MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:04 PM,
#53
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरी दुआ काम कर गयी.. कीर्ति के होंठ धीरे धीरे यूँ चलने लगे.. जैसे कि वो बहुत प्यासी हो.. और अपने होंठो से कुछ चूस रही हो.. उसे ऐसा करते देख मेरे चेहरे पर कुछ रोनक आई.. मैने उसे वापस अपने सीने से लगा लिया.. और उसकी पीठ पर बड़े धीरे धीरे हाथ फेरने लगा.. कुछ देर बाद वो ठीक हुई तो.. उसने मुझे कस कर दबोच लिया.. उसे ठीक देख मैने राहत की सांस ली..

मैं :- "तुम्हे क्या हो गया था.. तुमने तो मुझे डरा ही दिया था."

कीर्ति :- "मुझे कुछ मालूम नही.. मुझे क्या हुआ था.. बस इतना याद है कि.. मुझे तुम पर बहुत प्यार आ रहा था.."

मैं :- "चल अब चलते है.. बहुत देर हो गयी है.."

कीर्ति :- "नही.. पहले मुझे एक क़िस्सी चाहिए.."

मैं :- "तुम्हारी क़िस्सी के चक्कर मे ही.. ये सब हुआ है.. अब कोई क़िस्सी विस्सि नही.. "

कीर्ति :- "मुझे बेवकूफ़ मत समझ.. ये सब मेरे क़िस्सी के चक्कर मे नही.. बल्कि तुम्हारी ग़लत हरकत की वजह से हुआ है.."

मैं :- "ऐसी क्या ग़लत हरकत की मैने.. सिर्फ़ किस ही तो ले रहा था.."

कीर्ति :- "तो सिर्फ़ किस ही लेना था.. तुमसे इनको दबाने को किसने कहा था.."

मैं :- "मेरा मन करता है.. उनको दबाने का.. मुझे अच्छा लगता है.. इसलिए दबाता हूँ.."

कीर्ति :- "मुझे दर्द होता होगा.. तुम्हे ये नही लगता.."

मैं :- "अच्छा अब ना तो उन्हे दबाउन्गा.. और ना ही तुम्हे किस करूगा.. अब तुम चलो.."

कीर्ति :- "किस तो तुम्हे करना होगा.. हाँ मगर अब मैं इन्हे तुमको नही दबाने दुगी.."

मैं :- "जाओ मैं नही करता किस.. क्या कर लोगि तुम.. क्या कोई ज़बरदस्ती है.."

कीर्ति :- "बच्चू.. मैं क्या कर सकती हूँ.. ये अब तुम भी देख लो.."

कीर्ति मेरे होंठों को चूमने आगे बढ़ी.. मगर मैं उस से बचने का नाटक करने लगा.. उसने मेरे दोनो हाथ पकड़ लिए.. और अपने होंठो को.. मेरे होंठों पर रखने की कोशिस करने लगी.. लेकिन मैं उसे ऐसा.. ना करने देने के लिए.. अपने चेहरे को इधर उधर घुमाने लगा.. मेरे ऐसा करने से.. उसके होंठ कभी मेरे इस गाल को चूमते.. तो कभी उस गाल को चूमते..

जब वो चाह कर भी.. मेरे होंठों पर.. किस नही कर पाई तो.. फिर वो अपने दोनो पैर.. मेरे अगल बगल कर.. मेरी गोद मे बैठ गयी.. उसके बाद उसने अपने दोनो हाथों से.. मेरे हाथ पकड़े पकड़े.. अपने गालों को.. मेरे गालों से सटा दिया.. और धीरे धीरे अपने होंठो को.. मेरे होंठो की तरफ बढ़ाने लगी.. आख़िर मे जीत कीर्ति की ही हुई..

उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए.. और उन्हे चूसने लगी.. कुछ देर बाद मैं भी उसके होंठो को चूसने लगा.. अब हम दोनो एक दूसरे को पकड़े.. बस चूमे जा रहे थे.. हम बहुत देर तक.. यूँ ही इक दूसरे को किस करते रहे.. और फिर ये हसीन लम्हा.. मेरी जिंदगी का.. वो यादगार लम्हा बन गया.. जो हमेशा के लिए.. मेरी आँखों मे क़ैद होकर रह गया..
_________________

किस कर लेने के बाद कीर्ति हँसने लगी. मैने उसे झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला "तू अभी यहाँ बैठी हँसती रह. बाद मे जब सब लोग तुझसे टिकेट्स के बारे मे पूछेगे, तब क्या करेगी."

कीर्ति बोली "तू तो सच मे बुद्धू का बुद्धू ही है. अरे मैं सच मे टिकेट्स थोड़ी भूली हूँ. टिकेट्स तो मेरी स्कूटी मे रखी है."

मैं बोला "तब तो तूने ट्रेन भी यहीं बुलवा ली होगी, या फिर उसके लिए हमें स्टेशन जाना होगा."

कीर्ति बोली "मैं कब स्टेशन चलने से मना कर रही हू. तू ही यहाँ आराम से बैठा बेकार की बात कर रहा है. मैं तो कब से चलने के लिए कह रही हूँ."

ये सुनकर मैने उसकी तरफ गुस्से से देखा तो वो हँसने लगी. फिर वो खड़ी हुई और हाथ पकड़ कर मुझे उठाने लगी. कुछ देर बाद हम लोग पार्क से स्टेशन पहुच गये. सब लोग आ चुके थे. बस हम दोनो ही आख़िरी मे आए थे. मैने वहाँ पहुच कर मेहुल से पूछा.

मैं बोला "क्या हुआ.? तू तो कह रहा था कि ट्रेन का टाइम 6 बजे का है. फिर ट्रेन अभी तक क्यों नही लगी."

मेहुल बोला "ट्रेन का टाइम 7 बजे का है. मुझे मालूम नही था कि ट्रेन का टाइम टॅबिल बदल चुका है."

कीर्ति बोली "मैने भी अभी ही टिकेट पर देखा. तब मुझे पता चला कि ट्रेन का टाइम 7 बजे का है."

ये कहते हुए उसने मेहुल को टिकेट्स पकड़ा दिए. लेकिन उसकी बात सुनकर मैं उसकी तरफ देखने लगा. मुझे अपनी तरफ घूरते देख कर कीर्ति ने पहले सबको देखा कि किसी का ध्यान उसकी तरफ तो नही है और जब उसे लगा कि कोई उसे नही देख रहा तो उसने धीरे से मुझे आँख मार दी. उसकी इस हरकत से मुझे भी हँसी आ गयी. उसने फिर सब से कहा.

कीर्ति बोली "आप लोग बैठो. हम कॅंटीन से चाय लेकर आते है."

फिर वो बिना किसी के जबाब को सुने ही मेरा हाथ खिचते हुए मुझे वहाँ से अपने साथ ले आई. मैने उस से कहा.

मैं बोला "तो तुझे पहले से मालूम था कि ट्रेन का टाइम 7 बजे से है."

कीर्ति बोली "मालूम था तभी तो तेरे साथ इतनी देर तक पार्क मे बैठी रही. नही तो तुझे पहले ही यहाँ लेकर ना आ जाती."

मैं बोला "पर इन सबको क्यों नही बताया."

कीर्ति बोली "यदि बता देती तो हो सकता था कि मैं तेरे साथ इतना वक्त ही ना बिता पाती."

मैं बोला "तो तूने सबको जानबूझ कर परेशान किया है."

कीर्ति बोली "तेरे जाने के बाद जो परेशानी मुझे होने वाली है. उसके सामने तो इन लोगों की, ये परेशानी कुछ भी नही है. अब जब मैं परेशान होने वाली हूँ तो थोड़ा सा इनको परेशान कर लिया तो क्या हो गया."

मैं बोला "तू कभी नही सुधर सकती."

कीर्ति बोली "तू सच मे चाहता है कि मैं सुधर जाउ."

मैं कुछ नही बोला क्योंकि उसकी इस बात का मेरे पास कोई जबाब ही नही था. उसने फिर पूछा.

