RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरे कलेजे मे दर्द की लहर अब भी उठ रही थी. जिसे मिटाने के लिए मैने पाँचवा पेग भी अपने हलक के नीचे उतार लिया. मैं पहली बार शराब पी रहा था. मुझे या सब नही मालूम था कि, शराब कब और कितनी देर बाद अपना असर दिखाती है. इसलिए नशा ना होते देख, मैं एक के बाद एक पेग पीता गया गया.
लेकिन पाँचवे पेग के, मेरे हलख मे उतरते ही, शराब ने बड़ी तेज़ी से अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. मेरा दिमाग़ पूरी तरह से सुन्न पड़ चुका था. मैने कीर्ति को भूलने के लिए शराब पी थी. लेकिन अब मैं उसके सिवा सब कुछ भूल चुका था. यहाँ तक की अपने आपको भी भूल गया था. मुझे अब बस, वो ही वो नज़र आ रही थी.
मेरी आँखे नशे के शुरूर मे बड़ी बड़ी हो गयी थी. मैं फटी फटी आँखों से कीर्ति की तस्वीर को देखने लगा. मेरे दिल का सारा दर्द उमड़ कर बाहर आने लगा था. जैसे की मेरे दिल के हर दबे हुए दर्द को, ज़ुबान मिल गयी हो. मैं कीर्ति की तस्वीर से बातें करने लगा.
मैं बोला "जान तुम्हे मेरी हालात पर हँसी आ रही है ना. हंस लो जान, आज तुम्हे जितना हँसना है हंस लो. लेकिन एक बात याद रखो. एक दिन तुम्हारी ये जुदाई मेरी जान ले जाएगी. तब तुम भी ऐसे ही तड़पोगी. जैसा आज मैं तुम्हारे लिए तड़प रहा हूँ. मैं तुम्हे कभी नही भूल सकता जान. लेकिन मैं मरते दम तक तुम्हारे इस धोके को माफ़ नही करूगा."
मैं ना जाने कितनी देर तक यूँ ही, कीर्ति की तस्वीर को उल्टा सीधा बकता रहा. फिर अचानक मेरा मोबाइल बजने लगा. लेकिन उस समय नशे मे मेरी हालत ऐसी हो गयी थी कि, मुझे ये समझ मे ही नही आ रहा था कि, किसका कॉल आ रहा है.
मैं मोबाइल को बिल्कुल अपनी आँखों के पास ले आया और फिर देखा कि मौसी का कॉल आ रहा है. मैं मौसी का कॉल आया देख कर मुस्कुराने लगा. मैने मोबाइल को चूम लिया और बिना कॉल उठाए ही मौसी से बोलने लगा.
मैं बोला "ओ मौसी, तुमने तो कभी मुझे प्यार से नही देखा, और जब देखा तो ऐसे देखा कि, मेरे प्यार को ही नज़र लग गयी. अब क्यों मुझे कॉल लगा रही हो. क्या अब मुझे कीर्ति की शादी की तारीख भी बताना चाहती हो. आइ लव यू मौसी. तुम सच मे बहुत अच्छी हो. तुमने बड़े प्यार से मेरा सब कुछ लूट लिया."
ये बोल कर मैं ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा. कॉल अभी भी बजे जा रहा था. जब कॉल बहुत देर तक बजता रहा. तब मैने कॉल उठा लिया. लेकिन मैं उस नशे की हालत मे भी, मैं इतना समझ रहा था कि, मुझे अभी किसी से बात नही करनी है. इसलिए मैने अपनी आवाज़ को लड़खड़ाने से बचते हुए, धीरे से सिर्फ़ इतना कहा.
मैं बोला "हेलो"
ये बोल कर मैं चुप हो गया. मगर मेरी आवाज़ सुनते ही, दूसरी तरफ से आवाज़ आई. वो आवाज़ कीर्ति की थी. उसने मुझसे कहा.
कीर्ति बोली "ओह जान. आइ मिस यू. आइ लव यू. हॅपी बर्तडे टू यू जान. मुउउहह.."
लेकिन मैं कुछ नही बोला. बस खामोश रहा. मुझे खामोश रहते देख उस ने फिर कहा.
कीर्ति बोली "सॉरी जान. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मैं जानती हूँ. तुम मुझसे बहुत नाराज़ हो. क्या तुम अपनी जान को माफ़ नही कर सकते."
कीर्ति ये बोलने के बाद मेरे कुछ बोलने का इंतजार करने लगी. मैं नशे के शुरूर मे, उसकी इस माफी माँगने की हरकत पर, उसको मन ही मन उल्टा सीधा बक रहा था. लेकिन हक़ीकत मे खामोश ही रहा. जब मैं कुछ नही बोला तो, उसने फिर मुझे मनाते हुए कहा.
