MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 12:50 PM,
#38
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
31

मैने अपनी जिंदगी मे इतना सुकून कभी नही पाया था, जो आज आज कीर्ति के इस कोमल स्पर्श से पा रहा था. उसके दोनो पैर मेरे पैरो से सटे हुए थे. उसके नाज़ुक स्तनो की छुअन मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी. उसने अपने नाज़ुक हाथो से मुझे जकड़ा हुआ था और उसका सर अभी भी मेरी पीठ पर टिका हुआ था. उसके बदन की महकती खुश्बू मे मैं सब कुछ भूल गया था. मेरे मन मे कीर्ति को लेकर कोई भी बुरा विचार नही था इसलिए इसे किसी लड़की के शरीर से लिपटने की वाषना नही कहा जा सकता था. ये तो एक मधुर अहसास था. जिसे मैने पहले कभी महसूस नही किया था. मेरे लिए तो ये सफ़र किसी जन्नत के सफ़र से कम नही था और मैं इसे और भी लंबा करना चाहता था. इसलिए मैं बिना किसी बात की परवाह किए आगे बढ़ता जा रहा था.

मगर कुदरत को शायद मेरा ये सफ़र पसंद नही आया या फिर यू कहा जाए कि वो मुझे कुछ और भी दिखाना चाहती थी. इसलिए जो ठंडी हवाए हमे मदहोश कर रही थी, वो अचानक ही तेज आँधियों मे बदल गयी और हम दोनो को इस मदहोशी से बाहर ले आई. उन आँधियों का रुख़ हमारी ही तरफ था और वो हमे आगे बढ़ने से रोक रही थी. कीर्ति ने मुझे कस कर जाकड़ लिया और अपने चेहरे को मेरे कंधे पर टिका लिया. उसके ऐसे करने से मेरा हौसला बढ़ गया और मैं अब भी आगे ही बढ़ता रहा. मगर अब तेज आँधियों के साथ बारिश भी होने लगी जिसने तूफान का रूप ले लिया और मेरे लिए बाइक चला पाना मुस्किल हो गया था. मैने बाइक को रोक दिया और कीर्ति से कहा.

मैं बोला "आँधी अब तूफान का रूप ले रही है और उसका रुख़ हमारी ही तरफ है. अब हमें वापस चलना चाहिए."

कीर्ति बोली "ऐसी तेज तूफान मे वापस लौटना ख़तरे से खाली नही होगा. कोई भी दुर्घटना हो सकती है. अच्छा तो ये है कि किसी अच्छी सी जगह पर रुक कर हम तूफान के रुकने का इंतजार करे. मुझे ऐसे मे वापस लौटने मे बहुत डर लग रहा है."

मैं बोला "यहाँ कोई बस्ती या घर मकान तो है नही, जहाँ पर रुका जा सके. अब वापस चलना ही ठीक रहेगा. वैसे भी जिस ओर की आँधी चल रही है उसी तरफ बाइक चलाने मे ज़्यादा परेशानी नही होगी. तुम चिंता मत करो हम आराम से पहुच जाएँगे."

ये कहकर मैने अपनी बाइक वापस मोड़ ली और हम बारिश मे भीगते हुए उसी तरफ चलने लगे जिस तरफ आँधी का रुख़ था. तेज हवाए हम से टकराकर हमे और भी आगे धकेल रही थी, तो बारिश की बूंदे मेरे चेहरे पर पड़कर मेरा बाइक चलाना मुश्किल कर रही थी. कीर्ति घबरा रही थी और मुझे इतनी ज़ोर से जकड़े हुई थी कि जैसे वह मुझे ढीला पकड़ेगी तो ये आँधी उसे उड़ा कर ही ले जाएगी.

मैं उसे समझा रहा था कि "मैने इस से भी तेज आँधी और बारिश मे गाड़ी चलाई है. तुम डरो मत हमें कुछ नही होगा. हम सही सलामत घर पहुच जाएँगे."

मगर अंदर ही अंदर मैं खुद भी डर रहा था. मेरे डरने की वजह ये आँधी तूफान नही था, बल्कि वजह थी कीर्ति का मेरे साथ होना. मैं अकेला होता तो मुझे किसी भी बात का डर नही होता. लेकिन कीर्ति का डरना भी वेवजह नही था. क्योंकि कुछ ही दूर पहुचे के बाद वो हुआ जिसके लिए मैं कतई तैयार नही था.

