MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:19 PM,
#62
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मुझे पापा को गाली बकते देख और इतना गुस्से मे देख कीर्ति डर गयी थी. उसने मेरे गुस्से को शांत करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "जान इतना गुस्सा मत करो. तुम्हारे मूह से गाली अच्छी नही लगती."

मैं बोला "गाली नही बकुँ तो क्या उस माँ******* की आरती उतारू. तुझे हाथ लगाने की उसकी हिम्मत कैसे हो गयी."

कीर्ति बोली "प्लीज़ जान गाली मत बको. तुम उन्हे वहाँ कुछ भी नही कहोगे. तुम्हे मेरी कसम है."

मैं बोला "नही तू अपनी कसम वापस ले. मैं उसको छोड़ूँगा नही. जब उसने छोटी मा के साथ धोका किया. तब मैं उनकी कसम की वजह से चुप रह गया. उसी का ये नतीजा है कि, आज उसका हाथ तुझ तक जा पहुचा. मगर अब मैं उसे, उसकी इस हरकत की सज़ा ज़रूर दूँगा. तू अपनी कसम वापस ले"

कीर्ति बोली "नही जान तुम ऐसा कुछ भी नही करोगे. मैं इसीलिए तुम्हे कुछ बताना नही चाहती थी. मैं जानती थी तुम इस बात को सह नही पाओगे."

मैं बोला "तू क्या चाहती है. वो तेरे साथ बदतमीज़ी करे और मैं देखता रहूं. तू मुझे समझती क्या है. मैं बुजदिल नही हूँ. जो किसी से अपने प्यार की रक्षा भी नही कर सकूँ."

कीर्ति बोली "ऐसा कुछ भी नही है जान. मैं जानती हूँ, तुम मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो. लेकिन मेरे साथ साथ बाकी लोगों के बारे मे भी तो सोचो. ज़रा सोचो कि इस बात का जब, मौसी को पता चलेगा तो, उन पर क्या बीतेगी. यदि तुमने वहाँ कुछ उल्टा सीधा किया तो, मेहुल और अंकल पर इसका क्या असर पड़ेगा. ये सब भी तो तुमको देखना पड़ेगा."

मैं बोला "तू क्या चाहती है कि, सबको देखने के चक्कर मे, मैं उसकी मनमानी चलने दूं. वो किसी के साथ कुछ भी करता रहे और मैं चुप चाप तमाशा देखता रहूं."

कीर्ति बोली "जान मैं जानती हूँ कि, ये सुन कर तुम्हे बहुत बुरा लगा है. फिर भी अपनी जान की खातिर तुम्हे अपना गुस्सा पीना पड़ेगा. प्लीज़ जान मेरी खातिर. बस एक बार उनकी ग़लती को भूल जाओ."

मैं बोला "तेरे लिए तो मैं अपनी जान भी दे सकता हूँ, लेकिन इस बात को कैसे भुला दूं कि, तेरी इज़्ज़त पर हाथ डालने वाला कोई और नही मेरा बाप ही है."

कीर्ति बोली "जान ऐसा कुछ भी तो नही हुआ. तुम इस बात को इतना मत बढ़ाओ."

मैं बोला "उसने तेरे शरीर पर हाथ फेरा, और तू इसे कुछ भी ना होना बोल रही है. हाथ लगाने की बात तो दूर की है. मैं तेरी तरफ गंदी नज़र उठाने वाले की भी जान ले लूँगा."

मुझे अपनी बात ना मानते देख कर कीर्ति सुबकने लगी. मेरे कानों मे उसके रोने की आवाज़ आते ही, मैं अपनी चल रही बात को छोड़ कर, उसके रोने का कारण पूछने लगा.

मैं बोला "तुझे क्या हुआ. तू रो क्यों रही है. मैं तेरे साथ हूँ. मेरे होते तुझे किसी से भी डरने की ज़रूरत नही है."

कीर्ति बोली "मुझे कुछ भी होता रहे, उस से तुमको क्या है. तुम तो वही करो जो तुम्हारा दिल करे."

ये बोल कर वो फिर सिसकने लगी. मैं भला उसका रोना कैसे देख सकता था. वो मेरी जान थी. मुझे अपने हज़ार आँसू बर्दाश्त थे, पर कीर्ति का एक आँसू भी मैं सह नही सकता था. मैने उस से कहा.

