जिह्वा के घिसाव का अनुभव किया, टीना जी की पलकें झट से खुल गयीं। उनके दृष्टि-पटल पर पड़ा पहला दृश्य उनके पुत्र के सर का शीर्ष भाग का था। जय उनकी चौड़ी फैली जाँघों के बीच सर घुसाये ऊपर नीचे हिला रहा था, मानो उनके मातृत्व का नमन कर रहा हो। टीना जी का प्रथम मृदु अहसास था पुत्र की जिह्वा और उंगलियों द्वारा उनकी कुलुबुलाती योनि पर मैथुन। जब उन्होंने सचेत होकर सुध ली तो मारे उन्माद के वे कराह उठीं, और अपने पुत्र के सर को हाथों में दबोचकर उसके मुख को अपनी आतुर योनि पर दबाने लगीं।
“ओहहह, मादरचोद ! जय! मुझे लगा मैं कोई सपना देख रही हूँ! आहहहः ‘आँहहह आहहह! बेटा चूस मुझे ! कल रात तुझे मैने जैसा सिखलाया था, वैसे ही मम्मी की चूत को चाट, मेरे लाल !” ।
जय ने उनकी जाँघों के बीच से उठकर उनको देखा और उसके द्रव से सने मुख पर एक कुटिल मुस्कान नाच गयी।
सुबह-सुबह माँ की सेवा करूंगा तभी तो आशीर्वाद पाउंगा ना !”, वो हँसा, “क्यों मम्मी, मेरे लौड़े को दोगी नहीं अपना आशीर्वाद ?”
“अम्मम्मम्म, दूंगी क्यों नहीं जय बेटा, पर जैसी सेवा, वैसा मेवा!”, टीना जी बेशर्मी से मुस्कुरायीं और किसी पेशेवर रन्डी की तरह आमंत्रणसूचक शैली में अपनी जाँघों को फैला दिया। फिर उन्होंने और अधिक सेवा पाने के आशय से अपने पुत्र के मुखड़े को अपनी योनि पर दबा डाला। “चाट मुझे !”, टीना जी ने फंकार कर कहा।।
चूस मेरी गरम चूत, बेटा! बाप रे, कितनी गीली हो गयी मेरी चूत ! घुसा अंदर मेरे लाल, घुसा अपनी प्यारी-प्यारी लम्बी जीभ, बेटा, और अपनी कुतिया मम्मी की चूत को पिल्ले जैसा चाट! पुच पुच्च :::
जय के आग्नेय होंठों ने जैसे ही उनकी योनि को स्पर्श किया और उनकी फूले हुई योनि-कोपलों को चूसते हुए अकड़ते चोंचले को मुंह में दबाया, तो टीना जी चीख पड़ीं। उन्होंने अपने घुटने मोड़े और जाँघों को पूरी तरह फैला कर इस तरह पीछे की ओर खींच दिया कि उनका पूरा योनि स्थल उभर कर सम्भोग के लिये अनावृत हो गया।
जय किसी भूखे पिल्ले की तरह अपनी माँ की योनि को चूसने और चाटने लगा। उसने टीना जी के दोनों नग्न नितम्बों को हाथों में दबोच कर उनके ज्वलन्त और तत्पर योनि माँस को अपने मुख के पास उठा लिया, और जिस योनि ने उसे जनम दिया था, उसी को मुँह से चाटता चुपड़ता हुआ मुखमैथुन करने लगा। यही तो उसकी कामोत्तेजना का मुख्य कारण था - उसकी सगी माँ का उससे दैहिक आकर्षण और उसके संग सम्भोग की कामना। यही दो बातें उसकी कामाग्नि को में धधकाये देती थी।
हैरानी की बात नहीं थी की स्वयं टीना जी के विचार भी ऐसे ही कुछ थे। बरसों तक उन्होंने अपने हृदय में नवयुवकों, खासकर उनके हट्टे-कट्टे, गबरू जवान बेटे, के प्रति अपने आकर्षण को दबा रखा था। किंतु सैक्स तो शर्मा कुल की रग रग में बसा था, और पिछली रात घटा घटनाचक्र तो देर-सवेर होना ही था। अब आवश्यकता थी तो नये रिश्तों को जोड़ने की, अनुराग अभिव्यक्ति की नवीन शैली को अपनाने की। अपने चोंचले पर जय का मुख टीना जी को पागल किये दे रहा था। जैसे-जैसे किशोर जय माँ के उत्तेजित चोंचले को हौले-हौले चबा रहा था, कामोन्माद के मारे टीना जी कंठ ही में गुड़ग-गुड़ग आवजें निकाल रही थीं। “ओहहह! मादरचोद, शाबाश, बेटा! चूस मम्मी का चोंचला !”
अँह ... आहहह .:: झड़ा मुझे ! मुझे झड़ायेगा तो तुझे मेरी टपकती गरम चूत को चोदने दूंगी !” “आहहह उह ::' बोल, चोदेगा ना मम्मी की चूत , जय ?”
जय उत्तर तो नहीं दे पाया, पर अपने चोंचले पर उसके मुख की तीव्र हुई गति टीना जी को बतला रही थी कि उनका कमोत्तेजित जवान बेटा सदैव की तरह सम्भोग के लिये समक्ष और तत्पर है। जय ने भूखे अंदाज में टीना जी की पटी हुई योनि की उमस में अपने मुँह को घुमा-घुमा कर चाटना प्रारम्भ कर दिया। टीना जी की फैली हुई योनि-कोपलें उसके चेहरे को चिपचिपे, सुगंधयुक्त द्रवों से लथेड़ते जा रही थीं। जब-जब उसकी कामुक माँ चिल्ला कर अपनी योनि को उसकी ठोड़ी पर उचकातीं, जय अपने हाथों को उनके पुखता, माँसल नितम्बों के नीचे सरका देता, औ उनकी तप्त, दव-छलकाती योनि को अपने खुले मुख पर और कस के दबा देता। उसके मुख पर टीना जी का योनि-स्थल कसमसा कर फुदकता, और जय अपनी लम्बी नोकीली जिह्वा को उनके सुलगते योनि-मार्ग में गहरा घुसेड़ देता।
जिस प्रकार से जय मुख से ‘सुपड़ - स्लरप्प-चप्प- पच्च - फच्चक' सी गन्दी-गन्दी आवाजें निकालता हुआ उनके प्रचुर द्रवों को चाटता जाता, और फिर अपनी अकड़ी जिह्वा को उनकी कंपकंपाती योनि में कीसी, छोटे और मोटे लिंग की तरह सरसरा कर चलाता, टीना जी तो सातवें आसमान में उड़ती हुई स्वर्ग तुल्य आनन्द की प्राप्ति कर रही थीं। टीना जी ने अपने तन और मन दोनो को पूरी तरह से दो देहों के बीच संचरित होती पाश्विक और पाप भरी काम ऊर्जा पर न्यौछावर कर रखा था। उनका संभोग किस कदर घोर पापयुक्त था, दुश्कर्म और हैवानियत की पराकष्ठा था, और समाज के द्वारा नियुक्त हर सीमा का उलंघन कर रहा था, '' ऐसे सारे विचार उनके मन से कोसों दूर थे। परस्पर अपनी देहों का आनन्दभोग करते हुए, उन दोनो का संबंध अब माता और पुत्र का नहीं रहा था। अब था तो केवल एक नर और एक मादा का संबंध, जिनका तो सृजन ही हुआ है लैंगिक कर्म-काण्ड के वास्ते। वे युगों-युगों से चली आ रही, परस्पर लैंगिक संतुष्टि की परम्परा को निभा रहे थे।
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