MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 12:59 PM,
#42
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
दूसरे दिन मैने स्कूल से आने के बाद कीर्ति को कॉल किया.

मैं बोला "मैं घर से निकल रहा हूँ. तू बता तू कहाँ पर मिलेगी."

कीर्ति बोली "तू कहाँ पर मेहुल से बात करने की सोच रहा है."

मैं बोला "मैं तो घर पर ही बात करने की सोच रहा था. क्यों तूने क्या सोचा है."

कीर्ति बोली "घर मे बात करना ठीक नही होगा. तू ऐसा कर उसे घर ले आ. कहना मैने किसी काम से बुलाया है. क्योंकि ऐसी बात को किसी एकांत जगह पर करना ही ठीक रहेगा. पता नही इस बात का उस पर क्या असर पड़ता है."

मैं बोला "बात तो तेरी ठीक है पर घर मे तो मौसी होगी. क्या उनके सामने ये बात करना ठीक रहेगा."

कीर्ति बोली "तू मम्मी की चिंता बिल्कुल मत कर. मम्मी की आदत तो दिन मे खाना खा कर सोने की है. अब वो सोने ही जा रही है. तुम लोग जब तक आओगे तब तक वो सो चुकी होगी और फिर शाम के पहले नही उठेगी."

मैं बोला "ठीक है. जैसी तेरी मर्ज़ी. मैं मेहुल को लेकर तेरे पास आता हूँ."

ये बोल कर मैने फोन रख दिया और मेहुल को कॉल लगा कर उसे बता दिया कि मैं आ रहा हूँ. हमे कीर्ति ने किसी काम से बुलाया है. तू मुझे तैयार मिलना. फिर मैं मेहुल के घर के लिए निकल गया. उसके घर पहुचने पर वो मुझे बाहर ही मिल गया. मैने बाइक उस से चलाने को कहा और फिर हम दोनो मौसी के घर के लिए निकल पड़े. कुछ देर बाद हम मौसी के पहुच गये. कीर्ति छत पर खड़ी हमारे आने की रह देख रही थी. हमे आया देख वो तुरंत नीचे आ गयी. उसने दरवाजा खोला और हमें अपने कमरे मे ले गयी. मेहुल को कुछ भी समझ मे नही आ रहा था.

मेहुल बोला "क्या बात है. तुमने हम दोनो को क्यों बुलाया है."

कीर्ति बोली "क्या मैं बिना काम के तुम लोगों को नही बुला सकती."

मेहुल बोला "बुला सकती हो मगर ये तो कह रहा था कि तुझे हम से कुछ काम है."

कीर्ति बोली "अरे बुलाया है तो बताउन्गी भी कि किसलिए बुलाया है पर पहले आराम से बैठो तो सही. मैं जब तक तुम लोगों के लिए चाय बनाकर लाती हूँ."

ये कह कर कीर्ति चाय बनाने चली गयी और हम दोनो वही बैठ गये. कुछ देर बाद कीर्ति चाय लाई तो हम दोनो चाय पीने लगे. चाय पीने के बाद कीर्ति ने मेरी तरफ देखा मगर मैं चुप ही रहा. तब उसने मेहुल से कहा.

कीर्ति बोली "देखो मैने बहुत ही ज़रूरी बात करने के लिए तुम्हे यहाँ बुलाया है पर समझ मे नही आ रहा है कि किस तरह तुम्हे वो बात बताऊँ."

मेहुल बोला "ज़्यादा पहेलियाँ मत बुझा. जो भी बात है खुल कर बता."

कीर्ति बोली "बात इतनी छोटी नही है की मैं एक पल मे बोल दूं और तुम सुन लो. बात इतनी बड़ी है कि शायद तुम बात को सुनकर अपने आपको संभाल भी ना सको."

कीर्ति के मूह से ये बात सुनकर मेहुल के चेहरे का रंग बदल गया और वो किसी अंजाने से डर से घिर गया. उसकी आवाज़ मे अब नर्मी आ गयी.

