MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:48 PM,
#77
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कीर्ति ने जब देखा कि मैं उसकी बात को सुन कर भी खुश नज़र नही आ रहा हूँ. तब उसने बड़ी मासूमियत के साथ मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "जान क्या हुआ. तुम मेरी बात सुन कर भी खुश नज़र नही आ रहे."

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. मैं ये बात सुन कर सच मे बहुत खुश हूँ."

कीर्ति बोली "नही जान. तुम झूठ बोल रहे हो. यदि तुम सच मे मेरी बात सुन कर खुश होते तो, इस तरह चुप क्यो हो."

मैं बोला "अरे मैं सच मे खुश हूँ. चुप तो मैं इसलिए हूँ, क्योकि मैं बेकार मे ही तुम पर इतना नाराज़ रहा."

मगर कीर्ति जानती थी कि, मैं उस से कुछ छुपा रहा हूँ. शायद उसे मेरे दिल की हालत का अंदाज़ा लग चुका था. उसने अपनी ग़लती मानने वाले अंदाज मे कहा.

कीर्ति बोली "जान तुम कुछ ना भी कहो, तब भी मैं तुम्हारे दिल का हाल समझ सकती हूँ. तुम यही सोच रहे होगे कि, इतनी सब बातें हो गयी और मैने तुम्हे कुछ भी नही बताया. लेकिन मेरा यकीन करो जान. मैं तुम से कोई भी बात छुपाना नही चाहती थी. जितना बुरा अब तुम्हे ये सब बातें जानकर लग रहा है. इतना ही बुरा मुझे भी लग रहा है कि, मैं तुम्हे ये बातें क्यो नही बता पाई."

मैं बोला "तुम बेकार की बात मत सोचो. मुझे किसी बात का कोई बुरा नही लगा है."

कीर्ति बोली "यदि ऐसा है तो तुम मेरी कसम खाकर बोलो कि, तुम्हे किसी बात का कोई बुरा नही लगा."

मगर मैं कीर्ति की झुटि कसम कैसे खा सकता था. बुरा तो मुझे लगा था और उसी बात का बुरा लगा था. जो कीर्ति बोल रही थी. लेकिन अब मैं उसे परेशान करना नही चाहता था. इसलिए मैने कीर्ति से हंसते हुए कहा.

मैं बोला "तू तो बिल्कुल पागल है. क्या कोई ऐसे ज़रा ज़रा सी बातों मे अपनी जान की कसम ख़ाता है. क्या तुझे मुझ पर विस्वास नही है. जो मुझे अपनी कसम खाने को बोल रही है."

कीर्ति बोली "जान विस्वास तो अब तुमको मुझ पर नही है. जो अपने दिल की बात मुझे नही बता रहे हो. मैं तो अपनी सांसो से ज़्यादा तुम पर विस्वास है. जिस दिन ये विस्वास टूट गया. उस दिन मेरी सांस भी टूट जाएगी. तुम अपने दिल की बात कहो या ना कहो. लेकिन मैं अच्छी तरह से जानती हूँ कि, मैने तुम्हारे दिल को बहुत चोट पहुचाई है. तुम्हे अंदर ही अंदर ये बात खाए जा रही है कि, इतना सब कुछ हो गया और मैने तुम से कुछ भी नही बताया."

मैं बोला "छोड़ ना. अब जब सब कुछ ठीक हो गया है तो, तू क्यो इस बात को बढ़ा रही है."

कीर्ति बोली "जान तुम्हारे ठीक कह देने से मेरी ग़लती ठीक नही हो जाएगी. तुम नही जानते कल रात से अब तक, मैं कितना तडपी हूँ और सुबह तुम्हारी हालत देख कर कितना रोई हूँ. यदि मुझे तुम्हारा ख़याल ना होता तो, मैं सच मे अपने आपको इस ग़लती के लिए ख़तम कर चुकी होती."

माइ बोला "खबरदार जो दोबारा कभी मरने की बात की. मैं तेरे बिना जी नही सकता. तू नही जानती ये आज का दिन मेरे लिए मौत से भी बदतर गुजरा है. इस एक दिन मे मैने अपनी जिंदगी के सबसे बुरे समय का सामना किया है. ना तो मैं जी पा रहा था और ना ही मैं मर पा रहा था. लेकिन अब तुझे अपने पास पाकर मैं इस सब को भूल जाना चाहता हूँ."

