MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:00 PM,
#45
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
कीर्ति जब मुझे उठाते उठाते परेशान हो गयी और मैं नही उठा तब उसने एक चाल चली.

कीर्ति बोली "जल्दी उठो. कोई इधर ही आ रहा है."

ये सुनते ही मैं उठ कर बैठ गया और कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी. मैने उठ कर इधर उधर देखा मगर वहाँ कोई भी नही था.

मैं फिर से लेटने को हुआ तभी कीर्ति मेरे पास से उठकर भागने को हुई. मैने उसका हाथ पकड़ कर उसे ज़बरदस्ती उसे बैठा दिया और उसकी गोद मे सर रख कर फिर से लेट गया.

कीर्ति ने पहले मेरा सर अपनी गोद से हटाने की कोसिस की लेकिन मैने उसे अपना सर उसकी गोद से अलग नही करने दिया. जब वो मेरा सर अपनी गोद से नही हटा पाई तो मेरे बालों मे अपनी उंगलिया फेरने लगी.

उसके ऐसा करने से मुझे बड़ा ही अच्छा लग रहा था. मुझे यू लग रहा था जैसे कि मैं अलग ही किसी दुनिया मे आ गया हूँ. मुझे इस तरह अपनी गोद मे आराम करते देख कीर्ति ने सवाल किया.

कीर्ति बोली "क्या तू यहाँ मेरी गोद मे सर रख कर सोने के लिए आया है."

मैं बोला "आया तो तुझसे बात करने था पर अब लगता है कि तेरी गोद मे सर रख कर यूँ ही लेटा रहूं."

कीर्ति बोली "उठ कर बैठ ना. क्यों मुझे परेशान कर रहा है."

मैं बोला "तूने तो खुद कहा था कि मैं दिन मे सो सकता हू. अब तू अपनी बात से मत मुकर."

कीर्ति बोली "मैं अपनी बात से नही मुकर रही हूँ. पर मैने तो घर मे सोने को कहा था. तू तो यही सोने लगा है."

मैं बोला "मेरा बस चले तो मैं सारी जिंदगी यू ही लेटा रहूं."

कीर्ति बोली "बड़ा आया सारी जिंदगी मेरी गोद मे सर रख कर सोने वाला. मुझे क्या तकिया समझ रखा है."

मैं बोला "ऐसा मज़ा तकिये मे कहाँ जो तेरी गोद मे है."

कीर्ति बोली "जल्दी से उठ. देख कोई इधर ही आ रहा है."

मैं बोला "चल झुटि. मुझे उठाने के लिए फिर बहाना बना रही है."

कीर्ति बोली "नही इस बार मैं झूठ नही बोल रही. सच मे कोई आ रहा है. जल्दी उठ."

मुझे कीर्ति की बात सही लगी और मैं उठ कर बैठ गया. लेकिन अभी भी कोई नही था. मेरे उठ कर बैठते ही कीर्ति उठ कर भागने लगी.

मैने अपने दोनो हाथ उसकी कमर मे डाल कर उसे पकड़ कर अपनी तरफ खिचा और उसे अपनी गोद मे बैठा लिया.
वो मेरी पकड़ से छूटने की कोसिस करने लगी. लेकिन मैं उसे अपनी बाँहों मे जकड़े रहा.

कीर्ति बोली "छोड़ मुझे. अभी कोई आ जाएगा."

मैं बोला "कोई आता है तो आ जाए पर अब मैं तुझे नही छोड़ूँगा. यदि मैने तुझे छोड़ा तो तू फिर भागेगी."

कीर्ति बोली "नही भागुंगी. छोड़ ना."

मैने कहा "सच बोल रही है ना."

कीर्ति बोली "हाँ कसम से. अब मैं नही भागुंगी."

लेकिन कीर्ति को तो अभी भी शरारत ही सूझ रही थी. मेरे छोड़ते ही वो भागने की कोसिस करने लगी और मैने फिर उसे पकड़ कर अपनी गोद मे बैठा कर जकड लिया.

कीर्ति बार बार मुझे छोड़ने को बोलती और जब मैं उसे छोड़ता तो वो खिलखिला कर भागने की कोसिस करती और मैं उसे फिर पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लेटा. ये सिलसिला बहुत देर तक चलता रहा.

हम दोनो अपनी एक अलग ही दुनिया मे मस्त थे. जहाँ हमें इक दूसरे के सिवा कोई भी नही सूझ रहा था. हम ये भी नही जानते थे कि जो हम कर रहे हैं वो क्या है. ना ही हम ये जानना चाहते थे.

