MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 12:53 PM,
#40
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
दरवाजा मेहुल ने खोला. मुझे अपने सामने खड़ा देख कर वो चौक गया. वो तुरंत भागते हुए मेरे पास आया और मुझे अपने कंधे का सहारा देकर अंदर ले गया. पीछे पीछे कीर्ति भी अंदर आ गयी. उसने ले जाकर मुहे सोफे पर बैठाया और मेरे पैरों को सोफे पर फैला दिया. ताकि मुझे तकलीफ़ ना हो. अंकल भी वही थे पर उन्हे कुछ समझ मे नही आ रहा था और वो चुपचाप खड़े मुझे और मेहुल को देखने लगे.

मेहुल बोला "तू पागल है क्या.? ऐसी हालत मे तुझे यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी."

फिर वो कीर्ति की तरफ देख कर बोला "क्या तुझे ज़रा भी अकल नही है. जब मालूम है कि अभी इस से ठीक से चलते नही बन रहा है, तो इसे लेकर क्यों घूम रही है."

कीर्ति अंजान बनते हुए बोली "मैं क्या करती. ये तो टेक्शी लेकर आ रहा था. अब मैं इसे अकेले तो नही आने दे सकती थी. मजबूरी मे मुझे ही इसको लेकर आना पड़ा."

तभी आंटी भी वहाँ आ गयी. "मुझे सोफे पर पैर फैलाए बैठे देख कर बोली "क्या हुआ इसे. इसके शरीर पर ये चोट के निशान कैसे है.?"

मैं बोला "कुछ नही आंटी कल बारिश मे बाइक फिसल गयी थी और ये चोट लग गयी."

आंटी मेरे पास बैठ गयी और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली "तुझे ज़्यादा चोट तो नही आई. कहाँ कहाँ लगी है."

मेरे बोलने से पहले ही मेहुल बोल पड़ा "मम्मी इसके घुटने मे चोट है और इस से चलते फिरते भी नही बन रहा है. डॉक्टर. ने 2-3 दिन का बेड रेस्ट बोला है और ये महाशय चहल कदमी करते हुए यहाँ आ गये."

मैं बोला "आंटी ये भी तो मेरा घर ही है ना. तो क्या मैं अपनी तबीयत खराब होने पर यहाँ आराम नही कर सकता."

आंटी बोली "हाँ बेटा ये भी तेरा घर है, पर जब तुझे इतनी तकलीफ़ थी तो तुझे इस तरह यहाँ नही आना चाहिए था."

मैं बोला "आंटी अंकल आज जा रहे थे तो, मैने सोचा मैं भी मिल लूँ, इसलिए आ गया."

अंकल जो अभी तक चुप थे बोले "बेटे बात तो तेरी ठीक है पर तुझे इस तरह यहाँ नही आना चाहिए था. तू बोल देता तो मैं खुद तुझसे मिलने आ जाता."

मैं बोला "नही अंकल ऐसी कोई बात नही है. ये मेहुल तो बेकार मे बात का बटांगड़ बना रहा है. बस यू ही हल्की सी चोट लगी है. अब यदि हाथ पैर नही चलाउन्गा तो ठीक कैसे होउंगा."

कीर्ति बोली "हाँ अंकल अब तो इसको पहले से बहुत आराम है. घुटने की चोट मे थोड़ा सा चलना फिरना ज़रूरी है ताकि उसकी कसरत हो सके."

आंटी बोली "चल आ गया तो कोई बात नही है. अब तू यही आराम कर ले. मेहुल तू इसे अपने कमरे मे ले जा."

मैं बोला "आंटी मैं अभी यही ठीक हूँ. जब आराम करना होगा तो मैं खुद बोल दूँगा."

मेहुल कुछ बोलना ही चाहता था कि आंटी ने उसे गुस्सा करते हुए कहा "अब तू चुप कर. कल से लड़के की ऐसी हालत है और तूने बताया तक नही और अब आया बड़ा ख़याल करने वाला. जा और जाकर जल्दी से इसके लिए जूस लेकर आ. तब तक मैं इसे कुछ खिला देती हूँ."

मेहुल मुझे घूरते हुए बाहर चला गया और आंटी किचन मे चली गयी.

