MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:22 PM,
#65
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
58
कीर्ति ने अपनी बातों से मुझे बहलाने की पूरी कोशिश की, मगर अब मैं उसके दिल की बात को समझ चुका था. अब मैं बस उसके दिल मे छुपी बात को, उसकी ज़ुबान से कहलवाना चाहता था. मगर जानता था कि, वो इस बात को कभी नही कहेगी. इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला "तू सच मे खुश है ना. तेरे मन मे मेरी बात को लेकर कोई दर्द नही है."

कीर्ति बोली "हाँ जान, मैं सच मे खुश हूँ. मेरे मान मे तुम्हारी किसी बात से, कोई दर्द नही है."

मैं बोला "तो ठीक है, यदि ऐसा है तो, तू अब इसी बात को मेरी कसम खाकर बोल दे."

मेरी इस बात पर कीर्ति खामोश ही रही. मैं इस खामोशी के पिछे छुपे उसके दर्द को समझ रहा था. मैने फिर उस से कहा.

मैं बोला "अब चुप क्यों हो गयी. मेरी कसम खाकर क्यों नही बोलती."

कीर्ति बोली "जान हर छोटी मोटी बात मे, तुम्हारी कसम खाना, मुझे अच्छा नही लगता. मैं अपनी कसम खाकर कहती हूँ कि, मैं खुश हूँ और मेरे मन मे कोई दर्द नही है."

मैं बोला "जो बात तूने अपनी कसम खाकर बोली है. वही बात तू मेरी कसम खाकर भी बोल सकती थी. मगर तू ये बात मेरी कसम खाकर इसलिए नही बोली, क्योंकि तू मेरी झूठी कसम खा ही नही सकती और सच बात तू बोलना नही चाहती. क्योंकि तुझे लगता है कि, सच बोलकर तू मेरे रास्ते मे रुकावट बन जाएगी."

कीर्ति बोली "जान ये क्या बोले जा रहे हो. ऐसा कुच्छ भी नही है."

मैं बोला ""ठीक है, तू मेरी कसम मत खा. लेकिन मैं अब तुझे अपनी कसम देता हूँ कि, तुझे मेरी कसम है. तेरे दिल मे जो कुछ भी है. तू सब सच सच बोल दे."

मेरी कसम सुनकर एक पल के लिए कीर्ति हड़बड़ा गयी. लेकिन दूसरे ही पल वो मुझ पर बरस पड़ी और गुस्से मे कहा.

कीर्ति बोली "जान ये कैसा मज़ाक है. मुझे ऐसा मज़ाक बिल्कुल पसंद नही. तुम अपनी कसम वापस लो. नही तो मैं अपने आपको सच मे कुछ कर लूँगी."

मैं बोला "तुझे जो कुछ करना है. तू खुशी खुशी कर ले. मगर इतना याद रखना कि, तू जो कुछ भी करेगी, वो मेरी कसम को तोड़ कर ही करेगी. आज मैं भी यही देखना चाहता हूँ कि, तेरे लिए मेरी कसम से बढ़कर क्या है."

मेरी ये बात सुनते ही, कीर्ति का गुस्सा शांत पड़ गया. अब उसने मुझसे विनती करने वाले अंदाज मे कहा.

कीर्ति बोली "प्लीज़ जान, ऐसा मत करो. मुझे मेरी ही नज़रों मे मत गिराओ. मेरे प्यार को स्वार्थी मत बनाओ. मैं तुम्हे कुछ भी करने से रोकना नही चाहती. तुम अपनी कसम वापस ले लो."

मैं बोला "तुझे कुछ नही कहना तो मत कह, पर मैं अपनी कसम, किसी भी कीमत पर वापस नही लूँगा. अब ये तेरी मर्ज़ी है कि, तू चाहे तो मेरी कसम को माने, या फिर मेरी कसम को तोड़ दे."