बारिश और तेज आँधी की वजह से पेड़ की एक मोटी सी डाली टूटकर हमारी बाइक के सामने आ गिरी और उससे हमारी टक्कर हो गयी. टक्कर इतनी जोरदार थी कि टक्कर लगने से कीर्ति बाइक से उछल कर दूर जाकर गिरी और मैं बाइक के साथ ही घिसटता चला गया. बाइक मे तो कुछ ज़्यादा टूट फुट नही हुई थी, मगर बाइक से ज़्यादा चोट मुझे पहुचि थी, क्योंकि मैं बाइक के साथ ही घिसटता चला गया था.

घिसटने से मेरे घुटने और पैर मे बहुत ज़्यादा चोट आई थी और हाथ भी बुरी तरह छिल गये थे. घुटने मे चोट आने की वजह से मैं पैर मोड़ नही पा रहा था इसलिए अब मुझसे खड़ा तक होते नही बन रहा था. मेरी बाइक कहीं पड़ी थी और मैं कहीं पड़ा था. मेरे जिस पैर मे चोट लगी थी उस पैर का जूता भी घिसटने की वजह से उतर चुका था और मेरे पैर के पंजे भी बुरी तरह से छिल गये थे. सब मिलाकर अब मेरी हालत ऐसी नही थी कि मैं उठ कर खड़ा हो सकूँ. फिर बाइक चला कर वापस घर पहुचने की बात ही दूर थी. लेकिन मुझे जैसे ही कीर्ति की याद आई मैं अपना सारा दर्द भूल गया और कीर्ति को इधर उधर देखने लगा.

कीर्ति मुझसे लगभग बीस कदम की दूरी पर सड़क के किनारे पेट के बल पड़ी थी. उसे ऐसे देख कर मैं घबरा गया कि कही उसे कुछ हो तो नही गया. मैने जल्दी से उठने की कोशिश की मगर उठने से पहले ही मैं दर्द के कारण गिर पड़ा. मैं उस तक किसी भी हालत मे पहुचना चाहता था, इसलिए मैं घिसटते घिसटते उसके पास गया. मैं उसके पास जाकर बैठा और उसका सर अपनी गोद मे खीच कर उसका चेहरा थपथपाने लगा मगर वो बेहोश सी थी.

मैं उसकी हालत देख बहुत ज़्यादा डर गया था. मैं मदद के लिए चिल्लाने लगा मगर उस तेज तूफान मे वहाँ मदद करने वाला कोई नही था. मेरा दिमाग़ काम करना बंद कर दिया और मेरी आँखों से आँसू बह रहे थे. मैं पागलों की तरह उसके गालों पर थप्पड़ मार कर उसे उठाने की कोशिश करने लगा. उसके चेहरे पर बारिश की बूंदे और मेरे थप्पड़ पड़ने से वो होश मे आ गयी.

कीर्ति ने कराहते हुए आँखे खोली और उठ कर बैठ गयी. मैने उसे अपने गले से लगा लिया. मेरी आँखों मे अभी भी आँसू थे.

मैं रुँधे गले से बोला "तुझे ज़्यादा चोट तो नही आई."

कीर्ति ने एक नज़र बाइक पर डाली और फिर मुझे देखते हुए बोली "नही मुझे ज़्यादा चोट नही आई बस थोड़े से ये हाथ छिल गये है और थोड़ी बहुत खरॉच पैरो मे आई है, बाकी मैं बिल्कुल ठीक हूँ."

फिर वो मेरे हाथ पैरो को देखते हुए बोली "तेरा जीन्स घुटने के उपर से फट गया है और उसमे खून लगा भी लगा हुआ है. लगता है तुझे बहुत चोट लगी है. ऐसे मे तू बाइक कैसे चला पाएगा."

मैं बोला "हाँ मुझे बहुत चोट लगी है. मैं ना तो खड़ा हो पा रहा हूँ और ना ही बाइक चला पाउन्गा. तुम एक काम करो मेहुल को कॉल करके बुला लो वो हमे आकर ले जाएगा."

कीर्ति ने अपने रुमाल को मेरे घुटने पर बाँध दिया और फिर मेरा रुमाल लेकर उसे मेरी बाहों मे बाँध दिया.

कीर्ति बोली "मुझे ऐसी कोई खास चोट नही लगी है. मैं बिल्कुल ठीक हूँ और अब तूफान भी थम गया है. तुम बस बाइक मे बैठने की कोशिश करो. मैं बाइक चला लुगी."

मैं बोला "तूने अभी सिर्फ़ स्कूटी ही चलाई है और अब सीधे बाइक चलाना चाहती है. मेरे तो हाथ पैर टूट ही गये है. अब क्या अपने भी तुड़वाना चाहती है. तुझसे बाइक चलाते नही बनेगी. जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा कर. बेकार मे वक्त बर्बाद मत कर और मेहुल को कॉल लगा."