अंकल कीर्ति को खड़ा देख कर बोले "तुम क्यों अजनाबीयों की तरह खड़ी हो बेटी. तुम्हारा ही घर है आराम से बैठो."

कीर्ति भी दूसरे सोफे पर बैठ गयी और वो अंकल को मेरी तबीयत के बारे मे बताने लगी. कुछ देर बाद नितिका और रिया भी आ गयी, लेकिन उनके साथ शिल्पा भी थी. अंकल ने उन्हे भी बैठने को कहा. तभी मेहुल जूस लेकर आ गया. उसकी नज़र उन तीनो पर पड़ी तो वो फिर से चौके बिना ना रह सका. तब तक आंटी खाना लेकर आ गयी और मेरे पास बैठ कर मुझे अपने हाथों से खिलाने लगी.

ये देख कर मेहुल बोला "आप ने ही इसे बिगाड़ा है मम्मी. एक तो ये ऐसी हालत मे इधर तक आया. उपर से आप इसे गुस्सा करने की जगह अपने हाथों से खिला कर इसकी मनमानी को बढ़ावा दे रही हो. इसे तो भूका रखना चाहिए ताकि दोबारा ऐसी हरकत ना करे."

आंटी बोली "तू तो बिल्कुल चुप रह. तुझे तो मैं बाद मे देखती हूँ. अभी जाकर गिलास मे जूस लेकर आ."

ये देख कर शिल्पा को छोड़ बाकी सब हँसने लगे और मेहुल गिलास मे जूस निकालने लगा.

कीर्ति ने मेरी तरफ देख कर इशारा किया और मैं अंकल से बोला "अंकल आप की ट्रेन कितने बजे की है."

अंकल बोले "6 बजे की."

ये सुनकर नितिका बोली "आप कहीं जा रहे है अंकल."

अंकल बोले "हाँ बेटी, मेरे एक दोस्त के रिश्तेदार की तबीयत ठीक नही है. उन्हे ही लेकर मुंबई जा रहा हूँ."

मुंबई का नाम सुनते ही रिया बोल उठी "अंकल जी हम लोग भी मुंबई मे ही रहते है. आप कितने दिन वहाँ रुकेगे."

अंकल बोले "बेटी अभी तो सिर्फ़ दिखाने जा रहे है, अगर डॉक्टर. ने रुकने को कहा तो हो सकता है कि 10-15 दिन या कुछ ज़्यादा भी रुकना पड़ जाए."

रिया बोली "अंकल जी आप मेरा अड्रेस और मोबाइल नंबर लिख लीजिए और अपना मोबाइल नंबर मुझे दे दीजिए. मैं भी 2 दिन बाद घर वापस जा रही हूँ. अगर उस समय आप वहाँ रहे तो हो सकता है कि, मैं आप के कुछ काम आ सकूँ."

फिर रिया ने अपना अड्रेस और मोबाइल नंबर अंकल को दिया और अंकल का मोबाइल नंबर खुद नोट किया. ये सब होते देख कर अंकल समझ गये थे कि, मैं वहाँ इस हालत मे भी किस लिए आया था.

वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए आंटी से बोले "रिचा अब उसे और कितना खिलाओगी. तुम उसे खिलाती जाओगी तो, वो भी बिना मना किए खाए जाएगा. अब उस बेचारे पर रहम भी करो, और कुछ जगह जूस के लिए भी रहने दो."

ये सुनकर आंटी ने मुझे खाना खिलाना बंद किया और जूस पिलाकर वापस जाकर अंकल के जाने की तैयारी करने लगी. अंकल भी अपने रूम मे चले गये. उनके जाने के बाद रिया मेरे पास आकर बैठ गयी और फिर हम लोगों की आपस मे बात चलती रही. अंकल के जाने की सारी तैयारी होने के बाद अंकल आंटी भी हमारे पास आकर बैठ गये. करीब 5 बजे रॉय अंकल आ गये और फिर अंकल मेहुल और रॉय अंकल स्टेशन के लिए निकल गये और कुछ देर आंटी से बात करने के बाद हम सब भी अपने अपने घर आ गये.