कीर्ति बोली "बोल ना. क्या तू सच मे चाहता है मैं सुधर जाउ."

मैं बोला "नही. तू जैसी है. मेरे लिए वैसी ही अच्छी है."

मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और फिर हम लोग कुछ देर बाद चाय लेकर वापस सबके पास आ गये. लेकिन सबको चाय देने के बाद कीर्ति मुझे फिर दूसरी तरफ खीच कर ले गयी. मैने कहा.

मैं बोला "ये क्या कर रही है. सब देख रहे हैं ना."

कीर्ति बोली "क्या मैं तुझे पकड़ कर किस कर रही हूँ. जो तुझे सबके देखने का डर लग रहा है. वो लोग देखेगे भी तो यही कहेगे, कि देख लो दोनो भाई बहन मे कितना प्यार है."

मैं बोला "क्या बकवास कर रही है. दोबारा मेरे सामने ऐसी बात मत करना."

कीर्ति बोली "अच्छा बाबा नही करूगी. पर अब तू अपना मूह मत फूला लेना. नही तो मैं रो रो कर पागल हो जाउन्गी."

मैं बोला "चल ठीक है पर अब हमें सब के साथ ही चल कर खड़े होना चाहिए."

कीर्ति बोली "नही जब तक ट्रेन नही आ जाती. तू मेरे पास से एक पल के लिए भी हिलेगा नही. जिसे बात करनी होगी वो यहीं आकर कर लेगा."

मैं बोला "इतनी देर मेरे साथ अकेली रही फिर भी तेरा दिल नही भरा."

कीर्ति बोली "दिल भरने की बात ही मत कर. यदि मेरा बस चलता तो मैं तेरे साथ साथ ही मुंबई चली जाती."

मैं बोला "मन तो मेरा भी तुझसे दूर जाने का नही है पर क्या करूँ जाना भी तो ज़रूरी है."

कीर्ति बोली "ज़्यादा एमोशनल मत हो. मैं तो मज़ाक कर रही थी. अब तेरे जाने से मुझे कुछ दिन आराम मिल जाएगा. रोज रोज तुझे परेशान करने के तरीके जो नही ढूँढने पड़ेंगे. इस दिमाग़ को भी तो कभी कभी काम से आराम देना चाहिए."

मैं बोला "तो तुझे मेरे जाने से खुशी हो रही है ना."

कीर्ति बोली "खुशी तो नही हो रही है मगर दुख भी नही हो रहा है. अब तू जाने से पहले जाने की बात करना बंद कर नही तो मैं सच मे रो दूँगी."

उसकी आँखों मे सच मूच ही आँसू झिलमिला गये. मेरी आँखों मे भी नमी छाने लगी तो मैने अपने चेहरे को दूसरी तरफ घुमा लिया. कुछ देर कीर्ति चुप रही लेकिन मुझे यू उदास देख कर उसने फिर मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली "अच्छा ये बता. मेरे लिए मुंबई से क्या लाएगा."

मैं बोला "तू बोल तुझे क्या चाहिए."

कीर्ति बोली "मैं क्या बोलू. मैं मुंबई थोड़ी गयी हूँ जो मुझे मालूम हो कि मुंबई मे क्या अलग मिलता है."

मैं बोला "गया तो मैं भी नही हूँ. फिर भी तेरे लिए वहाँ से कोई अच्छी सी चीज़ ले आउन्गा पर इसके बदले तुझे मेरा एक काम करना पड़ेगा."

कीर्ति बोली "तू कुछ ना भी लाए. तब भी मैं तेरा काम कर दूँगी. तू बता क्या काम करना है."

मैं बोला "बड़ी आई बिना कुछ लिए काम करने वाली. भूल गयी कि तूने घर मे रुकने के लिए कितनी शर्त रखी है."

कीर्ति बोली "तुझे क्या लगता है कि तू यदि मेरी शर्त नही मानता तो क्या मैं घर मे नही रुकती. मैं घर मे सिर्फ़ अपनी शर्तों की वजह से रुक रही हूँ."

