MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:03 PM,
#52
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
बाहर आकर कीर्ति ने मुझसे अपनी स्कूटी चलाने को कहा. मैने स्कूटी स्टार्ट की और उस ने बैठते हुए कहा रेलवे स्टेशन की तरफ ले लो. मैने बिना कुछ कहे स्कूटी आगे बढ़ा दी. मुझे मालूम नही था की ये अभी से स्टेशन क्यों जा रही है फिर भी मैं उस से बिन कुछ पूछे आगे बढ़े जा रहा था. स्टेशन से थोड़े पहले ही पड़ने वाले पार्क के पास ही कीर्ति ने स्कूटी रुकवा दी और गाड़ी पार्क करने को बोलने लगी. मेरा तो दिमाग़ ही चकरा गया. अब मैं उस से बिना पूछे ना रह पाया.

मैं बोला "क्या तू सबको वहाँ पर ये बोल कर आ रही है कि, हम यहा पार्क मैं बैठे मिलेगे."

कीर्ति बोली "तू हमेशा बुद्धू का बुद्धू ही रहेगा. पहले स्कूटी पार्क कर अंदर चल फिर तुझे सब बताती हूँ."

ये बोलकर वो पार्क की टिकेट्स लेने लगी और मैं गाड़ी पार्क करने लगा. मैने जब तक गाड़ी पार्क की वो भी टिकेट्स ले आई थी. हम लोग पार्क के अंदर आ गये. अंदर इस समय सभी जोड़े ही नज़र आ रहे थे और सब अपने अपने मे मस्त थे.

कीर्ति आगे आगे चली जा रही थी और मैं उसके पीछे पीछे चल रहा था. वो पार्क का चक्कर लगाए जा रही थी. जब मुझ से नही रहा गया तो मैं बोल पड़ा.

मैं बोला "क्या कर रही है. पूरे पार्क का चक्कर क्यों लगा रही है. क्या यहाँ पर ईव्निंग वॉक करवाने लाई है."

कीर्ति बोली "चुपचाप चलता रह."

मैं फिर से चुप चाप उसके पीछे पीछे चलने लगा. कुछ दूर चलने के बाद वो एक पेड़ के पास जाकर रुक गयी. उसने वहीं बैठने को बोला और फिर उस पेड़ से टिक कर पैर फैला कर बैठ गयी. मैं भी उसके पास ही पेड़ से टिक कर बैठा लेकिन मेरा बैठना और लेटना एक बराबर ही था. मैं पेड़ से टिका अढ़लेटी अवस्था मे था और मेरे दोनो घुटने मुड़े हुए थे. मुझे यू बैठा देख कर कीर्ति गुस्से से होने लगी.

कीर्ति बोली "ऐसे बैठा जाता है."

मैने अपने आपको देखा और बोला "क्यों क्या हुआ. अच्छे से तो बैठा हूँ. ऐसे बैठने से आराम मिल रहा है."

कीर्ति बोली "तुझे आराम करना है तो ऐसे मत कर."

मैं बोला "तो कैसे करूँ."

कीर्ति बोली "वो देख. वैसे आराम किया जाता है."

मैने उस तरफ देखा जिस तरफ कीर्ति ने उंगली दिखाई थी. वहाँ एक लड़की की गोद मे लड़का सर रख कर लेटा हुआ था. ये देख मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "वो तो साला पागल है. इतनी सुंदर लड़की सामने है और वो आराम से आँख बाद करके लेटा हुआ है. मैं होता तो......"

इतना कह कर मैं रुक गया.

कीर्ति बोली "रुक क्यों गया. बता तू होता तो, तू क्या करता."

मैं बोला "मैं होता तो......."

ये कहकर मैने अपना बायां हाथ कीर्ति की कमर मे डाल कर उसे अपने पास खिसकाया और फिर अपने बाँये हाथ को उसकी बाहों के नीचे लगा कर अपनी तरफ खिचा तो कीर्ति की पीठ मेरे सीने से लग गयी. ऐसा करने से कीर्ति के पैर खुद ही दूसरी तरफ मूड गये. मैने उसके दोनो पैरों को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया तो कीर्ति घूम कर मेरे सामने आ गयी. उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि मैं ये क्या कर रहा हूँ पर जब मैने उसके कंधों को पकड़ कर उसकी पीठ को अपने मुड़े हुए पैरों पर टिका दिया और दोनो पैरों को खीच कर अपने पास किया तो, हम दोनो के चेहरे एक दूसरे के सामने थे.