मैं बोला "देख रो मत. तू जानती है मैं तेरा रोना नही देख सकता. प्लीज़ रोना बंद कर."

कीर्ति बोली "सब झूठ है. तुम्हे मेरे रोने से कोई फ़र्क नही पड़ता. यदि ऐसा होता तो तुमने मेरी बात ज़रूर मान ली होती."

मैं बोला "तू समझती क्यों नही. मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ. तेरे लिए ही तो कर रहा हूँ."

कीर्ति बोली "फिर झूठ बोल रहे हो. तुम मेरे लिए कुछ नही कर रहे. यदि तुम सच मे मेरे लिए कुछ करना चाहते तो, मेरी बात मान ली होती."

ये बोल कर वो फिर रोने लगी. मैं समझ गया कि कीर्ति ये सब अपनी बात मनवाने के लिए कर रही है. वो जानती है कि उसके रोने के आगे, मुझे झुकना ही पड़ेगा. इसलिए वो जानबूझ कर बस रोए जा रही है. आख़िर मे मुझे उसके रोने के आगे झुकना ही पड़ा. मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "चल अपना नाटक बंद कर. मैं कुछ नही करूगा."

कीर्ति बोली "नही ऐसे नही. मेरी कसम खाकर बोलो."

मैं बोला "तेरी कसम मैं कुछ नही करूगा."

कीर्ति बोली "ये कैसी कसम है. ऐसे नही, ये बोलो कि तुम्हारी कसम मैं तुम्हारी बात की वजह से पापा से कोई लड़ाई झगड़ा नही करूगा."

मैं बोला "ये क्या बात हुई. मैने कसम खाकर बोल तो दिया."

कीर्ति बोली "नही जैसा मैने बोला है, वैसे बोलो."

मैं बोला "तेरी कसम, मैं तेरी बात की वजह से पापा से कोई लड़ाई झगड़ा नही करूगा. अब तो खुश."

कीर्ति बोली "हाँ अब ठीक है."

मैं बोला "क्या तेरा हर बात मे रोना ज़रूरी है."

कीर्ति बोली "मेरे रोए बिना तुम मेरी कोई बात मानते ही नही हो. तुमको मुझे रुलाने मे मज़ा आता है."

मैं बोला "यदि मुझे, तुझे रुलाने मे मज़ा आता तो, मैं तेरी बात मानता ही क्यों. अब ये सब बात छोड़ और ये बता घर मे बाकी सब लोग कैसे है."

कीर्ति बोली "सब ठीक है. बस निमी तुमसे बात करने की ज़िद कर रही थी, मगर तब तुम सो रहे थे, इसलिए मैने तुम्हे फोन नही किया. लेकिन वो कह कर सोई है कि, यदि कल मैने उस से तुम्हारी बात नही करवाई तो, वो कल स्कूल नही जाएगी."

मैं बोला "उसे तो स्कूल ना जाने का बहाना चाहिए. कल यदि मैं उस से बात कर लुगा तो, कहेगी कि भैया ने कहा है कि, आज तुम स्कूल मत जाना."

मेरी बात सुन कर कीर्ति हँसने लगी और फिर बोली.

कीर्ति बोली "बात कुछ भी हो, पर निमी अपने भैया को सच मे बहुत मिस कर रही है. उसकी कोई बात ऐसी नही होती, जिसमे उसके भैया का नाम ना आए. आज तो उसने हद ही कर दी."

मैं बोला "क्यों क्या किया उसने."

कीर्ति बोली "आज आंटी और मौसी ने साथ मिल कर डिन्नर तैयार किया. आंटी ने सबके लिए आलू के पराठे बना दिए. अब जब सब लोग डिन्नर करने बैठे तो, निमी ने आलू के पराठे देखे. बस फिर क्या था. उसने सारे पराठे उठा कर अपने पास रख लिए. जब उस से पुछा गया कि, क्या सारे पराठे वो खुद खाएगी. तो उसने कहा पराठे भैया के मनपसंद है, इसलिए जब तक भैया नही आ जाते. तब तक कोई भी पराठे नही खाएगा. सारे के सारे पराठे रखे रह गये, पर उसने किसी को भी नही खाने दिए."