मैं बोला "नही, मुझे ऐसा कुछ भी नही लगता. मैं जानता हूँ कि ये सब सिर्फ़ तेरी शरारत थी और मैं भी तेरी इन शरारत का मज़ा ही ले रहा था."

कीर्ति बोली "तो फिर अपना काम बता. क्या काम करना है मुझे."

मैं बोला "जब तक मैं वापस ना आ जाउ. तुझे मेरी जान का ख़याल रखना है. उसे समय पर खिलना, पिलाना, सुलाना है और कभी रोने नही देना है."

कीर्ति बोली "किसे.? निमी को.?"

मैं बोला "नही. तुझको."

ये सुनकर कीर्ति की आँखों मे फिर आँसू आ गये और वो बिना किसी की परवाह किए, मेरे सीने से लिपट गयी. इस बार मैने भी किसी की कोई परवाह नही की और उसके सर पर हाथ फेरने लगा. लेकिन कीर्ति को इस तरह मुझसे लिपटा देख कर छोटी माँ आ गयी. उनने कीर्ति के सर पर हाथ फेरा और कहा.

छोटी माँ बोली "पगली रोती क्यों है. कुछ दिनो की ही तो बात है."

मगर छोटी माँ के ऐसा कहने का असर कीर्ति पर उल्टा ही पड़ा. अभी जहाँ उसकी आँखों मे आँसू झिलमिला रहे थे वही अब वहाँ से आँसुओं की नादिया बह निकली. तभी बाकी लोग भी वहीं आ गये. आंटी ने कीर्ति को मेरे सीने से अलग कर अपने सीने से लगा लिया और उसके सर पर हाथ फेरती हुई समझाने लगी.

आंटी बोली "अरे बेटी, दिन भर से तो तू हम सब को समझा रही थी और अब खुद ना समझ बन रही है. आज ये सब कुछ जो भी हो पा रहा है. उस सब की वजह तू ही तो है. यदि तू ना होती तो शायद ये सब भी नही हो पाता. तू तो हम सब की ताक़त है, हिम्मत है. यदि तू ही ऐसा करेगी तो फिर सोच बाकी सब का क्या होगा."

आंटी की बातों को सुनकर कीर्ति ने रोना बंद कर दिया. कुछ देर बाद वो पूरी तरह से शांत हो चुकी थी पर अब उसके चेहरे से मुस्कुराहट गायब हो चुकी थी. उसका चेहरा किसी पत्थर की तरह सख़्त हो गया था, जिसका कारण शायद वहाँ सब की मौजूदगी थी. लेकिन उसकी आँखो मे आँसुओं की झिलमिलाहट साफ नज़र आ रही थी. जिसे देख कर साफ लग रहा था कि वो बहुत कोशिस कर उन्हे बहने से रोक रही है.

इसके बाद कीर्ति एक किनारे जो बैठी तो फिर उधर से उठी नही. उसे देख देख कर मेरा भी दिल रो रहा था. लेकिन मैं चाह कर भी कुछ कर नही सकता. मैं उसे समझाता भी तो कैसे. जब मैं खुद अपने आपको ही नही समझा पा रहा था. फिर भी मैं उसके पास ही जाकर खड़ा हो गया. ना उसने कुछ बोला और ना ही मैने कुछ बोला.

कुछ देर बाद ट्रेन आ गयी. सब ट्रेन मे समान रखने लगे. लेकिन मैं वही पत्थर का बुत बने खड़ा रहा. जब कीर्ति ने मुझे वहाँ से हिलते ना देखा तो उसने दोनो हाथ अपने चेहरे पर फेरे और अपने आपको मजबूत करके खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर कहा.

कीर्ति बोली "चलो ट्रेन आ गयी है. चल कर ट्रेन मे बैठो. मैं ठीक हूँ."

मैं बोला "मेरा काम याद है ना. मेरा काम ज़रूर पूरा करना."