अब कीर्ति की पीठ मेरे पैरो पर टिकी हुई थी और हम दोनो एक दूसरे के आमने सामने थे. मैं उसे बड़े गौर से देखने लगा. कीर्ति मेरी हरकत से हँसने लगी और मैं भी उसे देख कर मुस्कुरा रहा था. मैं प्यार से उसके बालों मे हाथ फेरने लगा. कीर्ति ने हँसते हुए कहा.

कीर्ति बोली "ये क्या तरीका था. मुझे तो पूरा गोल गोल घुमा कर रख दिया. बोल नही सकता था कि ऐसे बैठ जा."

मैं बोला "तू ही तो बोल रही थी कि रुक क्यों गया बता, तो मैने कर के बता दिया."

कीर्ति हँसने लगी. मैने उसके गालों और होंठो पर हाथ फेरते हुए कहा.

मैं बोला "तू कितनी कोमल है. तेरे ये होंठ तो और भी ज़्यादा कोमल और रसीले है."

कीर्ति बोली "बहुत बातें बनाना सीख गया है. जा मैं तुझसे बात नही करती."

ये कहते हुए उसने अपना चेहरा नीचे झुका लिया. मैने अपने हाथ से उसके चेहरे को उपर उठाया और पूछा.

मैं बोला "अब क्या हुआ. अब क्यों गुस्सा हो रही है. मेरा ऐसा करना तुझे अच्छा नही लगा क्या."

कीर्ति बोली "तू कुछ भी कर मुझे बुरा नही लगता लेकिन तू जो ज़रा ज़रा सी बात पर गुस्सा हो जाता है. ये मुझे ज़रा भी पसंद नही है."

मैं बोला "तेरे लिए ये ज़रा सी बात होगी पर मेरे बारे मे भी तो सोच. मैं ना जाने कितने दिन के लिए जा रहा हूँ और ऐसे मे तू आख़िरी समय पर बिना कुछ बताए, बिना मुझसे मिली चली गयी तो मुझे बुरा नही लगेगा क्या."

कीर्ति बोली "नही मैं चाहे कुछ भी करूँ पर तुझे बुरा नही लगना चाहिए."

मैं बोला "ये कैसे हो सकता है. मैं तेरे बिना एक पल भी नही रह सकता और तू मुझे अनदेखा करे ये तो मैं सह ही नही सकता."

कीर्ति बोली "मैं तुझे कहाँ अनदेखा कर रही थी. मैं तो जो भी कर रही थी तुझसे मिलने के लिए ही कर रही थी."

मैं बोला "मुझे बता कर भी तो ये सब कर सकती थी. क्या मैं तुझे कुछ भी करने से मना करता. सोच अगर मैं तेरे साथ ऐसा करता तो तुझे कैसा लगता."

कीर्ति बोली "देख मुझसे अपनी बराबरी मत कर. मैं एक लड़की हूँ मेरा एमोशनल होना चल जाएगा पर तू एक लड़का है तेरा इतना एमोशनल होना नही चलेगा."

मैं बोला "लड़का हूँ तो क्या हुआ. क्या मेरे पास दिल नही है. क्या मुझे दर्द नही होता. बड़ी आई समझने वाली. जब किसी दिन तेरी इन हरकतों से मैं मर जाउ तब बैठी मेरी लाश को समझाती रहना."

मैं अपनी धुन मे बक ही रहा था कि तभी चटाआआअक की आवाज़ से मेरी बोलती बंद हो गयी और मेरे हाथ अपने गाल पर चले गये. ये कीर्ति के मेरे गाल पर पड़े तमाचे की आवाज़ थी. जो उसने अभी अभी मेरे गाल पर जड़ा था. मैं अपने गाल पर हाथ रखे उसे एक टक देखे ही जा रहा था. मेरे गाल पर चाँटा मारने के साथ ही उसकी आँख भी भर आई थी. उसने अपने भरे हुए गले से कहा.

कीर्ति बोली "मैं तुझसे बोल चुकी हूँ. मेरे सामने कभी अपने मरने की बात मत किया कर फिर भी तू बार बार उसी बात को करता है. तुझे बहुत मज़ा आता है मुझे रुलाने मे."

मगर चोट तो मेरे दिल पर भी लगी थी. मैं ना जाने कितनी देर उसके लिए तडपा था. मैं कैसे भूल जाता उस सब को, भले ही उसने वो सब मेरी खुशी के लिए ही किया हो. मैने उसका हाथ अपने हाथ मे पकड़ा और खुद उसके हाथों से अपने गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा.