कीर्ति बोली "मैं सब जानती हूँ जान. मुझे तुम्हारे हर दर्द का अहसास है. मगर यकीन मानो मैने ये सब जान बुझ कर नही किया. मैं तुम्हे हर बात सच सच बता देना चाहती थी. मगर एक के बाद एक, हालत कुछ ऐसे हो गये कि, मैं चाह कर भी तुम्हे कुछ बता नही पाई. सबसे पहले तो मौसा जी वाली बात को लेकर, तुम इतने गुस्से मे आ गये थे कि, उसके बाद मैं तुमसे ये बात कहने की हिम्मत ही ना कर सकी. इसके बाद निमी की तबीयत को लेकर, तुम इतने परेशान हो गये थे कि, मैं तुमसे ये बात ना कह सकी. ये सब इतने अचानक हो गया कि, मुझे तुमसे कुछ कहने का कोई समय ही नही मिल सका."

मैं बोला "अब जो हो गया है. उसे भूल जा. मुझे तुझ से कोई शिकायत नही है."

कीर्ति बोली "जान तुम्हारे मन मे मेरे लिए कोई शिकायत हो या ना हो. मगर मेरे मन मे इस बात को लेकर बोझ है कि, मैं तुमसे इतनी ज़रूरी बात नही कह सकी. जिसकी वजह से तुम्हे इतनी तकलीफ़ उठानी पड़ी."

मैं बोला "जाने दे ना. जो होना था. वो हो चुका है. अब उस बात को खिचने से क्या फ़ायदा है."

कीर्ति बोली "जान बात फ़ायदे या नुकसान की नही है. कुछ देर के लिए ही सही लेकिन तुम्हारा मेरे उपर से प्यार और विस्वास तो उठ गया था. ये बात मुझे सहन नही हो रही है."

मैं बोला "कोई प्यार और विस्वास नही उठा था. मुझे बस थोड़ा सा गुस्सा था. जो सारी सच्चाई सुनकर दूर हो गया है. अब तू भी अपने मन पर कोई बोझ मत रख."

कीर्ति बोली "जान मेरे मन पर कैसे कोई बोझ नही रहेगा. क्या ये बात सच नही है कि, मेरी वजह से तुम्हे शराब पीना पड़ी.

कीर्ति को दिलासा देने की नियत से मैने कहा.

मैं बोला "पागल शराब तो मैने सिर्फ़ इसलिए पी थी. क्योकि उस बात को लेकर मुझे नींद नही आ रही थी. यदि मैं सोता नही तो फिर रात को हॉस्पिटल मे कैसे रुक पाता. लेकिन मैं वादा करता हूँ कि, अब मुझसे ये ग़लती दोबारा नही होगी. अब तू इस बात को अपने मन से निकल दे."

कीर्ति बोली "जान मैं इस बात को भूल भी जाउ कि तुमने मेरी वजह से शराब पी थी. लेकिन मैं इस बात को कैसे भूल सकती हूँ कि, तुमने मेरी वजह से खुद को ख़तम करने के की कोसिस की थी. क्या तुम इस बात को भी झुठला सकते हो. क्या तुम्हारे इस मेसेज का तुम्हारे पास कोई जबाब है."

ये कहते हुए कीर्ति ने मुझे मेरा ही मेसेज सेंड कर दिया.

"जान ये तुम्हरे लिए मेरा आख़िरी मेसेज है. माफी चाहता हूँ कि तुम्हारी खुशियों से भरी जिंदगी को देख कर मैं अपने आपको खुश नही रख सका. मगर क्या करूँ. मेरे लिए मेरा सब कुछ तुम ही थी. जब तुम्हे ही मेरा साथ पसंद नही है. तब भला मैं जीकर क्या करूगा. मेरे दिल मे आख़िरी बार तुमसे बात करने की हसरत थी. लेकिन मेरी हसरत मेरे दिल मे ही दब कर रह गयी. तुम अपनी खुशियों मे इतनी खोई रही कि तुम्हे मैं याद ही ना रहा. लेकिन अब मैं तुम्हे याद आना भी नही चाहता. मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा हमेशा के लिए जा रहा हूँ. मैं अपनी इस जिंदगी को आज अभी ख़तम कर रहा हूँ. आइ लव यू जान."

मैने मेसेज देखा तो मुझे कीर्ति की बात का कोई जबाब नही सूझा. मैने बस इतना कहा.