कीर्ति बोली "ओके बाबा, तुम मुझ पर गुस्सा हो तो, गुस्सा कर लो. लेकिन अपनी जान को अपनी आवाज़ सुनने के लिए इतना मत तरसाओ. मैं तुम्हारी आवाज़ सुने बिना एक पल नही रह सकती."
कीर्ति की ये बात सुन कर मेरे दिल मे आग लग गयी और मेरा गुस्सा भड़क उठा. मैं अपने आपको बोलने से ना रोक सका. लेकिन मैने अपनी आँखों को बंद किया और फिर अपनी आवाज़ को बहुत संभालते हुए कहा.
मैं बोला "क्यों, क्या तुम्हे अपने होने वाले पति की आवाज़ पसंद नही है. या फिर अभी मेरे प्यार का मज़ाक उड़ाने से तुम्हारा दिल नही भरा है."
कीर्ति को शायद इस बात का पता नही था कि, मौसी से मेरी बात हुई है, और मुझे उसकी सगाई के बारे मे पता चल गया है. वो मेरी बात सुन कर सिर्फ़ इतना कह कर रह गयी.
कीर्ति बोली "जानंणणन्."
मेरी बात उसे गाली की तरह लगी थी. इसलिए वो इसके आगे कुछ नही बोल पाई. लेकिन उसे मेरी बात से जो दर्द पहुचा था. वो उसकी आँखों से आसू बन कर छलकने लगा. जिसकी आवाज़ मेरे कानों तक पहुचि तो, मुझे और गुस्सा आ गया. मैं उस पर चीखते हुए बोला.
मैं बोला "अब बंद करो अपने रोने का ये नाटक, और मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. मुझे तुम जैसी धोकेबाज लड़की से कोई बात नही करना."
मैं इतने गुस्से मे ये सब बोला था कि, अपनी आवाज़ को लड़खड़ाने से रोक ना सका. मेरी आवाज़ को पहचानते ही कीर्ति को एक और सदमा पहुचा. वो मेरी आवाज़ से पहचान चुकी थी कि, मैने शराब पी है. मैं तो उसके दर्द का अहसास करने की हालत मे नही था. लेकिन मेरी हालत का पता चलते ही, उसे मेरे दर्द का भी अहसास हो गया. उसकी आँखों मे आँसू थे. लेकिन अब वो आँसू मेरे दर्द के लिए थे. मेरे दर्द से वो कराह उठी.
कीर्ति बोली "जान तुमने शराब पी है. क्यों मुझे इतना प्यार करते हो कि, मेरी छोटी सी ग़लती भी सह ना सको. मेरी ग़लती की सज़ा अपने आपको क्यों दे रहे हो. मैं कितनी बदनसीब हूँ. जो तुम्हारे इस शराब पीने का कारण बन गयी. मुझे तो ये देखने के पहले ही मर जाना चाहिए था."
ये बोल कर वो बिलख कर रो पड़ी. मैं नशे के शुरूर मे ज़रूर था. लेकिन शराब के नशे से ज़्यादा, मेरे उपर कीर्ति के प्यार का नशा था. मैं उसका रोना ना देख सका, और मैं भी किसी बच्चे की तरह रोते हुए कहने लगा.
मैं बोला "तुम क्यों मरोगी. मारूँगा तो मैं, क्योंकि मुझे तुम्हारे बिना जीना नही आता. मैं तुम्हारे बिना जी ही नही सकता. बदनसीब तुम नही मैं हूँ. जो तुम्हे इतना प्यार करने के बाद भी, पा नही सकता. मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता. मैं तुम्हारे बिना मर जाउन्गा. हाँ मुझे मरना है. मुझे मरना है. मुझे मरना है."
किसी छोटे बच्चे की तरह मैं रोए जा रहा था, और मुझे मरना है, मुझे मरना है की रट लगाए हुए था. जिसे सुनकर कीर्ति का रोना थम गया था. वो मुझे चुप कराने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मैं बस मरना है की, रट लगाए हुए था. कीर्ति मुझसे कह रही थी.
कीर्ति बोली "जान प्लीज़ चुप हो जाओ. ऐसा मत करो जान. मैं कहीं नही गयी हू. मैं तुम्हारे पास ही हूँ."
लेकिन मुझ पर उसकी इस बात का, कोई असर नही हुआ. मैं फिर वही बोले जा रहा था.
