RE: Vasna Story पापी परिवार की पापी वासना
87 जैकूजी
फिर जय, मिस्टर शर्मा और राज गेंद को आपस में ही फेंक कर खेलने लगे। तीनों गेंद छूने का अवसर लड़कियों को दे ही नहीं रहे थे। गेंद को पाने की चेष्टा का अभिनय करते हुए रजनी जी जय के साथ गोंद जैसी चिपक गयी थीं, और बार-बार अवसर पाकर अपने स्तनों और नितम्बों को उसके हट्टे-कट्टे मजबूत तन पर रगड़ती जा रही थीं।
जय अब गेंद में कम, और अपनी कामुक पड़ोसन में अधिक रुचि लेने लगा। राज भी टीना जी के संग इसी रीति में पीछे से अपनी बाहें उनकी कमर पर बांधे हुए, उनके ठोस और वक्राकार नितम्बों को अपने लिंग पर दबा रहा था। प्रथम तो जैसे संयोगवश दबाया, फिर जब उसने पुष्टी कर ली कि उन्हें आनन्द आया, तो निर्भय होकर स्पष्ट रूप से दबाने लगा। | मिस्टर शर्मा और डॉली ने तो अभिनय की आवश्यकता ही नहीं समझी, अलबत्ता :: दोनो अधिकतर पूल के अंधेरे कोनों में ही रहे, और एक दूसरे की टाँगों के बीच हाथों से टटोलते हुए नशे में धुत होकर हंसते ही रहे।
शीघ्र ही, अधिकतर गतिविधियाँ पानी की सतह के नीचे ही हो रही थीं। रजनी जी ने अपने नितम्बों को जय की ट्रैक के बीतर तेजी से बढ़ते उभार पर कस के दबा रखा था, मिस्टर शर्मा ने शबनमे के स्तनों को हाथों की गिरफ़्त में ले रखा था, और उन्हें प्रेम से निचोड़ते हुए अपने तनते लिंग को उस किशोरी के सुडौल नितम्बों पर रगड़ते जा रहे थे। राज का एक हाथ टीना जी की जाँघों के बीच फंसा हुआ था, और पानी की सतह के नीचे उनके लिसलिसे तप्त योनि माँस को मसल-मसल कर निचोड़ रहा था।
सोनिया ने रजनी जी को आँख मारी, यह उस घटनाक्रम को प्रारम्भ करने का संकेत सूचक था, जिसकी एक सप्ताह से दोनों को प्रतीक्षा थी। पारिवारिक सरगर्मियों और रंगरेलियों का समय आ गया था! रजनी जी जय की दिशा में पलटी और अपनी बाहें उसके कंधों पर सजा कर अपने स्तनों को उसके जवान रोमदार सीने पर रगड़ने लगीं।
“अपना जैकूजी नहीं दिखाओगे मुझे, जानेमन ?”, उन्होंने फंकार कर पूछा, और आमंत्रणपूर्वक उसके कान को जिह्वा से चाटने लगीं।
“आपका हुक्म सर आँखों पर रजनी जी”, जय मुस्कुराया। “बन्दे के पीछे-पीछे चले आइये !”
वो रजनी जी के हाथ को पकड़कर उन्हें स्विमिंग पूल के किनारे की ओर ले गया। जय ने उन्हें स्विमिंग पूल से बाहर निकलने में सहायता दी, और अपने हाथों द्वारा रजनी जी के ठोस गोलाकार नितम्बों को आवश्यकता से कहीं अधिक समय तक सहारा दिया।
जैकूजी में पहुँचने पर, रजनी जी नवयुवा जय की ओर पलट कर खड़ी हुईं, और अपने बिकीनी के टॉप को उतार फेंका। जैसे ही उनके अतिविशाल स्तन सूक्ष्म वस्त्र से बन्धनमुक्त हुए, उन्होंने जय के मुख पर उत्कट काम लोलुपता के भाव को देखा।
यः'' ये आप क्या कर रही हैं ?”, जय हकलाता हुआ बोला, वो अपने नेत्रों को उनके नग्न स्तनों की ऊष्मा पर सेक रहा था। शैम्पेन की मादकता और रजनी जी की निर्भीक अगवाई के बावजूद, वो अब भी कतराता था.. उसकी हिचकिचाहट आड़े आ रही थी। अपनी माता और बहन के साथ यौन संबन्ध स्थापित कर लेना अब उसे कहीं अधिक सहज लगता था। उसके लिये रजनी जी एक टेढ़ी खीर साबित हो रही थीं जानता था कि वे भी उसे चाहती थीं, किन्तु असमंजस में पड़ गया था कि अगला क़दम कैसे उठाये।
अरे बुडू, जैकूजी में मैं हमेशा बिकीनी उतार लेती हूँ। भई जैकूजी का असली मजा तो कपड़े उतार कर ही है। ना:- देखो, बदन पर ये छोटे-छोटे बुलबुले कैसे सुहावने लगते हैं तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं, जय बेटा ?” |
नहीं रजनी जी, मुझे भला ऐतराज़ क्यों होगा !” उसने गले में घूट भरा, और उनके अकड़ते निप्पलों को एकटक घूरने लगा। रजनी जी ने उसके मुख के भावों में उसकी असीम दैहिक भूख को पढ़ा।
“कैसे लगे मेरे मम्मे?", रजनी जी ने गर्म साँसें फेंकते हुए पूछा, और धीरे-धीरे उसके निकट आने लगीं। बोलो जय बेटा, कैसे लगते हैं तुझे आँटी के मोटे-मोटे मम्मे ?”
ओह, हाँ, रजनी जी! :: • बहुत, माँ कसम, बला के खूबसूरत हैं !”, उत्तेजित किशोर ऐसा कह कर कराह पड़ा।
जय की निगाहें उनके ठोस, गोलाकार स्तनों पर जमी हुई थीं। रजनी जी उसके ट्रंक के अंदर तनते हुए उग्र लिंग के उभार को घूरती हुईं, उसके और निकट बढ़ीं। उन्होंने अपने हाथों में अपने भरपूर स्तनों को भरकर भेंटस्वरूप उसके समक्ष प्रस्तुत किया, ठीक उसी रीति से जैसा उसने उन्हें आईने के सामने करते हुए देखा था।
जय को तो कुछ सूझ ही नहीं रहा था, कि क्या कहे और क्या करे! दरसल, उसे कुछ करने की आवश्यकता भी नहीं थी, क्योंकि रजनी जी उस नौजवान को अपनी देह द्वारा रिझाने और लुभाने में ऐसे अद्वितीय रोमांच का अनुभव रही थीं, कि उन्होंने आगे की गतिविधियों की बागडोर अपने अनुभवी हाथों में ले ली। अपनी देह को उसकी देह पर दबाकर उन्होंने अपने भरपूर विशाल स्तनों को उसके खुले हुए मुँह की दिशा में उठा दिया।
“इन्हें चूस, जय बेटा!”, रजनी जी ने आदेश दिया। देखता क्या है, चूस ले आँटी के मम्मों को, और चबा मस्ती से इन निप्पलों को !” ।
जय को तो जैसे साँप सूंघ गया हो
|