मेहुल बोला "देख तू क्या कहना चाहती है, मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा है. तू क्या बोलना चाहती है. साफ क्यों नही बोल देती.?"

कीर्ति बोली "ये बात तुझे बताना इतना ही आसान होता तो तुझे ये बात या तो अंकल बता चुके होते या फिर..."

इतना कह कर कीर्ति चुप हो गयी. कीर्ति सीधे सीधे मेहुल को बात ना बताकर धीरे धीरे बात को बता रही थी ताकि मेहुल को बात को सुनकर एक दम से धक्का ना लगे. कीर्ति के बात करने का ये ढंग मुझे बहुत पसंद आया. शायद मैं या अंकल भी इस तरह से मेहुल को बात ना बता पाते. कीर्ति की बात से मेहुल कुछ असंकित सा होते हुए बोला.

मेहुल बोला "या फिर क्या.?"

कीर्ति बोली "या फिर पुन्नू ने बता दी होती."

ये सुनते ही मेहुल मेरी तरफ देखने लगा लेकिन वो मुझसे कुछ सवाल कर पाता इस से पहले ही कीर्ति बोल पड़ी.

कीर्ति बोली "ये लोग तुम्हे ये बात इसलिए नही बता पाए क्योंकि इनमे ये बात तुम से कहने की हिम्मत नही थी इसलिए आज मैं तुमसे ये बात कह रही हू."

मेहुल बोला "तो फिर जल्दी से बोलो."

कीर्ति बोली "ऐसे नही. पहले तुम वादा करो कि बात को तुम पूरा सुनोगे और बात कितनी भी बड़ी क्यों ना हो पर तुम उसके आगे अपना आपा नही खोने दोगे और उसका हिम्मत से सामना करोगे."

मेहुल बोला "ठीक है. मैं वादा करता हूँ कि बात कितनी भी बड़ी क्यों ना हो मैं उसका डटकर सामना करूगा. अब बता क्या बात है."

कीर्ति बोली "तुम्हे मालूम है अंकल मुंबई क्यों गये थे."

मेहुल बोला "हाँ वो रॉय अंकल के किसी रिश्तेदार को लेकर मुंबई इलाज के लिए लेकर गये थे."

कीर्ति बोली "कौन कौन गया था मुंबई."

मेहुल बोला "पापा, रॉय अंकल और उनका वो रिश्तेदार जिसका इलाज करना था."

कीर्ति बोली "तुमने उनके उस रिश्तेदार को देखा था."

मेहुल बोला "नही मैं तो पापा और रॉय अंकल को स्टेशन छोड़ कर आया था पर वो वहाँ नही दिखे थे. मैने उन लोगों से पूछा भी था कि आप जिन्हे इलाज के लिए ले कर नही जा रहे तो उन्हो ने कहा था कि वो पहले ही जा चुके है."

कीर्ति बोली "अच्छा जब वो लौटे तो तब तुमने उनको देखा था."

मेहुल बोला "नही तब तो मुझे इस बात को पूछने का ध्यान ही नही था. मैने पापा को लिया और घर आ गया. रॉय अंकल वही से अपने घर निकल गये थे पर उनके साथ मैने किसी को नही देखा था. वो अकेले ही घर जा रहे थे."

कीर्ति बोली "तो तुम्हे अभी भी कुछ समझ मे नही आ रहा है."

मेहुल बोला "क्या.?"

कीर्ति बोली "यही कि उनके साथ कोई तीसरा था ही नही बल्कि वो खुद का इलाज कराने के लिए मुंबई गये थे."

मेहुल बोला "तुम कहना क्या चाहती हो.? क्या तुम ये कह रही हो कि पापा अपना इलाज करने के लिए मुंबई गये थे."

कीर्ति बोली "हाँ मैं यही कह रही हूँ."

मेहुल बोला "मगर पापा को हुआ क्या है.? वो किस चीज़ का इलाज करने गये थे.?"

कीर्ति बोली "अंकल को डॉक्टर ने कॅन्सर बताया है और वो उसी के इलाज के लिए मुंबई गये थे. वहाँ डॉक्टर ने उन्हे ऑपरेशन करने की सलाह दी है."