कीर्ति बोली "ज़रा दिमाग़ से काम लो. शाम हो गयी है और कुछ ही देर मे इधर अंधेरा हो जाएगा. हम घर से बहुत दूर है मेहुल को आने मे कम से कम एक घंटा तो लग ही जाएगा. उस एक घंटे तक हम इस सुनसान मे, गीले कपड़ो मे कैसे रहेगे. उपर से तुम्हे चोट भी लगी है. मुझे बाइक चलाने दो मैं चला लुगी."

मैं बोला "नही मैं अपनी सुविध के लिए तुझे ख़तरे मे नही डाल सकता. तुम मेहुल को कॉल करो नही तो मुझे मोबाइल दो, मैं उसे कॉल करता हूँ."

वैसे भी रास्ता सूना है इसलिए मुझे बाइक चलाने मे कोई परेशानी नही होगी."

मुझे अपनी बात ना मानते देख कीर्ति ने मेरा हाथ अपने सर पर रखा और बोली "तुमको मेरी कसम. प्लीज़ मुझे बाइक चलाने दो. मुझे कुछ नही होगा. मैने बाइक चलना सीखा है और यहाँ तो सुनसान रास्ता है. मैं धीरे धीरे चलाउन्गी."

अब मेरे पास कीर्ति की बात मानने के सिवा कोई रास्ता नही था.

मैं बोला "ठीक है तू कोशिश करके देख ले मगर मेहुल को कॉल करके बता दे वो हमे रास्ते मे कही ना कही मिल जाएगा."

कीर्ति ने मेरी ये बात मान ली और मेहुल को कॉल करके बता दिया कि मुझे बाइक से गिर जाने के कारण चोट लगी है और वो धीरे धीरे मुझे लेकर आ रही है. तुम रास्ते मे हमें मिलो. इसके बाद कीर्ति बाइक के पास गयी और थोड़ी मेहनत करने के बाद वो बाइक मेरे पास ले आई. फिर उसने बाइक को स्टॅंड मे लगाया और मुझे सहारा देकर बाइक पर बिठाया और फिर बाइक स्टार्ट कर धीरे धीरे चलाने लगी. कीर्ति मेरे साथ एक दो बार बाइक चलना सीख चुकी थी लेकिन उसे बाइक चलाना नही आता था, पर ना जाने क्यों उसे ये विस्वास था कि वो बाइक चला लेगी और अब वो वही करके बता रही थी.

ये भी अजीब इतेफ़ाक था कि जाते समय कीर्ति मुझसे चिपक कर मेरे पीछे बैठी थी, तो अब लौटती समय मैं उस से चिपक कर उसके पीछे बैठा था. फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि उस समय वो खुश और निश्चिंत थी और उसे घर जाने की कोई चिंता नही थी, मगर इस समय उसे जल्दी मुझे डॉक्टर. को दिखाने की चिंता ने घेर रखा था. जो उसके चेहरे से साफ झलक रही थी.

मैने उसका मन हल्का करने के लिए कहा "यार तू तो मुझसे भी अच्छी बाइक चलाती है. यदि लौटते समय मैने तुझे ही बाइक चलाने दी होती तो ये दुर्घटना ना होती."

कीर्ति गुस्से मे बोली "चुप करो. ये सब मेरी ही वजह से हुआ है. ना मैं तुम्हारे साथ आई होती और ना तुम्हारे साथ ये हादसा हुआ होता."

मैं मज़ाक मे बोला "अरे तू नही आई होती तो मुझे घर कौन ले जाता. मैं तो अकेला रास्ते पर पड़ा तड़प रहा होता और हो सकता था कि कोई गाड़ी मेरे उपर से निकल कर मेरा काम तमाम कर जाती."

ये बात सुनते ही कीर्ति ने बाइक रोक दी और मेरी तरफ मूह कर के मुझे गले से लगती हुई बोली "तुमको मेरी कसम, कभी अपने मूह से ऐसी बात ना निकालना. यदि तुमको कुछ हो गया तो मैं अपने आपको ख़तम कर दूँगी."

ये कहकर वो रोने लगी. मैं उसका ये रूप देख कर दंग रह गया. मैने उसके आँसू पोंछे और बात को टालते हुए बोला "नही बोलुगा. कभी नही बोलुगा मगर अभी जल्दी से यहाँ से निकलो. अंधेरा होना सुरू हो गया है."

मेरी बात सुनकर कीर्ति ने बाइक आगे बढ़ा दी. अब मुझे उस पर बहुत प्यार आया और मैने अब अपने दोनो हाथ उसकी कमर पर डाल कर उसे जाकड़ लिया और किसी छोटे बच्चे की तरह उसकी पीठ पर सर रख कर बैठ गया. अब जो सुकून कीर्ति को जाते समय मेरी पीठ पर सर रखने से मिल रहा था. अब वो सुकून मुझे उसकी पीठ पर सर रखने से मिल रहा था.