मैं बोला "नही मुझे मरना है. मैं तुम्हारे बिना नही जी सकता. मुझे मरना है."
जब कीर्ति ने देखा कि मुझ पर, उसकी किसी बात का कोई असर नही हो रहा है. तब उसने कहा.
कीर्ति बोली "जान तुम्हे मेरी कसम. तुम बहुत थक गये हो. तुम सो जाओ जान."
मैं बोला "नही मैं नही सोउंगा. मैं सो गया तो, तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी."
कीर्ति बोली "जान क्या तुम मेरी कसम नही मनोगे. देखो मैने तुम्हारा सर अपनी गोद मे रख लिया है, और तुम्हारे सर पर हाथ फेर रही हूँ. मैं तुम्हे छोड़ कर कही नही जाउंगा जान. अब तुम सो जाओ."
कीर्ति के इन शब्दों ने मेरे उपर जादू सा काम किया.
मैं बोला "तुम सच मे मुझे छोड़ कर नही जाओगी ना."
कीर्ति बोली "हाँ जान मैं सच मे बोल रही हूँ. मैं तुम्हे छोड़ कर कहीं नही जाउन्गी. देखो मैं तुम्हारे सर पर हाथ फेर रही हूँ. तुम्हे कैसा लग रहा है."
मैं बोला "मुझे नींद आ रही है. मैं सो रहा हूँ पर तुम जाना मत."
कीर्ति बोली "हाँ जान अब तुम सो जाओ. मैं तुम्हारे पास ही बैठी हूँ."
उसके बाद कीर्ति ने ऐसे ही बहलाते बहलाते मुझे सुला दिया. उस समय मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे मैं सच मे उसकी गोद मे, सर रख कर सो रहा हूँ, और वो मेरे सर पर हाथ फेर रही है. मुझे कब सुकून भरी नींद आ गयी मुझे पता ही नही चला.
फिर मेरी नींद 4:30 बजे खुली. मेरा नशा अब पूरी तरह से उतर चुका था. लेकिन मुझे सिर्फ़ इतना याद था कि, कीर्ति का कॉल आया था. मैने उसे कुछ भला बुरा बोला और फिर रोते हुए उसकी गोद मे सर रख कर सो गया. उस से मेरी क्या क्या बात हुई. ये सब मुझे याद नही आ रहा था.
मैने अपना मोबाइल उठाया और देखने लगा कि, कीर्ति का मोबाइल कितनी देर चालू रहा. मोबाइल मे 1 घंटा 35 मिनट बता रहा था. जिसका मतलब था कि, कीर्ति ने मेरे सोने के बाद भी, काफ़ी देर तक कॉल नही काटा था.
मैं बहुत देर तक, लेटे लेटे यही सोचता रहा कि, कीर्ति ने मुझे क्या बताया है. लेकिन ज़्यादा नशे मे रहने की वजह से, मुझे कुछ भी याद नही रहा. मेरा मन कीर्ति से बात करने का कर रहा था. मुझे उसकी कमी बहुत ज़्यादा खल रही थी. मगर ना जाने क्यों, मैं उसे कॉल करने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था.
जब मैने देखा कि 5 बज गये है तो, फिर मैं उठ कर फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद मैने कपड़े बदले और फिर कमरे का दरवाजा खोल दिया. इसके बाद मैने बिस्तर सही किए और फिर वापस टेक लगा कर बैठ गया.
कुछ देर बाद अजय कॉफी लेकर आ गया. उसने मुझे कॉफी दी और फिर शराब की बॉटल को देखते हुए कहने लगा.
अजय बोला "ये लो कॉफी पियो. एक बार मे आधी बॉटल खाली कर दी. अब ज़रूर सर चढ़ रहा होगा."
मैं बोला "नही, मैं ठीक हूँ. मुझे कुछ नही हो रहा."
अजय बोला "यार तुम्हारा हाजमा तो गजब का है. आधी बॉटल पीने के बाद भी, ऐसे बैठे हो जैसे कुछ किया ही ना हो."
मैं बोला "मैने तो सिर्फ़ 5 पेग ही लिए थे."
अजय बोला "हो ही नही सकता. 5 पेग मे आधी बोतटेल खाली नही होती. ज़रूर तुमने पटियाला पेग मार लिए है. मैं तो कभी 3 पेग से ज़्यादा पी ही नही पाता हूँ. हाँ कभी जब ज़्यादा तनाव मे रहता हूँ. तब 4 पेग भी मार लेता हूँ, मगर तब सोकर उठने पर सर चढ़ जाता है."