मैं बोला "इस बात को यही ख़तम कर दे. देख मैं तो तेरे सामने अच्छा भला खड़ा हूँ और इन सब बातों को भूल चुका हूँ. तू भी इन्हे भूल जा."

मेरी बात सुन कर कीर्ति ने जो कहा वो मैं जिंदगी भर नही भूल सकता. उसकी हर बात मे बेपनाह प्यार और दर्द झलक रहा था. उसके प्यार के सामने मेरा प्यार और मेरा दर्द मुझे बहुत छोटा नज़र आया. कीर्ति ने मेरी बात के जबाब मे मुझसे कहा था.

कीर्ति बोली "जान तुम्हारे लिए ये भूल जाने वाली बात होगी. मगर मेरे लिए नही है. मेरे लिए तो ये मर जाने वाली बात है. कल यदि अमि ने ये मेसेज मिलते ही तुम्हे कॉल नही किया होता तो, पता नही क्या अनर्थ हो जाता. मेरे लिए तो अमि भगवान का रूप साबित हुई. जिसने सही समय पर तुम्हे कॉल करके ये सब करने से रोक दिया. वो तो बच्ची है. इसलिए तुम्हारे बहलावे मे आ गयी और उसने मान लिया कि ये मेसेज तुमसे धोके से सेंड हो गया था. लेकिन मैं बच्ची नही हूँ. मैं इस मेसेज की सच्चाई और इसमे छुपे दर्द को समझ सकती हूँ. मैं अपने आपको क्या मूह दिखाऊ."

मैं बोला "प्लीज़ यार मुझसे ग़लती हो गयी. अब दोबारा ऐसा नही होगा. अब तुम इस बात को ख़तम कर दो. वैसे भी तुमने सुबह मुझसे बात होने के बाद ही तो इस मेसेज को देखा होगा. फिर तुम इस मेसेज को इतनी गंभीरता से क्यो ले रही हो."

कीर्ति बोली "जान तुमने बहुत सही बात की है. तुम ऐसी बात कर सकते हो. क्योकि तुम्हारे पास जीने के लिए, मेरे अलावा अमि निमी और छोटी माँ का भी सहारा है. मगर मेरे लिए तो मेरी सारी दुनिया सिर्फ़ तुम ही हो. यदि कल तुम्हे कुछ हो गया होता तो, मैं क्या करती. मैं किसके लिए जीती. तुमने तो मुझे जीते जी मार दिया. मैं दिन भर तुम्हारे इसी मेसेज को देख देख कर हज़ारों मौत मरी हूँ. सुबह से एक नीवाला तक मेरे गले से नही उतरा और तुम कहते हो कि, मैं इस मेसेज को गंभीरता से ना लूँ."

कीर्ति की बातों मे उसकी बेबसी, उसका दर्द और उसके प्यार को खो देने की तड़प सभी कुछ था. मैं उसके हर दर्द को महसूस कर सकता था. उसका कुछ भी कहना ग़लत नही था. मैने उसके दर्द को हल्का करने की नियत से कहा.

मैं बोला "सॉरी जान. मुझसे ग़लती हुई. लेकिन यदि मुझे ये सब बात पता होती तो, मैं ऐसी ग़लती कभी नही करता. इसे तू मेरी नादानी समझ कर ही भुला दे और कुछ खा ले."

मैने ये बात कीर्ति को मनाने और समझाने की गरज से कही थी. लेकिन मैं नही जानता था कि, मेरी ये बात कीर्ति के मन मे दबी हुई चिंगारी को ज्वालामुखी का रूप दे देगी. उसने मेरी बात के बदले मे कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी तुम क्यो बोलोगे जान. सॉरी तो मुझे बोलना चाहिए. जो मैं तुम्हे ये सब बात नही बता सकी और तुम ये नादानी कर बैठे. लेकिन आज मैं तुमसे सिर्फ़ इतना पूछना चाहती हूँ कि, क्या तुम्हे मुझ पर इतना भी भरोसा नही था कि, तुम खुद इस बात को झुठला देते कि, मैं तुम्हारे सिवा किसी दूसरे का होने की सोच भी नही सकती. क्या तुम्हे मेरे प्यार पर इतना भी यकीन नही था कि, तुम अपने आप से ये कह सको कि, मेरी कीर्ति कभी मेरे साथ ऐसा नही कर सकती. क्यो जान ऐसा क्यो नही हुआ. मेरा प्यार क्यो कम पड़ गया. मेरा प्यार क्यो हार गया जान. क्यो हार गया."