कीर्ति ने मेरी गोद मे बैठे बैठे ही मुझसे पूछा.

कीर्ति बोली "तुझे भूक लगी है ना."

मैं बोला "हाँ लगी तो है पर अब घर जाकर ही खाउन्गा."

कीर्ति बोली "और उसका क्या करेगा, जो मैं तेरे लिए बना कर लाई हूँ."

मैं बोला "क्या बना कर लाई है."

कीर्ति बोली "तेरे मनपसंद आलू के परान्ठे."

मैं बोला "मुझे नही खाना."

कीर्ति बोली "क्यों.? क्या तुझे मेरे हाथ से बने पराठे पसंद नही है."

मैं बोला "यदि तू अपने हाथ से खिलाएगी तो जहर भी खा लूँगा लेकिन शर्त ये है कि तू अपने हाथ से खिलाए."

कीर्ति बोली "चल अच्छा. तुझे अपने हाथ से ही खिला देती हूँ. अब मुझे छोड़."

मैं बोला "तुझे खिलाना ही है तो ऐसे ही मेरी गोद मे बैठे बैठे खिला दे. नही तो मुझे नही खाना."

कीर्ति बोली "अरे लंच बॉक्स तो निकालने दे. तभी तो अपने हाथ से खिलाउन्गी ना."

ये सुनकर मैने कीर्ति को छोड़ दिया. उसने अपने हॅंडबॅग से लंच बॉक्स निकाला और मुझे खिलाने लगी. लेकिन मैने खाने से मना कर दिया. तब कीर्ति ने पूछा.

कीर्ति बोली "अब तो मैं अपने हाथ से खिला रही हूँ. फिर क्यों नही खा रहा."

मैं बोला "मैने तुझसे पहले ही कहा था कि तुझे खिलाना है तो मेरी गोद मे ही बैठ कर खिलाना होगा नही तो मुझे नही खाना है."

कीर्ति बोली "ज़िद मत कर और सीधे से खा ले."

मैं बोला "तुझे खिलाना है तो जैसे मैने कहा है. वैसे ही खिला नही तो मुझे नही खाना."

मेरी बात सुन कर कीर्ति मेरी गोद मे पहले की तरह बैठ गयी और मैने उसे अपनी बाहों मे जकड लिया और वो मुझे पराठे खिलाने लगी. वो खिलाते खिलाते बोली.

कीर्ति बोली "तू बहुत शरारती हो गया है."

मैं बोला "तुझसे तो कम ही हूँ."

कीर्ति बोली "मैने क्या शरारत की."

मैं बोला "जब तू मेरे लिए खाने के लिए लाई थी तो पहले क्यों नही बताया. मुझे इतनी देर तक भूका क्यों रखा."

कीर्ति बोली "तुझे तो खुश होना चाहिए. पहले यदि मैं बता देती तो तुझे अपने हाथ से खाना पड़ता लेकिन अब तो मैं खुद तुझे अपने हाथों से से खिला रही हूँ."

मैं बोला "हाँ ये बात तो है. अब पता नही फिर कब तेरे हाथों से यू खाने को मिले."

ये बोलते ही मैं ना जाने क्यों उदास सा हो गया. मुझे यू उदास देख कर कीर्ति ने मुझे समझाया.

कीर्ति बोली " देख आज मे जीना सीख. तू बस ये देख ना कि आज हम लोग साथ है और खुश है. कल होने वाली बात को सोच कर आज की खुशियाँ खराब करने से क्या फ़ायदा है."

मुझे कीर्ति की बात सही लगी और मेरा चेहरा फिर से खिल गया. मैं उसे अपने हाथों से खिलाने लगा. पराठे खाने के बाद हम दोनो पानी पीने झरने के पास गये. मैने पानी पिया मगर कीर्ति पानी नही पी रही थी.

मैं बोला "तुझे पानी नही पीना."

कीर्ति बोली "जैसे तूने अपने हाथों से खिलाया है वैसे ही अपने हाथों से पानी पिला."

कीर्ति की बात सुनकर मुझे हँसी आ गयी और फिर मैं हाथों मे पानी लेकर उसे पिलाने लगा. उसे पानी पिलाने के बाद जहा हम लोग बैठे थे वही आ गये. कीर्ति बैठ गयी और मैं उसकी गोद मे सर रख कर फिर से लेट गया.

कीर्ति बात करती जा रही थी और मेरे बालों मे उंगली फेरती जा रही थी. मैं चुप चाप आँख बंद कर लेटा हुआ उसकी बात सुन रहा था और उसकी बातों का जबाब दे रहा था. ये सिलसिला काफ़ी देर तक चलता रहा.