कीर्ति की बात सुन कर मेरी आँखों मे अमि निमी का चेहरा घूमने लगा. मैने कीर्ति से अमि के बारे मे पूछा.

मैं बोला "अमि कैसी है."

कीर्ति बोली "अमि भी अच्छी है. वो तुम्हारे बारे मे ज़्यादा बोलती तो नही है, पर उसकी अजीब हरकत बताती है कि, वो भी तुम्हे बहुत मिस कर रही है."

मैं बोला "कैसी अजीब हरकत."

कीर्ति बोली "तुम्हारा कमरा तो मैं, अमि निमी के जाने के बाद साफ कर देती हूँ. मगर अमि स्कूल से आते ही, सबसे पहले तुम्हारे कमरे की साफ सफाई मे लग जाती है. मैने जब उस से पूछा कि तू ये सब क्यों कर रही है, तो बोली कि भैया को गंदगी बिल्कुल पसंद नही है. जब भैया आएँगे तो अपने कमरे को गंदा देख कर गुस्सा होगे, इसलिए इसे साफ कर रही हूँ. अब साफ कमरे को साफ करना, अजीब हुआ या नही."

कीर्ति के मूह से अमि निमी की बात सुनकर, मैं बहुत भावुक हो गया. मैने भी उन्हे 3 दिन से देखा नही था. मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "निमी तो शुरू से ही शरारती है, मगर अमि मे ये सब हरकतें निमी के जनम के बाद से आई है. कहने को तो वो बहुत छोटी है, मगर उसकी बातें किसी दादी अम्मा से कम नही है. हमेशा ऐसा जताती है. जैसे घर मे सबसे बड़ी वो ही हो, और उसके सिवा घर मे कोई कुछ जानता ही नही है."

कीर्ति बोली "कुछ भी कहो, पर तुम बहुत खुशकिस्मत हो. जो तुम्हे इतना प्यार करने वाली बहने मिली है."

मैं बोला "वो तो मैं हूँ ही, लेकिन क्या तू खुशकिस्मत नही है. क्या वो तेरी कुछ नही लगती."

कीर्ति बोली "मैं तो डबल खुशकिस्मत हूँ. क्योंकि एक रिश्ते से वो मेरी बहन लगती है और दूसरे रिश्ते से वो मेरी ........"

मैं बोला "आधी बात कह कर क्यों रुक गयी. पूरी बात बोल. दूसरे रिश्ते से वो तेरी क्या लगती है."

कीर्ति उस समय शायद शरारत के मूड मे थी. उसने हंसते हुए कहा.

कीर्ति बोली "दूसरे रिश्ते से वो तुम्हारी बहन लगती है."

मैं बोला "ये फालतू की बात छोड़ और अपनी बात को पूरा कर."

कीर्ति बोली "तुम्हे सुनना ही है तो सुनो. दूसरे रिश्ते से वो मेरी ननद लगती है."

मैं बोला "ज़्यादा सपने मत देख. जब सबको तेरे मेरे रिश्ते का पता चलेगा तो, वो हमें धक्के मार कर घर से निकाल देगे."

कीर्ति बोली "मैं भी तो यही चाहती हूँ कि, सब हमें धक्के देकर निकाल दे. फिर हम लोग हमेशा एक दूसरे के साथ ही रहेगे."

मैं बोला "चल अब बहुत रात हो गयी है. अब तुझे आराम करना चाहिए. अब फोन रख."

कीर्ति बोली "पहले मेरी क़िस्सी दो."

मैं बोला "तुझे जब भी फोन रखने को बोलता हूँ, तुझे क़िस्सी ही चाहिए रहती है."

कीर्ति बोली "शाम को मैने किसी कहाँ ली थी. शाम को तो तुमने ली थी."

मैं बोला "तेरे से बातों मे जीतना मेरे बस की बात नही है."

कीर्ति बोली "तो फिर क्यों बहस करते हो. मुझे क़िस्सी दो. मैं फोन रख दूँगी."

मैं बोला "ओके, ये ले तेरी किसी. आइ लव यू जान. मुहह मुहह."

कीर्ति बोली "ऊऊ मेरे अच्छे जानू. आइ लव यू टू मुहह मुहह."