ये कह कर वो रोने लगी. उसकी हर बात मे सच्चाई थी. मेरे पास उसके किसी भी सवाल का कोई जबाब नही था. वो रोए जा रही थी पर अब मुझ मे इतनी हिम्मत भी नही थी कि, मैं उसे चुप होने के लिए बोल सकूँ. उसका हर आँसू मेरे दिल पर गिर रहा था और मेरे सीने को छल्नी कर रहा था. मैं उसका गुनहगार था और शायद ये मेरे गुनाह की सज़ा थी.

उसका ये दर्द मुझसे सहन नही हो रहा था और मेरी आँखों से भी आँसू बह रहे थे. लेकिन मेरी खामोशी की वजह से कीर्ति को मेरे बहने वाले आँसुओं का अहसास नही था. हम दोनो ही रो रहे थे. फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि मैं जानता था कि कीर्ति रो रही है. लेकिन कीर्ति नही जानती थी कि, मैं रो रहा हूँ.

मगर कीर्ति मेरी तरह नही थी. उसका प्यार मेरी तरह ख़ुदग़र्ज़ नही था. उसे खुद से ज़्यादा मेरी परवाह थी. शायद उसे मेरे दर्द का अहसास हो गया था. इसलिए उसने खुद ही अपने आँसुओं को रोकने की नाकाम कोसिस करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी जान. मेरी जैसी पागल लड़की की बात को दिल पर मत लेना. वैसे भी मेरी वजह से तुम्हारा आज का दिन खराब हुआ और अब मैं रात भी खराब कर रही हूँ. तुम दिन भर के थके हुए हो. अब तुम आराम करो. हम कल बात कर लेगे."

मेरा मन अभी फोन रखने का नही था. मैं उस से बात करना चाहता था. इसलिए मैने अपने आँसुओं को पिया और लड़खड़ाती हुई आवाज़ मे कहा.

मैं बोला "थोड़ी देर बात और कर ना."

मगर मेरी इतनी सी बात से ही कीर्ति ने मेरी आँखों की नमी को महसूस कर लिया था. मेरे आँखों की नमी महसूस होते ही उसका दिल तड़प उठा. उसे लगा जैसे उस से कोई गुनाह हो गया हो. उसकी आँखों मे फिर वो आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. जिसे वो रोकने की कोसिस कर रही थी. उसने अपने आपको कोसते हुए कहा.

कीर्ति बोली "जान तुम रो रहे हो. मैने तुम्हे फिर रुला दिया. मैं सच मे बहुत बुरी हूँ. हर बार तुम्हे रुला देती हूँ. मेरे जैसी लड़की को मर ही जाना चाहिए."

मैं बोला "तू क्यो बार बार मरने की बात करती है. तू इस बात को क्यो नही समझती कि मैं तेरी आँखों मे आँसू नही देख सकता. तेरी आँखों मे आँसू हो तो, मैं कैसे खुश रह सकता हूँ. हाँ मैं तेरा गुनहगार हूँ. जो मैं तुझसे इतना प्यार नही करता, जितना तू मुझसे प्यार करती है. मगर फिर भी मैं तुझे अपनी जान से ज़्यादा प्यार करता हूँ. इसलिए जब मैने वो बात सुनी तो मैं अपने सोचने समझने की ताक़त ही खो बैठा, और एक के बाद एक ग़लती करता गया. लेकिन मैं करता भी क्या. तू मेरी सारी दुनिया है. तुझे मैं किसी दूसरे का होते कैसे देख सकता था. मैने ग़लतियाँ ज़रूर की है. मगर उन ग़लतियों की वजह भी मेरे दिल मे तेरे लिए प्यार बेसुमार प्यार ही था. जिसने मुझे कमजोर बना दिया था."

इसके आगे मैं कुछ और कह ना सका. लेकिन कीर्ति मेरी इतनी ही बात से मेरे दिल की सारी बात समझ गयी थी. उसने अपने आँसुओं को पोछा और कहा.

कीर्ति बोली "नही जान तुम्हारा प्यार कहीं भी मेरे प्यार से कम नही है. तुमने कोई ग़लती भी ग़लती नही की है. मैं ही पागल थी, जो तुम्हारे प्यार को समझ ना सकी और ना जाने तुम्हे क्या क्या बोल गयी. प्लीज़ जान रोना बंद करो. तुम्हे मेरी कसम है. मेरी जान की आँखों मे में एक भी आँसू नही देखना चाहती."