ये कहकर हम दोनो ट्रेन के पास आ गये. मैने छोटी माँ और आंटी के पैर छुये और ट्रेन मे चढ़ गया. कुछ देर बाद ट्रेन छूटी और सब हम देख कर हाथ हिलाते रहे. मैं भी तब तक हाथ हिलाता रहा, जब तक सब नज़र आना बंद नही हो गये. उसके बाद मैं काफ़ी देर तक वही खड़े ट्रेन को अपने शहर से बाहर जाते देखता रहा. मेरी आँखों मे बार बार छोटी माँ, आंटी, अमि, निमी, शिल्पा, नितिका का चेहरा आ रहा था. जो हमें वहाँ छोड़ने आए थे. मगर जहाँ जाकर मेरी नज़र रुक जा रही थी. वो था कीर्ति का चेहरा. जो मुझे बार बार उदास कर जा रहा था. मुझे लग रहा था कि, मैं अभी ट्रेन से उतर कर उसके पास पहुच जाउ.

कीर्ति ने भी मुहे जाते देख कर हाथ हिलाया था. उसके होंठों पर उस समय एक मुस्कान भी थी मगर उसकी इस मुस्कान का दर्द उसकी बुझी हुई आँखे कह रही थी. जिनमे आँसुओं की नमी मुझे अभी भी महसूस हो रही थी. मेरी ट्रेन रफ़्तार पकड़ चुकी थी और मेन गेट पर ही खड़े खड़े अपनी आँखों के सामने से गुज़रते अपने शहर की गलियों, मकानो और लोगों को देख रहा था. ये सब देख कर मुझे लग रहा था कि ये सब मेरा है जो मुझसे छूट रहा है.

बस मैं इसी सोच मे गुम था और फिर मेरे शहर के गलियों, मकानो और लोगों को छोड़ कर ट्रेन खेत खलियानो और बड़े बड़े मैदानो से गुजरने लगी. मेरा शहर अब बहुत पीछे छूट चुका था मगर मेरा उदास मन अब भी उदास था. इस बीच मेहुल मुझे दो तीन बार बुलाने आया लेकिन मैं कहता रहा तू चल मैं आता हूँ. मैं अपने शहर की सीमा से बाहर निकलने के पहले खुद को उधर से हटाने की ताक़त ही नही जुटा पा रहा था.

मगर अब तो मेरे शहर की सीमा भी पीछे छूट चुकी थी फिर भी मैं ना जाने किस जंजीर से बँधा खुद को वहाँ से अलग नही कर पा रहा था. मुझे वहाँ खड़े 1 घंटे से ज़्यादा का समय हो चुका था. मेहुल फिर मेरे पास आया और कहने लगा.

मेहुल बोला "कब तक यूँ ही खड़ा रहेगा. मुझे मालूम है तू पहली बार सबसे दूर हो रहा है इसलिए तुझे अच्छा नही लग रहा. लेकिन पहली पहली बार सबसे दूर होने मे ऐसा ही लगता है. अब चल और चल कर हमारे साथ बैठ."

मैं बोला "तू चल मैं अभी आता हूँ."

मेहुल बोला "पिछले 1 घंटे मे मैं तुझसे ये बात 10 बार सुन चुका हूँ. अब मैं तेरी एक भी नही सुनुगा. तू चल मेरे साथ."

मैं बोला "तुझे मेरी इतनी ही फिकर है तो तू भी मेरे साथ इधर ही खड़ा हो जा. मुझे क्यों वहाँ बुला रहा है."

मेहुल बोला "अबे तू फिर बहकी बहकी बात करने लगा. मैं तो इसलिए बोल रहा हूँ कि अब अगला स्टेशन आने वाला है. लोग चडेगे उतरेगे तो तेरे खड़े रहने से उन्हे परेसानी होगी."

मैं बोला "चल ठीक है अगला स्टेटन आने दे. मैं अलग हो जाउन्गा."

मेहुल बोला "जैसी तेरी मर्ज़ी. तेरे को समझाना कीर्ति के सिवा किसी के बस की बात नही है. मैं तो चला. तू जब खड़ा खड़ा थक जाए तो आ जाना."
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:04 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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