मैं बोला "तुझे मारना है तू मुझे और मार, लेकिन तू मारते मारते थक जाएगी पर मैं कहते कहते नही थकुन्गा कि, अब यदि तूने कभी मेरे साथ ऐसा किया. चाहे वो मेरी खुशी के लिए ही क्यों ना हो. मैं तुझे बिना कुछ कहने का मौका दिए खुद को ख़तम कर दूँगा. तू नही जानती इस 1 घंटे मे मैने तुझे कितना नही कोसा. मन ही मन मैं कितना जला हूँ, तुझे इस बात का ज़रा भी अहसास नही है."

कीर्ति की आँखों मे अभी भी आँसू थे पर उनमे अब खुशी की चमक थी. उसने अपना हाथ छुड़ाया और मुझे अपने गले से लगाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "मैं नही जानती थी कि, तू मुझे इतना प्यार करता है. मैं कसम खाकर कहती हूँ. आज के बाद कभी ऐसा नही करूगी. जो भी करूगी, तुझे बता कर ही करूगी पर तू भी मेरी कसम खाकर बोल कि आज के बाद तू कभी मरने की बात नही करेगा."

मैं बोला "नही करूगा. कभी नही करूगा लेकिन तू अच्छे से जानती है मैं कितना एमोशनल हूँ. मेरे लिए छोटी से छोटी बात बहुत बड़ी हो जाती है. खास कर वो बात जो मेरे दिल से जुड़ी हो. जब मैने तुझसे कुछ नही कहा था, तब मैं तेरे बिना नही रह पाया तो फिर आज जब सब कुछ तुझे बता दिया है तो, फिर तेरे बिना कैसे रह सकता हूँ. क्या तुझे अब भी लगता है कि मैं ग़लत हूँ."

कीर्ति ने बड़ी मासूमियत से अपने दोनो कान पकड़े और कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी बाबा. ये देख मैने अपने कान पकड़ लिए अब तो माफ़ कर दे."

उसकी ये हरकत देख कर मैं अपनी हँसी नही रोक सका. मैने उसके हाथ उसके कानो से अलग कर कहा.

मैं बोला "चल अब अपनी नौटंकी बंद कर और ये बता कि, ये सब क्या है और तूने सबको क्या घुट्टी पिला दी जो किसी ने तुझसे कुछ नही पूछा कि तू कहाँ जा रही है और ये शिल्पा वाला क्या चक्कर है."

कीर्ति बोली "अरे बस कर एक ही सांस मे सब पूछे जा रहा है. एक एक कर सब बताती हूँ."

मैं बोला "तो शुरू कर."

कीर्ति बोली "कल जब मैं आई तो तेरे पास आई थी कि तुझसे मिल कर वापस चली जाउन्गी. मगर जब तूने दरवाजा नही खोला तो मैं नीचे ही बैठी रही पर तू नीचे नही आया तो मौसी ने मुझे बताया कि तू आज नीचे नही आएगा और तूने किसी को भी कमरे मे आने से मना किया है. तब मैने घर मे बोल दिया कि आज मैं मौसी के घर ही रुक रही हूँ. रात को मौसा जी ने मुझे तुम लोगों के रिज़र्वेशन टिकेट्स दिए थे. जो मेरे पास है तेरे सिवा सबको पता था."

"सुबह जब तू मेहुल को लेकर बाहर आया था. तब मैं भी तेरे पीछे आई थी और तेरी बात सुनी थी. मुझे तेरा शिल्पा के लिए ये सब सोचना अच्छा नही लगा क्योंकि मुझे नितिका ने बताया था कि, उस दिन जब तू आंटी के हाथ से खाना खा रहा था तो शिल्पा ने क्या कहा था. मैं समझ गयी थी कि उसके मन मे तेरे लिए जलन है. मेरे मन मे उसको तेरे सामने झुकाने का ख़याल आया, पर तू इस सब के लिए कभी तैयार नही होता इसलिए मैने तुझे नही बताया."

"जब तू नीचे समान को पॅक करने की तैयारी कर रहा था तो तूने अमि निमी को बॅग लेने कमरे मे भेजा तब मैं उपर अपने कमरे से आ रही थी तो देखा कि उसने तेरा पूरा डियो ख़तम कर दिया, और फिर जब तू उपर जाकर अपना समान पॅक करने लगा. तब मैने नितिका को फोन लगा कर कहा देख शिल्पा पुन्नू के बारे मे कितना ग़लत सोचती है. आज पुन्नू ने मेहुल को उस से मिलने के लिए भेजा है और अब मुझे भेज रहा है कि, मैं शिल्पा को लेकर मेहुल के घर आ जाउ. तब नितिका बोली कि हमे शिल्पा को सबक सिखाना चाहिए, तो मैने कहा पुन्नू गुस्सा करेगा. तब नितिका बोली तू ऐसा कर उसे पहले मेरे घर लेकर आ बाकी मैं संभाल लुगी."