बाद मे कीर्ति ने मेरे मुंबई जाने की बात करना शुरू कर दिया. मैं सिर्फ़ उसकी बातों का छोटा सा जबाब दे रहा था. फिर अचानक ही उसने रिया का ज़िक्र छेड़ दिया.

कीर्ति बोली "रिया को तूने बता दिया कि तुम लोग मुंबई आ रहे हो."

मैं बोला "हाँ, वो तो मैने कल ही बता दिया था."

कीर्ति बोली "तूने कल कब बता दिया उसको."

मैं बोला "रात को तेरा फोन आने के पहले रिया का भी फोन आया था. तभी मैने उसे बताया था."

कीर्ति बोली "तो फिर ये बात तूने रात को मुझे क्यों नही बताई."

मैं बोला "तू जानती है, मुझे तुझसे रिया की बात करना अच्छा नही लगता इसलिए मैने तुझे ये बात नही बताई."

कीर्ति बोली "जब तू उस से बात करता है तो फिर मुझसे छुपाने से क्या फ़ायदा."

ना जाने क्यों पर मुझे कीर्ति से रिया के बारे मे बात करना ज़रा भी अच्छा नही लगता था. मगर वो थी कि अब इस बात को बढ़ाती ही जा रही थी. मुझे गुस्सा आ गया.

मैं बोला "अब क्या मुझे किसी से बात करने के लिए भी तेरी इजाज़त लेनी होगी. मैं किस से बात करता हूँ और किस से नही करता. तू इस मामले मे अपनी टाँग मत अड़ाया कर. मुझे जो बात ठीक लगेगी वो मैं तुझे बताउन्गा और जो ठीक नही लगेगी वो मैं तुझे नही बताउन्गा."

इतना कह कर मैं चुप हो गया और आँख बंद करके कीर्ति की गोद मे ही लेटा रहा. मगर ये बात सुनते ही कीर्ति का हाथ मेरे बालों मे चलना बंद हो गया. मैं समझ गया कि उसे मेरी बात अच्छी नही लगी है. कीर्ति अब खामोश ही रही.

मैं भी चुप चाप ही लेटा रहा और उसके कुछ बोलने का इंतजार करने लगा. लेकिन तभी मेरे चेहरे पर टाप टाप करके कीर्ति के आँसू गिरने लगे.

मैने अपनी आँख खोल कर देखा तो वो खामोश बैठी थी और उसकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे. ये देख कर मैं तुरंत उठा.

मैने पूछा "ये क्या हुआ.? तू रो क्यों रही है."

मगर कीर्ति चुप थी रोए जा रही थी. मैने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया.

मैने कहा "तुझे मेरी बात बुरी लगी तो सॉरी. आगे से ऐसा नही कहूँगा. तू रोना बंद कर."

लेकिन वो रोए जा रही थी. मैने उसके आँसू पोछने की कोसिस की तो वो मेरे पास से उठ कर दूसरी तरफ जाकर बैठ गयी. मैं उठ कर उसके पास गया. मैने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया और उसके आँसू पोंछने लगा. मगर मेरे ऐसा करते ही वो और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी.

मैने फिर उसे चुप कराने की कोसिस की तो वो फिर उठकर दूर चली गयी. मेरे तो कुछ समझ मे नही आ रहा था कि उसका रोना कैसे बंद करवाऊ. मैं फिर उसके पास जाकर बैठ गया.

मुझे अपने पास आया देख कर वो फिर उठ कर जाने के लिए खड़ी हो गयी. मैने उसे खींच कर अपनी गोद मे बैठा लिया. लेकिन वो मेरी पकड़ से छूटने की कोसिस करती रही पर मैने उसे नही छोड़ा तो वो दूसरी तरफ मूह करके रोने लगी.

मैं उसका रोना बंद करने के लिए बोलता रहा मगर वो थी कि अपना चेहरा घुमाए रोए जा रही थी. और बहुत देर तक यूँ ही रोते रहने की वजह से उसका रोना सिसकियाँ मे बदल चुका था. मैं उसे जितना चुप करने की कोसिस कर रहा था. उसकी सिसकियाँ उतनी तेज होती जा रही थी.

जब मेरी किसी बात का असर उस पर नही पड़ा और मैं उसे चुप करते करते थक गया. तो उसे चुप कराने की कोसिस मे मुझसे वो हो गया. जो शायद हम दोनो के बीच मे नही होना चाहिए था.
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