मैं बोला "मैं इस बारे मे कुछ नही जानता. मैने आज पहली बार पी है, और शायद आख़िरी बार भी, क्योंकि मैं अपने घर मे रह कर तो, ऐसा कभी कर ही नही सकता."
अजय बोला "ये तो मैं भी तुम्हे नही करने देता. लेकिन मैने देखा कि तुम बहुत तनाव मे हो. इसलिए मैने तुम्हे ऐसा करने से नही रोका."
मैने अजय की इस बात का कोई जबाब नही दिया. अजय ने देखा कि मैं फिर किसी सोच मे गुम हो गया हूँ तो, वो मुझे टोकते हुए कहने लगा.
अजय बोला "सुबह से तुमने कुछ नही खाया है. यही कुछ खाना पसंद करोगे, या फिर बाहर चल के कुछ खाया जाए."
मैं बोला "नही यार, आज भूक ही नही है. अब मैं सीधे रात को ही खाना खाउन्गा. अभी मुझे राज के घर भी पहुचना है. सुबह से गायब हूँ. पता नही वो लोग क्या सोच रहे होगे."
अजय बोला "कोई कुछ नही सोचेगा. सब यही सोचेगे कि, तुम मुंबई घूम रहे हो. इसलिए रात का खाना तुम मेरे साथ ही खाकर, यही से सीधे हॉस्पिटल चले जाना."
मैं बोला "नही यार, ऐसा अच्छा नही लगता. वो लोग हमारी इतनी मदद कर रहे है. ऐसे मे उनको बिना बताए इस तरह गायब रहना, ठीक बात नही है. रही तुम्हारे साथ खाना खाने की बात, तो वो मैं किसी दिन तुम्हारे साथ ज़रूर खाउन्गा. आज के लिए तुम मुझे माफ़ करो."
अजय बोला "कोई बात नही है. चलो मैं तुम्हे राज के घर तक छोड़ देता हूँ."
मैं बोला "तुम क्यों परेशान हो रहे हो. मैं कोई टॅक्सी पकड़ कर चला जाउन्गा."
अजय बोला "यार मेरी टॅक्सी होते हुए, तुम कोई और टॅक्सी मे जाकर मेरे पेट पर क्यों लात मार रहे हो. दोस्ती अपनी जगह है और धंधा अपनी जगह है."
ये कह कर अजय हँसने लगा. लेकिन अजय का घर देखने के बाद मुझे, उसकी हर बात रहस्य लग रही थी. फिर भी अभी मैं, उस से इस बारे मे कोई बात करने के मूड मे नही था. मैने उस की बात की हाँ की और फिर उसके साथ बाहर आ गया.
अजय की टॅक्सी वहाँ नज़र नही आ रही थी. मुझे पोर्च के पास खड़ा करके, वो गॅरेज खोलने लगा. मुझे लगा कि वो अपनी टॅक्सी निकालेगा. लेकिन उसने मुझे एक बार फिर चौका दिया. उसने जैसे ही गॅरेज खोला वहाँ एक बीएमडब्ल्यू कार खड़ी थी. उसने BMW बाहर निकाली और मेरे पास आ गया. मैं चुप चाप उस मे बैठ गया.
मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, ये सब क्या माजरा है. वो आलीशान बंगले का मालिक और जिसके पास किसी चीज़ की कमी नही है. वो इस तरह रात को टॅक्सी क्यों चलाता है. मगर मैं अभी अपनी ही उलझन मे उलझा हुआ था. ऐसे मे मुझे किसी और उलझन मे उलझना अच्छा नही लगा.
मैं खामोशी से बैठा रहा. रास्ते भर अजय ही कुछ ना कुछ बात करता रहा. थोड़ी देर बाद हम घर पहुच गये. मुझे छोड़ने के बाद अजय वापस चला गया. मैं वही खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा. उसकी हर हरकत मेरे लिए एक रहस्य थी. फिर भी मुझे उसका साथ बुरा नही लगा था.
शायद उसके अंदर इंसान का दिल जीतने का हुनर था. इसलिए उसने कुछ ही मुलाकात मे मेरा दिल भी जीत लिया था. मुझे उसके साथ रह कर ये लगा ही नही था कि, मेरी उस से सिर्फ़ एक दो बार ही मुलाकात हुई है. बल्कि ऐसा लगा था. जैसे हम दोनो बरसों से एक दूसरे के दोस्त है.
मैं बाहर खड़ा यही सब सोच रहा था. तभी रिया बाहर आ गयी. उसने आते ही सब से पहले मुझे बर्थ'डे विश किया. फिर पुछ्ने लगी कि, मैं दिन भर कहाँ था. मैने उसे यही बताया कि, मैं मुंबई घूमने निकल गया था.