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया. उस से बात करने के बाद मेरे दिल को बहुत राहत मिली थी. मैं वापस अंकल के पास आकर बैठ गया. मैने टाइम देखा तो 1:30 बज चुके थे. वहाँ टाइम पास करने के लिए ऐसा कुछ भी नही था. जिस से कि टाइम पास किया जा सके. मैने फिर मोबाइल निकाला और कीर्ति की फोटो देखने लगा. जिसे देखते देखते 2:30 बज गया.

कुछ देर बाद फिर अंकल की नींद खुल गयी. उन्हो ने मुझे जागते देखा तो, पेन और नोटबुक देने का इशारा किया. मैने उन्हे नोटबुक और पेन दिया तो, उन्हो ने उस पर लिख कर मुझसे सो जाने को कहा. तब मैने उन से कहा.

मैं बोला "अब मुझे नींद नही आएगी. मैं घर से आराम करके ही आ रहा हूँ. आप मेरी चिंता मत कीजिए. आप आराम कर लीजिए."

अंकल ने लिख कर कहा "तुम यहाँ बैठे बैठे बोर हो जाओगे. ऐसा करो कुछ देर नीचे टहल आओ या फिर चाय कॉफी पी आओ."

मैं बोला "नही मैं आपको अकेला छोड़ कर कही नही जाउन्गा."

तभी वहाँ नर्स आ गयी. उसने आकर अंकल की जाँच की फिर अंकल की नोटबुक पर लिखा देख कर मुझसे कहा.

नर्स बोली "यदि आपको चाय कॉफी के लिए नीचे जाना है, तो आप जा सकते है. मेरा कॅबिन सामने ही है. मैं इन पर नज़र रखी रखूँगी."

नर्स की बात सुनकर अंकल ने मुझे जाने का इशारा किया. तब मैने अंकल के मोबाइल मे अपना नंबर नर्स को दिखाते हुए उस से कहा.

मैं बोला "ठीक है, मैं कुछ देर के लिए नीचे होकर आता हूँ. अंकल को यदि इस बीच मेरी ज़रूरत हो तो, मुझे इस नंबर पर कॉल कर दीजिएगा."

नर्स बोली "ओके. वैसे भी आपको इनकी चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है. हम अपने हर मरीज का पूरा ध्यान रखते है."

ये कह कर नर्स अपने कॅबिन मे चली गयी. मैने अंकल से भी यही कहा कि, यदि आपको मेरी ज़रूरत पड़े तो, आप मुझे कॉल लगा देना. ये कह कर मैने अंकल का मोबाइल, अंकल के पास रख दिया. फिर मैं नीचे आ गया.

नीचे आकर मैने कॅंटीन से कॉफी ली और कॉफी लेकर बाहर आ गया. रात के 3 बज चुके थे, इसलिए बाहर भी इस समय सुनसान सा ही था. हॉस्पिटल के एक दो कर्मचारी और खड़ी हुई गाड़ियों के अलावा वहाँ कोई भी नज़र नही आ रहा था.

मैं समुंदर के किनारे आकर बैठ कर, समुंदर की आती जाती लहरों को देखते हुए, कॉफी पीने लगा. मैं समुंदर की लहरों मे खोया कॉफी पी ही रहा था. तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा. उसे देखते ही मैं उठ कर खड़ा हो गया.

वो कोई और नही बल्कि निक्की थी. मुझे निक्की को इतनी रात मे अपने सामने खड़ा देख कर आश्चर्य तो ज़रूर हुआ. मगर उसे देख कर मेरा गुस्सा भी बढ़ गया था. मैने एक नज़र इधर उधर डाली. मुझे लगा शायद कोई उसके साथ होगा. लेकिन वो वहाँ अकेली ही थी.

उसे मेरी आँखों मे अभी भी गुस्सा नज़र आया तो, उसने अपने दोनो हाथों से, अपने दोनो कान पकड़ते हुए कहा.

निक्की बोली "सॉरी, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मुझे ऐसा नही करना चाहिए था."

मैं बोला "आपको सॉरी बोलने की कोई ज़रूरत नही है. आप ने जो कुछ भी किया है. बहुत ही सोच समझ कर किया है. ग़लती तो मुझसे हुई थी. जो मैने बिना कुछ सोचे समझे, एक अंजान लड़की को अपना दोस्त समझ लिया था."