मेरे घर लौटने पर निमी ने उनके आने से पहले ही, चले जाने की नाराज़गी जताई और फिर मैं अपने कमरे मे आ गया. आज पापा आ गये थे इसलिए सब ने पापा के साथ ही खाना खाया. खाने के बाद अमि निमी और कीर्ति सोने के लिए उपर आ गये. उपर आकर तीनो काफ़ी देर तक मेरे पास ही बैठी बात करती रही. फिर 11 बजे अमि निमी अपने कमरे मे और कीर्ति अपने कमरे मे चली गयी. मैने सोचा कि अमि निमी आज उपर सो रही है इसलिए कीर्ति उनके साथ ही सोएगी मगर ऐसा नही हुआ. कुछ देर बाद कीर्ति अपना नाइट सूट पहन कर वापस मेरे कमरे मे आ गयी. उसने आकर पहले मेरे घुटने की सिकाई की और फिर मेरे पास ही लेट गयी, मगर आज वो कुछ खोई खोई सी लग रही थी.

मैं बोला "क्या बात है. आज तू जबसे नीचे से आई है बहुत चुप चुप सी है."

कीर्ति बोली "कोई खास बात नही है. बस यू ही."

मैं बोला "जिस बात ने तुझे यू खामोश कर दिया है, वो कोई ऐसी वैसी बात तो हो ही नही सकती. सच सच बता क्या बात है."

कीर्ति बोली "मुझे यहाँ आए एक हफ़्ता हो गया है, मगर मैने इस एक हफ्ते मे कभी भी तुझे और मौसा जी को ना तो बात करते देखा है, और ना ही एक दूसरे का सामना करते देखा है. यहाँ तक कि मैने दोनो मे से किसी को भी एक दूसरे से के बारे मे बात तक करते नही देखा है. दोनो एक दूसरे से कटे कटे ही रहते है. मैने आज ये बात मौसी से भी पूछी, तो वो भी टाल गयी. बस यही एक बात है जो मुझे परेशान कर रही है."

ये कहकर वो मेरी तरफ देखने लगी और मैं किसी सोच मे गुम हो गया. मेरा चेहरा कठोर हो गया. मेरे चेहरे की रंगत बदलने लगी. जिसे देख कर कीर्ति को लगा कि शायद उसने कोई ग़लत बात पूछ ली है. जिस वजह से परेशान हो गया हूँ. मुझे यू किसी गहरी सोच मे डूबा देख कर कीर्ति मुझे बहलाने लगी.

कीर्ति बोली "जाने दे ना. यदि बताने लायक बात नही है तो मत बता. मैं जानकार भी क्या करूगी. मैं तो पागल हूँ. तू मेरे साथ पागल मत बन. अपने दिमाग़ को ये टेन्षन देना बंद कर और इस बात को भूल जा."

मैं बोला "तेरे सिवा इस बात को किसी और ने पूच्छा होता तो मैं कभी नही बताता. क्योंकि मैं इस बात को अपने दिल की गहराई मे कब का दफ़न कर चुका था. मगर ये बात तूने पुछि है इसलिए बता रहा हूँ. ये बात मैं तुझसे किस तरह कहूँ ये मेरे समझ मे नही आ रहा है. ये बात मेरे मूह से सुनने मे तुझे शायद बहुत बुरा लगे पर अब तू मेरे बारे मे सब अच्छी बुरी बात जानती है तो तुझे ये बात भी जानने का पूरा हक़ है, इसलिए मैं तुझे ये बात बता रहा हूँ. लेकिन तू ये बात सिर्फ़ अपने तक ही रखना."

"ये बात आज से करीब 2 साल पहले की है. तब मैं 8थ मे पड़ता था. सेक्स के बारे मे मुझे भी उसी तरह जानकारी होने लगी जैसे बाकी लोगों को उमर के साथ हो जाती है. मेरे और पापा के रिश्ते तो मेरी माँ के मरने के बाद से ही धीरे धीरे खराब होते चले गये थे. छोटी माँ के आने से मुझे शुरू शुरू मे थोड़ा बुरा ज़रूर लगा था, मगर फिर कुछ समय बाद हम दोनो के बीच के सारे मतभेद ख़तम हो चुके थे और मैं उनके साथ बहुत खुश था. अमि निमी के आने से मेरी खुशी और भी बढ़ गयी थी तो वही तेरे जैसा दोस्त भी मिल गया था. मैं छोटी माँ को अब अपनी माँ की तरह ही प्यार करता था, इसलिए यदि पापा उन्हे कुछ भी कहते तो मुझे बुरा लगता था. मैं उन्हे उल्टा सीधा बकने लगता मगर फिर भी हम बाप बेटे का रिश्ता बना रहा."