कीर्ति बार बार मुझसे कसम वापस लेने को बोलती रही, पर मैं अपनी ज़िद पर अड़ा रहा. मुझे अपनी कसम वापस ना लेने की ज़िद पर अड़ा देख कर, कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली "जान तुमने अपनी कसम देकर अच्छा नही किया. मैं तुम्हे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करती हूँ. फिर भी मैं तुम्हे कभी हासिल नही कर सकती. तुम मेरे लिए उस चाँद की तरह हो. जिसके प्यार की चाँदनी मे, मैं नहा तो सकती हूँ. लेकिन उस चाँद को कभी अपनी बाँहों मे नही ले सकती."

मैं बोला "तू मुझे इतना प्यार करती है तो, फिर ये सब फालतू की बातें क्यों कर रही है."

कीर्ति बोली "जान ये फालतू की बात नही है. ये ही हमारा सच है. भले ही हम एक दूसरे को अपनी जान से ज़्यादा प्यार करते है. लेकिन इस सच को भी तो, नही झुठला सकते कि, हम एक दूसरे के भाई बहन है. फिर भला मैं तुम्हे किसी के साथ, कुछ करने से क्यों रोकू. तुम्हे किसी से भी अपनी खुशी हासिल करने का पूरा हक़ है. मैं तुम्हारे प्यार पर तो, अपना हक़ जता सकती हूँ. मगर तुम पर मेरा हक़ नही है. इसीलिए तो मैने तुमसे कहा था कि, तुम जिस से शादी करना चाहो कर लेना."

मैं बोला "ना ना, तूने ये नही कहा था. तूने कहा था कि, मुझे किसी से शादी करना हो तो मैं कर लूँ. तू मुझे शादी करने से नही रोकेगी, पर तू मेरे सिवा किसी को अपना नही बना सकती. क्या मैं कुछ ग़लत बोल रहा हूँ."

मैं कीर्ति के मन से उस बात को निकल देना चाहता. जिस बात मे बँध कर, कीर्ति मुझसे अपने दिल की बात, नही कह पा रही थी. मगर कीर्ति मेरे इस बात को, करने का मतलब समझ नही पाई थी कि, मैं बोलना क्या चाहता हूँ. उसने मेरी हाँ मे हाँ मिलाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "हाँ मैने ये ही कहा था और मैने जो भी कहा था, बहुत सोच समझ कर कहा था."

मैं बोला "मैं भी तुझसे यही सुनना चाहता था कि, तूने जो भी कहा था बहुत सोच समझ कर कहा था. मैं तेरी इस बात को मानता हूँ कि, तू मेरी बहन है, इसलिए तू मुझे शादी करने, या किसी के साथ रहने से नही रोक सकती. लेकिन अब मुझे इस बात का जबाब भी दे दे कि, तू मेरे सिवा किसी और को अपना क्यों नही बना सकती. जब मैं शादी कर सकता हूँ तो, फिर तू क्यों नही कर सकती."

मेरी इस बात का कीर्ति के पास कोई जबाब नही था. वो अब भी खामोश ही रही. उसे खामोश देख कर मैने कहा.

मैं बोला "तू इसका कोई जबाब नही दे पाएगी. क्योंकि तेरे पास इसका कोई जबाब है ही नही. मगर मेरे पास तेरी इस बात का जबाब है कि, तू ऐसा क्यों नही कर सकती. तू ऐसा इसलिए नही कर सकती. क्योंकि तू ये ही मानती है कि, तेरे तन मन पर सिर्फ़ मेरा ही हक़ है. तेरा दिल मुझे ही अपना सब कुछ मानता है, पर तू मुझसे ऐसा बोल नही सकती. क्योंकि तू अभी भी हमारे भाई बहन के रिश्ते की कशमकश से बाहर नही निकल पाई है. बोल मैं सच बोल रहा हूँ ना."

लेकिन कीर्ति अभी भी चुप ही रही. मैने उसे चुप देख कर फिर कहा.