निक्की बोली "प्लीज़ सॉरी यार. मैं दिल से सॉरी बोल रही हूँ. मेरा इरादा आपके दिल को चोट पहुचने का, ज़रा भी नही था. मैं तो आपकी मदद ही करना चाह रही थी. मुझे नही मालूम था कि, आपको ये सब इतना बुरा लगेगा."

मैं बोला "किसी के साथ धोका करने को, आप मदद करना कहती है. आपने जो कुछ किया है, उसे कुछ भी कहा जा सकता है, मगर दोस्ती हरगिज़ नही कहा जा सकता."

निक्की बोली "आप वेवजह बात का बतंगड़ बना रहे है. मेरे कुछ भी करने से आपका कोई बुरा तो नही हुआ. उल्टे इस से आपका फ़ायदा ही हुआ है."

मैं बोला "जो आपकी नज़र मे फ़ायदा है. वो मेरी नज़र मे मेरा नुकसान है."

निक्की बोली "इसी वजह से तो मैं आपसे सॉरी बोल रही हूँ. नही तो मैने आज तक कभी किसी को सॉरी नही कहा."

मैं बोला "कभी किसी से सॉरी ना बोलने का ये मतलब नही की, आपने कभी कोई ग़लती ही नही की है. बल्कि सॉरी ना बोलने का, ये मतलब है कि, आपको कभी अपनी ग़लती को मानना आया ही नही है."

निक्की बोली "हाँ ये बात भी सही है. मेरी ग़लती रही हो या ना रही हो. लेकिन मैने कभी किसी को सॉरी नही बोला. मगर आज तो मैं आपसे, अपनी ग़लती की सॉरी बोल रही हूँ."

मैं बोला "किसी की ग़लती को माफी दी जा सकती है. मगर किसी का दिल तोड़ने की, या किसी के साथ धोका करने की, कोई माफी नही होती. आपको अपना दोस्त मानना मेरी भूल थी."

निक्की बोली "आप मेरी दोस्ती को ग़लत मत समझिए. मैने जो कुछ भी किया है. सिर्फ़ एक दोस्त के नाते से किया है."

मैं बोला "यदि आपके जैसे दोस्त होने लगे तो, फिर किसी को दुश्मन की ज़रूरत ही क्या है. आप जिसे दोस्ती कह रही है. उसे मैं धोका मानता हूँ और धोके की कोई माफी नही होती."

निक्की बोली "यदि आप इसे धोका मानते है तो, जो आपका दिल कहे, आप मुझे वो सज़ा दे दो. लेकिन मुझे माफ़ कर दो."

मैं बोला "मैं आपको क्या सज़ा दूँगा. सज़ा तो मुझे कीर्ति देगी. जब उसे इस सब बात का पता लगेगा."

निक्की बोली "कीर्ति से आपको डरने की ज़रूरत नही है. मैं उस से खुद बात कर लुगी और उस से भी इस बात की माफी माँग लूँगी. आप के उपर कोई बात नही आने दुगी."

मैं बोला "आपको मेरे लिए जो कुछ भी करना था. वो आप पहले ही कर चुकी है. अब आपको कुछ भी करने की ज़रूरत नही है. आप कीर्ति से दूर ही रहे तो, ये आपकी मेरे उपर बहुत बड़ी मेहरबानी होगी. अब से आपका रास्ता अलग है, और मेरा रास्ता अलग है. आप अपने रास्ते पर जाइए और मैं अपने रास्ते जाता हूँ."

ये कह कर मैने कॉफी का कप वही रखी डस्टबिन मे फेका, और हॉस्पिटल की तरफ बढ़ने लगा. तभी निक्की मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी, और मेरा रास्ता रोक कर कहने लगी.

निक्की बोली "अब तुम अपना घमंड दिखाना बंद करो. एक ज़रा सी बात को इतना बढ़ाए जा रहे हो. जैसे मैने तुम्हारी दुनिया ही लूट ली हो. अरे हज़ार बार कह चुकी हूँ कि, मुझसे ग़लती हो गयी. मुझे माफ़ कर दो. मगर तुम हो कि भाव खाए जा रहे हो."
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:19 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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