लेकिन 2 साल पहले एक ऐसी घटना घटी जिससे हम बाप बेटे के रिश्ते मे दूरियाँ और भी ज़्यादा बढ़ गयी. हुआ ये कि मुझे अचानक कुछ पैसो की ज़रूरत पड़ी. छोटी माँ अपनी किसी सहेली से मिलने गयी थी, और मुझे पैसों की सख़्त ज़रूरत थी इसलिए मैं पापा के ऑफीस पहुच गया, मगर जब मैं पहुचा तो छोटी माँ भी अपनी सहेली से मिलने के बाद किसी काम से ऑफीस पहुचि थी. वो मुझे ऑफीस के बाहर ही मिल गयी. मैने उनसे पैसे माँगे तो उन्हो ने कहा अभी उनके पास उतने पैसे नही है. मैं अंदर चलूं वो पापा से मुझे पैसे दिला देगी. हम दोनो पापा के ऑफीस मे आ गये. लेकिन पापा अपने कॅबिन मे नही थे. हम लोग पापा के उस रूम की तरफ बढ़ गये जो पापा ने अपने रेस्ट के लिए बनाया हुआ था. उस मे पापा की बिना अनुमति के कोई भी नही जाता था. एक तरह से वो पापा का ऑफीस कम बेडरूम था. जो पापा ने सिर्फ़ अपने आराम के लिए बनवाया था. उसमे सभी तरह की सुविधाए थी.

हम लोग अभी उस रूम के दरवाजे पर पहुचे ही थे कि, एक लड़की के रोने की आवाज़ आई. छोटी माँ ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर जाने से रोक दिया. हम दोनो कमरे के बाहर दरवाजे पर ही खड़े होकर पापा और उस लड़की की बात सुनने लगे.

पापा अपने टेबल से टिक कर खड़े थे और लड़की उनके सामने एक चेयर पर बैठी थी. वो पापा का व्याकिगत कमरा था इसलिए वाहा उनकी इजाज़त के बिना किसी के आने की कोई उम्मीद नही थी.

लड़की बोली "सर प्लीज़ मेरे साथ ऐसा मत कीजिए. मैं आपकी बेटी की उमर की हूँ."

पापा बोले "अगर तुम मेरी बेटी होती तो मैं तुम्हारे साथ ये सब कब का कर चुका होता और मैं कॉन सा तुम्हारा बलात्कार कर रहा हूँ या तुम्हे गर्भवती कर रहा हूँ. तुम्हे जॉब की ज़रूरत है और मुझे तुम जैसी कमसिन कली की. यदि मैं तुम्हारी ज़रूरत को पूरा कर रहा हूँ तो, तुम्हारा भी फर्ज़ बनता है कि तुम मेरी ज़रूरत को पूरा करो."

लड़की बोली "सर मैं बहुत सरीफ़ लड़की हूँ. मैं ये सब नही कर सकती."

पापा बोले "सोच लो तुम्हे जॉब चाहिए या नही. मेरे पास लड़कियों की कमी नही है पर तुम्हे शायद ऐसा जॉब कही और ना मिले."

लड़की बोली "सर मैं बदनाम हो जाउन्गी. मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. आप तो शादी शुदा है और मेरी तो अभी शादी भी नही हुई है. कुछ तो मेरे उपर रहम कीजिए."

पापा बोले "हाँ मैं शादी शुदा हूँ पर मुझे तुम जैसी कमसिन कली का रस चूसने की आदत है. यदि तुम शादी शुदा होती तो मैं तुम्हारी तरफ देखता भी नही. क्योंकि मैं वो भँवरा हूँ जो सिर्फ़ कलियों का रस चूस्ता है फूलों का नही. मैं इतने साल से ये सब करते आया हूँ, क्या तुमने किसी के मूह से ये बात सुनी है. नही ना. तो फिर अपनी बदनामी का डर निकल दो. ये बात सिर्फ़ मेरे तुम्हारे बीच मे ही रहेगी. अब आगे तुम्हारी मर्ज़ी. तुम चाहो तो जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो, या फिर कल से जॉब पर मत आओ. मैं तुमसे किसी भी बात के लिए ज़बरदस्ती नही करूगा. जो भी करूगा तुम्हारी मर्ज़ी से करूगा."