फिर हम दोनो अंदर आ गये. अंदर आते ही आंटी मिली. उनने भी मुझे बर्थ'डे विश किया. फिर वो भी वही सब पुच्छने लगी. जो बाहर रिया ने पुछा था. मैने उनको भी वही जबाब दिया. जो रिया को दिया था. मेरी आंटी से थोड़ी बहुत बात हुई. फिर आंटी मेरे मना करने के बाद भी, मेरे लिए चाय बनाने चली गयी.
आंटी के चाय बनाने चले जाने की वजह से, मुझे वहाँ रुकना पड़ा. मैं रिया से बात करने लगा. बातों बातों मे मैने रिया से, प्रिया और निक्की के बारे मे पुछा तो, उसने बताया कि, वो दोनो दादा जी के साथ वॉक पर गयी है. फिर मेरी रिया से यहाँ वहाँ की बात चलती रही.
कुछ देर बाद आंटी चाय ले आई. मैं चाय पीते हुए आंटी से बात करने लगा. आंटी बड़े ही प्यार से बात कर रही थी. लेकिन आज मेरा मन बहुत उदास था. ऐसे मे जब आंटी मुझसे इतने प्यार से बातें कर रही थी तो, मुझे छोटी माँ की याद सताने लगी.
मेरा मन अपने कमरे मे जाकर, छोटी माँ से बात करने का हो रहा था. लेकिन मैं जानता था कि, रिया मुझे अकेला नही छोड़ेगी. मैने टाइम देखा तो, अभी सिर्फ़ 6:15 बजा था. मैने चाय पी और फिर आंटी से कहा कि मैं कुछ देर बाहर टहल कर आता हूँ. ये कह कर मैं बाहर आ गया.
रिया के घर से कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा पार्क था. जहाँ दादा जी रोज शाम को वॉक के लिए जाते थे. अभी भी शाम का समय ही था, और बहुत से लोग टहल रहे थे. मैं टहलते हुए उसी पार्क के बाहर, एक बेंच पर बैठ गया.
मैने अपना मोबाइल निकाला और छोटी माँ को कॉल लगा दिया. छोटी माँ ने कॉल उठाते ही कहा.
छोटी माँ बोली "अच्छा हुआ तूने कॉल लगा लिया. मेरा मन आज सुबह से ही बहुत घबरा रहा था. लेकिन सुबह तूने कहा था कि, तू घूमने जा रहा है. इसलिए तुझे कॉल लगा कर परेशान नही किया."
मैं बोला "मुझे भी आपकी बहुत याद आ रही है छोटी माँ. मुझे यहाँ ज़रा भी अच्छा नही लग रहा है."
छोटी माँ बोली "तेरी तबीयत तो सही है ना. खाना वाना समय पर खा रहा है या नही."
मैं बोला "सब सही है छोटी माँ. बस आपकी बहुत याद सता रही है. आपको देखने का बहुत मन कर रहा है. बहुत ज़्यादा बेचैनी हो रही है"
छोटी माँ बोली "मैं कभी तेरी नज़रों से दूर नही रही हूँ. इसलिए मुझे सामने ना पाकर तुझे ऐसा लग रहा है. मुझे भी कल रात से तेरे बिना बहुत बेचैनी और घबराहट सी हो रही है. आज तेरा जनम दिन है और हम साथ नही है. शायद इसी वजह से हम दोनो को ऐसा लग रहा है."
छोटी माँ को लग रहा था कि, उन्हे बेचैनी और घबराहट जनम दिन की वजह से हो रही थी. लेकिन मैं समझ गया था कि, एक माँ के दिल ने, उसके बेटे का दर्द महसूस किया था. जिस वजह से उसका दिल अपने बेटे के लिए बेचैन हो उठा था.
आज सच मे मुझे छोटी माँ की गोद की कमी बहुत अखर रही थी. यदि आज मेरे बस मे होता तो, मैं दौड़ कर छोटी माँ के पास चला जाता. तब शायद इतना सब सहने के बाद भी, उनकी गोद मे सुकून की नींद सो पाता और अपने हर गम को भुला पाता.
आज मुझे मेरा बचपन याद आ रहा था. जब मैं कभी भी छोटी माँ को, अपने से दूर नही होने देता था. वो मेरी सग़ी माँ नही थी. फिर भी उन ने मुझे सग़ी माँ से बढ़ कर प्यार दिया था. वो मेरी सग़ी माँ नही है. उन्हो ने ये कभी मुझे महसूस ही नही होने दिया था.
|