आज पहली बार कीर्ति मेरे सीने से इस तरह लगी हुई थी, और इसलिए इतने दर्द मे होने के बाद भी मैं यही सोच रहा था कि काश ये सफ़र यू ही चलता रहे. मगर ये सिर्फ़ मेरी सोच थी. कीर्ति की नही. उसे तो बस एक ही सोच ने घेरा था कि जल्दी से जल्दी मुझे डॉक्टर. को दिखाने की और उसने अपनी इस सोच को जल्दी ही पूरा करके दिखा दिया. करीब एक 45 मिनिट के सफ़र के बाद हमे मेहुल आते दिख गया. वह अपने किसी दोस्त के साथ आ रहा था. उसे देख कीर्ति ने बाइक रोकी. फिर कीर्ति मेहुल के दोस्त के साथ बैठ गयी और मेहुल मेरी बाइक चलाने लगा और आधे ही घंटे मे उसने बाइक एक हॉस्पिटल के सामने रोकी और फिर मुझे मेहुल और उसका दोस्त उठा कर अंदर ले गये. अंदर एक डॉक्टर ने. कीर्ति की मरहम पट्टी की और एक ने मेरा चेकप किया और फिर मुझे पैर मे हॉट स्ट्रीप चढ़ा दी. डॉक्टर ने मेरे गीले कपड़े बदलने को कहा तो मेहुल ने अपने सूखे कपड़े मुझे पहनाए और मेरे गीले कपड़े खुद पहन लिए. डॉक्टर ने कुछ दवाइयाँ खाने की दी, जो मैने वहीं खा ली जिस से कुछ ही देर मे मेरे दर्द मे आराम हो गया.

फिर उसने कुछ दवाइयाँ लिखी और कहा "घबराने की कोई बात नही है. घुटने मे चोट और सूजन की वजह से इनसे चला नही जा रहा है. इनके घुटने की हर 2 घंटे मे सिकाई करते रहना. सुबह तक ये चलने फिरने लगेगे और दो तीन दिन मे ये पूरी तरह से ठीक हो जाएँगे."

और फिर हम लोग घर के लिए निकले. मैने रास्ते मे कीर्ति और मेहुल को समझा दिया कि घर मे ये ना कहे कि इतनी दूर ये हादसा हुआ है. घर मे यही कहना है कि तेज बारिश की वजह से बाइक फिसल गयी थी.

कुछ देर बाद हम लोग घर पहुच गये. मेहुल ने अपने दोस्त को जाने दिया. फिर वो और कीर्ति मुझे सहारा देकर अंदर ले आए. मुझे ऐसी हालत मे देख छोटी माँ और अमि निमी घबरा गये. सबने मुझे सोफे पर बिठाया.

फिर मेहुल ने उन्हे समझाया कि "घबराने की कोई बात नही है. बारिश की वजह से बाइक फिसल गयी और ये गिर गया. मामूली सी चोट है. यदि चोट मामूली नही होती तो डॉक्टर. इसे घर आने ही क्यों देता."

इसके बाद कीर्ति ने छोटी माँ को बताया कि डॉक्टर. ने हर दो घंटे मे सिकाई करने को कहा है तो छोटी माँ घुटने की शिकाई करने की तैयारी करने लग गयी और कीर्ति अपने गीले कपड़े बदलने चली गयी. अपने कपड़े बदल कर आने के बाद उसने मेहुल को मेरे कपड़े लाकर दिए तो मेहुल ने भी अपने गीले कपड़े बदल लिए.

इस सब के चलते मेरी नज़र अब तक अपनी भोली भाली निमी पर नही पड़ी थी मगर जब सब कुछ शांत हुआ तो देखा कि वो दूर खड़ी सब कुछ देख रही थी और उसकी आँखों मे आँसू डब डबा रहे थे. शायद उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि मुझे क्या हुआ है और वो घबराई हुई मुझे दूर से ही देख रही थी. मैने जैसे ही उसे अपने पास बुलाया तो वो मुझसे लिपट कर रोने लगी.

मैने उसे अपने पास बिठाया और समझाया "पागल लड़की मुझे कुछ नही हुआ है. बस गाड़ी से गिर गया हूँ तो ये चोट लग गयी है."

असल मे उसके सामने ऐसा कोई हादसा पहली बार हुआ था इसलिए उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है. हड़बड़ी मे सब अपने अपने मे लगे थे और उसकी तरफ किसी ने ध्यान नही दिया था. जिस वजह से वो और डर गयी थी. मेरे समझाने से उसे समझ मे आया तो वो फिर पहले की तरह खिलखिलाने लगी थी.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 12:50 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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