मैं बोला "देख तुझे मैने अपनी कसम दी है. यदि तू अब भी कुछ ना बोली तो, मेरा मरा हुआ मूह देखेगी."

मेरी बात सुनते ही कीर्ति के सब्र का बाँध टूट चुका था. वो अपने आँसुओं को बहने से रोक नही पाई. उसके आँसू बहते रहे और वो सिसकते हुए बोलती चली गयी.

कीटी बोली "हाँ ये सब सच है. मेरे लिए मेरा सब कुछ, तुम ही हो. मैं तुम्हारे सिवा किसी को अपना बनाने की, सोच भी नही सकती. मेरे तन मन पर सिर्फ़ तुम्हारा ही हक़ है. मैं अपने जीते जी, ये हक़ किसी को नही दे सकती."

मैं बोला "जब ऐसा है तो, तू मुझे क्यों कहती है कि, मैं जिस से चाहूं, उस से शादी कर लूँ. क्या तू मुझे किसी और का होते देख सकती है. क्या तुझे रिया और प्रिया की बात सुनकर बुरा नही लगा."

कीर्ति बोली "मैं क्या कर सकती हूँ. तुम्हे पाना मेरे नसीब मे ही नही है. क्योंकि तुम मेरे भाई हो. मैं इस बात को समझती हूँ, मगर मेरा दिल मेरी इस बात को नही मानता. ये रात दिन बस तुम्हे ही माँगता रहता है. ये दिल तुम्हे किसी और का होते कभी नही देख सकता. आज जब मैने तुमसे रिया और प्रिया की बातें सुनी तो, मेरे तन बदन मे आग लग गयी. मुझे ना तो तुम्हारे साथ, रिया का वो सब करना पसंद आया, और ना ही तुम्हारा प्रिया को देख कर, वो सब सोचना पसंद आया. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कि रिया और प्रिया मिल कर, तुम्हे मुझसे च्चीं रही हो. जब इतनी सी बात मे मेरा ये हाल है. तब भला मैं तुम्हे किसी और का होते कैसे देख सकुगी. मैं कुछ भी कहूँ, पर मेरा दिल नही चाहता कि, तुम मेरे सिवा किसी और के बनो."

इतनी बात बोल कर वो फिर सिसकने लगी. मैने भी उसे रोने दिया. मैं चाहता था कि, उसके मन का सारा गुबार निकल जाए. थोड़ी देर वो इसी तरह से सिसकती रही. जब उसे अहसास हुआ कि, मैं कुछ नही बोल रहा हू तो, तब उसने सिसकना बंद किया और मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "तुम्हे यदि मेरी बात बुरी लगी हो तो सॉरी, पर तुम किसी बात को लेकर, अपने आपको ज़रा भी दुखी मत करना. मैं तुम्हे ज़रा भी दुखी नही देख सकती."

मैं बोला "नही, मुझे तेरी किसी बात का कोई बुरा नही लगा. लेकिन इस बात का दुख ज़रूर हुआ कि, तूने मुझे इस लायक भी नही समझा कि, तू मुझ पर अपना हक़ जता सके. मुझे किसी बात को करने से रोक सके, और एक मैं था जो हमेशा तुझ पर अपना हक़ जताता रहा."

कीर्ति बोली "जान प्लीज़ नाराज़ मत हो. मैं सिर्फ़ तुम्हारी खुशी चाहती थी. फिर भला जिस बात से तुम्हे खुशी मिले. उस बात से मैं तुम्हे कैसे रोक सकती थी."

मैं बोला "बड़ी आई मेरी खुशी की परवाह करने वाली. इतना तो समझी नही कि, मेरी खुशी सिर्फ़ तू और तेरा प्यार है. मेरे उपर तेरे सिवा किसी का भी हक़ नही है. इतनी सी बात तो समझी नही, और अपने आपको बड़ा समझदार समझती है. जा मैं तुझसे कोई बात नही करता."