"इसके बाद मैने मौसी से नितिका के यहाँ का बोल कर शिल्पा के घर चली गयी. मैने शिल्पा से कहा कि मुझे तूने लेने के लिए भेजा है क्योंकि तू चाहता है कि ऐसे समय पर तू मेहुल के मम्मी पापा के पास रहे और इसके बाद मैं उसे नितिका के घर लेकर गयी और फिर नितिका ने उसे बहुत खरी खोटी सुनाई. जिसके बाद उसे उसकी ग़लती का अहसास हुआ और वो तुझसे माफी माँगने की बात करने लगी. तब उसे नितिका ने ही कहा कि तू अभी मेहुल के घर आएगा. हम लोग तेरे माफी माँगने का जुगाड़ कर देंगे बाकी तेरे उपर है."

"फिर हम लोग मेहुल के घर पहुचे और तेरे आने के बाद हम लोगों ने शिल्पा से तुझसे माफी मगवाई फिर मैने आंटी से कहा कि टिकेट्स तो मैं घर मे ही भूल आई हूँ. मैं टिकेट्स लेने घर जा रही हूँ और उन्हे लेकर सीधे स्टेशन ही पहुच जाउन्गी. बस इतनी सी कहानी है."

मैं बोला "तो फिर तूने मेहुल को क्या लाकर दिया था."

कीर्ति हँसती हुई बोली "क्यों तुझे जलन हो रही है क्या."

मैं बोला "मुझे क्यों जलन होगी. मैं तो यू ही पूछ रहा हूँ."

कीर्ति बोली "चल अब तुझे परेशान नही करूगी. वो तेरा डियो ख़तम हो गया था. उसे खरीदने गयी थी तो वही से पाउडर, क्रीम, फेस वॉश, रूमाल और मोबाइल रीचार्ज कूपन ले आई. नही तो तू वहाँ ऐसे ही घूमता रहता."

मैं बोला "इस सब की क्या ज़रूरत थी. मैं वहाँ कौन सा घूमने जा रहा हूँ. अब यदि ऐसे बन ठन कर रहूँगा तो हो सकता है क़ि मुझे कोई लड़की पसंद कर ले. फिर तो तेरी हो गयी छुट्टी."

कीर्ति बोली "मैने कहा कि तुझे कोई लड़की पसंद ना करे. मैं भी तो यही चाहती हूँ कि तू वहाँ बन ठन के रहे."

मैं बोला "और मान ले मुझे कोई लड़की पसंद आ गयी. फिर क्या करेगी."

कीर्ति बोली "जिसमे तेरी खुशी है. उसमे मेरी खुशी है पर मैं जानती हूँ ऐसा नही होगा."

मैं बोला "ये तू इतना यकीन से कैसे कह सकती है."

कीर्ति बोली "जिसमे एक दूसरे के लिए विस्वास नही है. वो कुछ भी हो पर मेरी नज़र मे प्यार नही. मुझे अपने प्यार पर खुद से भी ज़्यादा विस्वास है और फिर मैं तो खुद तुझ से बोल चुकी हूँ कि, तुझे जो भी लड़की पसंद हो. तू उस से शादी कर लेना. मुझे कोई परेसानी नही. मुझे सिर्फ़ तेरा प्यार चाहिए और कुछ नही चाहिए."

कीर्ति की बात सुनकर मैने कीर्ति को अपने पास खींचा और उसे अपनी बाँहों मे भर लिया. हम दोनो एक दूसरे को अपनी बाँहों मे यूँ जकड़ते चले गये. जैसे एक दूसरे के शरीर मे समा जाना चाहते हो. हम दोनो खामोश थे. मगर ना हमारी साँसे खामोश थी और ना ही हमारे दिल की धड़कने खामोश थी. हम एक दूसरे की बाँहों मे सब कुछ भूल गये थे. हम एक दूसरे मे इतने समा गये थे कि कीर्ति की धड़कनो की बढ़ती रफ़्तार मुझे और मेरी धड़कनो की बढ़ती रफ़्तार उसे सुनाई दे रही थी. जिसे सुनकर हम एक दूसरे को और भीचते जा रहे थे और हमारी धड़कनो की रफ़्तार के साथ हमारी मदहोशी भी बढ़ती जा रही थी.

इस मदहोशी के आलम मे.. मैं अपने गालों को.. कीर्ति के गालों से रगड़ने लगा.. उसके बालों मे से आने वाली.. मोहक सुंगंध.. और उसके बदन की महक.. मेरी नाक के अंदर समा कर.. मुझे और भी.. मदहोश कर रही थी..