मैं बोला "मेरी जान को भूका रखेगी तो, तुझे भी तेरी जान की आँखों मे आँसू देखना पड़ेंगे. तू क्या समझती है. तू मेरी जान को रुलाएगी तो, मैं तेरी जान को खुश रहने दूँगा."

कीर्ति बोली "सॉरी जान, अब ऐसा नही होगा. क्या अब भी तुम अपनी जान की कसम नही मानोगे."

कीर्ति की ये बात सुनकर मैने अपने आँसुओं को पोन्छा और खुद को शांत करने लगा. कुछ देर बाद जब मैने अपने आपको शांत महसूस किया तो, फिर कीर्ति से कहा.

मैं बोला "देख मैने तेरी कसम पूरी कर दी. अब तू भी मेरी बात पूरी कर और जल्दी से कुछ खाकर आ."

कीर्ति बोली "ओके जान. तुम वेट करो. मैं अभी खाना खाकर आती हूँ. मुउउहह."

ये कह कर कीर्ति ने फोन रख दिया. मैं अब बहुत खुश था. मेरे उपर छाये गम के बदल छांट चुके थे और मेरे दिल पर अब, कही कोई बोझ नही था. मैं सोच रहा था कि, कीर्ति को खाना खाकर आने मे कुछ समय लगेगा. ये सोचते हुए मैं बाथरूम जाने के लिए उठा. लेकिन तभी कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने कॉल उठाया और कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. तू बिना खाना खाए ही क्यो चली आई."

कीर्ति बोली "मैं खाना यहीं लेकर आ गयी हूँ. अब तुम से बात भी करती जाउन्गी और खाना भी खाती जाउन्गी."

मैं बोला "ओके तू खाना खाना शुरू कर, तब तक मैं बाथरूम से होकर आता हूँ."

कीर्ति बोली "नही अब तुम कहीं नही जाओगे. मैं बात करने के लिए ही खाना यहाँ लेकर आई हूँ."

मैं बोला "समझा कर, बस 2 मिनट की बात है."

कीर्ति बोली "नही अब मैं एक पल के लिए भी तुम्हारा पीछा नही छोड़ूँगी."

मैं बोला "देख ज़िद मत कर, मुझे बहुत ज़ोर से आई है."

कीर्ति बोली "ओके तो फिर मुझे भी लेकर चलो."

मैं बोला "तुझे कुछ शरम नही है क्या."

कीर्ति बोली "जिसने की शरम, उसके फूटे करम. मुझे चलना है, मतलब चलना है."

मैं बोला "मुझे कहीं नही जाना. तू खाना खा, मैं तुझसे बात करता हूँ."

ये कह कर मैं वापस बैठ गया. मुझे बैठते देख उसने कहा.

कीर्ति बोली "ओके आज तुम जा सकते हो. लेकिन याद रखना. अगली बार मैं साथ जाए बिना नही मानूँगी."

उसके मूह से ये सुनते ही मैं उठ कर बाथरूम चला गया. कुछ देर बाद जब मैं बाथरूम से वापस लौटा तो, मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "हाँ अब बोल, क्या बोलना है."

कीर्ति अभी खाना खा रही थी और नीवाला उसके मूह मे ही था. उसे शरारत सूझी और उसने खाना चबाते चबाते ही कहा.

कीर्ति बोली "तुम्हे सच मे बहुत ज़ोर से लगी थी. अब मुझे पूरा यकीन हो गया."

मैं बोला "क्यो ऐसा क्या हुआ."

कीर्ति बोली "क्योकि आवाज़ मुझे यहाँ तक सुनाई दे रही थी."

ये कह कर वो ज़ोर से हँसने लगी. लेकिन खाना खाते खाते हँसने की वजह से उसे ज़ोर का थन्स्का लग गया. जिसकी वजह से वो खांसने लगी. मैने उसे जल्दी से पानी पीने को कहा और फिर उसके पानी पीने के कुछ देर बाद वो सही हो गयी. मैने उस पर गुस्सा करते हुए कहा.

मैं बोला "तुझे हर समय मज़ाक ही सूझता है. हज़ार बार कहा कि, खाना खाते समय मज़ाक मत किया कर लेकिन तू है कि, मेरी बात सुनती ही नही है."