"ये बोल कर पापा उस लड़की के जबाब का इंतजार करने लगे और छोटी माँ इन सब बातों को सुनने मे ऐसा खो गयी कि वो ये भी भूल गयी कि मैं भी उनके साथ ही हूँ. उनके लिए पापा का ये रूप बिल्कुल ही नया था."

"उस लड़की की उम्र कोई 19-20 के आस पास रही होगी. वो ब्लॅक शॉर्ट स्कर्ट और वाइट शर्ट पहने थी. देखने मे बहुत ही सुंदर थी. उसके बूब्स शर्ट को फड़कर बाहर निकलने के लिए बेताब नज़र आ रहे थे. उसकी शर्ट के अंदर से रेड कलर की लालिमा सॉफ नज़र आ रही थी. जिस से अंदाज लगाया जा सकता था कि वो अंदर रेड ब्रा पहने हुए है. उसकी स्कर्ट भी घुटनो के काफ़ी उपर थी जिस से उसकी पिंदलियो पर पड़ने वाले बल को देख कर उसकी जाँघो का हिसाब लगाना भी मुस्किल नही था. उसके पहनावे से उसके बदन आकार सॉफ समझ मे आ रहा था कि 34 28 36 है."

लड़की ने कुछ जबाब नही दिया तो पापा बोले "तुम कुछ जबाब तो दो या फिर तुम्हारी खामोशी को मैं तुमहरि हाँ समझू."

"लड़की चुप थी. पापा ने उसकी खामोशी को उसकी हाँ मान लिया और उसकी दोनो बाँहे पकड़ कर उसे खड़ा कर अपने होंठ उसके होंठो पर लगा कर चूसने लगे और अपने हाथों से उसके बूब्स मसल्ने लगे. लड़की ने कोई विरोध नही किया, मगर वो कोई सहयोग भी नही कर रही थी.

मगर पापा किसी मँझे हुए खिलाड़ी की तरह उसके होंठ चूस्ते चूस्ते अपने एक हाथ से उसकी शर्ट के बटन खोलने लगे. कुछ ही देर मे शर्ट लड़की के बदन से अलग हो चुकी थी. अब लड़की रेड ब्रा मे थी और पापा उसकी ब्रा के उपर हाथ फेरते हुए अभी भी उसके होंठ चूस रहे थे.

पापा के हाथ उसकी ब्रा पर घूमते घमते ब्रा की स्ट्रीप पर गये, और लड़की कुछ ही पल बाद ब्रा के बंधन से मुक्त हो चुकी थी. अब पापा उसके होंठो को चूसना बंद कर उसकी मस्त चुचियों बारी बारी से को चूसने लगे. जिससे उसकी चुचियाँ तन कर खड़ी हो गयी. पापा एक चुचि को चूस्ते तो, दूसरी को अपने हाथो से मसलते. जिस वजह से लड़की कसमसा रही थी.

लड़की सिस्याने लगी और उसके हाथ खुद बा खुद पापा के सर पर चले गये, और वो पापा के सर को अपने बूब्स पर दबाने लगी. लड़की को उत्तेजित कर पापा ने एक पड़ाव पार कर लिया था, और अब घमासान जंग की तैयारी मे लग गये.

उन्होने लड़की की चुचियों का रस पीते पीते अपने हाथो से, उसकी स्कर्ट को नीचे धकेल दिया और रेड पेंटी के उपर से उसकी पुसी को सहलाने लगे.

पापा के ऐसा करने से लड़की अपना काबू खोने लगी और उसकी आँखें मस्ती से बंद होने लगी. वो पापा के सर को अपने अपने बूब्स पर दबा रही थी.

पापा ने उसे टेबल पर बैठा दिया और एक पल मे उसकी पेंटी को अलग कर उसकी पुसी पर अपने होंठ लगा कर अपनी जीभ से उसे चाटने लगे.

लड़की छटपटाने लगी और अपनी टाँगों से पापा के सर को जाकड़ लिया, और और अपने हाथो से पापा के सर को पुसी पर दबाने लगी.