मगर अब कीर्ति के दिल का बोझ उतर चुका था. उसके मन का वो सारा गुबार बाहर निकल चुका था. जिसे वो ना जाने कब से अपने अंदर छुपाए रखी थी. इस गुबार के निकल जाने के बाद अब वो अपने उसी शरारती अंदाज मे वापस आ गयी थी, जिसके आगे मैं कभी टिक नही पाता हूँ. मगर मुझे कीर्ति के मूड का अंदाज़ा नही था. उसने अपने उसी शरारत भरे अंदाज मे मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "सच बोल रहे हो ना जान. मुझे तुम्हारे उपर पूरा हक़ है ना."

मैं बोला "हाँ. क्या तुझे अभी भी मेरी बात पर यकीन नही है."

कीर्ति बोली "जान यकीन बोल देने बस से नही आता. यकीन तो दिलाने से आता है."

मैं बोला "तू बोल मैं क्या करूँ. जो तुझे मेरी बात पर यकीन हो जाए."

कीर्ति बोली "मुझे वो दिखा दो. जो रिया ने देखा है."

कीर्ति बड़े भोलेपन से अपनी शरारत कर रही थी. मगर मैं उसकी इस शरारत को समझ नही पाया और मैने उस से कहा.

मैं बोला "क्या देखा था रिया. मैं कुछ समझा नही. ज़रा खुल कर बोल."

कीर्ति बोली "अरे वही जो पहले रिया के हाथ फेरने से और फिर प्रिया को फ्रॉक मे देख कर टनटना कर खड़ा हो गया था."

ये बोल कर वो खिलखिला कर हँसने लगी. उसकी बात का मतलब समझ मे आते ही मैं समझ गया कि, अब ये शरारत करने के मूड मे है. मैं उस पर बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला "तुझे शरम नही आती. मुहसे ऐसी बात करते हुए."

कीर्ति बोली "अरे वाह, मेरी चीज़ के पीछे लुटेरे पड़े हुए और मैं शर्म कर के बैठी रहूं. कहीं मेरा माल, वो ही हजम कर गये तो, मैं तो बैठी रह जाउन्गी."

मैं बोला "ये क्या बके जा रही है. चुप कर."

मगर अब कीर्ति कहाँ रुकने वाली थी. उसने चिडाने वाले अंदाज मे फिर कहा.

कीर्ति बोली "उऊहहुन मुझे देखना है. दिखाओ ना प्लीज़."

मैं बोला "तू पागल हो गयी है क्या. ये क्या फालतू की बकवास किए जा रही है."

कीर्ति बोली "हाँ मैं पागल हो गयी हूँ. मेरी चीज़ है, आज मैं देख कर ही रहूगी."

मैं जानता था कि, अब कीर्ति को उसके मज़ाक से रोक पाना मेरे बस की बात नही है. इसलिए मैने बात को बदलते हुए कहा.

मैं बोला "ये फालतू की बात छोड़. अभी मुझे तुझको एक बात और बतानी है. तू ये बोल अभी तेरे पास समय है या नही."

कीर्ति बोली "जान यदि बहुत ज़रूरी बात है तो बोल दो. नही तो हम बाद मे बात कर लेगे. मुझे उपर आए बहुत देर हो गयी है. मैं मौसी से 5 मिंट का बोल कर उपर आई थी. अब तो पूरा 1 घंटा होने वाला है. मुझे मौसी के पास जाना भी ज़रूरी है."

मैं बोला "नही इतनी भी ज़रूरी बात नही है. हम शाम को या रात को बात कर लेगे."

कीर्ति बोली "ठीक है जान. अब तुम आराम करो. जब सोकर उठना और फ्री होना तो मुझे कॉल कर लेना."

मैं बोला "ओके मुउउहह."

कीर्ति बोली "आइ लव यू जान मुउहह."
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:22 PM
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