मैं अपनी नाक को.. उसकी गर्दन पर.. और अपने होठों को.. उसके गालों पर रगड़ने लगा.. कीर्ति के मूह से उन्न्ह उन्न्ह की.. आवाज़ निकल.. रही थी.. मैने उसका चेहरा.. अपने सामने किया.. और उसे देखा.. उसकी आँखे बंद थी.. उस के उपर इस मदहोशी का शुरूर.. बहुत ज़्यादा चढ़ा हुआ था.. मैं उसके चेहरे का भोलापन.. देखता ही रह गया..

जब कीर्ति ने.. मुझे कुछ करते नही देखा.. तब उसने पल भर के लिए.. अपनी नशीली.. आँखो को खोल कर.. मुझे देखा.. और फिर अपनी आँखे बंद कर ली.. मगर इस एक पल मे ही.. मुझे उसकी आँखों मे.. एक अलग ही नशे का शुरूर नज़र आया.. उसकी नशीली आँखों को देख कर.. मुझे भी एक अलग से जुनून ने घेर लिया..

मैं उसके चेहरे को.. अपने होंठों के करीब लाया.. फिर मैने अपने होंठों को.. उसके गुलाबी.. रसीले.. होंठो पर रख.. उनका रस चूसने लगा.. उसकी मदहोशी ने.. मेरे इस अहसास को.. और भी मधुर बना दिया.. मैं मस्ती मे उसके होंठ चूसे जा रहा था.. कीर्ति भी मदहोशी की हालत मे मेरे सीने पर हाथ फेर रही थी.. मैं इन कुछ पलों के चुंबन से.. स्वर्ग मे पहुच गया था..

कीर्ति के अधरों का मर्दन करते करते भी.. मेरे अंदर की प्यास शांत नही हुई थी.. मेरे हाथ खुद ही.. उसके कुरती से छुपे स्तनों पर जा पहुचे.. मैं उसके स्तनों को आहिस्ता आहिस्ता.. अपने हाथों से मसल्ने लगा.. मेरे ऐसा करने से कीर्ति के मूह से.. कामुक आवाज़े निकलने लगी.. जिन्हे सुनकर मैं और भी.. सख्ती से उन्हे मसलने लगा.. लेकिन वो मेरे हाथों से उसके स्तनों पर.. काम-उतेजक प्रहारों को ज़्यादा देर तक नही सह पाई.. उसने नशे के शुरूर की हालत मे.. अपने शरीर का सारा भार.. मेरी बाँहों मे छोड़ दिया.. और इस मदहोशी की हालत मे.. किसी शराबी की तरह.. मेरी बाँहों मे झूल गयी..

मैने चुंबन को रोक दिया.. और उसको देखा.. वो बेसूध सी मेरी बाँहो मे थी.. अब मुझसे कीर्ति की ये मदहोशी.. देखी नही जा रही थी.. या यूँ कहा जाए कि.. उसकी ऐसी हालत देख कर.. मैं डर गया था.. मेरा मन व्याकुल हो उठा.. मेरी तेज चलती धड़कने.. कीर्ति का ये रूप देख कर.. खुद ही थम गयी थी.. ऐसा क्या हो गया उसे.. मैं इसके जबाब से अंजान था..

मैं नही जानता था कि.. ये कामदेव का छोड़ा गया.. काम बान है.. जिसकी आग मे कीर्ति जल रही थी.. मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा था.. मैने उसे अपनी बाहों मे समेट लिया.. और बड़े ही प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा.. मगर वो कुछ नही बोल रही थी.. वो बिकुल निढाल सी.. मेरी बाहों मे पड़ी रही.. मैने उसके सर को अपनी गोद मे रखा.. और अपने हाथों से.. उसके गालों को थपथपाने लगा..

मेरा ऐसा करने से.. कीर्ति अपनी आँखों को खोलने की कोशिश करने लगी.. लेकिन उसकी पलकें तो हिल रही थी.. पर आँखे नही खुल रही थी.. उसके होंठ ऐसे फड्फाडा रहे थे.. जैसे कुछ बोलना चाह रहे हो.. मगर बहुत कोसिस करने के बाद भी बोल ना पा रहे हो.. जब मेरे कुछ समझ ना आया तो.. मैं बस प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरने लगा.. मैं अंदर ही अंदर खुद से नाराज़ भी था.. क्योंकि उसकी इस हालत का ज़िम्मेदार.. मैं खुद था.. मगर मन ही मन बस उसके जल्दी से ठीक होने की दुआ भी माँग रहा था..
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:03 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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