अब वो पूरी तरह से मदहोशी की हालत मे थी, और बोल रही थी "चाटो सिर्र्र्र्र्र्ररर, मेरी कुँवारी पूस्सयययी को चाट चाट कार्रररर इसकी प्यसस्स्स्स्स्स्सस्स भुजाआआअ दूऊऊ."

अब कमरे मे लड़की की सिसकियाँ और वासना भरी आवाज़ें ही गूँज रही थी. पापा ने अपना दूसरा पड़ाव भी पार कर लिया था.

वो लड़की की पुसी चाट रहे थे और अपने हाथों से उसके बूब्स मसल रहे थे और फिर कुछ समय बाद वो पल भी आ गया जिसके लिए पापा ने इतनी मेहनत की थी.

लड़की कुछ देर बाद शांत पड़ गयी. उसकी पुसी से रस धार बहने लगी और पापा उसे पी रहे थे.

अब पापा ने लड़की को गोद मे उठाया और फिर बेड पर ले गये और उसे बैठा दिया.

उन्होने अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपना लिंग लड़की के हाथ मे थमा दिया. अब लड़की भी जंग लड़ने के मूड मे थी, उसने पापा के लिंग को अपने हाथों से मसलना सुरू कर दिया.

लेकिन पापा का मूड कुछ और ही था, उनने अपने लिंग को उसके होंठो पर लगा दिया. लड़की मतलब समझ चुकी थी उसने पापा के लिंग को अपने मूह मे भर लिया.

वह पापा के लिंग को बड़े मज़े से चूसने लगी. पापा की आँख बंद होने लगी. वो लड़की के सर को अपने लिंग पर दबा रहे थे.

लड़की लॉलिपोप की तरह उनके लिंग को चूसे जा रही थी. अब पापा पूरे उन्माद पर पहुच चुके थे और शायद वो झड़ना नही चाहते थे.

उन्हो ने लड़की का मूह अपने लिंग से अलग कर उसे बेड पर लिटा दिया, और खुद उसकी दोनो टाँगों के बीच मे आ गये. ये देख लड़की घबरा गयी.

वो बोली "सर इतना मोटा लिंग मेरी पुसी मे कैसे जाएगा."

पापा बोले "पहली बार ऐसा ही लगता है पर जब ये अंदर जाएगा तो, पता ही नही चलेगा कि पूरा का पूरा कहाँ चला गया, और फिर तुम्हे वो मज़ा देगा जो कभी तुमने महसूस ही नही किया होगा."

पापा ने लड़की की दोनो टाँगों को फैलाया और अपने लिंग के टॉप को उसकी पुसी मे लगा कर एक धक्का मारा.

लड़की के मूह से चीख निकल गयी "उईईईई माआआआ"

पापा ने अपने होंठ उसके होंठो पर रख दिए और उसके बूब्स मसल्ने लगे. अभी पापा के लिंग का टॉप ही उसकी पुसी मे गया था.

पापा थोड़ी देर उसके होंठ चूस्ते रहे और लिंग के टॉप को पुसी मे हिलाते रहे. ताकि अगला धक्का मारने के लिए जगह बन सके.

जब उन्हो ने देखा कि लड़की को मज़ा आ रहा है और वो पूरी तरह से उत्तेजित है तो, उन्हो ने एक ज़ोर दार धक्का मारा. इस धक्के से उनका आधा लिंग लड़की की पुसी मे चला गया. लड़की चीखी मगर उसकी चीख उसके गले मे ही दब कर रह गयी थी.

पापा अपने होंठो से उसके होंठों को बंद किए हुए थे. लेकिन दर्द से लड़की की आँख से आँसू बह निकले.

पापा थोड़ी देर के लिए रुक गये और उसके होंठो को चूस्ते रहे, उसके बूब्स मसल्ते रहे.

थोड़ी देर बाद लड़की अपनी कमर को उपर नीचे करने लगी और अब पापा ने भी अपने आधे फसे लिंग को अंदर बाहर करना सुरू कर दिया.

लड़की को मज़ा आने लगा और वह कह रही थी "सर और अंदर कीजिए. मज़ा आ रहा है. ऐसे ही करते रहिए. सर आप बहुत अच्छे हो. आपका लिंग भी बहुत मस्त है.

ये जब मेरी पुसी मे जाता है तो बहुत मज़ा आता है. इसे पूरा अंदर डाल दीजिए. मुझे और भी ज़्यादा मज़ा चाहिए."