कीर्ति की बात सुनकर मेहुल कुछ नही बोला. वो जैसे कहीं खो गया था लेकिन उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे. मैने उसकी आँखों मे आँसू देखे तो मैं उसके कंधे पर हाथ रख कर बोला.

मैं बोला "तू चिंता मत कर यार. हम अंकल को कुछ नही होने देंगे. हम दोनो खुद उन्हे मुंबई लेकर चलेगे और वहाँ सबसे अच्छे हॉस्पिटल मे उनका इलाज कराएगे."

मेहुल कुछ नही बोला वो मुझसे लिपट कर रोने लगा और उसकी आँखों मे आँसू देख कर मेरी आँखों मे भी आँसू आ गये. लेकिन ये देख कीर्ति गुस्सा करने लगी.

कीर्ति बोली "तुम लोग रोकर ये जता रहे हो कि तुम अंकल को कितना प्यार करते हो, मगर ये अपने प्यार को दिखाने का कौन सा तरीका है. यदि तुम लोग उन से इतना ही प्यार करते हो तो रोना छोड़ो और उनके इलाज की चिंता करो. डॉक्टर ने उन्हे ऑपरेशन करने की सलाह दी है तो जाहिर है कि उनकी बीमारी का इलाज है और उनका कॅन्सर उस हद तक नही पहुचा है कि उसका इलाज ना हो सके."

कीर्ति की बातों से मेहुल का मनोबल थोड़ा बड़ा और मैने भी अपने आँसू पोंछ कर कीर्ति की हाँ मे हाँ मिलाई.

मैं बोला "कीर्ति ठीक बोल रही है. हमें हिम्मत से काम लेना होगा. हमें चल कर अंकल से बात करना चाहिए."

मेहुल बोला "हाँ हम पापा का अच्छे से अच्छा इलाज कराएगे. चल घर चले."

कीर्ति बोली "ये हुई ना बात. तुम लोगों की हिम्मत देख कर अंकल को भी हिम्मत मिलेगी. अब देर मत करो और जाकर अंकल से बात करो."

फिर हम लोग मेहुल के घर के लिए निकल पड़े. हम लोग घर पहुचे तो मैने मेहुल से कहा तू अंकल से बात कर मैं आंटी को बातों मे लगाए रहुगा. मेहुल ने अंकल के पास जाकर बात की और मैं आंटी से बात करता रहा. फिर बात होने के बाद मेहुल ने मुझे बताया.

मेहुल बोला "डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए 20 दिन का समय दिया है. हमें जल्द से जल्द ऑपरेशन कराना होगा."

मैं बोला "तू चिंता मत कर हम एक दो दिन के अंदर ही मुंबई के लिए निकलेगे पर आंटी को क्या कहेगे."

मेहुल बोला "पापा तो मम्मी को बताना नही चाहते मगर मैने कहा है कि हमें बता देना चाहिए क्योंकि हम तो मुंबई चले जाएँगे और पता नही हमें वहाँ कितने दिन लग जाए. वो परेशान हो जाएगी. लेकिन समस्या ये है कि उन्हे ये बात कैसे बताई जाए और ये बात उन्हे कौन बताए."

मैं बोला "हम कीर्ति से ही बात करते है. उसने तुझे कितनी अच्छे से समझाई है. वो आंटी को भी समझा सकती है."

मेहुल बोला "ठीक है तू अभी उस से बात करके देख वो क्या कहती है."

मैने कीर्ति को कॉल लगाया और उसे अंकल से हुई सारी बात बता कर आंटी को बात बताने की बात कही.

कीर्ति बोली "देखो मेहुल को समझाने की बात थी तो, वो मैं इसीलिए ठीक से कर सकी क्योंकि मेहुल मेरी ही उमर का है, और हमारी समझ एक बराबर की है. लेकिन आंटी को समझा पाना शायद मैं सही ढंग से ना कर सकूँ. इसके लिए हमें किसी बड़े की मदद लेना चाहिए."

मैं बोला "ऐसा कौन है जो आंटी को समझा सके."