मगर कीर्ति के उपर मेरे इस गुस्से का कोई असर नही पड़ा. उसने मासूम बनने का नाटक करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "अब आवाज़ यहाँ तक आ रही थी तो, मैं क्या करती. यदि मेरी बात मानकर मुझे लेकर गये होते. तब भी तो मैं आवाज़ ही सुनती. कुछ देख थोड़े ही लेती. अब बिना जाए ही मैने आवाज़ सुन ली तो, क्या मैं हंस भी नही सकती."

मैं बोला "तू कभी नही सुधर सकती."

कीर्ति बोली "सुधर तो तुम भी नही रहे हो."

मैं बोला "अब मैने क्या किया."

कीर्ति बोली "तुम जानते हो कि मैं कभी नही सुधर सकती. इसके बाद भी जब देखो तब कहते रहते हो, तू कभी नही सुधर सकती."

ये कह कर वो फिर हँसने लगी. लेकिन अब मैने उसकी इस बात का का जबाब नही दिया तो, उसने मुझे छेड़ते हुए कहा.

कीर्ति बोली "ओके अब मेरा खाना खाना हो गया है. अब तो मुझे बहुत ज़ोर की नींद आ रही है. मैं तो सोती हूँ."

मैं बोला "इतनी जल्दी. अभी तो 1 भी नही बजा है. थोड़ी देर और बात कर ना."

कीर्ति बोली "नही अब मुझे सोना है. वैसे भी तुम्हे मेरी कोई बात पसंद नही आती."

मैं बोला "मैने ऐसा कब कहा कि, मुझे तेरी बात पसंद नही आती. तुझे जो बात करना है, तू कर मगर अभी मत सो."

मेरी बात सुन कर कीर्ति फिर हँसने लगी. मुझे उसके हँसने का कारण समझ मे नही आया तो, मैने पुछा.

मैं बोला "अब क्यो हंस रही है."

कीर्ति बोली "मुझे कोई नींद नही आ रही. मैं तो सिर्फ़ तुम्हे परेशान कर रही थी."

मैं कुछ बोलने को हुआ तो उसने मेरी बात को काट कर खुद ही मेरी बात पूरी करते हुए कहा.

कीर्ति बोली "तू कभी नही सुधरेगी."

ये कह कर वो फिर खिलखिलाकर हँसने लगी. मगर इस बार उसकी हँसी मे मेरी हँसी भी शामिल हो गयी थी. इसके बाद वो मुझे ऐसे ही परेशान करती रही और हँसती रही. मुझे उसकी इन हरकतों और उसकी हँसी मे बहुत सुख मिल रहा था. हँसी और खुशी का ये दौर काफ़ी देर तक चलता रहा.

जब कीर्ति के मज़ाक करने का ये दौर थमा. तब उस ने मुझसे कहा.

कीर्ति बोली "जान 1:30 बज गया है. तुम्हे सुबह जल्दी उठना है. अब सो जाओ."

मैं बोला "लेकिन मुझे अभी तुझसे बहुत सी बात करना है. अभी तो मेरी तुझसे कोई बात हुई ही नही है."

कीर्ति बोली "जान मैं कोई भागी थोड़ी जा रही हूँ. तुम कल दिन मे मुझसे बात कर लेना. अब तुम दिन मे हॉस्पिटल मे रहोगे तो, हम रात के साथ साथ दिन मे भी बात कर सकेगे."

मैं बोला "हाँ तेरी बात सही है. ठीक है तो फिर अब सोया जाए."

कीर्ति बोली "ओके तो अब मेरी गुड नाइट किसी दो."

मैं बोला "गुड नाइट मुउउहह."

कीर्ति बोली "गुड नाइट जान मुउउहह."

इसके बाद कीर्ति ने कॉल रख दिया. अभी उसका कॉल रखना हुआ ही था कि, तभी मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मेरे कमरे के दरवाजे पर बड़े ही धीमे से एक दस्तक दी हो. मगर उसके बाद मुझे कोई हलचल समझ मे नही आई. जिससे मुझे लगा कि, ये मेरा वहम था. लेकिन फिर थोड़ी देर बाद मुझे एक हल्की सी दस्तक सुनाई दी.

अब ये बात साफ हो चुकी थी कि, कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. लेकिन शायद सबके जाग जाने की वजह से वो बहुत धीमे से दस्तक दे रहा है. जब तीसरी बार फिर दरवाजे पर दस्तक हुई तो, मैं दरवाजा खोलने के लिए उठ खड़ा हुआ.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:48 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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