वो मस्ती मे अपनी कमर उपर उचका रही थी और पापा आधे लिंग से धक्के लगा रहे थे.

लड़की फिर बोली "प्लीज़ सर पूरा अंदर कीजिए. मुझे पूरा मज़ा चाहिए. मेरी पुसी की प्यास बुझा दीजिए सर."

मगर शायद वो नही जानती थी कि अब ये मज़ा ही उसके लिए सज़ा बनने वाला है.

पापा उसकी बात सुनकर और जोश मे आ गये और उनने अपने लिंग का एक और ज़ोर दार धक्का मारा.

इस बार तो लड़की के प्राण ही निकल गये. वो चीखे बिना ना रह सकी "उईईइ माआ मररर्ररर गाइिईईईई, बाहर निकालो सर मैं मर जाउन्गी, इसे प्लीज़ बाहर निकाल लो."

मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, उसकी कुंवारेपन की झिल्ली फट चुकी थी और उसकी पुसी खून से तर हो गयी थी.

लड़की इसे देख कर जहाँ घबरा रही थी, वही पापा का जोश बढ़ गया था और वो ज़ोर दार धकके पे धक्के लगाए जा रहे थे.

पापा को जहाँ इस से परम आनंद मिल रहा था वही लड़की चीख चीख कर कह रही थी. "प्लीज़ सर मुझे छोड़ दो, मैं मर जाउन्गी."

लेकिन ऐसी सुख की अवस्था मे पापा को रुक पाना ठीक नही लग रहा था, वो उसकी चीख को अनसुना कर, धक्के पे धक्के लगाए जा रहे थे.

कुछ देर बाद लड़की शांत पड़ गयी और अब इन धक्को का मज़ा लेने लगी. उसने पापा की कमर को अपने पैरो से जाकड़ लिया और पापा के धकको के साथ अपनी कमर भी उचकाने लगी.

अब कमरे मे लड़की की सिसकारी और पापा के लिंग के धक्को की आवाज़ें गूँज रही थी.

पापा का लिंग किसी मूसल की तरह लड़की की पुसी मे अंदर जाता और फिर बाहर निकलता.

कुछ देर बाद लड़की शांत पड़ गयी. उसकी पुसी से उसका रस लिंग के अंदर बाहर होने से बाहर आ रहा था.

अब पापा ने भी धक्के मारने की रफ़्तार बढ़ा दी, और कुछ देर बाद पापा का लिंग झटके खाते खाते लड़की की पुसी के अंदर ही शांत हो गया.

पापा झड गये थे और उनका सारा वीर्य लड़की की पुसी के अंदर ही छूट गया था. अब पापा लड़की के उपर ही ढेर हो गये.

मगर ढेर होने से पहले पापा ने तीसरा पड़ाव भी पर कर लिया था, और एक कमसिन कली को फूल बना कर ये जंग भी जीत ली थी.

जो लड़की कुछ देर पहले तक पापा के सामने रो रही थी. अपने शरीफ होने की दुहाई दे रही थी. वही अब पापा को अपनी बाहों मे समेटे उन्हे प्यार से चूम रही थी, और उनसे यह सुख देने के लिए थॅंक्स भी कह रही थी. दोनो ने ही अपनी मंज़िल पा ली थी. पापा और वो लड़की दोनो अब एक दूसरे से लिपटे पड़े थे मगर दोनो संतुष्ट नज़र आ रहे थे.

उनका यह तमाशा मूक दर्शक की तरह देखने वाले हम लोगों के चेहरे पर, तनाव छा गया था. छोटी माँ के तो होश ही गुम थे. उन्हे पापा से इस तरह की हरकत की कभी कोई अपेक्षा नही थी. इसलिए जब उन ने अचानक पापा को ये सब करते देखा तो, वो अपनी सुध बुध खो बैठी थी. उन्हे ये तक ध्यान नही था कि ये सब देखने वाली वो अकेली नही बल्कि मैं भी उनके साथ हूँ. उन्हे जैसे ही अपनी और मेरी उपस्थिति का अहसास हुआ. उन्हो ने बिना देर किए, मेरा हाथ पकड़ा और मुझे खींच कर वापस बाहर ले आई मगर वो अपने आपको रोने से ना रोक पाई.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 12:53 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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