कीर्ति बोली "मुझे लगता है कि ये काम मौसी अच्छी तरह से कर सकती है. तुम लोग जाकर मौसी से बात करो. वो ज़रूर इस बात को समझा पाने मे सफल होगी. वैसे भी उन्हे ये सब बातें मालूम है."

कीर्ति से बात करने के बाद मेहुल को सारी बात बताई. फिर हम दोनो ने अंकल से इस बारे मे बात की तो अंकल को भी कीर्ति की बात सही लगी. हम दोनो अंकल से बात करने के बाद हम दोनो मेरे घर आ गये. घर आकर मैने छोटी माँ से सारी बात बताई तो वो बात करने को तैयार हो गयी.

छोटी माँ बोली "मैं ये बात तो रिचा दीदी से कर लुगी पर यदि इस बात को करते समय अनु दीदी (मौसी) साथ हो तो अच्छी बात है. क्योंकि वो दोनो पक्की सहेली है. ऐसे मे उनके साथ होने से रिचा दीदी को कुछ हिम्मत मिलेगी."

मैं बोला "मगर छोटी माँ हम इस बात को आज ही करना चाहते है, क्योंकि हमारे पास बर्बाद करने का टाइम नही है. हम जल्द से जल्द मुंबई के लिए निकलना चाहते है."

छोटी माँ बोली "ये कोई बड़ी बात नही है. मैं अभी जाकर अनु दीदी से बात कर लेती हूँ. तुम दोनो रिचा दीदी के पास पहुचो. मैं अनु दीदी को वही लेकर आती हूँ."

मैं बोला "आप अमि निमी को भी अपने साथ ले जाइए. इन्हे कीर्ति के पास छोड़ दीजिएगा. पता नही हमें वापस आने मे कितना टाइम लग जाए."

ये सुनकर छोटी माँ ने अमि निमी को तैयार होने को कहा और खुद भी तैयार होने चली गयी. तैयार होने के बाद उन्हो ने ड्राइवर से गाड़ी निकालने को कहा और मौसी के घर के लिए निकल गयी. उनके जाते ही हम लोग वापस मेहुल के घर के लिए निकल पड़े. मेहुल के घर पहुचने के बाद हम लोग छोटी माँ के आने का इंतजार करने लगे. लगभग 2 घंटे बाद छोटी माँ और मौसी आ गये. उन दोनो को एक साथ आया देख कर आंटी को कुछ ताज्जुब हुआ. छोटी माँ थोड़ी देर इधर उधर की बात करती रही. जब वो आंटी को अंकल की तबीयत की बात बताने को हुई तो मैं उठ कर बाहर आ गया. क्योंकि मेरे अंदर आंटी के आँसुओं का सामना करने की ताक़त नही थी.

अभी आंटी के उपर बीतने वाले पलों की बात सोचते सोचते ही मेरी आँखें भर आई. ऐसा होना भी जायज़ था क्योंकि आंटी से मुझे इतना प्यार मिला था कि उनके रोने की कल्पना ने ही मेरे अंदर एक दर्द का तूफान उठा दिया. मैं अपने आपको रोने से रोकने की कोशिश करने लगा और तभी मेरे कंधो पर अंकल ने हाथ रखा और उन्हे देखते ही मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया. मैं अपने आपको ना रोक पाया और अंकल से लिपट कर फुट फुट कर रोने लगा. अंकल मुझे समझाने की कोशिश करने लगा.

मैं बोला "अंकल मैं कमजोर नही हूँ पर आंटी के आँसू मैं नही देख सकता. वो मेरी माँ है. मैं उनके आँसू कैसे देख सकता हू. उन्हे भगवान ने ये दर्द क्यों दिया. वो कितना रो रही होंगी. मैं तो उन्हे चुप भी नही करा सकता. मैं अपनी बेबसी पर रो रहा हूँ कि मैं अपनी माँ को रोने से नही रोक सकता. मैं कैसा बेटा हूँ जो अपनी माँ के आँसू ही नही पोछ सकता."
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 12:59 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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